संस्था की सभी कार्यकारिणी तत्काल प्रभाव से भंग
विश्वकर्मा समाज के लिए गौरव का प्रतीक रही विश्वकर्मा समिति मुंबई को तकरार, आपसी गुटबाजी और थाना-कचहरी के चलते डेढ़ दशक से लगभग ग्रहण सा लग गया था। संस्था में अनगिनत गुट बन गए थे। सब अपने ढंग से काम कर रहे थे। संस्था के कई बैंक खाते खुल गए थे। इसके चलते परिसर का माहौल ही दूषित हो गया था। इस गुटबाजी से विश्वकर्मा समाज के आम लोग बहुत दुखी और निराश थे। लोग मानने लगे थे कि समिति की स्थापना जिस उद्देश्य को लेकर लिए की गई थी, संस्था उससे दूर होती जा रही थी। कई लोगों ने तो संस्था के कालीना स्थित विश्वकर्मा भवन जाना ही बंद कर दिया था। इससे विश्वकर्मा समिति में होने वाले कार्यक्रमों की रौनक ही खत्म हो गई थी।
यह संतोष की बात रही कि विश्वकर्मा समिति के सदस्यों ने भी अतंतः महसूस किया कि अगर पदाधिकारी इसी तरह इगो पाल कर आपस में लड़ते रहेंगे, तो विश्वकर्मा समिति के अस्तित्व पर ही संकट आ जाएगा। लिहाजा, कोई छह महीने पहले आपसी मतभेद को खत्म करने और एकजुट होने की पहल हुई। विश्वकर्मा समिति के खोए गौरव को वापस पाने के लिए उद्योगपति सुनील राणा, उद्योगपति राजेंद्र विश्वकर्मा और अधिवक्ता जेपी शर्मा जैसे तीन बेहद सम्मानित व्यक्तियों की तीन सदस्यीय टास्क टीम का गठन किया गया। टास्क टीम ने बहुत कठिन परिश्रम किया और गुटबाजी करने वाले सभी सदस्यों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की। सभी को समझाने-बुझाने की कोशिश की और सफल रही।
बहरहाल, छह महीने के अथक प्रयास, कड़ी मेहनत और विचार मंथन का फल मंगलवार की शाम विश्वकर्मा समिति मुंबई, कालीना सांताक्रुज परिसर में देखने को मिला जब टास्क टीम द्वारा बुलाए गए स्नेह सम्मेलन में समाज के हर तबके के लोग आए। इसके बाद शानदार काम करने वाली टास्क टीम को वैधानिक अधिकार देने के लिए सभी की आम सहमति से स्नेह सम्मेलन की बैठक को विशेष सर्व साधारण सभा या स्पेशल जनरल बॉडी मीटिंग में तब्दील कर दिया गया और संस्था और समाज के व्यापक हित में हर तरह का निर्णय लेने के लिए टास्क टीम को अधिकृत कर दिया गया।
टास्क टीम समाज हित में कठोर फैसला लेते हुए विश्वकर्मा समिति के मौजूदा तीनो गुटों के सभी पदाधिकारियों और बैंक ट्रांजेक्शन करने वाले सभी लोगों से लिखित इस्तीफा देने का आग्रह किया। टास्क टीम का सम्मान करते हुए सभी लोगों ने स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने वालों में खुद सुनील राणा, धनराज शर्मा, दिनेश शर्मा, लल्लूराम विश्वकर्मा, गंगाराम विश्वकर्मा, रामशब्द विश्वकर्मा, चंद्रकेश विश्वकर्मा और अवधेश विश्वकर्मा शामिल हैं। इसके बाद एक और कड़ा फैसला लेते हुए विश्वकर्मा समिति की सभी कार्यकारिणियों को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया। इस तरह विश्वकर्मा समिति में सदस्यों के बीच पिछले चौदह-पंद्रह साल से चल रहे आपसी विवाद और झगड़े को स्थायी रूप से सुलझा लिया गया।
विशेष सर्व साधारण सभा में सभी गणमान्य लोगों ने अपनी भावनाएं व्यक्त की। सभा संचालन करते हुए बाबूलाल विश्वकर्मा ने तकरीबन 20-22 लोगों को बोलने का अवसर दिया। पूर्व अध्यक्ष मेवालाल विश्वकर्मा, पन्नालाल विश्वकर्मा, रामनरेश विश्वकर्मा, प्रकाश प्यारेलाल विश्वकर्मा, बृजेश विश्वकर्मा, रामजी विश्वकर्मा, सुभाष विश्वकर्मा, रमेश शिवी, अनिल विश्वकर्मा, हरिगोविंद विश्वकर्मा, शोभनाथ विश्वकर्मा, महेंद्र विश्वकर्मा, राजेश विश्वकर्मा, संजय विश्वकर्मा, राजन विश्वकर्मा, वीरेंद्र विश्वकर्मा, ओमप्रकाश विश्वकर्मा, संतोष विश्वकर्मा, परविंदर विश्वकर्मा, रमेश विश्वकर्मा, मदन शर्मा और लक्ष्मी चंद विश्वकर्मा ने अपने विचार व्यक्त किए। सभी वक्ताओं ने सुनील राणा, राजेंद्र विश्वकर्मा और जेपी शर्मा को शानदार काम करने के लिए बधाई दी।
टास्क टीम के तीनों सदस्यों ने कहा कि झगड़ा और आपसी विवाद के कारण विश्वकर्मा समिति मुंबई का नाम पूरे देश में खराब हुआ और सामाजिक एकता भी कमजोर हुई। इतना ही नहीं समिति के झगड़े से समाज के लोग बहुत दुखी और भ्रम की स्थिति में थे कि किस गुट को असली माने। बहरहाल, सभा में मौजूद सभी सदस्यों ने समाज हित में आपसी रंजिश को खत्म करने और विश्वकर्मा समिति का पुराना गौरव बहाल करने का संकल्प लिया।
गौरतलब है कि विश्वकर्मा समिति में 2007-08 में फूट पड़ गई थी और जिसके बाद तीन गुट बन गए थे। तीनों गुटों ने एक दूसरे के खिलाफ मुकदमेबाजी शुरू कर दी थी और चैरिटी कोर्ट और दूसरी अदालतों में एक दूसरे के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। बहरहाल, समाज के गणमान्य लोगों की अपील पर संतोष कुमार राणा हाल बैठक हुई और सब लोगों ने संस्था को बचाने के लिये टास्क टीम बनाई। टास्क टीम का कार्यकाल छह महीने का है और उसकी देखरेख में अगला चुनाव होगा। सभी सदस्यों ने उम्मीद जताई कि टास्क टीम के मार्गदर्शन में विश्वकर्मा समिति अपने पुराने गौरव को हासिल कर लेगी।
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