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Literary Landscape

Fictions, Poems, Short stories, Satires ETC

कहानी – बदचलन

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हरिगोविंद विश्वकर्मा उसे लेकर मैं बुरी तरह उलझा था। ऐसा क्यों हुआ... उसने ऐसा क्यों किया... पूरे मामले को नए सिरे से समझने की कोशिश...

व्यंग्य : ‘अच्छे दिन’ आ जाओ प्लीज!

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हरिगोविंद विश्वकर्मा वहां बहुत बड़ी भीड़ थी। लोगों में जिज्ञासा थी। सब के सब एक बंकर में झांकने की कोशिश कर रहे थे। जानना चाहते...

व्यंग्य : राष्ट्रदादी-राष्ट्रनानी आंदोलन

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हरिगोविंद विश्वकर्मा वहां ढेर सारी महिलाएं बैठी थीं। सब अलग-अलग गुट में। एक जगह दो महिलाएं थीं। दोनों मुस्करा रही थीं। मुस्करा नहीं, बल्कि हंस रही...

व्यंग्य : हे मतदाताओं! तुम भाड़ में जाओ!!

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हरिगोविंद विश्वकर्मा हे मतदाताओं! मैं तुम्हें जनता-जनार्दन नहीं कहूंगा। मैं तो कहूंगा, तुम भाड़ में जाओ! मैं तुम्हारे आगे हाथ नहीं जोड़ने वाला। मैं तुम्हें इस...

व्यंग्य – मेरे देश के कुत्ते….. मेरे देश के कुत्ते !!!

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हरिगोविंद विश्‍वकर्मा सुबह-सबेरे घर से बाहर निकलकर मैं सड़क पर आया। स्टेशन तक पैदल जाने के मूड में था। उसी समय भौंकते कुत्तों का एक...