हरिगोविंद विश्वकर्मा
मनुष्य दावा करता है कि वह सामाजिक प्राणी है। इसी आधार पर यह स्वयंभू सामाजिक प्राणी कहता रहा है कि पशुओं के विपरीत वह सभ्य, सहिष्णु और सहनशील है। क्षमाशील तो इतना है कि अपराधी को भी माफ़ कर देने की समृद्ध परंपरा का पालन करता है। इतना ही नहीं इसका यह भी दावा है कि यह इंसान के मौलिक अधिकारों का सम्मान करता है। लेकिन लंबे-चौड़े दावे करने वाले सभ्य प्राणियों के इस समाज की हक़ीक़त को एक स्त्री के एक क़दम ने बेनक़ाब कर दिया। जी हां, यहां बात हो रही है उत्तर प्रदेश प्रांतीय सिविल सेवा (Uttar Pradesh Provincial Civil Service) यानी पीसीएस अधिकारी ज्योति मौर्या (PCS Officer Jyoti Maurya) की, जिनके बारे में यह सभ्य पुरुष इन दिनों उनका, यानी एक स्त्री का, पक्ष जाने बिना उनके प्रति कमेंट करने में निर्ममता और असहिष्णुता की सारी सीमाएं, सारी मर्यादाएं लांघ गया है। कहना न होगा कि कमोबेश स्त्रियों से डरने वाला हर पुरुष इन दिनों पितृसत्तावादी स्टेटमेंट (patriarchal statement) दे रहा है और सोशल मीडिया समेत हर मंच पर ज्योति मौर्या को दोषी ठहरा रहा है।
वैसे तो सभ्य और सामाजिक प्राणी होने का दावा करने के बावजूद दुनिया का कमोबेश हर समाज पुरुष प्रधान ही नहीं, बल्कि स्त्री-विरोधी रहा है। लेकिन यह सभ्य समाज इस सीमा तक स्त्री-विरोधी है, यह किसी भी संवेदनशील इंसान ने कल्पना तक नहीं की थी। हर समझदार आदमी हतप्रभ है कि सामाजिक प्राणियों का यह सभ्य समाज किसी स्त्री के प्रति इतना निर्मम, असंवेदनशील और असहनशील कैसे हो सकता है। कथित तौर पर सभ्य प्राणियों का यह समाज स्त्री के प्रति कितनी नफ़रत और घृणा से भरा है, इसका उदाहरण तो देखिए कि यह समाज इस बात को हज़म ही नहीं कर पा रहा है कि कोई स्त्री अपने पति को तलाक़ देने का क़दम कैसे उठा सकती है। यानी यह मानता है कि तलाक़ देने का सर्वाधिकार केवल पुरुष का है। इस सभ्य समाज के अनुसार स्त्री को तो चरणों की दासी बनकर अपने स्वामी यानी पति की सेवा में लगे रहना चाहिए। भले पति डिज़र्व करता हो या नहीं। कोई स्त्री, चाहे वह पीसीएस ही क्यों न हो, इस परिपाटी के विरुद्ध कैसे जा सकती है।
पहली बार जब ज्योति मौर्या और आलोक मौर्या का मामला सुर्खियों में आया और लोगों को पता चला कि तलाक़ की पहल करने वाली पत्नी यानी महिला पीसीएस अधिकारी हैं और पति यानी पुरुष सफ़ाई कर्मचारी, तभी उसने ज्योति को दोषी और आलोक को बेचारा मान लिया, क्योंकि सती प्रथा के समर्थक इस समाज के अनुसार कोई पत्नी अपने पति से ऊपर की कुर्सी पर कैसे बैठ सकती है। कोई पत्नी अपने पति से ज़्यादा मशहूर और योग्य कैसे हो सकती है। कोई पत्नी पति से ज़्यादा पैसे कैसे कमा सकती है। यानी पत्नी होकर पति से ज़्यादा क़ाबिल और ज़्यादा लोकप्रिय होना, सभ्य प्राणियों के इस समाज में स्त्री का अक्षम्य अपराध है। देश में विधि का शासन न होता तो सभ्य प्राणियों का यह समाज निश्चित तौर पर ज्योति मौर्या को फ़ांसी पर लटका देता या ज़िंदा जला देता, क्योंकि पत्नी बनने वाली स्त्री को सभ्य प्राणियों के इस समाज ने नौकरानी का दर्जा दे रखा है। ऐसे में कोई नौकरानी स्वामिनी कैसे हो सकती है।
पति से ज़्यादा योग्य और ज़्यादा बुद्धिमान स्त्री अगर पीसीएस रैंक के अधिकारी पद पर आसीन है और उसका पति चौथे दर्जे का सफ़ाई कर्मचारी है, तब तो स्त्री का गुनाह कई गुना और बढ़ जाता है। इसी बिना पर सभ्य समाज ने अदालत से पहले ही ज्योति मौर्या को कठघरे में खड़ा कर दिया। ज्योति मौर्या का गुनाह यह भी है कि चरणों की दासी बनी रहने की बजाय उन्होंने अपने सफ़ाईकर्मी पति से तलाक़ के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटा दिया। सभ्य प्राणियों का यह समाज ज्योति मौर्या के बारे में असभ्य होकर जो मन में आ रहा है वही लिख और बोल रहा है और यह लेखन उसकी बिरादरी के लोगों को ख़ूब पसंद आ रहा है, लोग ख़ूब पढ़ भी रहे हैं। इसीलिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन दिनों ज्योति मौर्या और आलोक मौर्या के बीच चल रहा विवाद ख़ूब ट्रेंड कर रहा है।
सोशल मीडिया तो एक अनियंत्रित प्लेटफॉर्म है। उसकी जवाबदेही अभी तक तय ही नहीं की जा सकी है, लेकिन समाज के प्रति जवाबदेह मेन स्ट्रीम मीडिया की हरकतों को देखिए। शर्म आ जाएगी। अपने को राष्ट्रीय अख़बार कहने वाले कई समाचार पत्रों ने बिना वेरीफिकेशन के यह ख़बर छाप दी कि ज्योति मौर्या के प्रकरण के प्रकाश में आने के बाद लोग सतर्क हो गए हैं। वे अपनी पत्नियों को पढ़ाना नहीं चाहते हैं और इलाहाबाद में सिविल सेवा की तैयारी कर रहीं तक़रीबन 150 महिलाओं को उनके पतियों ने घर वापस बुला लिया और चूल्हा-चौका करने को कह दिया। यह ख़बर ग़लत और बेबुनियाद है। इतना ही नहीं, कई लोग सुर्खियां बटोरने और सोशल मीडिया पर कमाई करने के लिए पढ़ाई कर रही अपनी पत्नियों से उम्र भर दासी बने रहने के हलफ़नामे पर हस्ताक्षर करवा कर उसे मेन स्ट्रीम मीडिया को भेज रहे हैं। इस तरह के कार्य को समाजविरोधी कार्य को तरजीह न देने की जगह, ख़बरों के अकाल से जूझ रहा मेन स्ट्रीम मीडिया उस हलफ़नामे को हाथों हाथ ले रहा है।
यहां सवाल यह है कि यह मान लेना कहां तक उचित है कि ज्योति मौर्या के पति आलोक मौर्या शत-प्रतिशत सच बोल रहे हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि वे अपनी पत्नी का नाम ग़ैरपुरुष से जोड़ने का सामाजिक अपराध कर रहे हैं। इतना ही नहीं वे पत्नी को उसके कथित प्रेमी के साथ शारीरिक संबंध बनाते हुए रंगे हाथ पकड़ने का दावा भी कर रहे हैं। प्रथम दृष्टा इस तरह के दावे अतिरंजनापूर्ण और ग़लत होते हैं। यह फ्रस्ट्रेशन का नतीजा होता है। उनका अपनी पत्नी से विवाद लंबे समय से चल रहा है। यह मामला अदालत में विचाराधीन है, लेकिन आलोक की हरकतों से साफ़ लग रहा है कि अदालती लड़ाई में वे जब कमज़ोर पड़ने लगे तो विक्टिम कार्ड खेल दिया। आलोक अच्छी तरह जानते थे कि सभ्य प्राणियों का यह समाज वाक़ई असभ्यता की हद तक स्त्री विरोधी है और उन्हें रातोंरात पहले बेचारा बनाएगा फिर नायक बना देगा। एक ऐसा नायक जो बेचारा है और तलाक़ का दुस्साहसी पहल करने वाली अपनी शक्तिशाली पत्नी से इंसाफ़ की लड़ाई लड़ रहा है।
अगर ज्योति मौर्या और आलोक मौर्या के बयानों पर ग़ौर किया जाए तो ज्योति परिपक्व और आलोक अपरिपक्व नज़र आ रहे हैं। आम जीवन में भी हम देखते हैं कि हर पति यही कोशिश करता है कि समाज और घर में उसकी हैसियत पत्नी से अधिक हो। वह सामाजिक तौर पर पत्नी से ज़्यादा पैसे कमाए और पत्नी से ज़्यादा योग्य और बुद्धिमान माना जाए। इसीलिए जहाँ पत्नियां बीस हैं, यानी पति से ज़्यादा बुद्धिमान, योग्य और कमाने वाली हैं, वहां घर में उन्हें पति के टॉन्ट यानी ताने सहने पड़ते हैं। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो अमूमन हर पति अपनी ज़्यादा बुद्धिमान और योग्य पत्नी को राइवल मान कर उसे नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता है। वह बात-बात पर उसे हतोत्साहित करता रहता है। यानी मानसिक तौर पर उसे टॉर्चर करता रहता है। निश्चित तौर पर ज्योति मौर्या के मामले में भी यही हुआ है। आलोक जिस तरह से पति-पत्नी के मर्यादित रिश्ते की धज्जियां उड़ा रहे हैं, उससे यह साफ़ है कि घर में शर्तिया वह अपनी पत्नी को टॉर्चर करते रहे होंगे।
सबसे बड़ी बात ज्योति मौर्या जहीन इंसान की तरह बहुत संयमित और संतुलित बयान दे रही हैं। बहुत ज़्यादा कुरेदने पर भी वह यही कह रही हैं कि यह पति और पत्नी के बीच का मामला है। वह यह भी कह रही हैं कि चूंकि प्रकरण अदालत में विचाराधीन है तो उन्हें जो भी कहना है अदालत में ही कहेंगी। लेकिन आलोक मौर्या जिस तरह का बयान दे रहे हैं, उससे साफ़ लग रहा है कि बौखलाहट में उन्होंने अपना विवेक और संयम खो दिया है और जिस स्त्री के साथ 11-12 साल एक ही छत के नीचे रहे और दो बच्चियों का बाप बने, उसी स्त्री के चरित्र की चादर वह खुद चर्र-चर्र फाड़ रहे हैं। इसमें उन्हें साथ मिल रहा है, स्त्रियों से जलने वाले कथित सभ्य प्राणियों के समाज का। सभ्य प्राणियों के समाज के पुरुष एक तरह से आलोक मौर्या के कंधे पर बंदूक रखकर समस्त स्त्रियों को निशाना साध रहे हैं।
कथित सभ्य प्राणियों का यह समाज ज्योति मौर्या और आलोक मौर्या प्रकरण को इतनी तवज्जो इसलिए भी दे रहा है ताकि वो अपने पति से ज़्यादा बुद्धिमान और योग्य स्त्रियों को चेतावनी दे सकें। ताकि भविष्य में कोई भी स्त्री ज्योति मौर्या के नक्शे क़दम पर चलना तो दूर चलने की कल्पना तक ना करें। हर स्त्री अपने मूर्ख पति की भी अनुचित हरकतों को झेलती रहे और उसके चरणों की दासी बनी रहे। पति चाहे जो भी कहे या करे, पत्नी उसे स्वामी कहती रहे और उसके बिस्तर को गर्म करती रहें, क्योंकि स्त्री को सभ्य प्राणियों का यह समाज सबला नहीं ‘अबला’ मानता है। यह स्त्री विरोधी समाज किसी भी स्त्री को सबला नहीं बनने देना चाहता। इसीलिए तो उसने मर्यादा के नाम पर स्त्री के लिए घूंघट और बुरके का प्रावधान किया है। फिर अबला के लिए तो राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त भी कह चुके हैं, -अबला तेरी यही कहानी आंचल में है दूध और आखों में पानी।
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