सुभाष पाठक ‘ज़िया’ के ग़ज़ल संग्रह ‘तुम्हीं से ज़िया है’ का लोकार्पण व ग़ज़ल की महफ़िल

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संवाददाता
मुंबई, मशहूर शायर सुभाष पाठक ‘ज़िया’ के नए ग़ज़ल संग्रह ‘तुम्हीं से ज़िया है’ का लोकार्पण मुंबई के कई वरिष्ठ शायरों की मौजूदगी में बांद्रा पश्चिम के रंग-शारदा में हुआ। मध्यप्रदेश के शिवपुरी के निवासी सुभाष पाठक के मुंबई आगमन पर इंशाद फाउंडेशन की ओर से नशिस्त का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर आयोजित नशिस्त में सुभाष पाठक ने अपने ग़ज़ल संग्रह से चुनिंदा ग़ज़लें सुनाकर अपनी असाधारण प्रतिभा का परिचय दिया। उनकी कई ग़ज़लों की श्रोताओं ने मुंक्त कंठ से प्रशंसा की। इस अवसर पर कवि सम्मेलन और मुशायरा का आयोजन किया गया।

वरिष्ठ शायर सागर त्रिपाठी ने कहा-

सदी समेटकर बस एक पल बना डाला।
तिरे जुनून में तेरा बदल बना डाला॥

तुझे रिझाने का बस एक ही तरीक़ा था।
तमाम जिस्म को हमने ग़ज़ल बना डाला॥

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वरिष्ठ गीतकार-शायर देवमणि पाण्डेय ने कहा-

कहाँ गई एहसास की ख़ुशबू, फ़ना हुए जज़्बात कहाँ।
हम भी वही हैं तुम भी वही हो लेकिन अब वो बात कहा।।

ख़्वाबों की तस्वीरों में अब आओ भर लें रंग नया।
चांद,समंदर,कश्ती, हम-तुम ये जलवे इक साथ कहाँ।।

शायर सिद्धार्थ शांडिल्य ने कहा-

वो तो कहाँ अब हम को मयस्सर उसकी कोई महफ़िल भी नहीं।
यूँ भी तो कुछ दीवाना उसका अब ये दिल-ए-बिस्मिल भी नहीं।।

हर इक ख्वाहिश ख़्वाब हमारा इक इक करके क़त्ल हुआ।
किसको दें इल्ज़ाम यहाँ अब कोई कहीं क़ातिल भी नहीं।।

शायर कुमार जैन ने कहा….

दर्द-ए-दुनिया दिल में है हाथों में अपने जाम है।
शहर के बदनाम लोगों में हमारा नाम है।।

जो हक़ीक़त का बयाँ करता है पूरे अज़्म से।
पत्थरों के शहर में वो आईना बदनाम है।।

शायर डॉ उदयभानु सिंह ने कहा-

महज़ क़िरदार की नुमाइश थी
कौन किसको कहाँ से पहचाने।

मैं भी हर वक़्त कहाँ मैं ही था
जिस घड़ी जो मिला वही जाने।।

शायरा ज़ीनत एहसान कुरैशी ने कहा….

रुसवाइयों का बोझ उठाना पड़ा मुझे।
उस बेवफ़ा के शहर से जाना पड़ा मुझे।।

तुम तो दिया जलाके मोहब्बत का चल दिए।
हर शाम आँधियों से बचाना पड़ा मुझे।।

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गायिका-शायरा पूनम विश्वकर्मा ने कहा….

कहानी सुनके मेरी रो पड़े उस बात के आँसू।
ये जो शबनम है इन पत्तों पे वो है रात के आँसू।।

ना जाने अपनी ग़ुर्बत पे इन्हें इतना गुमाँ क्यूँ है।
बहाती हैं ये आँखें अपनी ही औक़ात के आँसू।।

इंशाद फाउंडेशन के प्रवर्तक शायर नवीन ‘नवा’ ने कहा….

हो के हर क़ैद से आज़ाद भी मिल सकता हूँ।
तुझ से मैं बन के कोई याद भी मिल सकता हूँ।।

मुझ से मिलना हो तो फिर वक़्त कोई शर्त नहीं।
मैं तो शाइर हूँ मेरे बा’द भी मिल सकता हूँ।।

शायर संतोष सिंह ने कहा-

दोस्त अपना हक़ अदा करने लगे।
बे-वफ़ाई हम-नवा करने लगे।।

मेरे घर से एक चिंगारी उठी।
पेड़- पत्ते सब हवा करने लगे।।

युवा शायर राजेश ॠतुपर्ण ने कहा….

बर्क़, शोला न धुआँ, राख, हवा कुछ भी नहीं।
एक दिल ऐसे जला जैसे जला कुछ भी नहीं।।

इक तरफ़ तू है, तेरा ख़्वाब, तसव्वुर है तेरा।
इक तरफ़ मेरी निगाहों के सिवा कुछ भी नहीं।।

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शायर देवरूप शर्मा ने कहा….

कभी भगवान के हाथों बना इंसान मिट्टी का।
और अब इंसान के हाथों बना भगवान मिट्टी का।।

जिसको जुनून-ए-इश्क़ का मतलब हम को बताना पड़ता हो।

शायर मोईन अहमद देहलवी ने कहा….

मान मेरा रख लिया है।
सारी बातें मान कर बस।।

याद आ जाता है अल्लाह।
रास्ता सुनसान कर बस।।

संगीतकार अश्वनी कुमार ने भी एक रचना सुनाई। सभी शायरों ने ग़ज़लों और गीतों से समा बांध दिया। समारोह की अध्यक्षता डॉ उदयभानु सिंह और संचालन देवमणि पाण्डेय ने किया।

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