हरिगोविंद विश्वकर्मा
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को तीसरी बार मिले भारी जनादेश से यही लगता है इसने जहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का डगमगा रहा आत्मविश्वास वापस मिल गया है, वहीं भारतीय जनता पार्टी को अतिआत्मविश्वास में जनता विरोधी फैसले लेने की सज़ा दी। अपनी ग़लत नीतियों के चलते डूब रही कांग्रेस की नैया को पूरी तरह डुबो दिया और इस राज्य की जनता ने सबसे हैरतअंगेज़ फ़ैसला दिया है वामपंथियों का सुपड़ा साफ़ करके। यक़ीन नहीं हो रहा है कि कभी कम्युनिस्टों का गढ़ रहे बंगाल से कॉमरेड इस तर बेआबरूह होकर निकलेंगे।
ममता बनर्जी के लिए इस चुनाव ने ऑक्सीजन देने का काम किया। भारतीय जनता पार्टी ने एक बार तो उन्हें अपने जाल में फांस ही लिया था। भाजपा के आक्रामक प्रचार और भाजपा से सहानुभूति रखने वाले राजनीतिक पंडितों के झांसे में आकर लोग इस साल के आरंभ तक यही मानने लगे थे कि पश्चिम बंगाल के विधान सभा चुनाव में भारी जीत दर्ज करके भाजपा वहां सत्ता में आएगी। भाजपा इसके लिए एड़ी-चोटी का जोर भी लगा रही थी। पिछले साल के अंत में और इस साल के शुरुआत में जब एक एक करके त्रिणमूल कांग्रेस के ढेर सारे भाजपा का दामन थामने लगे थे, तो बंगाल के बाहर रहने वालों को भी एक बार लगा कि मुमकिन है भाजपा पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को भी सत्ता से बेदखल कर दे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ममता बैनर्जी इस राज्य में लगातार तीसरी बार विजयश्री दर्ज कर रही हैं और शुरुआती रुझान में उनके दल को दो सौ से अधिक सीट मिलती दिख रही है। सबसे बड़ी बात दोहरी निष्ठा वाले नेताओं से उन्हें मुक्ति मिल गई, क्योंकि वे सब लोग भाजपा में चले गए।
दरअसल, भाजपा का यह हश्र उसके अति आत्मविश्वास यानी ओवर कॉन्फिडेंस के चलते हुआ। राजनीति में आत्मविश्वास यानी कॉन्फिडेंस बहुत ज़रूरी होता। अपना विस्तार करने और चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल के पास आत्म विश्वास होना ही चाहिए। लेकिन जब आत्मविश्वास बढ़कर अति आत्मविश्वास यानी ओवर कॉन्फिडेंस में तब्दील हो जाए तो किसी भी दल या व्यक्ति के लिए यह बड़ी ख़तरनाक अवस्था होती है। भाजपा भी इन दिनों अति आत्मविश्वास की शिकार हो गई है। इस ओवर कॉन्फिडेंस के कारण ही उसकी लुटिया डूब गई। हालांकि 2016 के विधान सभा चुनाव में केवल तीन सीट जीतने वाली भाजपा के लिए 80-90 सीट जीतना बहुत बड़ी सफलती कही जाएगी, लेकिन जो दल सरकार राज्य में दो तिहाई बहुत के साथ सरकार बनाने का दावा कर रही हो, उसके लिए इस नतीजे को करारी हार ही कहा जाएगा।
पश्चिम बंगाल की जनता को भाजपा नेताओं का चुनाव प्रचार के दौरान अति आक्रमकता हो जाना बिल्कुल रास नहीं आया। ख़ास कर चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कमोबेश हर भाजपा नेता का ममता बनर्जी के लिए दीदी-दीदी या ‘दीदी ओ दीदी’ जैसा संबोधन को बंगाल की जनता ने शीर्ष पद पर बैठी हुई एक महिला के लिए सम्मानजनक संबोधन नहीं माना। भले भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज है, लेकिन इस समाज में महिलाओं की बहुत इज़्ज़त की जाती है। ख़ासकर बहन शब्द तो बहुत सम्मानित संवेदनशील होता है, लेकिन के हर नेताओं ने चुनाव में ममता के लिए दीदी-दीदी या ‘दीदी ओ दीदी’ का संबोधन बिल्कुल ही गरिमापूर्ण और सम्मानजनक नहीं लग रहा था। इसका सीधा असर विधान सभा के नतीजो पर देखने को मिल रहा है।
2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अतिआत्मविश्वास का शिकार हो गया था और मनमाने तरीक़े से फैसले लेने लगा था। जब देश कोरोना संक्रमण से पस्त है। दो लाख लोग को इस वायरस की भेंट चढ़ चुके हैं। कोरोड़ों लोगों ने अपनी आमदनी का स्रोत गंवा दिया है। बहुत बड़ी तादाद में आबादी भुखमरी के कग़ार पर है। ऐसे संकट के समय भाजपा सरकार रोजाना पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़ा रही थी। यह वृद्धि जब लोगों के ज़ख्मों पर मरहम लगाने की बजाय उनके ज़ख़्मों के कुरेद रही थी। कल्पना करिए जब लोगों के पास काने के लिए भोजन नहीं था उसी समय कभी 50 पैसे तो कभी 80 पैसे बढ़ाती हुई सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दामों में 20 से 25 रुपए की बढ़ोतरी कर दी। पेट्रोल और डीजल के दाम में वृद्धि का कमोबेश हर ज़रूरी वस्तु की कीमत को प्रभावित करते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनकी सरकार ने इसकी बिल्कुल परवाह नहीं की। यही वजह है कि जब लोगों को अवसर मिला तो अपने वोट की ताकत की बदैलत उन्होंने भाजपा को बता दिया कि पेट्रोल डीजल क दाम बढ़ाकर सरकार ने ठीक नहीं किया।
भाजपा को हतोत्साहित करने वाली सबसे बड़ा फैक्टर यह है कि उसे उतनी भी सीटों पर भी विजयश्री नहीं मिल सकी जितनी विधानसबा सीटों पर उसे 2019 के लोकसभा चुनाव में बढ़त मिली थी। कहना न होगा कि इस चुनाव को भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। चुनाव जीतने के लिए दुनिया की इस सबसे बड़ी पार्टी ने कोई कोर-कसर बाक़ी नहीं छोड़ा लेकिन उसके नेताओं के अति आत्मविश्वास ने पार्टी का बड़ा नुकसान किया। बेशक राष्ट्रवाद में भरोसा भाजपा एक देशभक्त राजनीतिक दल है। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले 370 और 35 ए जैसे अनुच्छेदों को हटाकर भाजपा ने साबित कर दिया था कि वह राष्ट्र के व्यपाक हित में चिंतन करने वाली पार्टी है। लेकिन देशभक्त तो हर राजनीतिक दल है। राजनीतिक दल को चुनाव जीतने के लिए जनोन्मुख भी होना चाहिए। जनता के दुख-दर्द का शिद्दत से महसूस करना चाहिए। राजनीतिक दल को जनता का हितैषी ही नहीं होना चाहिए बल्कि बिना विज्ञापन के दिखना चाहिए कि सरकार जनता की हितैषी है। इस फ्रंट पर भाजपा और उसकी केंद्र सरकार चूक गई।
पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में देश में कोरोना वायरस संक्रमण के मुद्दे ने भी अहम किरदार निभाया। भारत ने कोरोना संक्रमण पर अपनी विजय का ऐलान बहुत जल्दी कर दिया, जैसा कि अमेरिका के शीर्ष महामारी विशेषज्ञ एंथनी फाउची मानते हैं। भारत में कोरोना वायरस के बहुत तेजी से बढ़ते संक्रमण पर रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिए बिना फाउची ने कहा कि भारत ने कोरोना के संक्रमण की गंभीरता को समझे बिना इस वैश्कि वायरस को हराने का एलान कर दिया। एक गंभीर सवाल यह भी है कि भारत ने कोरोना वायरस की पहली लहर से कोई सबक नहीं लिया। सरकार और सरकार में बैठे लोग लोगों को ग़ुमराह करते रहे। यही वजह है कि अब कोरोना वायरस साक्षात् यमराज बन गया है। देश में हर जगह ऑक्सीजन की जो भारी कमी देखने को मिल रही है, उसके लिए एक बड़ा तबका केंद्र सरकार को जिम्मेदार मान रहा है।
कांग्रेस अपनी ग़लत नीतियों से कुछ सीख नहीं रही है। वह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं कि उसकी नीति और पॉलिसी ऑउटडेटेड हो गई है। पश्चिम बंगाल की जनता ने इस चुनाव में सबसे हैरतअंगेज़ फ़ैसला दिया है वामपंथियों का सुपड़ा साफ़ करके। यह आशंका हो चली थी कि मुख्य मुक़ाबला टीएमसी और भाजपा के बीच है। लेकिन यह नहीं लगा था कि कभी कम्युनिस्टों का गढ़ रहे बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और फॉरवर्ड ब्लॉक जैसे दलों का गायब हो जाना दुखद है और हैरान करने वाला भी।
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