संवाददाता
मुशायरों में कभी-कभी कुछ ऐसे शेर सुनने को मिल जाते हैं कि बरबस ही कालजयी ग़ज़लगो दुष्यंत कुमार की याद ताजा हो उठती है। “ज़माने भर की लाशों पर भी हो जाए खड़ी नफ़रत, पर उसका क़द मुहब्बत के बराबर हो नहीं सकता…” जैसा शेर उतनी ही गहराई लिए हुए है। तभी तो इस शेर को पहली बार सुनकर श्रोता 1960 और 1970 के दशक की तरफ़ खिंचते चले जाते हैं, जब देश में दुष्यंत कुमार जैसे फनकार अपनी रचनाओं से श्रोताओं पर जादू कर देते थे।
दरअसल, यह शेर रविवार की शाम मुंबई के बांद्रा पश्चिम स्थित रंग शारदा में आयोजित ‘नस्ल-ए-नौ भारत’ में दर्शकों को सुनने को मिला। आयोजन में शामिल लोगों के विशेष आग्रह पर सबसे अंत ग़ज़ल पढ़ने आए ‘नस्ल-ए-नौ भारत’ के प्रवर्तक और इंशाद फाउंडेशन के प्रमुख नवीन जोशी ‘नवा’ ने एक ग़ज़ल सुनाई और उसका एक शेर सुनकर हर किसी के ज़बान से बरबस वाह-वाह निकल पड़ा। नवा के इस शेर को सुनकर दुष्यंत कुमार की परंपरा ताज़ा हो उठी। श्रोताओं ने अपनी सीट से खड़े होकर नवा साहब को दाद दी। ज़्यादातर श्रोताओं को वह शेर सुनते ही कंठस्थ हो गया।
‘नस्ल-ए-नौ भारत’ का आयोजन देश में युवा शायरों को मंच प्रदान कर रहे इंशाद फाउंडेशन ने सुख़न सराय और बज़्म-ए-यारान-ए-अदब के साथ मिलकर किया, जिसमें देश के कोने-कोने से आए 15 चुनिंदा युवा शायरों ने अपनी एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचनाओ से शायरी के कद्रदानों का दिल जीत लिया। कुल मिलाकर ‘नस्ल-ए-नौ भारत’ ज़बरदस्त क़ामयाब रहा। लगभग एक हजार दर्शकों क्षमता वाला रंगशारदा ऑडिटोरियम खचाखच भरा हुआ था। कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रगान से हुई। उसके बा’द 26/11 के शहीदों को मौन श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
‘नस्ल-ए-नौ भारत’ की शुरुआत युवा शायर शिवम सोनी की प्रस्तुति से हुई। शिवम ने “छिड़ी है जंग इज़्ज़त और वफ़ा में, भली लड़की बहुत तकलीफ़ में है…” सुनाकर भरपूर तालियां और वाहवाही बटोरीं। इसके बाद आए अंश प्रताप सिंह ग़ाफ़िल। उन्होंनें “तूने तस्वीर में जो दर्द उकेरा है मेरा, ऐ मुसव्विर! ये मेरे दर्द का चौथाई है…” इसी तरह शायर ऋषभ शर्मा ने अपनी रचना “जिनको चारागरों की सुइयाँ नहीं चुभती हैं, ऐसे बच्चों को कोई बात चुभी होती है…” पेश किया तो शरजील अंसारी ने “अजीब बात है जब टूटता है दिल ‘शरजील’, कुछ और पहले से बेहतर धड़कने लगता है…” सुनाकर दाद हासिल की।
इस महफ़िल की यह ख़ासियत रही कि हर शायर पिछले शायर से बेहतर नज़र आ रहा था। रितेश सिंह ने “जब मैं दरिया था तो कितनी तिश्नगी थी, अब मैं सहरा हूँ मगर प्यासा नहीं हूँ…” पेश किया तो शायर इमरान राशिद ख़ान
“मैं हूँ जुगनू वो है सूरज उसको ख़ुद पर नाज़ है, रात होने दीजिए ख़ुद फैसला हो जाएगा…” ने सुनाकर तालियां बटोरी। आशुतोष मिश्रा अज़ल ने “कर ज़रा और इज़ाफ़ा मेरी हैरानी में, मेरी तस्वीर बना बहते हुए पानी में…” सुनाया तो कुशल दानेरिया ने तहत में “पढ़ाने का अगर मतलब है हाथों से निकल जाना, ख़ुदारा फिर मेरी बेटी भी हाथों से निकल जाए…” पढ़कर वाहवाही लूटी।
सोशल मीडिया के नए स्टार अश्विनी मित्तल ऐश ने कई रचनाओं के साथ-साथ उम्दा शेर “अचानक तोड़कर चश्मा हमारा, किसी ने खोल दीं आँखें हमारी…” पढ़ा तो दर्शन दीर्घा में बैठे युवत-युवतियां उका ऑटोग्राफ लेने के लिए मंच पर चढ़ गए। इसी तरह विष्णु विराट ने अपना बेहतरीन शेर “आप जो बैठने नहीं देते, आप इक रोज़ कुर्सियाँ देंगे…” पेश किया। मुशायरे का बढ़िया संचालन कर रहे तनोज दाधीच कहां पीछे रहने वाले रहने वाले थे। वह “ख़ुद का ही आसमान है काफ़ी ‘तनोज’ को, जलता नहीं वो और किसी की उड़ान से…” सुनाकर जबरदस्त प्रशंसा के हक़दार बने।
सलमान सईद भी अपनी रौ में दिखे और जब उन्होंने तहत में “ये मेरे ग़म तो, किसी और पे जचने से रहे, ये वो कपड़े है जो फैशन में नहीं आ सकते…” सुनाया तो लोगों ने खड़े होकर अभिवादन किया। उनके बाद अपनी रचना पेश करने आए सौरभ सदफ़ ने “दूर से सिर्फ़ इमारत ही गिरी दिखती है, अस्ल नुक़सान तो मलबे से पता चलता है…” से ख़ूब तालियां बटोरी तो चिराग़ शर्मा के शेर “उन्होंने अपने मुताबिक़ सज़ा सुना दी है, हमें सज़ा के मुताबिक़ बयान देना है…” को सुनते ही हॉल तालियों से गूँज उठा। इसी तरह यासिर ख़ान इन’आम के शेर “किराएदार की आँखों में आ गए आँसू, बनाये बैठे ठगे बच्चे मकान कागज़ पर…” दर्शकों को ख़ूब पसंद आए।
मुशायरे की शुरुआत में प्रयोग के तौर पर बिलाल तेलगी, तौसिफ़ कातिब, ज़ीशान साहिर, रितिका रीत और तारीक़ जमाल अंसारी जैसे लगभग दो दर्जन युवा शायरों का कोलाज सजाया गया, जिसमें हर शायर ने दो-दो शेर पढ़े। इसमें भी कई शायरों ने बेहतरीन शेर पढ़कर दर्शकों को हैरान कर दिया। इस मुशायरे की तैयारी लगभग चार महीने से चल रही थी और उसका परिणाम ये रहा कि ये मुशायरा इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। रंग शारदा इतना खचाखच शायद कभी नहीं भरा रहा होगा, जितना 26 दिसंबर 2023 की शाम भरा हुआ था।
वरिष्ठ शायर देवमणि पांडेय ने मुशायरे के बाद कहा, ऐसा कम होता है जब सभी शायर कमाल के हों। मगर ‘नस्ल ए नौ भारत’ मुशायरा ऐसा हुआ। बारी-बारी से सभी शायरों ने अपने उम्दा कलाम पेश करके कमाल किया। इंशाद फाउंडेशन का यह मुशायरा बेमिसाल रहा। पूरे मुशायरे के दौरान लगातार वाह वाह का शोर बुलंद होता रहा। तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई देती रही। कभी-कभी जोशीले श्रोता भाव विभोर होकर शायरों से हाथ मिलाने के लिए मंच पर चढ़ जाते थे। हर शायर का परफार्मेंस दमदार था। कुल मिलाकर यह एक शानदार और यादगार मुशायरा था।
इंशाद फाउंडेशन के प्रमुख नवीन जोशी ‘नवा’ ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि नस्ल-ए-नौ भारत के बारे में कुछ भी लिखने के लिए उन्हें अल्फ़ाज़ ही नहीं मिल रहे हैं। दर्शकों का प्रतिसाद तूफ़ानी रहा। सिर्फ़ युवाओं को लेकर शाइरी का एक इतना बड़ा कार्यक्रम मुंबई में किया जा सकता है और उसे इतनी अद्भुत सफ़लता मिल सकती है यह साबित करता हुआ यह कार्यक्रम ऐतिहासिक रहा। 15 चुनिंदा जवाँ शाइरों ने अपनी शाइरी से चार घंटे तक समां बांधे रखा और दर्शकों की ज़बरदस्त दाद और तालियों की आवाज़ से ऑडिटोरियम गूँजता रहा। कार्यक्रम में डॉ. वनमाली चतुर्वेदी, नवीन चतुर्वेदी, अर्चना जौहरी, माधव नूर, सिद्धार्थ शांडिल्य और पूनम विश्वकर्मा और नवीन जोशी के माता-पिता और उनकी पत्नी देवयानी जोशी समेत बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी मौजूद थे।
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