शाम-ए-मुंबई भी कम खूबसूरत नहीं

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यूं तो दुनिया भर में सुबह-ए-बनारस, शाम-ए-अवध और शब-ए-मुंबई की चर्चा ख़ूब होती है। लेकिन शाम-ए-मुंबई भी कम खूबसूरत नहीं होती। ख़ासकर अरब सागर में सूर्यास्त का ख़ूबसूरत नज़ारा। अगर आप भी शाम-ए-मुंबई के खूबसूरत नजारे का दीदर करना चाहते हैं तो सूर्यास्त के समय मरीन ड्राइव पहुंच जाए। रात ढलते ही मरीन ड्राइव के केला या ‘C’ आकार की घुमावदार सड़क पर लगी स्ट्रीट-लाइट जगमाती दिखने लगती है। यह नज़ारा हूबहू मोती की माला जैसा दिखता है। इसीलिए मरीन ड्राइव को ‘क्वीन्स नैकलेस’ कह जाता है। सड़क के किनारे कई नामचीन होटल्स और रेस्तरां इसके आकर्षण को बढ़ा देते हैं।

नववर्ष का स्वागत करना यहां का सबसे अधिक आकर्षक घटना होती है। नववर्ष के स्वागत के लिए हर साल 31 दिसंबर की शाम लोग मरीन ड्राइव पहुंच जाते हैं। अरब सागर तट पर एनसीपीए से लेकर गिरगांव चौपाटी तक स्ट्रीट-लाइट्स को सजा दिया जाता है। अरब सागर तट की छह लेन की ‘C’ आकार वाली कंक्रीट सड़क 3.6 किलोमीटर लंबी है। सड़क और सैरगाह का निर्माण पल्लोनजी मिस्त्री ने किया था। छह लेन की कंक्रीट की सड़क है जो एक प्राकृतिक खाड़ी के तट पर बनी है।

यह नरीमन पॉइंट को बाबुलनाथ और मालाबार हिल से जोड़ती है। उत्तरी छोर पर धनाढ्य लोगों की बस्ती मलाबार हिल है, जहां राजभवन भी है। दोनों ओर कभी ताड़ व नारियल के पेड़ होते थे। इनकी संख्या धीरे-धीरे कम होती गई। मरीन ड्राइव का चौपाटी भेलपुरी के लिए प्रसिद्ध है। सुरो की मलिका सुरैया यहीं के कृष्णा महल में अपने अंतिम समय तक रहीं। नरगिस और राजकपूर जैसे स्टार शुरुआती दिनों में यही रहते थे। यहां साल भर कोई न कोई आयोजन होता रहता है जिनमें बॉम्बे मैराथन, वायुसेना का एयरशो, फ्रेंच फेस्टिवल, इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू और कई अन्य शामिल हैं।

मरीन ड्राइव 1940 में

अगर मरीन ड्राइव के इतिहास पर गौर करें तो जहां आजकल जहां चर्चगेट रेलवे स्टेशन है। वह इलाका 15वीं सदी तक लिटिल कोलाबा या ओल्ड वूमन आईलैंड हुआ करता था। सवा दो सौ साल पहले तक यह खालिस समुद्र था। पानी ही पानी था। पहले इसे क्षेत्र को स्थानीय लोग सोनापुर कहते थे। आजकल यह मरीन ड्राइव कहा जाता है। 1687 में ईस्ट इंडिया कंपनी मुख्यालय को सूरत से बॉम्बे करने के बाद बॉम्बे के सभी सातों द्वीपों – कोलाबा, लिटिल कोलाबा (ओल्ड वूमन आइलैंड), माहिम, मजगांव, परेल और वरली को जोड़ने का मिशन शुरू हुआ, क्योंकि पूरे इलाके में बीहड़ ही बीहड़ था।

बॉम्बे को विश्वस्तरीय कॉमर्शियल सिटी बनाने का काम सर बार्टले फ्रीर के बॉम्बे का गवर्नर बनने के बाद शुरू हुआ। समुद्र पाटने वाली परियोजना को हॉर्नबाय वेल्लार्ड परियोजना कहा गया। जो एक सदी से ज़्यादा समय तक चलती रही। मकसद यह था कि इस भूभाग को किले के दायरे से निकाल कर आधुनिक शहर में परिवर्तित करना।

वूमन आईलैंड पर समुद्र रिक्लेम करने के लिए बैकबे रिक्लेमशन प्रोजेक्ट 1915 में शुरू हुआ। पश्चिम रेलवे की लोकल गाड़ी शुरू होने के समय मरीन ड्राइव अस्तित्व में नहीं थी। चर्चगेट, मरीन ड्राइव और चर्नीरोड एकदम सी फेस पर थे। इतने करीब कि लहरें प्लेटफॉर्म तक आती थीं। तब मरीन ड्राइव रास्ते को कैनेडी सी-फेस कहते थे। इसकी आधारशिला 18 दिसंबर 1915 को रखी गई। पांच साल में गिरगांव से चर्चगेट तक समुद्र पाट दिया गया। 1930 तक एनसीपीए तक रिक्लेम कर दिया गया।

1928 में चर्चगेट स्टेशन शुरू होने पर पश्चिम की ओर का भूभाग इमारत निर्माण के लिए दे दिया गया। गिरगांव तक धनवान पारसियों और दूसरे कारोबारियों ने इमारतों को विक्टोरियन गोथिक और आर्ट डेको शैलियों में बनवाया। मियामी के बाद आर्ट डेको शैली के भवन मुंबई में ही हैं। यह शैली 1920 और 1930 के दशक में बहुत लोकप्रिय थी। मरीन ड्राइव पर सबसे शुरुआती आर्ट डेको इमारतों में कपूर महल, ज़ेवर महल और केवल महल शामिल थे, जिन्हें 1937 और 1939 के बीच 10 लाख रुपए की कुल लागत से बनाया गया था।

एस्प्लेनेड के किनारे रियल एस्टेट की कीमतें बहुत ज़्यादा हैं। ड्राइव के आस-पास कई होटल हैं। मरीन ड्राइव नरीमन पॉइंट पर स्थित केंद्रीय व्यावसायिक जिले और शहर के बाकी हिस्सों के बीच पसंदीदा कनेक्टिंग रोड है।

मरीन ड्राइव क्षेत्र में समुद्र पाटने के लिए बैकबे रिक्लेमशन प्रोजेक्ट 1915 में शुरू हुआ। पहले चर्चगेट, मरीन ड्राइव और चर्नीरोड सी फेस पर थे। इतने कि समुद्री लहरें प्लेटफॉर्म तक आती थीं। इस रास्ते को केनेडी सी-फेस कहते थे। इसकी आधारशिला 18 दिसंबर 1015 को रखी गई। गिरगांव से चर्चगेट तक समुद्र 1920 तक पाट दिया गया। अगले 10 साल में एनसीपीए तक रिक्लेम कर दिया गया।

अरब सागर के हिलोरे मारती लहरें हैं तो दूसरी ओर आर्ट डेको शैली की इमारतें। मरीन ड्राइव की सड़क का निर्माण उद्योगपति भागोजीशेठ कीर और पलोनजी मिस्त्री ने करवाया था। आरसीसी से बनने वाला मुंबई का यह पहला मार्ग था। इसका आधिकारिक नाम सुभाषचंद्र बोस रोड है, लेकिन शायद ही इसे लोग इस नाम से पुकारते हैं। शाम के समय हमेशा यहां पर्यटकों की भीड़ रहती हैं।

– हरिगोविंद विश्वकर्मा

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