अगर किसी ने अपराध किया है तो सरकार और पुलिस को बेशक पूरा अधिकार है कि उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करे, लेकिन किसी भी सरकार ही नहीं, बल्कि अदालत, संस्थान या जांच एजेंसी जैसे संस्थानों को भूलकर भी ऐसा कोई भी क़दम नहीं उठाना चाहिए, जो प्रथम दृष्या ही पक्षपातपूर्ण या पूर्वाग्रहित लगता हो। माना जा रहा है कि यहीं पहले मुंबई पुलिस और अब महाराष्ट्र पुलिस ने यही गड़बड़ी कर दी गई। महाराष्ट्र पुलिस ने जिस तरह से रिपब्लिक टीवी के मालिक अर्नब गोस्वामी को उनके घर से गिरफ़्तार किया और जिस तरह से कई मोर्चे पर कार्रवाई हो रही है, उससे प्राइमा फेसाई यही लग रहा है कि उद्धव ठाकरे की सरकार और राज्य की पुलिस पालघर साधु हत्याकांड और अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत और टीआरपी घोटाले के मामले में आक्रामक रिपोर्टिंग के लिए अर्नब गोस्वामी से अपना खुन्नस निकाल रही है।
कुछ साल बाद जब भी इस प्रकरण की चर्चा होगी, तो लोगों को यक़ीन नहीं होगा कि जीवन भर हिंदुत्व की पैरोकार रहे हिंदू हृदय सम्राट बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी उद्धव ठाकरे अपने चैनल पर केवल और केवल हिदुत्व-हिंदुत्व चिल्लाने वाले अर्नब गोस्वामी को ही अपराधियों की तरह घसीटते हुए उनके घर से पुलिस स्टेशन ले गई। यहां कांग्रेस एक स्मार्ट राजनीतिक दल के रूप में सामने आई है, उसे बड़ी चतुराई से राग हिंदुत्व आलापने वाले दो लोगों को आपस में ही लड़वा दिया।
देश में कोरोना संक्रमण काल में इस महामारी से डटकर लड़ने की ज़रूरत थी, क्योंकि देश में होने वाले कोरोना संक्रमण और मौत में से एक तिहाई मामले महाराष्ट्र में सामने आए हैं, लेकिन सरकार इस चीनी वाइरस की बजाय एक ख़ास समाचार माध्यम के साथ उलझ गई है। महाराष्ट्र सरकार कोरोना की बजाय रिपब्लिक टीवी और उसके प्रमोटर पत्रकार अर्नब गोस्वामी से ही लड़ने लगी है। अब तक उन्हें पांच बार एनएम जोशी मार्ग पुलिस स्टेशन में बुलाया जा चुका है। इससे रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी के तेवर ढीले पड़ने की बजाय और आक्रामक हो गए हैं। वे अपने हिंदी अंग्रेज़ी दोनों चैनलों पर सीधे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को ललकार रहे हैं।
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महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण के अब भी औसतन 10 हज़ार मामले और लगभग 300 मौतें रोज़ हो रही है। राज्य में अब तक 42 हज़ार लोग कोरोना से अपनी जांन गंवा चुके हैं, जबकि 16 लाख लोग इस महामारी से संक्रमित हो चुके हैं। राज्य में सारा कारोबार ठप पड़ा है। लेकिन सरकार की इससे निपटने में कोई भूमिका नज़र नहीं आ रही है। शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन वाली मौजूदा सरकार का सारा फोकस पहले कंगना राणावत थीं, तो इन दिनों उसका पूरा ध्यान रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी की टीम है। इससे रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी की लोकप्रियता ही बढ़ रही है।
महाराष्ट्र सरकार पहले पालघर में साधुओं की पीट-पीट कर की गई हत्या, उसके बाद अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत पर मुंबई पुलिस की जांच के नाम पर लीपापोती और अब टीआरपी घोटाले में एफ़आईआर में नाम न होने के बावजूद रिपब्लिक टीवी का नाम घसीटने और उसमें काम कर रहे लोगों को पूछताछ के लिए समन भेजने के मुद्दे पर अर्नब गोस्वामी की आक्रामक रिपोर्टिंग से खुन्नस खाए हुए है। आरोप लगाया जा रहा है कि इसलिए अपनी खुन्नस निकालने के लिए राज्य सरकार रिपब्लिक टीवी को बंद करने के रिपब्लिक टीवी पर कई मोर्चे पर हमला कर रही है। अर्नब गोस्वामी तो यहां तक आरोप लगा रहे हैं कि राज्य सरकार इस टीवी न्जूज़ चैनल को बंद करने के अपने मास्टर प्लान पर काम कर रही है।
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आज के दौर में किसी सरकार या किसी जांच एजेंसी से निष्पक्षता की उम्मीद कम से कम नहीं करनी चाहिए। मौजूदा दौर में कई ऐसे मामले भी आए हैं, जिनमें कई अदालतों ने संदिग्ध फ़ैसले दिए हैं। ऐसे में टीवी न्यूज़ चैनलों या समाचार पत्रों से भी निष्पक्षता की उम्मीद तो बिल्कुल नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वे राजस्व के लिए केवल और केवल विज्ञापनदाताओं पर निर्भर रहते हैं और विज्ञापनदाता बड़ी-बड़ी कंपनियां होती हैं, जिनका लाभार्जन एकमात्र लक्ष्य होता है। इसीलिए हर टीवी चैनल या समाचार पत्र वैचारिक रूप से किसी न किसी पार्टी के पक्ष ज़रूर झुका हुआ नज़र आता है। इसे समाचार माध्यमों की मजबूरी कहना अधिक प्रासंगिक रहेगा।
इस तरह की परिस्थितियों में पुलिस जिस तरह सुबह-सुबह अर्नब के घर पहुंची और उनके साथ कतिथ तौर पर मारपीट की, उससे साफ़ लग रहा है कि राज्य सरकार बदले की भावना से कार्रवाई कर रही है। यही वजह है कि अलीबाग की अदालत ने अर्नब को पुलिस रिमांड पर लेने की सरकार की मांग को ख़ारिज़ किया और उन्हें एफ़आईआर में दर्ज़ भारतीय दंड संहिता के अनुसार 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा। अदालत ने पुलिस से यह भी पूछा कि दो साल पहले बंद कर दिए गए मामले में अदालत की अनुमति के बिना कैसे रिओपन किया गया। ज़ाहिर है, यहां पुलिस की कम उद्धव ठाकरे सरकार की ज़्यादा किरकिरी हो रही है।
16 अक्टूबर 2020 को अचानक जारी आदेश में बहुचर्चित टीआरपी घोटाले की जांच करने वाली मुंबई पुलिस की टीम का सुपरविज़न कर रहे डीसीपी नंद कुमार ठाकुर का तबादला ट्रैफिक विभाग में कर दिया गया। हैरानी की बात यह है कि नंदकुमार ठाकुर अभी महज छह महीने पहले ही क्राइम ब्रांच में नियुक्ति हुई थी। टीआरपी घोटाले की जांच वैसे कुछ महीने पहले पुलिस सेवा में बहाल किए गए एनकाउंटर स्पेशलिस्ट सचिन वजे कर रहे हैं, लेकिन पूरी जांच डीपीसी नंद कुमार के सुपरविज़न में ही हो रही थी। क्राइम ब्रांच में नंदकुमार की जगह डीपीसी प्रकाश जाधव का जगह लेंगे।
मीडिया रिपोर्ट में यह भी कहा जा रहा है कि डीसीपी नंद कुमार ने कथित तौर पर कहा था कि टीआरपी घाटाले में रिपब्लिक टीवी के ख़िलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं मिल रहे हैं। इसके तुरंत बाद ही उनको ट्रांसफर का नोटिस थमा दिया गया। मुंबई पुलिस ने यह तर्क दिया है कि नंद कुमार ने ख़ुद तबादले के लिए निवेदन किया था। लेकिन मुंबई पुलिस का यह तर्क किसी के गले नहीं उतर रहा है, क्योंकि अभी छह महीने पहले ही डीसीपी को क्राइम ब्रांच में डीसीपी बनाया गया था। सबसे अहम यह है कि इस तबादले के बाद मुंबई पुलिस ख़ासकर के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह की भूमिका सवाल के घेरे में आ गई है, क्योंकि उन्होंने विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला करके कहा था कि टीआरपी घोटाले में रिपब्लिक टीवी शामिल है।
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शुक्रवार को ही मुंबई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी के सलाहकार संपादक प्रदीप भंडारी, जिन पर चिल्ला-चिल्ला कर और दौड़-दौड़ कर रिपोर्टिंग करने का आरोप है, को गिरफ्तार कर लिया था और उन्हें 9 घंटे तक खार पुलिस स्टेशन में बैठाए रखा। प्रदीप भंडारी ने आरोप लगया है कि उन्हें हिरासत के दौरान एक गिलास पानी भी नहीं दिया गया और उनके तीनों मोबाइल फोन को पुलिस ने ज़ब्त कर लिया है। इससे पहले रायगढ़ पुलिस ने रिपब्लिक टीवी के रिपोर्टर अनुज कुमार सहित तीन कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया था। इन घटनाओं के बाद मीडिया सर्कल में खुलेआम कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस खुन्नस निकलने के लिए रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी को टारगेट कर रही है।
इससे पहले मुंबई पुलिस ने अर्नब गोस्वामी को शोकॉज नोटिस दिया था और उन्हें 16 अक्टूबर को वरली एसीपी ऑफिस में तलब किया था, लेकिन अर्नब पुलिस के सामने हाज़िर नहीं हुए। साधुओं की हत्या, लव जेहाद और गर्मियों में लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूरों के पलायन जैसे मामले में रिपब्लिक टीवी की आक्रामक रिपोर्टिंग से पुलिस को शांति भंग होने और दंगा भड़क का खतरा लगता है। इसलिए उनके ख़िलाफ़ सीआरपीसी की धारा 111 के तहत “चैप्टर प्रोसिडिंग” (chapter proceedings) की कार्यवाही शुरू की गई। बहरहाल, अर्णब गोस्वामी के वकील अबाद पोंडा कारण बताओ नोटिस का जवाब देने पुलिस के पास पहुंचे। अब अर्नब गोस्वामी को 24 अक्टूबर को मामले में पेश होने को कहा गया है।
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अर्नब गोस्वामी को मुंबई में वरली डिवीजन के एसीपी ने भड़काऊ रिपोर्टिमग करने के आरोप में शो काज नोटिस भेजा था। इस धारा के मुताबिक अब अर्नब को 10 लाख रुपए का बॉन्ड भरना होगा जिसमें यह वादा करना होगा कि अपने टीवी चैनल पर ऐसी कोई टिप्पणी नहीं करेंगे, जिससे शांति भंग हो और सांप्रदायिक दंगा फैलने की ख़तरा पैदा हो। इसके अलावा टीआरपी घोटाले में पुलिस ने चैनल से जुड़े दो और लोगों निरंजन नारायण स्वामी और अभिषेक कपूर को समन भेजा गया था। पुलिस की सक्रियता से तय हो गया है कि अर्नब को अगर मुंबई में रहकर रिपोर्टिंग करनी है तो उन्हें अपनी स्टाइल बदलनी होगी और आक्रामक पत्रकारिता की जगह उदार पत्रकारिता करनी होगी। लेकिन अर्नब नरम होने की बजाय और आक्रामक हो गए हैं।
यहां यह बता देना बहुत ज़रूरी है कि पालघर में दो साधुओं समेत तीन लोगों की पीट-पीट कर हत्या करने के बाद रिपब्लिक टीवी के प्रमोटर अर्नब गोस्वामी महाराष्ट्र की विकास अघाड़ी सरकार, ख़ासकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के ख़िलाफ़ बहुत अधिक मुखर थे। उन्होंने इस मुद्दे पर सोनिया गांधी को भी टारगेट किया था। इसके बाद कहा जाने लगा कि रिपब्लिक टीवी भाजपा के एजेंडे पर काम कर रही है। सुशांत की रहस्यमय मौत के बाद तो रिपब्लिक टीवी के निशाने पर मुंबई पुलिस आ गई थी। अर्नब मानते हैं कि सुशांत केस में पुलिस ने ढाई महीने बिना किसी एफ़आईआर के मैरॉथन पूछताछ करने में ही समय जाया कर दिया। लिहाजाल अर्नब ने सीधे परमबीर सिंह को निशाना बनाया था। यह भी कहा सकता है कि रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी ने इस दौरान कई बार मर्यादित रिपोर्टिंग की लक्षमण रेखा को भी पार कर गए।
यहा सबसे अहम यह बात है अगर रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस को जानबूझ कर टारगेट कर रहे थे और मर्यादित रिपोर्टिंग की लक्षमण रेखा की को लांघ रहे है, तो राज्य सरकार या मुंबई पुलिस को एजेंसी न्यूज़ ब्रॉडकास्ट असोसिएशन यानी एनबीए के यहां शिकायत करनी चाहिए थी अथवा बॉम्बे हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट दरवाज़ा खटखटाना चाहिए था। लेकिन उस समय न तो महाराष्ट्र सरकार और न ही मुंबई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी पर कोई कार्रवाई की। इसलिए अब जो कुछ किया जा रहा है, वह निष्पक्ष सोचने वाले हर नागरिक को पक्षपातपूर्ण और पूर्वाग्रहित लग रहा है।
बहरहाल, सुशांत केस में वाकई ढाई महीने एफ़आईआर दर्ज न करने और फिल्मकार अनुराग कश्यप के ख़िलाफ़ अभिनेत्री पायल घोष की इंडियन पैनल कोड की धारा 376 के तहत दर्ज प्राथमिकी के बावजूद कोई भी कार्रवाई न करने वाली मुंबई पुलिस अचानक से रिपब्लिक टीवी और उससे जुड़े लोगों की नकेल कसने में लग गई है। पुलिस की उम्मीद से ज़्यादा सक्रियता संदेह पैदा कर रही है। सबसे अहम टीआरपी जैसे छोटे मामले में पुलिस कमिश्नर ख़ुद मीडिया को संबोधित करने के लिए प्रकट हो गए और सीधे रिपब्लिक टीवी को निशाना बना दिया। वह किसी के गले नहीं उतर रहा है।
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यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि रिपब्लिक टीवी आक्रामक या चिल्लाकर या दौड़कर या छाती पीटकर की जा रही पत्रकारिता या एक्टिंग के चलते ही टीआरपी गेम में सबसे आगे है। टीआरपी गेम में पिछड़ने वाले बाक़ी सभी चैनल एकजुट होकर इस चैनल पर हमला बोल रहे हैं। अर्नब की पत्रकारिता से असहमत हुआ जा सकता है या इस तरह की ‘कॉमेडी शैली’ को नापसंद किया जा सकता है या इसका खुला विरोध किया जा सकता है और कंटेंट देखने वाली एजेंसी न्यूज़ ब्रॉडकास्ट असोसिएशन यानी एनबीए से शिकायत की जा सकती है। लेकिन मुंबई पुलिस जिस तरह से ख़ुद एक पक्ष बन गई है, वह उचित जान नहीं पड़ता। रिपब्लिक टीवी से पूरे देश में सैकड़ों पत्रकारों समेत हज़ारों लोग और उनका परिवार जुड़ा है। अगर रिपब्लिक टीवी पर अर्थिक चोट पहुंची तो ज़ाहिर है, इसका असर इन सभी परिवारों पर भी पड़ेगा, जिनके लोग इस टीवी से जुड़े हैं।
वस्तुतः हरियाणा में पैदा हुए भारतीय पुलिस सेवा के 1988 बैच के अधिकारी परमवीर सिंह अक्सर सुर्खियों में रहे हैं। सबसे अधिक चर्चा उन्हें तब मिला, जब वह हेमंत करकरे की अगुवाई वाली एटीएस की टीम का हिस्सा थे। एटीएस की उसी टीम ने दुनिया को हिंदू आतंकवाद की थ्यौरी के बारे में बताया था और कहा कि आतंकवादी केवल मुसलमान नहीं होते बल्कि हिंदू भी होते हैं। एटीएस ने मालेगांव बमकांड में साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर और कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित समेत बड़ी संख्या में लोगों को आतंकवादी करार देकर गिरफ़्तार किया। सभी को टॉर्चर ही नहीं किया बल्कि लंबे समय तक जेल में भी रखा।
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पिछले चुनाव में भोपाल से भाजपा सांसद चुनी गईं साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर ने तो सीधे परमबीर सिंह पर हिरासत के दौरान पीटने के आरोप लगाया था। यानी परमबीर सिंह पर एक महिला ने टॉर्चर करने का आरोप लगाया है। एक अन्य आरोपी कर्नल पुरोहित की पत्नी डॉ. अपर्णा पुरोहित ने भी इसी तरह का आरोप लगाते हुए कहा था कि परमबीर सिंह ने उनके पति को बहुत अधिक टर्चर किया। यहां यह बताना भी ज़रूरी है कि साध्वी प्रज्ञा की गिरफ़्तारी का शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने खुला विरोध किया था। उस समय जब भाजपा के नेता चुप्पी साधे हुए थे, तब बाल ठाकरे, शिवसेना और पार्टी का मुखपत्र ‘सामना’ और ‘दोपहर का सामना’ बहुत मुखर थे और एटीएस पर हिंदू आतंकवाद की थ्यौरी गढ़ने का आरोप भी लगा रहे थे। यह भी अजीब संयोग है कि साध्वी प्रज्ञा को पीटने के आरोपी परमबीर सिंह बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे के कार्यकाल में ही मुंबई के पुलिस कमिश्नर बनाए गए।
ऐसे में यह कहना समीचीन होगा कि अभिनेत्री कंगना राणावत ने जिस समय मुंबई को ‘पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर’ यानी पीओके कहा था, उस समय भले मुंबई पीओके जैसी न रही हो, लेकिन पिछले कुछ समय से स्कॉटलैंड यार्ड के समकक्ष मानी जाने वाली मुंबई पुलिस जिस तरह का काम कर रही है, उससे इस बात में दो राय नहीं कि देश की आर्थिक राजधानी में हालात बिल्कुल ही पीओके जैसे हो गए हैं। इसीलिए इस शहर में आम आदमी अपने मौलिक अधिकारों को लेकर आशंकित हो गया है। यहां वही हालत हो रही है कि पानी में रहकर मगरमच्छ से दुश्मनी करना अपना नुकसान कराना है। इससे स्पष्ट है कि आने वाले दिन रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी के लिए बुरे हो सकते हैं, क्योंकि उनका मुख्यालय मुंबई में है।
लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा
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