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यूपी-बिहार के यात्रियों के लिए मालगाड़ी चलनी चाहिए!

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हरिगोविंद विश्वकर्मा

बेचारा रेल विभाग! बहुत लाचार है इन दिनों। दिल्ली हो या मुंबई। हर जगह रेलवे प्लेटफॉर्म पर भारी भीड़ है। यूपी-बिहार के लिए इतनी स्पेशल गाड़ियां चलाई जा रही हैं। फिर भी गाड़ियों में रेलमपेल मची हुई है। सीट की बात तो छोड़ दीजिए। लोग आने जाने के गलियारे और सीट के नीचे सो कर यात्रा कर रहे हैं। बस सबका एक ही इरादा है। घर पहुंचना है। किसी भी पहुंचना है। चाहे टायलेट में ही यात्रा क्यों न करनी पड़े। वह भी मंजूर है। बस गांव पहुंच जाए।

रेल कितनी ट्रेन लचाए। हर संस्थान की तरह भारतीय रेलवे की भी एक सीमा है। वह उससे ज़्यादा काम नहीं कर सकती। भारतीय रेल का भी है। जितने यात्री गांव जाना चाहते हैं। उतने यात्री भेजने की क्षमता रेलवे के पास नहीं है। रेल विभाग के लोग दिन रात काम कर रहे है। फिर भी हो हल्ला मचा हुआ है। लोग रेल विभाग की आलोचना कर रहे हैं। सुबह शाम कोस रहे हैं। ऐसे प्रतिसाद की उम्मीद नहीं की थी रेल कर्मियों ने। काम भी कर रहे हैं और आलोचना भी झेल रहे। यह बुरी बात है। केवल बुरी नहीं, बल्कि बहुत बुरी बात है।

ऐसे में मेरा एक सुझाव है। रेल विभाग को यूपी-बिहार के लिए 85 डिब्बे वाली मालगाड़ी चलाना चाहिए। वैसे भी यूपी जाने वाले लोग किसी भी तरह जा सकते हैं। उन्हें रास्ते में पंखा यानी हवा-पानी की ज़रूरत नहीं पड़ती। अगर दृढ़ संकल्प कर लें तो हगने-मूतने की तलब भी नहीं होगी। मुंबई के बाद सीधे गांव में टायलेट में जाएंगे। इसलिए टायलेट का भी इस्तेमाल यात्रा करने के लिए कर रहे हैं। इन दिनों कई बहादुर किस्म के लोग टायलेट में ही यात्रा कर रहे हैं।

कहा भी जाता है। यूपी-बिहार के लोगों को खड़े होने की जगह मिल जाए। बाक़ी व्यवस्था ख़ुद कर लेते हैं। यही हाल यात्रियों का है। बस पांव रखने की जगह मिल जाए। बस सब कुछ मैनेज कर लेंगे। गाते-गुनगुनाते और रील देखते हुए पहुंच जाएंगे गांव। इस तरह के ज़रूरतों से परे यात्रियों के लिए मालगाड़ी सबसे बढ़िया विकल्प हो सकता है। कुछ माल गाड़ियों को यूपी-बिहार के यात्रियों की सेवा में लगा दिया जाए। चार मालगाड़ियां पर्याप्त होंगी। उनका इस्तेमाल सीज़न में किया जाए। जब भी यात्री बढ़ें और रेलगाड़ियां  कम पड़ने लगे तो तुरंत मालगाड़ी को सेवा में प्रस्तुत कर दिया जाए।

होली, दिवाली, छठ पूजा में इन मालगाड़ियों को रवाना कर देनी चाहिए। जितने लोग जाना चाहे जाएं। बस मालगाड़ी में थोड़ा परिवर्तन कर दिया जाए। हर डिब्बे जगह-जगह होल बना दिया जाए। ताकि प्राकृतिक हवा डिब्बे में भरपूर आए। डिब्बे में सीट की जगह सोने के लिए उसमें डारमेट्री की तरह रैक बना दिया जाए। उन रैक में यात्रियों को सुला दिया जाए। उनका मुंह होल की ओर कर दिया जाए। हर यात्री को हवा खींचने के लिए एक-एक पाइप दे दी जाए ताकि पाइप से सांस लेते रहे और मरे न। बस पाइप से सांस लेते हुए जिंदा घर पहुंच जाएं।

यूपी-बिहार के लोगों की एक ख़ासियत है। वे बड़े संतोषी होते हैं। किसी चीज़ की डिमांड नहीं करते। जो मिल जाए वहीं सिरोधार्य। कमोबेश यही ख़ासियत यूपी-बिहार के रेल यात्रियों में होती है। वे किसी चीज़ के लिए शिकायत नहीं करते। जो सुविधा रेलवे देता है। उसे सिरोधार्य कर लेते हैं। जो नहीं देता उसकी शिकायत नहीं करते। स्लीपर कोच में पंखा नहीं चल रहा है। तब भी शिकायत नहीं करते। एसी कोच में एसी नहीं चल रहा है। उसकी भी शिकायत नहीं करेंगे। बस चुपचाप यात्रा करते हैं। फिर इन दिनों माहौल राममय है। राममय माहौल में भक्त भी राममय हो गए हैं। जब राम के बारे में सोचने लगते हैं तो न गर्मी लगती है न थकान। कई लोग राम नाम जपते हुए खड़े-खड़े ही यात्रा करते हुए घर पहुंच जाते हैं। तो यूपी-बिहार के रेल यात्रियों की उदारता का भरपूर लाभ रेलवे को लेना चाहिए और यात्रियों के लिए तुरंत मालगाड़ी चलानी चाहिए।

यूटी बिहार जाने वाली गाड़ियों में यात्री किस मुसीबत से चढ़ते हैं, LIVE वीडियो

जौनपुर को भी ‘नोएडा’ की तरह विकसित करने की मोदी सरकार की योजना (Modi government’s plan to develop Jaunpur like ‘Noida’)

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कार्य-योजना तैयार करने में जुटे हैं केंद्र और राज्य सरकार के कई विभाग

अरविन्द उपाध्याय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी का कायाकल्प करने का बाद अब धार्मिक नगरी के 100 किलोमीटर के दायरे में आने वाले जौनपुर समेत समस्त पूर्वांचल विकास की मुख्य धारा में लाने की योजना पर काम कर रहे हैं। पूर्वांचल में भाजपा की मजबूती पर उनका ख़ास फोकस है।

वाराणसी को केंद्र में रखते हुए पूर्वांचल के विकास की योजना पर करीब एक साल से मंथन चल रहा है। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि कोलकाता और नई दिल्ली के बीचो-बीच दिल्ली एनसीआर की तर्ज पर एक औद्योगिक क्षेत्र विकसित हो जो अत्यंत पिछड़े हुए पूर्वांचल के विकास को गति दे सके। प्रारंभ में वाराणसी और उसके अगल-बगल की 100 किलो- मीटर परिधि में आने वाले क्षेत्र को लिया जाना है। अमूल डेयरी प्लांट इसी योजना की एक कड़ी है।

समझा जा रहा है कि जौनपुर समेत वाराणसी के अगल-बगल स्थित जिलों में कई रेलवे स्टेशनों को अधिक सक्षम और आधुनिक बनाने की योजना इसी का हिस्सा है, जिस पर काम चल रहा है। वाराणसी में प्रस्तावित मेट्रो रेल परियोजना भी इन क्षेत्रों को आपस में जोड़ सकती है। इसके अलावा बाबतपुर में स्थित लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट का का पिछले कई वर्षों से निरंतर चल रहा विकास प्रस्तावित परियोजना का हिस्सा माना जा रहा है।

एग्रो पार्क में पैक हाउस स्थापित होने के बाद आसपास के क्षेत्रों की सब्जियां और फल विदेशों को निर्यात होने लगे हैं। हरी मिर्च और आम जैसे कृषि उत्पादों को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में सीधे बेच कर इस क्षेत्र के कई किसानों ने अच्छा लाभ कमाया है और साथ ही वो क्षेत्रीय किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हैं। अच्छी बात यह है की वाराणसी प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र होने के कारण केंद्र और राज्य के सभी संबंधित विभाग इन योजनाओं के अच्छे नतीजों के लिए काफी हद तक तत्पर रहते हैं।

जौनपुर से मात्र 28 किलोमीटर दूर वाराणसी राजमार्ग पर स्थित करखियांव एग्रो पार्क (Karkhiyaon Agro Park) के पास बहुत तेजी से स्थापित हुए अमूल डेयरी प्लांट में काम शुरू हो गया है। देश में श्वेत क्रांति‌ का अगुवा अमूल पूर्वांचल में दुग्ध एवं दुग्ध उत्पादों बढ़ाने‌ और 100 किलोमीटर की परिधि के कार्यक्षेत्र की अर्थव्यवस्था सुधारने के काम में जुट भी गया है।

करखियांव में 475 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित अमूल डेयरी प्लांट ने डेयरी से लोगों को जोड़ कर नौकरी और व्यवसाय के नए अवसर खोले हैं। उम्मीद की जा रही है कि इससे पलायन भी रुकेगा। वर्तमान लोकसभा चुनाव में अगर इन क्षेत्रों से विकास के प्रति संजीदा सांसद निर्वाचित हुए तो मोदी सरकार की संभावित अगली पारी में अच्छी उम्मीदें की जा सकती हैं।

अमूल प्लांट स्थापित करने वाली संस्था बनास डेयरी के चेयरमैन शंकर भाई चौधरी के मुताबिक इस प्लांट के खुलने से आने वाले समय में तीन लाख लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। पशुपालकों की आय दोगुनी हो जाएगी। उचित मूल्य के साथ-साथ उन्हें कंपनी की ओर से वार्षिक बोनस भी दिया जाएगा।

अमूल का यह प्लांट वाराणसी, जौनपुर, चंदौली, भदोही,गाज़ीपुर, आज़मगढ़, मिर्ज़ापुर और आसपास के जिलों के किसानों के लिए एक बड़ा अवसर साबित होने वाला है। दूसरी तरफ क्षेत्र में तेजी से बिछाई जा रही गैस पाइपलाइनें विकसित हुए राजमार्गों के किनारे प्रस्तावित औद्योगिक कारीडोर के लिए काफी अहम साबित होने वाली हैं।

इसी वर्ष 23 फरवरी को प्रधानमंत्री के हाथों हुए उद्घाटन के बाद विधिवत शुरू होने वाले इस अमूल प्लांट की अधारशिला विधानसभा चुनाव से पहले 23 दिसंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही रखी थी। हालांकि अमूल के इस प्लांट को तैयार होने में निर्धारित समय डेढ़ वर्ष की जगह तीन वर्ष लग गये। वह भी जब निर्धारित समय पर काम पूरा न होने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से उनकी लगातार मॉनिटरिंग होने लगी।

प्लांट में उत्पादन शुरू होने के पहले से ही वाराणसी के अतिरिक्त जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली और जौनपुर में मिल्क कलेक्शन सेंटर खोलने सहित अन्य व्यवस्थाएं प्रबंधन द्वारा की जा रही हैं। जौनपुर सहित पूर्वांचल के तकरीबन सभी जिलों में जगह-जगह खुले अमूल पार्लर पूर्वांचल को मिली अच्छी उपलब्धि की एक झलक है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। पिछले चार दशक से देश की शीर्ष पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे हैं।)

तरुणमित्र से साभार

कौन थे भगवान परशुराम, क्यों किया क्षत्रियों का संहार?

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परशुराम जयंती पर विशेष

हरिगोविंद विश्वकर्मा
जगत के पालनहार भगवान विष्णु, शास्त्रों के अनुसार, त्रेतायुग में वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को परशुराम के रूप में पृथ्वी लोक पर अवतरित हुए थे। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी। भार्गव वंश में जन्मे परशुराम को विष्णु के दस अवतारों में से छठा अवतार माना जाता है। वह वामन के बाद और मर्यादापुरुषोत्तम राम से पहले अवतरित हुए थे। उनका भी नाम राम था, किंतु वह शिव के परम भक्त थे।

शंकर से उन्हें कई अद्वितीय शस्त्र भी प्राप्त हुए इन्हीं में से एक था शंकर का अमोघ अस्त्र परशु। उसे फरसा या कुल्हाड़ी भी कहते हैं। यह इन्हें बहुत प्रिय था। इसलिए वह उसे हमेशा साथ रखते थे। परशु धारण करने के कारण ही इन्हें परशुराम कहा गया। शास्त्रों में उन्हें अमर माना गया है। कई ग्रंथों में परशुराम को शिव और विष्णु का संयुक्त अवतार माना जाता है। शिव से उन्होंने संहार लिया और विष्णु से उन्होंने पालक के गुण प्राप्त किए।

परशुराम भी दुर्वासा ऋषि की भांति अपने क्रोधी स्वभाव के लिए विख्यात थे। वाल्मिकि रामायण में उनके क्रोध की पराकाष्ठा का वर्णन मिलता है। वाल्मीकि रामायण के एक प्रसंग के अनुसार, प्राचीन काल में महिष्मती (वर्तमान महेश्वर) नगर के क्षत्रिय राजा कार्तवीर्य अर्जुन था। उसने सभी सिद्धियां प्राप्त कर ली थीं। उसने भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न करके वरदान स्वरूप उनसे एक सहस्त्र भुजाएं मांग ली। इससे उसका नाम कार्तवीर्य अर्जुन सहस्त्रबाहु हो गया। वह बड़ा प्रतापी तथा शूरवीर था। सहस्त्रबाहु ने परशुराम के पिता जमदग्नि से उनकी कामधेनु गाय मांगी थी। जमदग्नि के इनकार करने पर उसके सैनिक बलपूर्वक कामधेनु को अपने साथ लेकर चले गए। बाद में परशुराम को सारी घटना विदित हुई, तो वह बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने अकेले ही सहस्त्रबाहु की समस्त सेना का नाश कर दिया। पहले सहस्त्रबाहु की भी वध कर दिया।

इसके बाद प्रतिशोध की भावना के चलते कार्तवीर्य के संबंधी क्षत्रियों ने जमदग्नि का वध कर दिया। इस पर परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय-विहीन कर दिया। हालांकि हर बार हताहत क्षत्रियों की पत्नियां जीवित रहीं और नई पीढ़ी को जन्म देती रहीं। इस नरसंहार से समंत पंचक क्षेत्र में पांच रुधिर के कुंड भर गए। क्षत्रियों के रुधिर से परशुराम ने अपने पितरों का तर्पण किया। उस समय ऋचीक साक्षात प्रकट हुए। उन्होंने परशुराम को ऐसा कार्य करने से रोका। ऋत्विजों को दक्षिणा में पृथ्वी प्रदान की। ब्राह्मणों ने कश्यप की आज्ञा से उस वेदी को खंड-खंड करके बांट लिया। अतः वे ब्राह्मण जिन्होंने वेदी को परस्पर बांट लिया था, खांडवायन कहलाए।

अंततः परशुराम ने तपस्या की ओर ध्यान लगाया। रामावतार में रामचंद्र द्वारा शिव का धनुष तोड़ने पर वह बहुत क्रोधित हुए थे। वाद-विवाद के बाद उन्होंने राम की परीक्षा लेने के लिए अपना धनुष रामचंद्र को दिया। जब राम ने धनुष पर कमान चढ़ा दिया तो परशुराम समझ गए कि राम भगवान विष्णु के अवतार हैं। इसलिए उनकी वंदना करते हुए वह तपस्या करने चले गए। तुलसीदास कृत रामचरित मानस में इस प्रसंग एक चौपाई लिखी गई है। कहि जय जय रघुकुल केतू। भुगुपति गए बनहि तप हेतू।।’

एक अन्य प्रसंग के अनुसार राम का पराक्रम सुनकर परशुराम अयोध्या गए। दशरथ ने स्वागतार्थ रामचंद्र को भेजा। उन्हें देखते ही परशुराम ने उनके पराक्रम की परीक्षा लेनी चाही। अतः उन्हें क्षत्रियसंहारक दिव्य धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए कहा। राम के ऐसा कर लेने पर उन्हें धनुष पर एक दिव्य बाण चढ़ाकर दिखाने के लिए कहा। राम ने वह बाण चढ़ाकर परशुराम के तेज़ पर छोड़ दिया। बाण उनके तेज़ को छीनकर पुनः राम के पास लौट आया। राम ने परशुराम को दिव्य दृष्टि दी। जिससे उन्होंने राम के यथार्थ स्वरूप के दर्शन किए। परशुराम एक वर्ष तक लज्जित, तेजहीन तथा अभिमानशून्य होकर तपस्या में लगे रहे। तदनंतर पितरों से प्रेरणा पाकर उन्होंने वधूसर नामक नदी के तीर्थ पर स्नान करके अपना तेज़ पुनः प्राप्त किया।

परंपराओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार क्षत्रियों के अहंकारपूर्ण दमन से विश्व को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार लिया था। भृगु के वंशज परशुराम राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र थे। जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये ‘जामदग्न्य’ भी कहे जाते हैं। दरअसल, भृगु ने अपने पुत्र के विवाह के विषय में जाना तो बहुत प्रसन्न हुए तथा अपनी पुत्रवधु से वर मांगने को कहा। उनसे सत्यवती ने अपने तथा अपनी माता के लिए पुत्र जन्म की कामना की।

भृगु ने उन दोनों को ‘चरु’ भक्षणार्थ दिए और कहा कि ऋतुकाल के उपरांत स्नान करके सत्यवती गूलर के पेड़ और उसकी माता पीपल के पेड़ का आलिंगन करे तो दोनों को पुत्र प्राप्त होंगे। माँ-बेटी के चरु खाने में उलट-फेर हो गई। दिव्य दृष्टि से देखकर भृगु पुनः वहां पधारे तथा उन्होंन सत्यवती से कहा कि तुम्हारी माता का पुत्र क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मणोचित व्यवहार करेगा तथा तुम्हारा बेटा ब्राह्मणोचित होकर भी क्षत्रियोचित आचार-विचार वाला होगा। बहुत अनुनय-विनय करने पर भृगु ने मान लिया कि सत्यवती का बेटा ब्राह्मणोचित रहेगा किंतु पोता क्षत्रियों की तरह कार्य करने वाला होगा।

अंततः सत्यवती के पुत्र जमदग्नि मुनि हुए। उन्होंने राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका से विवाह किया। रेणुका के पाँच पुत्र रुमण्वान, सुषेण, वसु, विश्वावसु तथा परशुराम हुए। परशुराम क्षत्रियोचित वयवहार करने वाले पुत्र थे। एक बार उनकी मां रेणुका कलश लेकर जल भरने के लिए नदी पर गई थीं। वहां गंधर्व चित्ररथ अप्सराओं के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था। रेणुका राजा चित्ररथ पर मुग्ध हो गईं। जलक्रीड़ा देखने में रेणुका इतनी तन्मय हो गई कि जल लाने में विलंब हो गया और यज्ञ का समय व्यतीत हो गया। उनके आश्रम पहुंचने पर मुनि को दिव्य ज्ञान से समस्त घटना ज्ञात हो गई।

जमदग्नि ने क्रोध के आवेश में बारी-बारी से अपने चार बेटों को मां की हत्या करने का आदेश दिया। किंतु कोई भी तैयार नहीं हुआ। जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को जड़बुद्ध होने का शाप दिया। भगवान परशुराम ने तुरंत पिता की आज्ञा का पालन किया और मां रेणुका की हत्या कर दी। इससे जमदग्नि ने प्रसन्न होकर उसे वर मांगने के लिए कहा। परशुराम ने पहले वर से मां का पुनर्जीवन मांगा और फिर अपने भाइयों को क्षमा कर देने के लिए कहा। जमदग्नि ऋषि ने परशुराम को अमर होने का वरदान दिया।

असम राज्य की उत्तरी-पूर्वी सीमा में जहाँ ब्रह्मपुत्र नदी भारत में प्रवेश करती है, वहीं परशुराम कुंड है, जहां तप करके उन्होंने शिव से परशु प्राप्त किया था। वहीं पर उसे विसर्जित भी किया। परशुराम भी सात चिरंजीवियों में से एक हैं। कहते हैं कि इनका पाठ करने से दीर्घायु प्राप्त होती है। परशुराम कुंड नामक तीर्थस्थान में पाँच कुंड बने हुए हैं। परशुराम ने समस्त क्षत्रियों का संहार करके उन कुंडों की स्थापना की थी तथा अपने पितरों से वर प्राप्त किया था कि क्षत्रिय संहार के पाप से मुक्त हो जाएंगे। परशुराम ने अपने जीवनकाल में अनेक यज्ञ किए। यज्ञ करने के लिए उन्होंने बत्तीस हाथ ऊंची सोने की वेदी बनवाई थी। महर्षि कश्यप ने दक्षिण में पृथ्वी सहित उस वेदी को ले लिया तथा फिर परशुराम से पृथ्वी छोड़कर चले जाने के लिए कहा। परशुराम ने समुद्र पीछे हटाकर गिरिश्रेष्ठ महेंद्र पर निवास किया।

 

75 साल में पाकिस्तान में 14 फीसदी से घटकर 1.2 फीसदी रह गए हिंदू (Hindus in Pakistan reduced from 14 percent to 1.2 percent in 75 years)

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हरिगोविंद विश्वकर्मा
भारतीय होने के नाते हम अपनी ‘गंगा-जमुनी संस्कृति’ और ‘जीयो और जीने दो’ के दर्शन पर गर्व कर सकते हैं। नफ़रत की राजनीति करने वाले चंद भ्रमित लोगों को अगर छोड़ दें तो भारत ही नहीं बल्कि दुनिया में कहीं भी रहने वाले अधिकांश हिंदू इसी जीवन-दर्शन का पालन करते हैं। वे उसी के अनुसार अपना जीवन जीते हैं, लेकिन पड़ोस के इस्लामिक देश पाकिस्तान हालत बहुत दयनीय है। ख़ासकर ग़ैर-मुस्लिम लोगों के लिए तो पाकिस्तान सबसे भयावह जगह है। आज़ादी से पूर्व जनगणना में वहां हिंदुओँ आबादी 14 फ़ीसदी थी, लेकिन पिछले 75 साल में हिंदू आबादी घटती हुई केवल 19 लाख 60 हज़ार यानी देश की आबादी का 1.2 प्रतिशत रह गई है।

सन् 1947 में बंटवारे के दौरान संपन्न उच्च और मध्यम वर्ग के हिंदू भारत आ गए थे। लेकिन ग़रीब वहीं रह गए। उन्हें आज दोयम दर्जे का नागरिक बनकर जीना पड़ रहा है। आए दिन हिंदुओं लड़कियों को कट्टरपंथी उठा ले जाते हैं, जबरन धर्म-परिवर्तन करवा कर निकाह कर लेते हैं, लेकिन सरकार या पुलिस कोई एक्शन नहीं लेती। वहां हिंदुओं का शोषण और धर्म-परिवर्तन आम है। इससे वहां हिंदुओं की तादाद काफी तेज़ी से कम हो रही है।

अगर भारत पाकिस्तान की तुलना करें तो हिंदू बाहुल्य भारत में मुसलमानों को हिंदुओं की तरह ही बराबरी का अधिकार है। पर मुस्लिम बाहुल्य पाकिस्तान में हिंदुओं को कोई अधिकार नहीं हैं। भारत में मुस्लिम आबादी लगातार हिंदुओं से भी ज़्यादा प्रतिशत बढ़ रही है। पर पड़ोस में मुस्लिमों की आबादी बढ़ रही है, लेकिन हिंदुओं की आबादी लगातार घटती जा रही है। यह खुलासा दुनिया भर में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को प्रमुखता से उठाने वाले लंदन (ब्रिटेन) के सामाजिक संगठन माइनॉरिटी राइट्स ग्रुप (MRG) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है।

पाकिस्तान कहता है कि हिंदुओं की आबादी 2.14 फ़ीसदी है। माइनॉरिटी राइट्स ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या घटकर 19.60 लाख रह गई है। यह देश की आबादी का महज 1.2 फ़ीसदी है। वैसे वहां की 2023 की जनगणना में आबादी 2017 के 20.76 करोड़ से बढ़कर 2023 में 24.15 करोड़ हो गई। पाकिस्तान में हिंदुओं की अलग जनगणना नहीं होती, सो आधिकारिक तौर पर हिंदुओं की आबादी की जानकारी किसी को नहीं, लेकिन गैर-सरकारी एजेंसियों के आकलन के अनुसार 2017 से पहले वहां हिंदू आबादी 22 लाख यानी कुल आबादी का 1.6 फ़ीसदी थी, लेकिन 2017 की जनगणना में हिंदुओं की संख्या 0.4 फ़ीसदी और गिर गई।

वैसे पाकिस्तान में जनगणना हमेशा संदिग्ध रही है। फिर भी 2017 की जनगणना में मुस्लिम आबादी 96.2 प्रतिशत थी। जबकि हिंदुओं की कुल आबादी 1.2 प्रतिशत थी। 96 फ़ीसदी हिंदू आबादी बहुत अधिक पिछड़ा वर्ग माने जाने वाले सिंध प्रांत के ग्रामीण हिस्सों में रहती है। सिंध प्रांत के उमरकोट जिले में हिंदुओं का प्रतिशत सबसे अधिक 52.2 फीसदी है, जबकि थारपारकर जिले में 7,14,698 आबादी के साथ सबसे अधिक हिंदू हैं। पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के प्रमुख डॉ. रमेश कुमार वेंकवाणी का कहना है कि पाकिस्तान में हिंदुओं की गणना ठीक से नहीं हो पाती। अगर जनगणना सही हो तो हिंदू आबादी ज़्यादा मिलेगी।

सन् 2023 की जनगणना से पहले पाकिस्तान के राष्ट्रीय डेटाबेस और पंजीकरण प्राधिकरण के नवीनतम (सन् 2018) आंकड़ों के अनुसार, देश में 19.6 लाख हिंदू थे। स्वतंत्रता के समय पाकिस्तान में लगभग 23 फ़ीसदी हिंदू थे। पश्चिमी पाकिस्तान, मौजूदा पाकिस्तान,में 14 फ़ीसदी हिंदू थे जबकि पूर्वी पाकिस्तान जो अब बांग्लादेश है, में हिंदू जनसंख्या 28.4 फ़ीसदी थी। वहां चुनाव में अल्पसंख्यक सबसे कम मतदान करते हैं। उनके लिए सारे शासक या तो सांपनाथ है या फिर नागनाथ हैं। वहां अल्पसंख्यकों को उतना अवसर नहीं मिलता जितना बहुसंख्यकों को। इसीलिए हिंदुओं में आमतौर पर शिक्षा, रोज़गार और सामाजिक उन्नति तक समान पहुंच का अभाव है।

माइनॉरिटी राइट्स ग्रुप के मुसाबिक भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण राजनीतिक संबंधों का असर हिंदुओं पर हमले के रूप में दिखता है। इसके चलते पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में इस्लामिक कट्टरवाद और उग्रवाद में वृद्धि हुई और हिंदू ही हिंसा और शोषण से सबसे अधिक शिकार हुए। पाकिस्तान के हिंदू अक्सर भारत में मुसलमानों के अधिकारों के उल्लंघन के परिणामस्वरूप उत्पन्न हिंदू-विरोधी भावनाओं के शिकार होते हैं।

6 दिसंबर 1992 के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश में भयावह परिणाम देखने को मिले थे। विवादास्पद ढांचे को विध्वंस के बाद वहां मुसलमानों ने अपना ग़ुस्सा हिंदुओं और उनकी संपत्तियों पर निकाला था। हिंदुओं पर बड़े अत्याचार किए गए। एक अनुमान के मुताबिक 6 से 8 दिसंबर 1992 के बीच लगभग 120 हिंदू मंदिरों को ज़मीदोज़ कर दिए गए थे।

पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के अनुसार, 1998 के दौरान हिंदुओं पर अत्याचार के बेहिसाब मामले प्रकाश में आए। हिंदू महिलाओं का अपहरण किया गया। उनके साथ बलात्कार किया ग। और इतना ही नहीं जबरन उनका धर्म परिवर्तन करवा कर उन्हें मुसलमान बनाया गया। प्रकट, स्टेट-स्पॉन्सर्ड भेदभाव और दमन के कारण, पाकिस्तान के हिंदू अपने मौलिक मानवाधिकारों से वंचित हैं। हिंदू ‘अवांछित’ और भारत के जासूस माने जाते हैं। इसी का हवाला देते हुए भारत में भाजपा सरकार संविधान संशोधन क़ानून से पड़ोसी देशों के मुसलमानों को अलग रखा है।

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यह कांग्रेस के समय का भारत नहीं, अब कोई थप्पड़ मारेगा तो भारत जबड़ा तोड़ देगाः योगी

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  • उप्र के मुख्यमंत्री लोकसभा चुनाव-2024 के लिए दूसरी बार महाराष्ट्र के चुनावी समर में उतरे
  • एम योगी ने महाराष्ट्र के सोलापुर में भाजपा उम्मीदवार श्रीराम सतपुते के लिए की जनसभा
  • हिंदुओं को अपमानित करने के लिए कांग्रेस ने दिया हिंदू आतंकवाद शब्दः योगी
  • जातीय जनगणना का झुनझुना पकड़ाकर हिंदुओं को लड़ाना चाहती है कांग्रेस
  • कांग्रेस बाबा साहेब का अपमान करती है और मोदी उनके बनाए संविधान की पूजा

सोलापुर। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को कहा कि अब कोई दुश्मन देश भारत की सीमा में अतिक्रमण नहीं कर सकता। नक्सलवाद, आतंकवाद समाप्त हो गया। अब पटाखा फूटने पर पाकिस्तान सफाई देता है कि मेरा हाथ नहीं है, क्योंकि उसे पता है कि नया भारत किसी को छेड़ता नहीं, लेकिन छेड़ने वाले को छोड़ता भी नहीं। यह कांग्रेस के समय का भारत नहीं है कि कोई थप्पड़ मारता था तो कहते थे कि रुक जाओ, कहीं माहौल खराब न हो जाए। अब कोई थप्पड़ मारेगा तो नया भारत जोरदार घूसे से उसका जबड़ा तोड़ने की ताकत रखता है।

योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को सोलापुर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी श्रीराम सतपुते के पक्ष में जनसभा को संबोधित करते हुए यह विचार व्यक्ति किया। सीएम योगी दूसरी बार महाराष्ट्र के चुनावी रण में उतरे हैं। सीएम ने कहा कि हिंदुओं को अपमानित करने के लिए इन लोगों ने क्या कुछ नहीं किया। यह वही कांग्रेस है, जिसने राम के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा किया था और हिंदुओं को अपमानित करने के लिए यूपीए सरकार में हिंदू आतंकवाद का शब्द भी दिया था। सीएम ने लोगों से पूछा कि हिंदू आतंकवादी होता है क्या। देश के तत्कालीन गृह मंत्री के परिवार के लोग खूनी पंजे से चुनाव लड़ने आए हैं। आपको उनसे सावधान रहना है। इन लोगों ने यह भी कहा था कि मालेगांव विस्फोट में योगी आदित्यनाथ का भी नाम होगा। हम सीबीआई रेड कराएंगे। हमने कहा कि प्रमाण के साथ भेजना।

सीएम ने आरोप लगाया कि कांग्रेस गुमराह करने के लिए जातीय जनगणना का झुनझुना पकड़ाया है। इसके माध्यम से यह हिंदू जातियों को लड़ाएंगे और जब आरक्षण का मुद्दा इनके मुद्दे से अलग हो जाएगा। हिंदू लड़ने लग जाएगा तो आपके हक को मुसलमानों को देंगे। फिर भारत के इस्लामीकरण-तालीबानीकरण की रूपरेखा कांग्रेस तैयार कर देगी। मजहब के आधार पर फिर से बंटवारा नहीं होने देना है। सीएम योगी ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पावन जन्मभूमि से आया हूं। रामजन्मभूमि आंदोलन में महाराष्ट्र के भाजपा व शिवसेना कार्यकर्ताओं ने भी बढ़चढ़ कर भाग लिया और सफलता अर्जित की। पीएम मोदी के प्रयास व सभी के सहयोग से अयोध्या में प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बन गया है। यह मंदिर भव्य भारत के राष्ट्र मंदिर का चित्रण प्रस्तुत करता है। राम मंदिर इस बात का संकेत है कि हम एकजुट होकर कार्य करेंगे तो सिद्धि जरूर प्राप्त होगी।

सीएम ने कहा कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर कांग्रेस के लोग नहीं बना पाते। वे कहते थे कि राम हुए ही नहीं। जब राम मंदिर का फैसला हो रहा था तो कहते थे कि खून की नदियां बहेंगी। मैंने कहा कि यूपी में हम हैं, मच्छर भी नहीं मरने वाला। यूपी में सात वर्ष में दंगा-कर्फ्यू तक नहीं लगा। यूपी में राम मंदिर बना है तो माफिया का राम नाम सत्य भी हो रहा है। सीएम योगी ने कहा कि दस वर्ष तक बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के संविधान की पूजा, महात्मा फुले के सामाजिक न्याय को अंगीकार, सावित्री बाई फुले के महिला सशक्तिकरण के अभियान और बाला साहब ठाकरे के हिंदुत्व की प्रचंड ज्वाला को बढ़ाते हुए पीएम मोदी ने जो शंखनाद किया है, उसका परिणाम है कि 140 करोड़ भारतवासियों का दुनिया में सम्मान बढ़ा है। इनके विचारों की प्रेरणा पीएम मोदी के एक-एक कार्यों में झलकती है।

सीएम ने पूछा कि मोदी जी ने सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया। इसमें संविधान बदलने की बात कहां आती है। मोदी जी भीमराव आंबेडकर के संविधान की पूजा करते हैं। जब नया संसद बन रहा था तो मोदी जी संविधान को सिर पर लेकर जा रहे थे और कह रहे थे कि भारत का सबसे पवित्र ग्रंथ यही है, लेकिन कांग्रेस के लोगों ने भीमराव आंबेडकर का खूब अपमान किया। सीएम ने अपील की कि जिन्होंने राम मंदिर के मार्ग पर रोड़े अटकाए और हिंदुओं को आतंकवादी कहा, उन्हें कतई वोट नहीं देना है। पूरा देश कह रहा है कि जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे। सीएम ने आश्वासन दिया कि जैसा परिवर्तन यूपी में दिखा है, वैसा ही परिवर्तन देश में भाजपा सरकारों में देखने को मिलेगा।

इस अवसर पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले, सोलापुर के सांसद जय सिद्धेश्वर महास्वामी, विधायक सुभाष देशमुख, विजय देशमुख, सचिन कल्याण शेट्टी, मंत्री चंद्रकांत दादा पाटिल, महाराषट्र सरकार के मंत्री व शिवसेना के उपनेता गुलाब राव पाटिल, भाजपा जिलाध्यक्ष नरेंद्र काले, लोकसभा संयोजक विक्रम देशमुख आदि मौजूद रहे।

काया में लघु, असर में बृहद

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हंगल साहब, जरा हँस दीजिए
डॉ. मधुबाला शुक्ल

‘हंगल साहब, जरा हँस दीजिए’ हरि मृदुल जी का पहला कहानी संग्रह है। इस कहानी संग्रह में लघु-बृहद मिलाकर कुल 20 कहानियों का समावेश है। हर कहानी पाठकों के हृदय को झकझोरती हुई नजर आती है, पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है। हर एक कहानी व्यक्ति के जीवन से कहीं न कहीं जुड़ी हुई है।

हरि मृदुल जी का जन्म उत्तराखंड के बगोटी गाँव में हुआ तो जाहिर सी बात है कि उनकी कहानियों में उत्तराखंड का उल्लेख मिलना स्वाभाविक है। उत्तराखंड की भूमि से, गाँव से, नाते रिश्तेदारों से और दोस्तों से जुड़ी हुई कहानियों का समावेश इस संग्रह में है। वहीं दूसरी और रोजी-रोटी की तलाश में महानगर की जीवन शैली का यथार्थता परक सदृश्य विवरण भी है।

संग्रह की पहली कहानी ‘अर्जन्या’ आपातकाल के दृश्य को विवेचित करती है। जिसमें तानाशाही सत्ता का शिकार अर्जुन राम का जबरन नसबंदी करवा देना सत्ता के जुल्म की कहानी कहता है। ‘कुत्ते दिन’ कहानी प्रिंट मीडिया और दृश्य मीडिया से गुम हो रहे खबरों की कहानी है। जहाँ वर्तमान समय में प्राइवेट चैनल्स अपनी-अपनी टीआरपी बढ़ाने की होड़ में लगे हैं। सभी बड़े न्यूज चैनलों का स्तर गिरता जा रहा है। खबरों को चटपटा, मसालेदार बनाकर दर्शकों के समक्ष परोसा जा रहा है। खबरों के नाम पर परोसी जा रही इसी विकृत मानसिकता को कहानी के माध्यम से चित्रित किया गया है। और इससे एक सामान्य व्यक्ति आहत होते हुए भी कुछ न कर सकने में असमर्थ है। जिसका विस्तृत विवरण इस कहानी में देखा जा सकता है।

‘पटरी पर गाड़ी’ कहानी जुलाई 2005 की दास्तान कहती नजर आती है। उस साल को कोई भी मुंबईकर नहीं भुला सकता। इस बाढ़ से संबंधित कोई न कोई कहानी प्रत्येक मुंबइकर से जुड़ी होगी। न जाने कितने जानमाल की हानि हुई, इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है। हाँ, सरकारी आँकड़े जरूर सामने आए परंतु उसमें कितनी सत्यता है, ये सभी मुंबईकर जानते हैं। लेखक ने बड़ी साफगोई से सत्यता के साथ दिल दहला देने वाली कहानी को लिपिबद्ध किया है। मैं ये दावे से कह सकती हूँ कि बिना आँखें नम किए हुए कोई भी इसे पूरी तरह पढ़ लें। वहीं ‘आलू’ कहानी में एक पिता अपने छोटे से बच्चे को यह समझा पाने में असमर्थ है कि पंद्रह रुपए वेफर के पैकेट में पाँच रूपए की हवा, पाँच रूपए का चमकीला रैपर और सिर्फ पाँच रुपए का ही वेफर मिलता है। बाजार में लूट मचा रही इन ब्रांडेड कंपनियों की तरफ लेखक ने इशारा किया है जो उपभोक्ताओं को बेवकूफ बना रही हैं। और सबसे बड़ी बात यह उपभोक्ता भलीभाँति जानते हैं कि वे बेवकूफ बनाए जा रहे हैं, परंतु उदारीकरण के इस दौर में वे कब तक इससे अछूते रह सकते हैं।

‘ई कौन नगरिया’ कहानी महानगर के संघर्ष को चित्रित करती नजर आती है। अपने सपनों को पूरा करने के लिए भिन्न-भिन्न राज्यों से, कस्बों से लोग महानगरों में आते हैं। परंतु कितने ही लोग हैं जो अपने ख्वाबों को पूरा कर पाते हैं..? कुछ साल संघर्ष करते हुए हाथ-पैर मारते हैं और सफलता न मिलने पर वापस लौट जाते हैं। कुछ लोग यहीं रहकर अपनी सफलता की प्रतीक्षा करते हैं। वैश्वीकरण के दौर में जब केबल के द्वारा प्राइवेट चैनलों ने हमारे घरों में जबरन घुसपैठ की और हमने उन्हें अपना पैर मजबूती के साथ जमाने का मौका भी दिया। उसका जो प्रभाव हमारी भारतीय संस्कृति पर, लोगों पर पड़ा, उसका विस्तृत विवेचन ‘धनुष-बाण’ कहानी में लेखक ने किया है। वर्तमान समय में इसका बिगड़ा हुआ स्वरूप हमारे समक्ष है।

पिता ही वह व्यक्ति है जो परिवार को प्यार और सहयोग प्रदान करता है। साथ ही, वह परिवार की रक्षा भी करता है। उसकी पत्नी उसकी ताकत, उसका साहस होती है। जब तक पत्नी उसके साथ है, तब तक समस्याओं का निवारण उस तक पहुँचने से पहले ही हो जाता है। ‘मैं पिता को देख रहा था’ एक ऐसी ही कहानी है जो अपनी पत्नी के चले जाने के बाद, करीने से, सहेजकर रखी गई वस्तुओं को एकटक देखते हुए उन वस्तुओं से, उन पशुओं से, चूल्हे के पास, जिस-जिस स्थान पर उसकी पत्नी बैठती थी वो उन सबसे बातें करता दिखाई देता है और इस पिता को देख रहा होता है उसका… बालक… ‘पैंतीस साल बाद, पाँच दोस्त’ कहानी पाँच दोस्तों की है। उदयभानु-दरोगा, भोलानाथ-प्रोफेसर, रविशंकर-वकील, रघु-रिक्शावाला, कौशल किशोर-ज्योतिषी और इनके एक साथ मिलने का सूत्र है, मीडिया हाउस में काम करने वाला मीडियाकर्मी दोस्त। जिसने फेसबुक के जरिए दोस्तों को ढूंढकर उनसे मिलने की योजना बनाई। जो अपने इन पाँचों दोस्तों से मिलकर अपने स्कूली जीवन को याद करना चाहता है। सारे मित्र मिलते तो हैं परंतु अपने-अपने औधे का रौब झाड़ते हुए, अपने को एक-दूसरे से बेहतर बताते हुए। लेखक ने कहानी के माध्यम से संकेत किया है, किस तरह बचपन की दोस्ती बड़े होने पर दम तोड़ देती है।

‘घोंघा’ कहानी बहुत छोटी होने के बावजूद भी पाठकों पर अपना प्रभाव छोड़ने से नहीं चूकती। जो यह दर्शाती है कि महानगर में रहने वाले लोग किस तरह महानगर की दौड़-भाग में सिर्फ अपने-आप में सिमटते जा रहे हैं, स्वार्थी होते जा रहे हैं। किस तरह मनुष्य धीरे-धीरे घोंघे के रूप में परिवर्तित होता जा रहा है। ‘कन्हैया’ कहानी में एक युवक इस तरह बांसुरी बजाता हुआ सबको सम्मोहित कर रहा है जिस तरह से कभी कृष्ण ने अपनी बांसुरी की धुन पर लोगों को सम्मोहित किया था। वह व्यक्ति बांसुरी बजाते-बजाते चला जा है और उसके पीछे-पीछे लोगों की भीड़ भी चल रही है। युवा पत्रकार के पूछने पर वह अपना नाम आरिफ बताता है, साथ में ये भी जानकारी देता है कि वह बचपन से ही वह बांसुरी बजा रहा है, इतना ही नहीं नाटकों में उसने कृष्ण की भूमिका भी निभाई है। उसने ‘गीता’ और ‘कुरान’ दोनों ग्रंथों को पढ़ा है। उसका यह मानना है कि जितना वह मुस्लिम है उतना ही वह हिंदू भी है। और इसी कारण मुस्लिम संगठन से उसे धमकियाँ मिलती हैं और हिंदू संगठन के लोग उस पर शक करते हैं। उसकी तहजीब कोई धर्म नहीं है बल्कि उसकी तहजीब तो सिर्फ और सिर्फ हिंदुस्तानी है। वर्तमान समय में यह कहानी बहुत ही प्रासंगिक है। धर्म के नाम पर किस तरह लोग एक-दूसरे का गला काटते आएँ हैं और काट रहे हैं। ऐसे में इस तरह की कहानी का पढ़ा जाना और लिखा जाना अतिआवश्यक है।

‘आमा’, ‘पीतल के गिलास’, ‘पानी में पानी’, ‘ढेंचू’, ‘बाघ’, ‘बिल्ली’ जैसी कहानियाँ पहाड़ी जीवन और सोई हुई मानवीय संवेदनाओं को जागृत करती और औरत के दुःख और बेबसी की कहानियाँ हैं। वहीं दूसरी ओर पत्रकार की भूमिका में लेखक ने सिने जगत का निरिक्षण भी बड़ी बारीकी से किया है- जिसका स्वरूप हमें, ‘हंगल साहब, ज़रा हँस तो दीजिए’, ‘पृथ्वी में शशि’, ‘कपिल शर्मा की हँसी’, और ‘लता मंगेशकर की चोटी’ जैसी कहानियों में दिखाई देता है।

कवि, कहानीकार, पत्रकार की भूमिका में हरि मृदुल जी ने अपने कालखंड को बड़ी साफ़गोई के साथ प्रस्तुत किया है। उनके कलम की धार इसी तरह सदा बनी रहे।
कहानी संग्रह- हंगल साहब, ज़रा हँस तो दीजिए
लेखक- हरि मृदुल
प्रकाशक- आधार प्रकाशन
पृष्ठ – 110
मूल्य – ₹150

रीमा राय सिंह के काव्य संग्रह ‘अक्षर तूलिका’ पर परिचर्चा

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संवाददाता

मुंबई, चित्रनगरी संवाद मंच मुंबई के साहित्यिक परिचर्चा में वरिष्ठ कथाकार सूरज प्रकाश, निर्देशक राजशेखर व्यास और गीतकार देवमणि पांडेय की उपस्थिति में कवयित्री रीमा राय सिंह के काव्य संग्रह ‘अक्षर तूलिका’ पर परिचर्चा हुई। पहले सत्र में सृजन संवाद कार्यक्रम में साहित्य और सिनेमा के रिश्तों पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई और अंत में कुछ चुनिंदा कवियों का काव्यपाठ भी हुआ।

गोरेगांव पश्चिम के केशव गोरे हाल में रविवार की शाम हुए साप्ताहिक प्रोग्राम में अपनी कविताओं का जिक्र करते हुए रीमा राय ने कहा, “जीवन में जब मौन प्रस्फुटित होता है तो शब्द का आकार लेता है और वे शब्द जब भावों के मोतियों के रूप में संकलित होतें है तब कविता का जन्म होता है। ‘अक्षरतूलिका’ ऐसे भावों को समेटती विविध प्रकार की कविताओं का वह संकलन है जिसे मैंने अपने दैनिक जीवन में महसूस किया।”

रीमा राय ने कहा, “एक स्त्री के रूप में घर और घर से बाहर होने वाली घटनाओं और उस पर विविध प्रकार प्रतिक्रियाएं एक रचनाकार के रूप में जाने अनजाने मुझे भी आंदोलित करती रहती हैं जिसे मैंने मानवीय सम्वेदनाओं के आधार पर एक भावनात्मक स्वरुप प्रदान करने का एक प्रयास किया है। इस किताब की कविताएँ उन मनोभाओं पर आधारित है जिन्होनें मेरे अपने जीवन और मेरे आस-पास की होने वाली परिस्थितियों के आधार पर मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया।”

अक्षर तूलिका की कविताएं छंद मुक्त और सरल भाषा में हैं। पाठक इनमें मौजूद वेदनाओं, संवेदनाओं, खामोशियों और रुसवाइयों जैसे भावों से रूबरू हो सकते हैं। किताब में सूरज प्रकाश, डॉ प्रमोद कुश ’तन्हा’ और डॉ रोशनी किरण की टिप्पणियां हैं। इस परिचर्चा में डॉ वर्षा महेश, डॉ पूजा अलापुरिया, सविता दत्त और राजीव मिश्र ने हिस्सा लिया। इस मौके पर रीमा राय सिंह ने अपने कविता संग्रह की कुछ कविताओं का पाठ भी किया, जिसे बौद्धिक वर्ग के श्रोताओं ने खूब सराहा।

पहले सत्र में चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई के सृजन संवाद कार्यक्रम में साहित्य और सिनेमा के रिश्तों पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई। कार्यक्रम में प्रस्तावना पेश करते हुए कथाकार सूरज प्रकाश ने चर्चा के लिए कुछ मुद्दे सामने रखे। उन्होंने कहा कि साहित्य को सिनेमा में तब्दील करते समय क्या चुनौतियां आती हैं इस पर विचार की ज़रूरत है। साहित्य पर आधारित फ़िल्म की सफलता और असफलता के मानदंड क्या हैं? एक ही कथाकार मन्नू भंडारी की कहानी पर ‘रजनीगंधा’ फ़िल्म कामयाब होती है और उन्हीं की कथा ‘आपका बंटी’ पर आधारित फ़िल्म क्यों फ्लाप हो जाती है, इस पर चर्चा की आवश्यकता है।

सुप्रसिद्ध लेखक संपादक, निर्माता निर्देशक एवं दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक राजशेखर व्यास ने कहा कि जब कोई साहित्यकार अपनी कृति फ़िल्म निर्माण के लिए किसी फ़िल्मकार को देता है तो उसे भूल जाना चाहिए कि इस पर मेरा कोई हक़ है। जब साहित्य पर फ़िल्म बनती है तो उस पर निर्देशक का अधिकार हो जाता है। सिनेमा निर्देशक का माध्यम है। इसलिए निर्देशक सिनेमाई ज़रूरत के अनुसार साहित्यिक कृति में मनचाहा बदलाव कर सकता है।

श्री व्यास ने अपने पिता पद्मभूषण सूर्यनारायण व्यास को याद करते हुए कहा कि उन्होंने सम्राट विक्रमादित्य और कवि कालिदास पर फ़िल्मों का निर्माण किया था और दोनों फ़िल्में कामयाब हुई थीं। सिने जगत में साहित्यकारों का आवागमन काफ़ी पुराना है। सन् 1924 में यानी मूक फ़िल्मों के ज़माने में पांडेय बेचन शर्मा उग्र मुंबई आ गए थे। उन्होंने यहां के फ़िल्मी माहौल पर संस्मरण भी लिखा। व्यास जी ने उग्र जी का रोचक संस्मरण पढ़कर सुनाया।

इस सृजन सम्वाद में फ़िल्म, गोदान, और ‘तीसरी क़सम’ से लेकर ‘शतरंज के खिलाड़ी’ तक पर बढ़िया चर्चा हुई। ‘धरोहर’ के अंतर्गत अभिनेता शैलेंद्र गौड़ ने प्रख्यात कवि राजेश जोशी की कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ का पाठ असरदार ढंग से किया। प्रतापगढ़ से पधारे वरिष्ठ कवि राजमूर्ति सौरभ का परिचय राजेश ऋतुपर्ण ने दिया। सौरभ ने अपनी चुनिंदा ग़ज़लें, दोहे और गीत सुनाए। उनकी रचनाओं को भरपूर सराहा गया। श्रोताओं की फरमाइश पर उन्होंने अवधी भाषा में भी काव्य पाठ किया। शायर नवीन जोशी नवा और कवि राजेश ऋतुपर्ण ने काव्य पाठ के सिलसिले को आगे बढ़ाया।

 

 

नारायण दत्त तिवारी की तरह “बायोलॉजिकल फादर” बनने की राह पर रवि किशन (Ravi Kishan on the path to becoming a “biological father” like ND Tiwari)

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रवि किशन अपर्णा सोनी और उसकी बेटी शिनोवा के साथ... फोटो साभार -डेक्कन हेराल्ड

एडवोकेट अशोक सारावगी ने कहा कि वह शिनोवा अदालत से न्याय दिलवाएंगे

अभिनेता और भाजपा सांसद रवि किशन शुक्ला कांग्रेस नेता स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी की तरह “बायोलॉजिकल फादर” बनने की राह पर हैं। जैसे रोहित शेखर नाम के युवक ने 2008 में अचानक एनडी तिवारी को अपना जैविक पिता बता दिया था और उसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट के दख़ल के बाद दोनों का डीएनए टेस्ट हुआ, जिसमें तिवारी रोहित के पिता निकले, उसी तरह मुंबई के मालाड में रहने वाली शिनोवा सोनी (Shinova Soni) नाम की युवती ने रवि किशन को अपना बायोलॉजिक फादर बताया है। उसने अपने दावे की पुष्टि के लिए रवि किशन का बायोलॉजिकल टेस्ट कराने की मांग करते हुए मुंबई के सेशन कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया है। अगर शिनोवा का डीएनए रवि किशन से मिल जाता है तो उनकी भी हालत एनडी तिवारी जैसी हो जाएगी। 25 वर्षीय शिनोवा सोनी ने रवि किशन की पत्नी प्रीति शुक्ला की ओर से दर्ज कराई गई एफआईआर अपराध साबित करने की भी खुली चुनौती दी है।

रवि किशन की कथित “बायोलॉजिकल बेटी” शिनोवा ने मुंबई से सेशन कोर्ट में एडवोकेट अशोक सारावगी के माध्यम से एक याचिका दाख़िल की है। अशोक सारावगी ने कहा कि वह शिनोवा को इंसाफ़ दिलाकर रहेंगे। बहरहाल, याचिका में उसने दावा किया है कि वह रवि किशन की ही बायोजॉलिकल बेटी है। अपने दावे को साबित करने का उसके पास पर्याप्त प्रमाण भी हैं। उसने अपने दावे की पुष्टि के लिए अपना और रवि किशन का डीएनए टेस्ट कराने की भी मांग की है। इससे पहले शिनोवा सोनी ने अपनी माता अपर्णा सोनी (Aparna Soni) उर्फ ​​अपर्णा ठाकुर के साथ पिछले सोमवार को लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। पत्रकारों के सामने उसकी मां अपर्णा ने दावा किया था कि रवि किशन उनकी 25 वर्षीय बेटी शिनोवा के पिता हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि रवि किशन उनकी बेटी को अपनी बेटी के हक से वंचित कर रहे हैं।

शिनोवा के अदालत में चले जाने के बाद रवि किशन वाक़ई गंभीर विवाद में घिर गए हैं। दरअसल, अपर्णा कई साल से कहती आ रही हैं कि रवि किशन ही उनकी बेटी शिनोवा के पिता हैं। शिनोवा सोनी भी खुद को रवि किशन की बेटी बताती रही हैं। हालांकि उसने अपने फिल्मी करियर के लिए रवि किशन के नाम का इस्तेमाल नहीं किया। शिनोवा तो कोर्ट के माध्यम से डीएनए टेस्ट के लिए भी तैयार हैं। अपर्णा का कहना है कि उनके पास कई सबूत हैं, जो उनके दावे को सही साबित कर सकते हैं और उन्हें इंसाफ़ दिला सकते हैं। हालांकि रवि किशन ने सभी आरोपों को ख़ारिज़ किया है। उनकी पत्नी पत्नी प्रीति शुक्ला ने अपर्णा समेत कई लोगों के ख़िलाफ़ FIR भी दर्ज करवा दिया है। रवि किशन की पत्नी का कहना है कि एक साल से अपर्णा ने उन्हें ब्लैकमेल करती आ रही है।

प्रीति शुक्ला ने लखनऊ के हजरतगंज पुलिस स्टेशन में अपर्णा सोनी, उनके पति राजेश सोनी, बेटी शिनोवा सोनी, बेटे सौनक सोनी, वकील विवेक पांडे और यू-ट्यूबर पत्रकार खुर्शीद खान के खिलाफ FIR भी दर्ज करवाई है। सभी लोगों पर IPC की धारा 120बी, 195, 386, 388, 504 और 506 के तहत आरोप लगाए गए हैं। अपनी शिकायत में प्रीति शुक्ला ने आरोप लगाया है कि अपर्णा ने उन्हें अंडरवर्ल्ड की धमकी दी थी। प्रीति शुक्ला ने दावा किया कि अपर्णा ने उनसे कहती है, “अगर तुम बात नहीं मानोगी तो मैं तुम्हारे पति को झूठे बलात्कार के मामले में फंसा दूंगी।” एफआईआर में अपर्णा द्वारा 20 करोड़ रुपए हफ्ता मांगने का भी जिक्र किया गया है। ऐसी ही शिकायत प्रीति शुक्ला ने मुंबई में भी दर्ज कराई गई है। अपनी शिकायत में उन्होंने चिंता व्यक्त की है कि अपर्णा की हरकतों का उद्देश्य उन्हें और उनके पति, जो गोरखपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, को बदनाम करके चुनाव को प्रभावित करना है।

रवि किशन अपर्णा सोनी और उसकी बेटी शिनोवा के साथ…

उधर, अपर्णा सोनी उर्फ अपर्णा ठाकुर ने 20 करोड़ रुपए की अलग ही कहानी बताई है। उन्होंने कहा है कि उन्होंने रवि किशन से उनकी ही बेटी के भरण-पोषण के लिए 20 करोड़ की मांग करते हुए 12 मई 2023 को ही विधिवत अपने वकील के माध्यम से लीगल नोटिस भेजा था। उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने 10 महीने पहले अपने मुंबई के वकील के माध्यम से रवि किशन को कानूनी नोटिस भेजा था, जिसमें उन्होंने अपनी बेटी की शिक्षा, शादी और उसके ख़ुशहाल भविष्य के लिए 20 करोड़ रुपए की मांग की थी, लेकिन उन्हें अब तक नोटिस का कोई जवाब नहीं मिला है। अपर्णा ने अपने वकील के ज़रिए रवि किशन को उनके सांसद नई दिल्ली के आवास के साथ-साथ मुंबई के अंधेरी और गोरेगांव के फ्लैट वाले पते पर इस नोटिस को भेजा था।

लीगल नोटिस के मुताबिक रवि किशन के मोबाइल नंबर और मेल आईडी पर भी इस लीगल नोटिस की कॉपी भेज दी गई थी। अपर्णा की तरफ से रवि किशन को भेजी गई 8 पेज की लीगल नोटिस में रवि किशन और अपर्णा सोनी के संबंधों के बारे में विस्तार से लिखा गया है। रवि किशन और अपर्णा सोनी की लव स्टोरी एकदम फिल्मी है। दरअसल, रवि किशन और अपर्णा सोनी एक दूसरे के संपर्क में वर्ष 1995 में आए। तब रवि किशन फिल्म उद्योग में अपना स्थान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। तब रवि किशन के पास न तो नेम था न फेम और न ही अपना घर। उनकी शादी हो गई थी, लेकिन पत्नी गांव में रहती थी। लकेिन उन्होंने कभी यह नहीं बताया कि वह शादीशुदा हैं। अपर्णा सोनी तब पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी करके पत्रकारिता कर रही थी। लिहाज़ा, पहली मुलाक़ात के बाद दोनों एक दूसरे के प्रति स्वाभाविक रूप से आकृष्ट हो गए।

रवि किशन अपर्णा सोनी और उसकी बेटी शिनोवा के साथ…

देखने में बेहद ख़ूबसूरत अपर्णा से मुलाकात के बाद पहली नज़र में ही रवि किशन उन्हें दिल दे बैठे। उन्होंने दूसरी ही मुलाकात में अपर्णा को प्रपोज कर दिया था। इसके वे दोनों रिलेशनशिप में आ गए थे और उनका रिश्ता पूरी तरह परवान चढ़ गया। रवि किशन ने खुद को कुंवारा बताते हुए अपर्णा की मां के सामने शादी का प्रस्ताव भी रख दिया। अपर्णा की मां ने ख़ुश हुई कि उनकी बेटी का घर बस जाएगा। उसे अच्छा और प्यार करने वाला लड़का मिल गया है। उन्होंने तय कर लिया कि यथाशीघ्र अपर्णा की रवि किशन से शादी करवा देंगी। लिहाज़ा, अपर्णा की मां के मालाड के समाधान अपार्टमेंट के फ्लैट में रवि किशन और अपर्णा साथ-साथ रहने लगे। अपर्णा 1996 में रवि किशन के साथ परिणय सूत्र में बंध गई थी। वह रवि किशन के नाम का सिंदूर और मंगलसूत्र पहनती थीं। इसी दौरान वह प्रेग्नेंट भी हो गई। 19 अक्टूबर 1998 को बेटी शिनोवा का जन्म हुआ। साथ में रहते हुए रवि किशन अपर्णा को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से अपनी पत्नी के रूप में मिलवाते थे।

शिनोवा का जन्म होने के बाद अपर्णा को एक दिन किसी से रवि किशन के पहले से ही शादीशुदा होने और एक बेटी का पिता होने की जानकारी मिली। भावी पति के शादीशुदा और एक बेटी का बांप होने की ख़बर से अपर्णा सोनी को बहुत बड़ा सदमा लगा। तब रवि किशन ने उन्हें अपनी पत्नी के तौर पर लोगों से उन्हें मिलवाया है। चूंकि अपर्णा भी रवि किशन से बेपनाह मोहब्बत करने लगीं थी। लिहाज़ा, उन्होंने बड़ा दिल दिखाते हुए फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष कर रहे रवि किशन को अपनी पत्नी प्रीति शुक्ला और बेटी रिवा किशन के साथ रहने के लिए अपना फ्लैट दे दिया। उस समय घर तो दूर रवि किशन के पास तब अपनी पत्नी और बेटी को साथ रखने की जगह भी नहीं थी। इसके बाद रवि किशन अपर्णा के गोकुल गैलेक्सी, ठाकुर कंपलेक्स, कांदिवली पूर्व, मुंबई के फ्लैट में रहने लगे। अपर्णा ने कह दिया कि वैकल्पिक इंतज़ाम होने तक वह इस घर में रह सकते हैं।

अपर्णा के भेजे 8 पेज के लीगल नोटिस का हिस्सा। साभार – सोशल मीडिया

इसी बीच अपर्णा को रवि किशन के फिल्म इंडस्ट्री की दूसरी अभिनेत्रियों के साथ रिश्तों के बारे में भी जानकारी मिली। अपर्णा बताती हैं कि ख़ुद प्रीति रवि किशन के रिश्तों से परेशान रहा करती थीं। प्रीति ने ही उन्हें रवि किशन के सारे अफेयर्स के बारे में बताया था। इसके बाद उन्हें रवि किशन के असली चरित्र के बारे में जानकारी हुई। उन्होंने यह भई महसूस किया कि धीरे-धीरे रवि किशन उनसे और उनकी बेटी से दूरी बनाते जा रहे हैं। साल 2009 के बाद रवि किशन ने ख़ुद को अपर्णा और बेटी शिनोवा से पूरी तरह से अलग कर लिया। शिनोवा का जैविक पिता होने के बावजूद उन्होंने अपनी जिम्मेदारी नहीं उठाई। अपर्णा का कहना है कि उन्होंने हमेशा झूठे वादे किए और बहानेबाज़ी करते हुए अपनी ज़िम्मेदारियों से बचते रहे। बेटी के पालन पोषण करने के लिए अपर्णा ने कई बार उनसे आर्थिक मदद मांगी, लेकिन रवि किशन ने कभी कोई मदद नहीं की। लीगल नोटिस में अक्टूबर 2018 की एक घटना का ज़िक्र है। तब रवि किशन गोरेगांव के वेस्टइन होटल में रुके थे। उन्होंने अपर्णा और शिनोवा के मिलने के लिए होटल में बुलाया।

अपर्णा बेटी ने मुलाकात के दौरान रवि किशन से शिनोवा को अपना नाम देने की गुज़ारिश की। इस पर वह भड़क गए और बेटी के साथ ने दुर्व्यवहार किया। उसे अपशब्द भी कहा। इन तमाम तथ्यों का ज़िक्र करते हुए अपर्णा के वकील की तरफ से भेजे गए नोटिस में रवि किशन से अपर्णा और बेटी शिनोवा के वन टाइम मेंटेनेंस के रूप में 20 करोड़ रुपए की मांग की गई। साथ ही कहा गया कि बेटी का जैविक पिता होने के चलते रवि किशन को उसे अपनाना होगा और अपना नाम देना होगा। यह नोटिस अपर्णा ने अपने वकील नीरज गुप्ता के माध्यम से भेजा था। अपर्णा के लखनऊ के वकील विवेक पांडे ने भी पिछले 13 मार्च 2024 को इस पूरे मामले की शिकायत केंद्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, प्रधानमंत्री और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से की है।

रवि किशन बेटी शिनोवा के साथ

कौन हैं शिनोवा सोनी? (Who is Shinova Soni?)
शिनोवा सोनी ने आर्ट से ग्रेजुएशन किया है। वह एक्टिंग करती है। वह कुणाल कोहली की वेब सीरीज में भी काम कर चुकी है। वह साउथ की फिल्में भी कर रही है और उसने कुछ विज्ञापनों में भी काम किया है। शिनोवा ने बताया कि जब वह 15 साल की थी, तब उसे पता चला कि रवि किशन उनके पिता हैं। शिनोवा ने कहा, “जब मुझे पता चला था कि वह मेरे पापा हैं, तो मैंने उनसे फोन पर भी बात की थी। मैंने उनसे कहा था कि मुझे आपसे मिलना है और आपको जानना है। आपसे बात करनी है। उस दौरान वह मुझसे बात भी किया करते थे। जब भी रवि किशन उससे मिलने आते थे तो वह उससे कहते थे कि वह उसके पापा हैं। वह कहते थे कि तुम मेरी बेटी हो, मैं हमेशा तुम्हारे लिए खड़ा हूं।”

शिनोवा का कहना है, “मैंने अपने पापा रवि किशन की कई सारी फिल्में भी देखी हैं। मैं अक्सर उनसे उनकी फिल्मों के बारे में बातें किया करती थी। मैं उनके काम को पसंद भी करती थी। लेकिन उन्होंने अचानक मुझे फोन करना बंद कर दिया। मुझे लगा कि शायद वह बिजी रहते होंगे। मगर जब उन्होंने मुझे एक साल तक कोई मैसेज या फोन नहीं किया, तो मुझे बहुत अजीब लगा। शिनोवा ने आगे बताया, “मेरी मां उन्हें हर 19 अक्टूबर को याद दिलाती थी कि आज आपकी बेटी का जन्मदिन है, उसे फोन कर लो। लेकिन फिर भी वह मुझे बर्थडे विश नहीं करते थे। मुझे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह अचानक मुझे और मॉम को इग्नोर क्यों करने लगे हैं?” शिनोवा का कहना है कि वह सिर्फ इतना चाहती है कि रवि किशन उसे स्वीकर कर लें।

रवि किशन शिनोवा के साथ…

शिनोवा का कहना है, “रवि किशन चार साल पहले तक मुझसे बातें किया करते थे। उसके बाद मुझे लगा कि वह अचानक इग्नोर कर रहे हैं। इसलिए अब मैंने अपनी मां के साथ न्याय के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाने का फ़ैसला किया है। मैं कभी मीडिया या कोर्ट में नहीं आने वाली थी। मुझे इन सबमें अपना नाम ही नहीं घसीटना था। लेकिन उनके व्यवहार के चलते मैं उनसे बेहद नफरत करने लगी हूं। कई बार मुझे लगा कि मुझे उस इंसान से बात नहीं करनी चाहिए। मगर अब बहुत हो चुका है। अगर आप मेरे पापा हैं तो सामने आइए और मुझे स्वीकर करिए। आख़िर मेरी इन सब में क्या गलती है। मैं तो आपकी ही अंश हूं।”

शिनोवा सोनी ने यह भी कहा कि जब पानी सिर से ऊपर चला गया तो हमें लगा कि हमें कोर्ट जाना चाहिए और डीएनए टेस्ट के तहत सच को सामने लाना चाहिए। उसे रवि किशन से कुछ भी नहीं चाहिए। उसने फिल्म लाइन में भी कभी रवि किशन के नाम का कोई इस्तेमाल नहीं किया। उसे सिर्फ़ जानना है कि आख़िर रवि किशन ने उनके साथ ऐसा क्यों किया? आख़िर वह इतने झूठ क्यों बोलते रहे हैं? शिनोवा का कहना है कि वह सिर्फ़ इतना चाहती हैं कि रवि किशन स्वीकार कर लें कि वह उनकी बेटी हैं या खुद सामने आकर सच बता दें।

उज्जवला शर्मा और रोहित शेखर के साथ कांग्रेस नेता एनडी तिवारी

कुछ इसी तरह नारायण दत्त तिवारी और रोहित शेखर तिवारी की कहानी भी बड़ी दिलचस्प रही है। दरअसल, नारायण दत्त तिवारी 1990 के दशक में राजीव गांधी की हत्या के बाद पीवी अर्जुन सिंह, नरसिंह राव और शरद पवार जैसे नेताओं के साथ प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे परंतु नरसिंह राव के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद दरकिरान कर दिए गए। वर्ष 2008 में पहली बार रोहित शेखर पिता का हक पाने के लिए पहली बार दिल्ली कोर्ट में गए थे। तो अचानक पूरे देश में सनसनी फैल गई। संयोग से उस समय रोहित शेखर का मुक़दना अशोक सारावगी ही लड़ रहे थे। रोहित शेखर उन्होंने दावा किया था कि वह एनडी तिवारी और उज्ज्वला शर्मा के पुत्र हैं। लेकिन एनडी तिवारी ने दिल्ली हाईकोर्ट में इस केस को ख़ारिज़ करने की गुहार लगाई, लेकिन इसे अस्वीकार कर दिया गया।

कोर्ट ने 23 दिसंबर 2010 को एनडी तिवारी को सैंपल देने का आदेश दिया। उस पर एनडी तिवारी सुप्रीम कोर्ट चले गए, लेकिन वहां भी फैसला रोहित शेखर के पक्ष में आया। 2014 में जब ये फ़ैसला आया था तब रोहित शेखर ने कहा था, “मैं दुनिया का शायद पहला व्यक्ति हूं जिसने ख़ुद को नाजायज़ साबित करने के लिए मुकदमा लड़ा।” बहरहाल, फ़ैसला आने के कुछ ही दिनों के बाद नारायण दत्त तिवारी ने रोहित शेखर की मां उज्जवला शर्मा से शादी कर ली और रोहित शेखर को अपना जायज़ बेटा मान लिया। साल 2017 में उत्तराखंड में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले रोहित शेखर ने भाजपा की सदस्यता ले ली। रोहित की कुछ साल पहले दिल्ली में रहस्यमय परिस्थितियों मौत हो गई थी।

लेख – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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यादगार रहा चित्रनगरी संवाद मंच का महिला मुशायरा-कवि सम्मेलन

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मुंबई। हर सप्ताह की तरह इस बार भी रविवार की शाम ख़ुशगवार रही जब शहर की महिला शायरात और कवयित्रियों ने मशहूर कथाकार सूरज प्रकाश (Suraj Prakash) की मौजूदगी में अपनी-अपनी रचनाओं से उपस्थित लोगों का मन जीत लिया। साहित्यिक चित्रनगरी संवाद मंच की ओर से रविवार की शाम गोरेगांव (पश्चिम) के केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट (Keshav Gore Smarak Trust) हाल में किए गए कवयित्री सम्मेलन और मुशायरे में सभी महिला रचनाकारों ने बहुत उच्च स्तर की रचनाएं सुनाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

कार्यक्रम की शुरुआत ही धमाकेदार रही जब रितिका मौर्य रीत (Ritika Reet) ने अपनी रचनाएं पढ़ी। उनकी गजल, वो करिश्मात नहीं करते हैं, जो तेरी बात नहीं करते हैं। जो खुला ले चुके हो दुनिया से, वो सवालात नहीं करते हैं। अच्छी पसंद की गई। इसके बाद आई तबस्सुम बरबेरावाला (Tabassum Berberawalla) ने भी लोगों की वाहवाही लूटी। उनकी गजल – मेरे के सांचें में ढल रहे हो तुम, ख़ुद को कितना बदल रहे हो तुम… को लोगों ने खूब सराहा।

तदुपरांत रचना पाठ करने आई पूनम विश्वकर्मा (Poonam Vishwakarma) की गजल -क्या कहूं किस मुसीबत में हूं, मैं ख़ुद अपनी अदालत में हूं। एक औरत के हूं जिस्म में, इसका मतलब हिरासत में हूं... सुनकर हाल तालियों से गूंज उठा। शायरा आशु शर्मा (Ashu Sharma) ने भी कई बेहतरीन ग़ज़ल पेश किया। उनके शेर, बाज़ इन्सां को ये पत्थर का बना देती है, सब को फ़न जीने का क़ुदरत ही सिखा देती है। परवरिश ग़म की अमीरों को ही बस है हासिल, भूख ग़म सारे ग़रीबों को भुला देती है… पर ख़ूब तालियां बजीं।

और कार्यक्रम का संचालन कर रही प्रतिमा सिन्हा (Pratima Sinha) ने भी उच्च स्तरीय गजल पढ़ी। उनकी पंक्तियां, तेरे रेशमी एहसास से मैं ख़वाब रोज़ बुना करूं, तेरी धड़कनों में गुथी हुई धुन ज़िंदगी की सुना करूँ… बहुत प्रभावशाली रहीं। शायरा जीनत एहसान कुरेशी (Shayra Zeenat Ahsaan) ने गजल के साथ साथ हास्य रचना भी सुनाई। उनकी रचना पर उन्हें ख़ूब वाहवाही मिली।

सीमा अग्रवाल (Seema Agrawal) का गीत कमला बहुत पसंद की गई। बहुत दिनो के बाद मिली हो कैसी हो कमला? पात्र महज़ बदले हैं, लेकिन सब कुछ जैसे का तैसा है, पगली, जो तब था वो रोना, अब भी वैसे का वैसा है, तेरी रामकथा का क्यों कर रावण नहीं जला… बहुत पसंद किया गया।

अंत में कवयित्री डॉ. दमयंती शर्मा (DrDamyanti Sharma) की रचना विरह व्यथित तप्त,आकुल ह्रदय पर, प्यार की बरसात बरसाओ ज़रा। पाएंगे इस जन्म में सातों जन्म, प्रेम सच्चा है तो है सौदा खरा। राधिका बन मैं तुम्हें भी जीत लूं मोहन, बांसुरी सांसों की होगी प्रीत का आधार… लोगों को बहुत पसंद आई। इस कार्यक्रम के प्रायोजक ट्यूब कट्स ऐंड शेप्स थे और इसका संचालक इंशाद फाऊंडेशन ने किया।

सहयोगी संस्था थी बज्म-ए-यारान-ए-अदब (دب Bazm e yaran e adab), सुखन सराय (SukhanSarai) और हमारी प्रथा फाउंडेशन (Hamari Pratha Foundation) का भी सहयोग मिला। कार्यक्रम की शुरुआत में गीतकार देवमणि पांडेय (Devmani Pandey) ने चित्रनगरी संवाद मंच और इंशाद फाउंडेशन (Inshaad انشاد) की उपलब्धियों की चर्चा की। अंत में नवीन जोशी नवा ने आए लोगों को धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में शहर की प्रमुख महिला रचनाकारों सहित बौद्धिक तबके के लोग अच्छी संख्या में उपस्थित थे।

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संवेदनशील कच्चाथीवू द्वीप मुद्दे पर भारतीय नेताओं का संयम से काम लेना जरूरी

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कच्चाथीवू द्वीप के बदले वेज बैंक मिल चुका है भारत को

भारत को यह मान लेना चाहिए कि चीन हमारा पाकिस्तान से भी ख़तरनाक दुश्मन है। ऐसे हालात में जब बीजिंग हिंद महासागर क्षेत्र में अपने पांव जमाने की कोशिश कर रहा है। तब भारत को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए कि चीन को हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने का बहाना मिले। लेकिन तात्कालिक चुनावी लाभ लेने के चक्कर में भारतीय नेता संवेदनशील कच्चाथीवू द्वीप का मुद्दा बार-बार उठा रहे हैं और यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि कच्चाथीवू द्वीप के मुद्दे पर देश के हित से समझौता किया गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सभी भारतीय नेता, ख़ासकर तमिल नेता इसे इतना अधिक उठा रहे है कि श्रीलंका को बयान देना पड़ा कि यह मुद्दा 1974 में ही हल हो चुका है। बात सही भी है। 14वीं सही में ज्वालामुखीय विस्फोट के चलते अस्तित्व में आने वाले महज 285 हेक्टेयर में फैले निर्जन कच्चाथीवू को भारत 1974 में एक समझौते के तहत श्रीलंका को सौंप चुका है। हिंद महासागर के पाक-वे (Palk Bay) समुद्री इलाके में रामेश्वरम से 33 किलोमीटर और जाफना से 24 किलोमीटर दूर स्थित कच्चाथीवू द्वीप को मुफ़्त में श्रीलंका को नहीं दिया था बल्कि उसके एवज में भारत वेज बैंक (Wadge Bank) द्वीप ले चुका है।

कच्चाथीवू द्वीप के मुद्दे पर तमिल जनता की धार्मिक भावना को भुनाने की कोशिश में कोई भी नेता वेज बैंक का नाम नहीं ले रहा है। कोई भी नेता यह नहीं बता रहा है कि अपेक्षाकृत कन्याकुमारी के निकट वेज बैंक कच्चाथीवू द्वीप से कई गुना बड़ा है और कुल 3 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। दरअसल, कच्चाथीवू द्वीप समझौते के बाद 1976 में नई दिल्ली और कोलंबो के बीच एक और करार हुआ था। उसके बाद वेज बैंक (Wadge Bank) पर भारत का अधिकार हो गया था। वेज बैंक को कच्चाथीवू जैसे निर्जन द्वीप के मुक़ाबले अधिक सामरिक महत्व का माना जाता है।

रहस्यमयी भूतों के लिए मशहूर तमिलनाडु के धनुषकोडी द्वीप से केवल 30-32 किलोमीटर दूर स्थित कच्चाथीवू द्वीप यूं तो कई दशक से गुमनामी के गर्भ में डूबा रहता था लेकिन इधर कई साल से यह समय-समय पर सुर्खिया भी बटोरने लगा था। वैसे इस बार इसके चर्चा में आने की वजह भारतीय जनता पार्टी की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष के अन्नामलाई हैं। सूचना अधिकार के तहत उन्हें जानकारी दी गई कि भारत ने 1974 में 285 एकड़ में बसे कच्चाथीवू को श्रीलंका को दे दिया था। चूंकि यह मामला चुनाव में सुर्खियों में आया है तो तमिलनाडु में कमोबेश हर नेता इसकी चर्चा कर रहा है।

दरअसल, हिंद महासागर में भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित कच्चाथीवू द्वीप पर इंसानी बस्तियां नहीं है। 17वीं सदी तक यह द्वीप मदुरई के राजा रामनद के जमींदारी के जमींदारी का हिस्सा था। 1605 में मदुरै के नायक राजवंश ने रामनाथपुरम या रामनाद के रियासत स्थापना की थी। इसमें 69 तटीय गांव और 11 टापू शामिल किए गए थे। उनमें एक टापू कच्चाथीवू भी शामिल था। 1622 और 1635 के बीच रामनाथपुरम के संप्रभु कूथन सेतुपति द्वारा जारी एक तांबे की पट्टिका, वर्तमान श्रीलंका में थलाईमन्नार तक फैले क्षेत्र के भारतीय स्वामित्व की गवाही देती है, जिसमें कच्चाथीवू भी शामिल है, जो सेतुपति राजवंश के लिए नियमित राजस्व का एक स्रोत था।

1767 में, डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने द्वीप को पट्टे पर देने के लिए मुथुरामलिंगा सेतुपति के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, और बाद में, जब भारत में ब्रिटिश हुकूमत आई तो 1822 में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस द्वीप को रामास्वामी सेतुपति से पट्टे पर ले लिया और यह द्वीप अंग्रेजों के अधीन हो गया। तब से यह ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे मद्रास प्रेसिडेंसी के अधीन कर दिया था। उसके बाद से इस द्वीप का इस्तेमाल मुख्य तौर पर मछुआरे जाल सुखाने के लिए किया करते थे। 1921 में मछली पकड़ने के लिए भूमि के इस टुकड़े पर दावा किया और तभी से विवाद अनसुलझा रहा।

15 अगस्त 1947 में जब देश आजाद हो गया, तब सरकारी दस्तावेजों में कच्चाथीवू द्वीप को भारत का अभिन्न हिस्सा बताया गया। दूसरी ओर पड़ोसी देश श्रीलंका जिसे उस समय तक सिलोन कहा जाता था ने भी इस द्वीप पर अपना अधिकार जता दिया। लिहाज़ा, लंबे समय तक यह द्वीप भारत और श्रीलंका के बीच विवाद का केंद्र रहा। सीमा उल्लघंन को लेकर दोनों देशों के बीच हमेशा तनाव बना रहता था। 1974 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने काउंटरपार्ट श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ मिलकर इस समस्या को हल करने का फैसला किया।

इसके बाद दो अहम बैठके हुई। पहली 26 जून 1974 को कोलंबो में और दूसरी 28 जून 1974 को दिल्ली में हुई। इन दोनों बैठकों में फैसला किया गया कि कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका के पास रहेगा। प्रसावित समझौते में कुछ शर्तें रखी गईं। मसलन, भारतीय मछुवारे अपना जाल सुखाने के लिए इस द्वीप पर आ-जा सकेंगे और इस द्वीप पर बने चर्च में भारतीय नागरिक बिना वीज़ा के जा सकेंगे। कई वार्ताओं के बाद सहमति बन गई दोनों देशों के बीच चार समुद्री सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर किए और कच्चाथीवू द्वीप औपचारिक रूप से श्रीलंका को सौंप दिया गया।

दो साल बाद 1976 में भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमा को लेकर दो और समझौते हुए। पहले समझौते के तहत वेज बैंक पर भारत का अधिकार हो गया और दूसरे समझौते के तहत मछली पकड़ने के लिए भारतीय मछुआरे के कच्चाथीवू द्वीप और श्रीलंकाई मछआरों के वेज बैंक द्वीप पर जाने से रोक लगा दी गई। लेकिन राजनीतिक पूर्वाग्रह के तहत केवल कच्चाथीवू द्वीप की चर्चा की जाती है। कोई वेज बैंक का नाम तक नहीं लेता। जबकि वेज बैंक समुद्री जंतु और मछलियों से समृद्ध इलाका है। वहां तेल एवं गैस के बड़े भंडार मिले है।

कोई यह नहीं बताता कि जैसे भारतीय मछुआरे श्रीलंका के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन में नहीं जा सकते। उसी तरह श्रीलंका के मछुआरे इंडियन एक्सक्लूसिव अकोनॉमिक ज़ोन में नहीं आ सकते। लिहाजा, अपर्याप्त सूचना के अभाव में तमिलनाडु का मछुवारा समुदाय इस समझौते से काफी ज्यादा ख़फ़ा रहता है। इंदिरा गांधी की सरकार ने जब ये फैसला लिया था तो उस वक्त तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करूणानिधि ने केंद्र सरकार के इस फैसले पर ऐतराज जताते हुए भारतीय द्वीप को श्रीलंका को सौंपने के फ़ैसले का ज़ोरदार विरोध किया।

1983 में लंका में गृहयुद्ध के छिड़ने के बाद से, यह द्वीप भारतीय तमिल मछुआरों और सिंहली-प्रभुत्व वाली लंकाई नौसेना के बीच लड़ाई का युद्धक्षेत्र बन गया, जिससे आकस्मिक क्रॉसिंग के कारण भारतीयों की आजीविका, संपत्ति और जीवन का भारी नुकसान हुआ। यही वजह थी कि आपातकाल के बाद 1991 में तमिलनाडु विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया। उस प्रस्ताव में 1974 के इंदिरा गांधी-श्रीमावो भंडारनायके समझौते को रद करने और कच्चाथीवू द्वीप को पुनः भारत का हिस्सा बनाने की मांग की गई।

2008 में, तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने भी सुप्रीम कोर्ट से समझौते को रद करने की मांग की थी। सरकार ने दावा किया था कि कच्चाथीवू को श्रीलंका को सौंपना असंवैधानिक था। तर्क दिया गया कि केंद्र बिना संविधान संसोधन के देश की जमीन दूसरे देश को नहीं दे सकता। साल 2011 में जब वह मुख्यमंत्री बनीं तो विधानसभा में प्रस्ताव भी पारित करवाया। लेकिन साल 2014 में उनकी याचिका पर जवाब देते हुए अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि कच्चाथीवू द्वीप एक करार के तहत श्रीलंका को दिया जा चुका है। अब वह इंटरनेशनल बाउंड्री का हिस्सा है। कच्चाथीवू द्वीप को वापिस लेना हैं तो भारत को श्रीलंका से युद्ध लड़ना होगा।

मई 2022 में भी मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने चेन्नई में प्रधानमंत्री की उपस्थिति में कच्चाथीवू द्वीप को श्रीलंका से वापस लेने की मांग की थी। स्टालिन ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के साथ कच्चाथीवू द्वीप के मुद्दे को उठाने इस द्वीप को पुनः प्राप्त करने की मांग की गई। स्टालिन के पत्र में कहा कि यह द्वीप ऐतिहासिक रूप से भारत का हिस्सा है, और तमिलनाडु के मछुआरे पारंपरिक रूप से इस द्वीप के आसपास के पानी में मछली पकड़ते रहे हैं।

यह बात भी सच है कि किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि को एक पक्ष निरस्त नहीं कर सकता। निश्चित तौर पर, इस संधि को भारत की गारंटी के तौर पर देखा जाना चाहिए। लिहाज़ा, भारत इस संधि से मुकर नहीं सकता। भारतीय नेताओं ने कच्चाथीवू द्वीप को अपना बताने की कोशिश जारी रखी तो इससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उसकी छवि खराब होगी। इससे दोनों देशों के संबंधों पर बुरा असर पड़ेगा। इससे श्रीलंका में भारत विरोधी भावनाएं उग्र होंगी। चीन इसका सीधा लाभ लेने की कोशिश करेगा। वैसे भी बीजींग श्रीलंका पर तरह-तरह के दवाब और डोरे डालता रहा है। इसलिए कच्चाथीवू द्वीप विवाद को अधिक हवा देना भारत के हित में नहीं होगा।

यह भी सही बात है कि श्रीलंका की नौसेना सीमा का उल्लंघन करने पर अक्सर भारतीय मछुआरों पर गोलियां चला देती है और उनकी नौकाओं को जब्त कर लेती है, क्योंकि भारतीय मछुआरों के सीमा पर गहरे समुद्र में जाकर आधुनिक मशीनों से मछलियां पकड़ने से श्रीलंकाई मछुआरों को नुकसान होता है। वैसे मछुआरों की समस्या को हल करने के लिए दोनों देशों ने 2016 में संयुक्त कार्यदल भी गठित किया था, लेकिन यह कारगर नहीं साबित हुआ। इसलिए इस मसले का स्थायी हल निकालने की पहल भारत को बड़े भाई की भूमिका निभानी पड़ेगी। यह ध्यान में रखना पड़ेगा कि चीन के बहकावे में मालदीव और नेपाल जैसे देश पहले ही आ चुके हैं। इसलिए श्रीलंका जैसे पड़ोसी का हमारा घनिष्ट सहयोगी बना रहना समय की मांग है।

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लेख – हरिगोविंद विश्वकर्मा