व्यंग्य : राष्ट्रदादी-राष्ट्रनानी आंदोलन

0
594

हरिगोविंद विश्वकर्मा

वहां ढेर सारी महिलाएं बैठी थीं। सब अलग-अलग गुट में। एक जगह दो महिलाएं थीं। दोनों मुस्करा रही थीं। मुस्करा नहीं, बल्कि हंस रही थीं। बहुत ख़ुश लग रही थीं।

-आप दोनों की इस ख़ुशी का राज़? मैंने कलाई हिलाकर इशारे से ही पूछ लिया।

-हम केवल दो नहीं, हज़ारों हैं। हम बहुत ख़ुश हैं। नागरिकता संशोधन क़ानून का अंतरराष्ट्रीयकरण हो गया, दोनों बोलीं।

-वह कैसे?

-ट्रंप की मौजूदगी में दिल्ली में ख़ूब हिंसा हुई। मज़ा आ गया। अब ट्रंप ज़रूर मोदी की ख़बर लेगा। मोदी का काला क़ानून वापस लेना पड़ेगा।

-बात में तो दम है। वाक़ई! बाई द वे आप लोगों का परिचय?

-हम दोनों दादी हैं। दादी!

-दादी?

-हां बेटा, दादी!

-किसकी दादी है आप दोनों?

-पूरे देश की दादी।

-मतलब राष्ट्रदादी!

-हां बेटा। हम राष्ट्रदादी हैं!

-बधाई हो राष्ट्रदादी। दरअसल, मैं शाहीनबाग़ की दादियों और नानियों से ही मिलने आया था।

-बोलो बेटा, हम दोनों राष्ट्रदादी हैं और राष्ट्रनानी भी!

-मतलब टू-इन-वन?

-हां बेटा।

-क्या बात है, राष्ट्रपिता, राष्ट्रपुत्र, राष्ट्रमाता के बाद देश को राष्ट्रदादी और राष्ट्रनानी भी मिल गईं।

-बिल्कुल, बेटा।

-राष्ट्रदादी, आप यहां शाहीनबाग़ में क्या कर रही हैं।

-आंदोलन बेटा। यहां की सभी दादियां-नानियां आंदोलन कर रही हैं।

-आपके आंदोलन में कौन-कौन है?

-केवल हम दादियां और नानियां हैं बेटा। इस आंदोलन में हर धर्म और समुदाय की दादियां और नानियां हैं। सेक्यूलर दादियां और सेक्यूलर नानियां। यह राष्ट्रदादी-राष्ट्रनानी आंदोलन है बेटा। समूचे मानव इतिहास का पहला राष्ट्रदादी-राष्ट्रनानी आंदोलन बेटा।

-यह आंदोलन किसलिए हो रहा है।

-भारतीय संविधान को बचाने के लिए यह आंदोलन हो रहा है। अंबेडकर के संविधान की रक्षा के लिए हम राष्ट्रदादियां-राष्ट्रनानियां घर से बाहर निकली हैं।

-बहुत बढ़िया राष्ट्रदादी!

-यह आंदोलन किसके ख़िलाफ़ हो रहा है।

-संघी सरकार के ख़िलाफ़!

-संघी सरकार के ख़िलाफ़ या नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़? मैंने पूछा।

-दोनों के ख़िलाफ़ बेटा। संघी सरकार ने ही तो बनाया है सीएए।

-आप लोग नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध क्यों कर रही हैं?

-यह पक्षपाती क़ानून है बेटा।

-पक्षपाती कैसे हुआ? ज़रा ख़ुलासा करिए राष्ट्रदादी।

-दोनों राष्ट्रदादियां सकपका गईं।

-हम दोनों को ज़्यादा नहीं पता बेटा। केवल इतना ही पता है, यह काला क़ानून है। यह मुसलमानों के ख़िलाफ़ है।

-किन मुसलमानों के ख़िलाफ़?

-सभी मुसलमानों के ख़िलाफ़?

-मुसलमानों के ख़िलाफ़ कैसे है?

-ऐसे ही, यह मुसलमानों के ख़िलाफ़ है।

-कारण बताइए। यह मुसलमानों के ख़िलाफ़ कैसे है? किस राष्ट्रदादी या राष्ट्रनानी को इस काले क़ानून की जानकारी है?

-एक बुद्दिजीवी राष्ट्रदादी उर्फ राष्ट्रनानी वहां आ गई।

-क्या पूछ रहे हो बेटा? उसने मुझसे सवाल किया।

-मैं यह पूछ रहा हूं राष्ट्रदादी कि आप लोग आंदोलन क्यों कर रही हैं?

-हम लोग काले क़ानून के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं बेटा।

-किस काले क़ानून के ख़िलाफ़। यह क़ानून काला कैसे है? यही तो पूछ रहा हूं।

-मेरी आवाज़ सुनकर वहां और राष्ट्रदादियां-राष्ट्रनानियां आ गईं।

-किसी को भी नहीं पता था, कि काला क़ानून कैसे मुसलमानों के ख़िलाफ़ है।

-मतलब आप लोगों में किसी को पता नहीं कि काला क़ानून क्या है।

-नहीं-नहीं, हमें पता है। हम दादियां और नानियां उम्रदराज़ हो गई हैं न। इसलिए भूल जाती है, इस काले क़ानून की बारीक़ियां।

-मैं तो आप लोगों का समर्थन करने आया था। सोचा, चलूं राष्ट्रदादियों-राष्ट्रनानियों के समर्थन में मैं भी बैठ जाऊं शाहीनबाग़ में। हाइवे पर सोने का मज़ा लूं।

कुछ देर वहां शांति रही।

-अरे, वो महक। इधर आ।

महक राष्ट्रदादियों-राष्ट्रनानियों से थोड़ी कम उम्र की महिला थी। जींस-टीशर्ट में। वह आ गई।

-इनको काले क़ानून के बारे में बता दो। एक दादी बोली।

-क्या जानना चाहते हैं आप??? उस महिला ने पूछा।

-आपकी तारीफ़? आप भी राष्ट्रदादी हैं? मैंने भी सवाल दाग़ दिया।

-नहीं, मैं राष्ट्रदादी या राष्ट्रनानी नहीं हूं। मैं राष्ट्रपुत्री हूं। भारत की बेटी!

-आप क्या करती हैं? मेरा मतलब, आंदोलन के अलावा और क्या करती हैं।

-रिसर्च। जेएनयू में रिसर्चर हूं।

-किस सब्जेक्ट पर रिसर्च कर रही है?

-रिलिजियस पर्सिक्यूशन यानी धार्मिक उत्पीड़न विषय पर?

-बहुत बढिया। आपके साथ बातचीत में मज़ा आएगा। तो आप भी आंदोलन में शामिल हैं?

-हां, हम सभी सीएए, एनआरसी और एनपीआर के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं। अंबेडकर के संविधान को बचाना चाहते हैं, जिन्हें हाफपैंटी नष्ट करने पर तुले हुए हैं।

-एक-एक करके बताइए। पहले सीएए यानी नागरिकता संशोधन क़ानून।

-यह हमारे संविधान के ख़िलाफ़ है। मुसलमानों के ख़िलाफ़ है।

-संविधान के ख़िलाफ़ या मुसलमानों के ख़िलाफ़?

-दोनों के ख़िलाफ़!

-ज़्यादा किसके ख़िलाफ़?

-मुसलमानों के।

-वह कैसे?

-यह काला क़ानून हमारी नागरिकता छीन लेगा। हमें डिटेंशन कैंप में डाल देगा।

-लेकिन यह क़ानून नागरिकता छीनने के लिए नहीं, बल्कि नागरिकता देने के लिए है। जी हां, सीएए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने के लिए है।

-ग़लत। आप सही नहीं बोल रहे हैं।

-ग़लत नहीं, सौ फ़ीसदी सही बोल रहा हूं। यह क़ानून धार्मिक उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों के लिए है।

-नहीं, आप ग़लतबयानी कर रहे हैं। इस क़ानून में हिंदुओं, सिखों, बौद्धों और ईसाइयों का ज़िक्र है। लेकिन मुसलमान इस क़ानून से ग़ायब कर दिए गए।

-मतलब, आप क्या कहना चाहती हैं, विस्तार से समझाइए।

-मतलब यह कि सीएए के लाभार्थी केवल हिंदू, सिख, बौद्ध और ईसाई हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमान नहीं। इसी बात का विरोध कर रहे हैं हम लोग।

-और बारीक़ी से समझाइए। आपने कहा कि सीएए के लाभार्थी केवल हिंदू, सिख, बौद्ध और ईसाई हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमान इस क़ानून के लाभार्थी नहीं हैं।

-हां, अब आप सही पकड़े हैं। सभी एक स्वर में बोल पड़ी।

-मतलब इस क़ानून के लाभार्थी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमान भी बनाए जाने चाहिए। ठीक है न?

-हां, अब आप एकदम सही पकड़े हैं।

-मतलब आप लोग पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमानों को इस क़ानून का लाभार्थी बनाने के लिए आंदोलन कर रही हैं। ठीक है न?

-हां, अब आप पूरी तरह सही पकड़े हैं।

-इसका मतलब यह भी कि आप लोग पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमानों के हितों की रक्षा करने के लिए आंदोलन कर रही हैं। ठीक है न?

-वही तो, आख़िरकार आप समझ गए। सही पकड़ लिया।

-मतलब यह आंदोलन पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमानों के लिए हो रहा है। ठीक है न?

-नहीं-नहीं, यह आंदोलन बाबासाहेब के संविधान को बचाने के लिए है। आप कन्फ़्यूज़ कर रहे हैं।

-इसमें क्या कन्फ़्यूज़न है?

-बतौर जेएनयू की रिलिजियस पर्सिक्यूशन रिसर्चर आप यह कहना चाहती हैं कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान में मुसलमानों पर भी धार्मिक अत्याचार हो रहा है? मतलब इन तीनों इस्लामी मुल्कों में मुसलमान भी धर्म-परिवर्तन के शिकार हो रहे हैं। उनका भी मजहब बदलवाया जा रहा है।

-नहीं-नहीं। आप हमें कन्फ़्यूज़ नहीं कर सकते। हम लोग अंबेडकर के संविधान को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

-मैं आप लोगों को क्या कन्फ़्यूज़ करूंगा। आप लोग तो पहले से ही कन्फ़्यूज़्ड हैं।

-आप लोग मुसलमानों को शिक्षित करने पर आंदोलन नहीं करेंगी। उनकी ग़रीबी हटाने के लिए आंदोलन नहीं करेंगी। आप लोग आंदोलन सीएए में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमानों को लाभार्थी बनाने के लिए करेंगी। आप लोग महान हैं। बहरहाल, इजाज़त दीजिए। नमस्कार। आप लोग पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमानों के लिए लड़ते रहिए। शुभकामनाएं।

इसे भी पढ़ें – हिप-हिप हुर्रे – अब मुंबई पुलिस मुझसे पूछताछ नहीं कर सकेगी!