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चुनाव प्रचार के नाम पर मुंबई में पार्टी कर रहे हैं यूपी के विधायक

चुनाव प्रचार के नाम पर मुंबई में पार्टी कर रहे हैं यूपी के विधायक

मुंबई मेट्रो रिजन की लगभग 65 सीटों पर निर्णायक साबित होंगे उत्तर भारतीय मतदाता

मुंबई। अगले महीने होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए विभिन्न पार्टियों ने अपनी चुनावी रणनीति को तेज कर दी है। भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने विधान सभा चुनाव में अपने दल के उम्मीदवारों के पक्ष में माहौल बनाने और उन्हें उत्तर भारतीय वोट को दिलाने में मदद के लिए अपने विधायकों और वरिष्ठ नेताओं को चुनाव प्रचार सम्पन्न होने तक मुंबई में रहने का निर्देश दिया है। ढेर सारे नेता मुंबई प्रवास पर हैं भी लेकिन ज़्यादा लोग चुनाव प्रचार के नाम पर शहर में घूम-घूम कर पार्टी कर रहे हैं। रोज़ कहीं न कहीं मेहमान नेताजी के लिए मटन चिकन की पार्टियां रखी जा रही हैं।

मुंबई शहर और मुंबई सबर्बन के अलावा ठाणे, पालघर और रायगड़ के मुंबई मेट्रो रिजन की लगभग 65 सीटों पर उत्तर भारतीय मतदाताओं का वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं, क्योंकि लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय मतदाता हैं। ख़ासकर अंधेरी, वर्सोवा, वाकोला, चांदिवली, गोरेगांव, मालाड, कांदिवली बोरिवली, दहिसर, मीरा-भाइंदर, वसई-विरार और बेलापुर जैसे विधान सभा क्षेत्र उत्तर भारतीय बाहुल्य क्षेत्र हैं। इसलिए, सभी प्रमुख पार्टियों ने उत्तर प्रदेश के अपने-अपने नेताओं को मैदान में उतारा है ताकि ये नेता मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर सकें और चुनावी माहौल को पार्टी के पक्ष में मोड़ सकें।

यह देखा जा रहा है कि मुंबई में चुनाव प्रचार की गंभीरता के बजाय, कई नेताओं की प्राथमिकताएं कुछ और ही दिख रही हैं। यहां से स्थानीय नेता आरोप लगाए जा रहे हैं कि यूपी से आए विधायक और नेता वास्तव में चुनावी गतिविधियों से ज्यादा अपनी व्यक्तिगत मौज-मस्ती और पार्टी करने में व्यस्त हैं। ये नेता शहर के विभिन्न हिस्सों में पार्टी करते हुए देखे जा रहे हैं, और अपने समय का अधिकांश हिस्सा मटन, चिकन और अन्य व्यंजनों का लुत्फ उठाने में बिता रहे हैं। इससे राजनीतिक गलियारों में चर्चा गर्म है कि क्या ये नेता वास्तव में पार्टी के लिए प्रचार कर रहे हैं या केवल अपना समय आनंद लेने में बिता रहे हैं।

मुंबई के उत्तर भारतीय बाहुल्य इलाकों में वोट का महत्व किसी से छुपा नहीं है। उत्तर भारतीय मतदाता हर चुनाव में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इन सीटों पर उत्तर भारतीय मतदाताओं का वोट किस पार्टी को जाता है, इससे चुनावी परिणाम सीधे तौर पर प्रभावित हो सकते हैं। इसी कारण से भाजपा, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसी प्रमुख पार्टियों ने अपने नेताओं को मुंबई भेजा है ताकि वे मतदाताओं से सीधा संवाद कर सकें और उन्हें अपने पक्ष में वोट डालने के लिए प्रोत्साहित कर सकें।

उत्तर भारतीय मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में भाजपा ने उत्तर प्रदेश के कई बड़े नेताओं और विधायकों को मुंबई भेजा है। वहीं, कांग्रेस ने भी अपनी ओर से उत्तर प्रदेश से कुछ प्रमुख चेहरों को चुनाव प्रचार के लिए बुलाया है। सपा ने भी अपने कई वरिष्ठ नेताओं को मैदान में उतारा है, ताकि वे मुंबई के उत्तर भारतीय समुदाय से जुड़ सकें और उन्हें अपनी पार्टी के पक्ष में वोट देने के लिए प्रेरित कर सकें।

हालांकि, जमीनी स्तर पर प्रचार की स्थिति कुछ और ही नजर आ रही है। स्थानीय नेता कह रहे हैं कि यूपी के नेता चुनाव प्रचार करने के बजाय अपना समय मुंबई की सैर-सपाटा और स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेने में बिता रहे हैं। कई नेता प्रचार के नाम पर मटन और चिकन की पार्टी में व्यस्त हैं और चुनावी अभियान से दूर होते दिख रहे हैं। इससे न केवल राजनीतिक दलों के समर्थकों में निराशा का माहौल है, बल्कि मतदाताओं के बीच भी असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो रही है।

मुंबई में एक राष्ट्रीय पार्टी के एक स्थानीय कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हमें उम्मीद थी कि हमारे नेता यहां आकर हमारे साथ मतदाओं के पास जाएंगे। जनता से सीधे संवाद करेंगे। उन्हें पार्टी के एजेंडे से अवगत कराएंगे, लेकिन यहां तो ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। उल्टा ज्यादातर अपने निजी कामों और रिश्तेदारों से मिलने में लगे हुए हैं। पार्टी का प्रचार का काम तो बहुत पीछे छूट गया है।”

नेताओं का यह रवैया पार्टियों के चुनावी प्रदर्शन पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। उत्तर भारतीय मतदाता अक्सर अपने राज्य से आने वाले नेताओं की बात मानते हैं और नता भी स्थानीय कार्यकर्ताओं पर निर्भर रहते हैं ताकि उन्हें स्थानीय मुद्दों के बारे में सही जानकारी मिल सकें। अगर ये नेता अपने प्रचार अभियान में गंभीरता नहीं दिखाते हैं, तो इसका असर न केवल पार्टी के वोट बैंक पर पड़ेगा, बल्कि उत्तर भारतीय समुदाय का समर्थन भी कमजोर हो सकता है।

अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि ये नेता कब तक मुंबई में रहेंगे और क्या वे वास्तव में चुनाव प्रचार में सक्रिय भूमिका निभाएंगे या नहीं। महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव के लिए मतदान 20 नवंबर को होगा, और परिणाम 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। इस दौरान यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पार्टियों द्वारा भेजे गए ये नेता मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल होते हैं या नहीं।

भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपने प्रचार अभियान को तेज करने के लिए बड़े-बड़े रोडशो और रैलियों का आयोजन किया है। लेकिन उत्तर भारतीय नेताओं की गैर-गंभीरता ने पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष पैदा किया है। चुनाव नजदीक होने के बावजूद, प्रचार की गति में अब तक वह उत्साह नहीं दिख रहा, जिसकी उम्मीद की जा रही थी। हालांकि, कुछ नेता अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से ले रहे हैं और वे मतदाताओं से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऐसे नेताओं की संख्या काफी कम है।

महाराष्ट्र चुनाव में उत्तर भारतीय वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं, लेकिन इसके लिए पार्टी नेताओं को अपने प्रचार अभियान को गंभीरता से लेना होगा। यदि नेता प्रचार के बजाय पार्टी करने में व्यस्त रहते हैं, तो इसका असर चुनाव परिणामों पर निश्चित रूप से पड़ेगा। जनता अपने नेताओं से उम्मीद करती है कि वे उनके मुद्दों को सुनेंगे और उनका समाधान निकालने की दिशा में काम करेंगे। अब यह देखना बाकी है कि ये नेता आने वाले दिनों में अपनी चुनावी जिम्मेदारियों को किस हद तक निभाते हैं।

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Harigovind Vishwakarma is basically a Mechanical Engineer by qualification. With an experience of over 30 years, having worked in various capacities as a journalist, writer, translator, blogger, author and biographer. He has written two books on the Indian Prime Minister Narendra Modi, ‘Narendra Modi : Ek Shakhsiyat’, detailing his achievements as the Gujarat chief minister and other, ‘Narendra Modi: The Global Leader’. ‘Dawood Ibrahim : The Most Wanted Don’ is another book written by him. His satires are regularly published in prominent publications.

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