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सीजफायर का सच – ट्रंप के मोदी को हड़काने की असली कहानी (The Truth Behind the Ceasefire – The Real Story of Trump Rebuking Modi)

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चीन पर अचानक क्यों मेहरबान हुआ अमेरिका?

ज़्यादातर भारतीय नागरिक इन दिनों इस बात पर हैरान हो रहे हैं कि अचानक ऐसा क्या हो गया जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘माई फ्रेंड डोनाल्ड ट्रंप’ अचानक रोज़ाना भारत विरोधी बयान दे रहे हैं? कभी ट्रंप ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध विराम का क्रेडिट ले रहे हैं, तो कभी वह एप्पल के हेड जिम कुक को एप्पल की फैक्टरी भारत में न लगाने की सलाह दे रहे हैं। अब उन्होंने भारत भेजे जाने वाले डॉलर पर 5 फ़ीसदी टैक्स लगाने का प्रस्ताव किया है। इससे मोदी की अपने ही देश में किरकिरी हो रही है, तो भारत और भारत की विदेश नीति दुनिया में उपहास का पात्र बन रही है।

भारत और पाकिस्तान के बीच ख़तरनाक रूप से बढ़ते एस्केलेशन के बीच 10 मई की शाम अचानक और अप्रत्याशित रूप से युद्ध विराम की घोषणा कर दी गई। हैरन करने वाली बात यह रही कि न तो सरकार की ओर से और न ही सेना की ओर से अचानक और अप्रत्याशित युद्ध विराम के बारे में कोई जानकारी दी। इस कारण पूरे देश में कन्फ़्यूज़न का माहौल बन गया। लोग अपने-अपने ढंग से युद्ध विराम का अर्थ निकालने लगे। बहरहाल, अब युद्ध विराम एक हफ़्ते बादअब छनकर ख़बर आ रही है कि उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बड़बोलेपन से भारत को किसलिए धमकी दी और कथित तौर पर युद्ध विराम करवाया।

दरअसल, भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू करते हुए 6-7 मई की रात पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में 9 आतंकवादी शिविरों को तबाह कर दिया। देश की सेना ने यह कार्रवाई पहलगाम हमले में अपना सुहाग खोने वाली 28 महिलाओं के ज़ख़्मों पर मरहम लगाने के लिए शुरू की थी। इसीलिए इसका नाम ऑपरेशन सिंदूर रखा गया। भारतीय सेना ने सैन्य कार्रवाई में जैसे ही पाकिस्तान पर निर्णायक बढ़त ली, वैसे ही चीन और अमेरिका की हवाइयां उड़ने लगी। इसकी वजह यह थी कि भारतीय सेना ने अमेरिका के प्राइड माने जाने वाले F-16 और चीन का गौरव कहे जाने वाले JF-17 जैसे विमानों को मार गिराने के दावा कर दिया। चीन की तो भद तब और पिट गई, जब यह ख़बर आई कि भारतीय सेना ने उसकी हवा में मार करने वाली अत्याधुनिक PL-15 मिसाइल भी गिरा दी है।

इतना ही नहीं यह ख़बर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तैरने लगी कि अमेरिकी F-16 और चाइनीज़ JF-17 जैसे विमानों और PL-15 जैसी मिसाइल गिराने का कारनामा भारतीय सेना ने भारत में बनी आकाश मिसाइल के ज़रिए किया। इतना ही नहीं, भारतीय डिफेंस सिस्टम एस 400 यानी चक्र सुदर्शन भी लगातार दो रात तक टर्की के ड्रोन और चीन की मिसाइल को फटाखे की तरह हवा में ही निष्क्रिय करता रहा, जिससे भारत को कोई नुकसान नहीं हुआ। इसके अलावा भारत के स्वदेसी मिसाइल ब्रह्मोस ने तो एक घंटे के भीतर पाकिस्तान के 11 एयरबेस को नष्ट कर दिया। नतीजा यह हुआ कि हमला और सुरक्षा के इस अभेद्य तंत्र की बदौलत दो से तीन दिन में भारत पाकिस्तान को चारों खाने चित्त करने वाले था। कहने का मतलब केवल और केवल दो रात में ही भारत दुनिया में आक्रमण करने और बचाव करने में अमेरिका और चीन से आगे निकल गया। यह भारत की बहुत बड़ी उपलब्धि थी।

इससे रातोंरात इंटरनेशन वीपन्स मार्केट में कई दशक से वर्चस्व रखने वाले अमेरिका और चीन जैसे देशों की साख़ पर बहुत बड़ा बट्टा लगने लगा। उनकी मार्केट वैल्यू ही ख़त्म होने का संकट पैदा हो गया। जिसका इंपैक्ट अंततः उनके हर सार ख़रबों डॉलर के हथियारों की बिक्री पर पड़ने वाला था, क्योंकि ये दोनों देश असुरक्षा का माहौल बनाकर ग़रीब देशों को महंगे दाम पर हथियार बेचते हैं। इससे उनको मिलने वाली अकूत विदेशी धन पर भी असर पड़ने वाला था। इसके बाद मौक़े की नज़ाकत को देखकर अवसरवादी अमेरिका और दूसरे अवसरवादी चीन से हाथ मिला लिया। यह उनकी व्यापारिक मजबूरी थी। इसका मकसद था साथ मिलकर भारत की रक्षा प्रणाली के बारे में दुष्प्रचार किया जाए। यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के इन दो स्थायी सदस्यों की नई पॉलिसी का हिस्सा था।

दरअसल, उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि भारत ने हमला करने के अचूक क्षमता और सुरक्षा करने के इस अभेद्य प्रणाली विकसित कर ली है। अब इसकी बदौलत आने वाले दिनों में भारत वीपन मार्केट में इन दोनों देशों की बादशाहत को चुनौती देने वाला था। इसके बाद तो भारत की हमला करने की साख़ गिराने का मोर्चा पश्चिमी मीडिया, ख़ासकर अमेरिकी और चाइनीज़ मीडिया ने संभाल लिया। बिना किसी ठोस प्रमाण के उसी दिन से बस केवल सूत्रों का हवाला देकर यह ख़बर किसी मुहिम की तरह चलाई जा रही थी कि भारत के तीन-तीन अत्याधुनिक राफेल फाइटर प्लेन्स मारकर गिराए दिए गए। सशस्त्र संघर्ष में बुरी तरह मार खाने वाला पाकिस्तान उससे आगे बढ़कर तीन राफेल समेत कुल पांच भारतीय लड़ाकू विमानों को गिराने का दावा कर रहा था।

पश्चिमी मीडिया ने झूठा दावा किया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान 7-8 की रात चीन के J-10C जेट और PL-15 मिसाइल के ज़रिए फ्रांस निर्मित तीन राफेल विमान को गिरा दिए गए। यह ख़बर सभी पश्चिमी और चाइनीज़ समाचार पत्रों और समाचार एजेंसियों ने चलाई। शीघ्र ही इन मीडिया संस्थानों की रिपोर्ट पर गंभीर सवाल उठने लगा। कहा जाने लगा कि अगर पाकिस्तान ने चीन के J-10C लड़ाकू विमानों और PL-15 मिसाइलों की मदद से तीन राफेल समेत पांच लड़ाकू जेट गिरा दिए तो, जेट का मलबा कहां चला गया? कम से कम इतने बड़े सैन्य टकराव की पुष्टि उपग्रह तस्वीरों, मलबे के अवशेषों और अंतरराष्ट्रीय निगरानी एजेंसियों की रिपोर्ट्स से जरूर होती। इसके बाद पश्चिमी मीडिया ने कहा कि तीन नहीं, बल्कि दो राफेल गिराए गए। फिर भूल सुधार करते हुए कहा गया कि दो नहीं बल्कि एक राफेल गिराया गया, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। केवल सूत्र ही पूरी ख़बर चलवा रहे हैं।

दरअसल, राफेल जैसे अति उन्नत जेट का गिराया जाना न सिर्फ़ बहुत बड़ी सैन्य ख़बर होती, बल्कि इसका मलबा या अवशेष ज़मीन पर कहीं न कहीं जरूर दिखाई देता। चाहे वह भारतीय सीमा में गिरा होता अथवा पाकिस्तानी सीमा में। ऐसे मलबे को छुपाना लगभग असंभव था, क्योंकि उसमें उच्च तकनीकी इंजन, रडार सिस्टम, हथियार और विस्फोटक होते हैं, जिनकी पहचान आसानी से की जा सकती है। मलबे से राफेल के गिरने की पुष्टि भारत, पाकिस्तान या किसी तीसरे देश द्वारा की जाती, और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इसकी व्यापक कवरेज होती। रक्षा विश्लेषक, उपग्रह डेटा, और ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस से इसकी जांच होती। अगर राफेल वाकई गिरा होता तो भारत की जवाबी कार्रवाई या आधिकारिक बयान जरूर आता, जो अब तक नहीं आया। इसलिए यह दावा बिना किसी विश्वसनीय साक्ष्य के अफवाह या प्रोपेगैंडा प्रतीत हुआ।

आपको याद होगा, अपने पहले कार्यकाल में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना वायरस को चाइनीज़ वायरस कह रहे थे। उन्होंने चीन पर तरह-तरह की बंदिशें लगा दी थी। इसीलिए जब ट्रंप दूसरी बार प्रेसिडेंट बने तो दुनिया को लगा कि अब चीन की ख़ैर नहीं और ट्रंप के दूसरे टर्म के शुरुआती कार्यकाल में ट्रेड टैरिफ वार से लगा कि चार साल तक अमेरिका और चीन में विवाद चलता रहेगा। लेकिन भारत के आतंकवाद के ख़िलाफ़ शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर के अचानक थम जाने के दो दिन बाद ही अमेरिका और चीन में सुलह हो गई। ट्रंप ने चीन से आयात होने वाले अधिकांश उत्पादों पर टैरिफ को 145 फीसदी से घटाकर 30 फ़ीसदी करने की घोषणा कर दी, तो चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर 10 फ़ीसदी शुल्क लगाने का फैसला किया जबकि पहले 24 फ़ीसदी अतिरिक्त टैक्स लगाने की बात कही गई थी। ट्रंप की अचानक चीन पर मेहरबानी से पूरी दुनिया के लोग हैरान हो गई।

दरअसल, भले ट्रंप ने भारत पर दबाव डालकर या धमका कर युद्ध विराम करवा दिया, लेकिन इस युद्ध की पाकिस्तान से भी अधिक बड़ी क़ीमत अमेरिका को चुकानी पड़ेगी। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमला करते समय भारत के आकाश और ब्रह्मोस मिसाइलों और तेजस विमान और बचाव करने में एस 400 सुदर्शन चक्र के करतब से पूरी दुनिया परिचित हो गई। आने वाले दिनों में इंटरनेशनल वीपन्स मार्केट में भारत अब अमेरिका और चीन के सामने ज़बरदस्त चुनौती पेश करेगा। अब भारत को भविष्य में कोई भी रणनीति बनानी है तो अमेरिका को दोस्त नहीं बल्कि दुश्मन मान कर पॉलिसी ड्राफ़्ट करनी होगी, क्योंकि अमेरिका दोस्त के भेस में भारत का दुश्मन है। यह भी विचित्र है कि नरेंद्र मोदी की दोस्ती के साथ पहले शी जिनपिंग ने धोखा किया और अब उनके तथाकथित “माई फ्रेंल ‘डोलांड’ ट्रंप” भी बेवफ़ाई कर रहे हैं।

देश की 140 करोड़ जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी समझना चाहिए कि यह समय है अंतरराष्ट्रीय मंच पर नेताओं को भावुक होकर गले लगाने का नहीं है, बल्कि परिपक्वता दिखाते हुए ढंग से पेश आने डिप्लोमेटिक ढंग से बातचीत करने का है। अपने 11 साल के कार्यकाल में मोदी 166 बार विदेश गए। 73 देशों के राष्ट्राध्यक्षों को गले लगया, लेकिन भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय दुनिया का एक देश भी भारत के पक्ष में बयान नहीं दिया। यह मोदी काल में विदेश नीति की असफलता का द्योतक है।

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आतंकवाद को समूल नष्ट करने के लिए हाफ़िज़ सईद, मसूद अज़हर और सैयद सलाउद्दीन का सिर चाहिए ही चाहिए

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लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज़बुल मुजाहिद्दीन का सफाया ज़रूरी

भारत ने आतंकवाद की विभीषिका को न केवल पिछले चार दशक से ज़्यादा समय से सहा है, बल्कि उसकी आग में अपने हजारों-लाखों नागरिक और सुरक्षा जवान खोए हैं। इन रक्तरंजित वर्षों के पीछे अगर किसी के नाम सबसे अधिक उभरकर सामने आते हैं, तो वे हैं — लश्कर-ए-तैयबा का मुखिया हाफ़िज़ मोहम्मद सईद, जैश-ए-मोहम्मद का संस्थापक मौलाना मसूद अज़हर और हिज़बुल मुजाहिद्दीन सरगना सैयद सलाउद्दीन। ये तीनों दहशतगर्द आतंकवाद की वो त्रिमूर्ति हैं, जिनका अस्तित्व भारत की आंतरिक सुरक्षा और सार्वभौमिकता पर एक स्थायी खतरा बना हुआ है। इसलिए आज भारतीय जनमानस की एक ही मांग है — इन तीनों का अंत। भारत को किसी भी कीमत पर इन आतंकवादियों का सिर चाहिए। इससे कम कुछ भी स्वीकार्य नहीं है।

ऑपरेशन सिंदूर युद्धविराम के बाद भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ (Director Generals of Military Operations) लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई और मेजर जनरल कासिम अब्दुल्ला के बीच बातचीत हुई। तो यह भारत के लिए ऐतिहासिक अवसर था। हमें इस मौके को खोना नहीं चाहिए था। बातचीत के एजेंडे में हाफ़िज़ सईद, मसूद अज़हर और सैयद सलाउद्दीन की भारत को तत्काल सौंपने की मांग सबसे ऊपर एक ही बात होनी चाहिए थी। यह केवल एक मांग नहीं, बल्कि उन हजारों भारतीयों के खून का हिसाब है जो इन आतंकियों की साजिशों का शिकार हुए। जब तक ये तीनों पाकिस्तान की सरपरस्ती में ज़िंदा घूमते रहेंगे, तब तक कोई भी समझौता, कोई भी युद्धविराम या कोई भी शांति प्रक्रिया बेमानी है। भारत को इस बातचीत में स्पष्ट शब्दों में यह संदेश देना चाहिए कि शांति का रास्ता सिर्फ़ आतंक के अंत से होकर जाएगा — और वह अंत इन तीनों की गिरफ्तारी या मृत्यु से शुरू होगा।

भारत ने हमेशा शांति की बात की है, और अपने पड़ोसियों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों को प्राथमिकता दी है। लेकिन यह शांति तब तक बेमानी है जब तक आतंकवाद के आकाओं को उनकी अंजाम तक नहीं पहुँचाया जाता। हाफ़िज़ सईद, जो 2008 के मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड है; मसूद अज़हर, जिसने संसद हमले और पठानकोट जैसे हमलों की योजना बनाई; और सैयद सलाउद्दीन, जो कश्मीर घाटी में आतंक का पर्याय बन चुका है — ये तीनों तब तक जिंदा रहेंगे, तब तक शांति एक सपना ही बनी रहेगी। आज यह मांग केवल किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा की नहीं, बल्कि एक आम भारतीय नागरिक की है। हर वह व्यक्ति जो देश में अमन चाहता है, हर वह माँ जिसने अपने बेटे को सीमा पर खोया है, हर वह बच्चा जो भय के साए में बड़ा हो रहा है — यही कह रहा है कि इन दरिंदों का खात्मा ज़रूरी है।

युद्धविराम तभी स्वीकार्य, जब आतंक का अंत हो

ऑपरेशन सिंदूर बीच में रोककर युद्धविराम घोषित कर दिया गया। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की बातें कई बार होती हैं, लेकिन हर बार इसका फायदा पाकिस्तान को ही होता है। युद्धविराम के नाम पर जब भी भारत ने संयम दिखाया, पाकिस्तान ने पीठ में खंजर घोंपा। आतंकी शिविर फिर से सक्रिय हो गए, घुसपैठ बढ़ गई और घाटी में निर्दोषों का खून बहता रहा। इसलिए अब समय आ गया है कि भारत युद्धविराम की किसी भी प्रक्रिया को इन तीन आतंकवादियों के खात्मे से जोड़े। जब तक ये तीनों ज़िंदा हैं, तब तक युद्धविराम केवल एक झूठा समझौता ही रहेगा।

भारत को चाहिए स्पष्टता और ईमानदारी

यदि भारत सरकार इन आतंकियों को मार गिराने में सक्षम है, तो उसमें देर नहीं होनी चाहिए। यदि किसी कारणवश ऐसा संभव नहीं है, तो भारत की जनता को साफ-साफ बता देना चाहिए। इस देश की जनता ने मुग़लों, ब्रिटिशों और आतंकियों के अत्याचार झेले हैं। यह जनता सहनशील जरूर है, लेकिन अंधी नहीं। उसे कम से कम यह जानने का हक़ है कि उसकी सरकार किस हद तक जाने को तैयार है।

आशा और भ्रम के बीच जीती जनता को जब बार-बार ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ और ‘एयर स्ट्राइक’ के नाम पर आश्वासन दिया जाता है, तो उसका विश्वास भी धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है। आज ज़रूरत है पारदर्शिता की — जनता को सच बताए जाने की, और यह स्वीकार करने की कि क्या हम वास्तव में उस स्तर पर हैं जहां से हम इन शत्रुओं को समाप्त कर सकें।

पाक-अधिकृत कश्मीर पर संसद का संकल्प

भारत की संसद ने 10 अगस्त 1994 को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) भी भारत का हिस्सा है। लेकिन उस प्रस्ताव को लागू करने की दिशा में अब तक कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया गया है। यह स्थिति केवल जनता में असंतोष को जन्म देती है।

भारतीय नागरिक वर्षों से आशा लगाए बैठे हैं कि सरकार इस प्रस्ताव पर अमल करेगी। पर हर चुनाव में केवल वादे दोहराए जाते हैं। यदि सरकार वास्तव में PoK को पुनः भारत में शामिल करना चाहती है, तो यह काम भी आतंकवाद की जड़ को काटने जैसा ही होगा। क्योंकि जब तक पीओके पाकिस्तान के कब्ज़े में रहेगा, तब तक वहां से आतंक का प्रसार होता रहेगा।

आतंकवाद की फसल को जड़ से उखाड़ो

हाफ़िज़, मसूद और सलाउद्दीन केवल व्यक्ति नहीं हैं, ये विचारधारा के प्रतीक हैं। इनके जिंदा रहने का मतलब है, युवाओं को गुमराह करने का सिलसिला चलता रहेगा, आतंक की फसल कटती रहेगी, और निर्दोष लोग हर रोज़ मरते रहेंगे। ये तीनों पाकिस्तान की ‘स्टेट स्पॉन्सर्ड टेररिज़्म’ नीति के सबसे बड़े चेहरे हैं। इनका अंत केवल तीन लोगों की मौत नहीं होगी, यह भारत की उस लड़ाई की जीत होगी जो वह दशकों से लड़ रहा है।

अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की भूमिका

भारत को केवल सैन्य स्तर पर नहीं, बल्कि कूटनीतिक स्तर पर भी अपनी लड़ाई तेज करनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र, FATF, इंटरपोल जैसे वैश्विक मंचों पर भारत ने कई बार इन आतंकियों को वैश्विक आतंकवादी घोषित करवाने में सफलता पाई है। लेकिन इससे आगे जाकर अब यह मांग होनी चाहिए कि पाकिस्तान पर वास्तविक दबाव डाला जाए। जिन देशों ने आतंक के खिलाफ विश्व युद्ध छेड़ा है, उन्हें भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए। आतंकवाद किसी एक देश की समस्या नहीं, वैश्विक संकट है — और इसका समाधान भी वैश्विक स्तर पर ही संभव है।

अब और नहीं

भारत की जनता थक चुकी है — भाषणों से, घोषणाओं से, और केवल प्रतीकात्मक कार्रवाइयों से। अब समय है निर्णायक कार्रवाई का। देश के युवाओं को, जवानों को, और आम नागरिकों को यह विश्वास चाहिए कि उनका देश आतंक के खिलाफ खड़ा है — पूरे संकल्प और शक्ति के साथ। हाफ़िज़ सईद, मसूद अज़हर और सैयद सलाउद्दीन का अंत भारत की सुरक्षा का पहला चरण होगा। जब तक ये जिंदा हैं, तब तक शांति की कल्पना करना व्यर्थ है। भारत को चाहिए इनका सिर — और यह मांग कोई तात्कालिक भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक स्थायी राष्ट्रीय नीति बननी चाहिए।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ : जैश के मुख्यालय पर भारत का सटीक प्रहार, 9 आतंकी ठिकाने तबाह, पाकिस्तान में अफरा-तफरी (‘Operation Sindoor’: India’s Precision Strike on Jaish Headquarters, 9 Terror Camps Destroyed in PoK, Panic in Pakistan)

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बहावलपुर और अन्य जगहों पर हमले में 75 आतंकवादी मार गिराए गए

भारतीय सशस्त्र बलों ने बुधवार को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (PoK) में स्थित 9 आतंकी शिविरों पर सर्जिकल हमले कर उन्हें तबाह कर दिया। यह कार्रवाई दक्षिण कश्मीर के पहलगाम में हुए कायराना आतंकवादी हमले के जवाब में की गई, जिसमें आतंकियों ने सुरक्षाबलों को निशाना बनाया था। बहावलपुर और अन्य जगहों पर हमले में 75 आतंकवादी मार गिराए गए। इससे पाकिस्तान में अफरा-तफरी का माहौल है।

भारत के ऑपरेशन सिंदूर में जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख और वांटेड आतंकवादी मौलाना मसूद का पूरा परिवार खत्म हो गया। पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक बुधवार तड़के मसूद अजहर के घर पर भारतीय वायुसेना ने हमला किया. इस हमले में परिवार के 14 आतंकवादी मारे गए। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय सीमा से 100 किमी दूर पर स्थित मसूद अजहर के घर बहाबलपुर में रात के करीब 1.30 बजे भारतीय सेना ने स्ट्राइक किया। इस स्ट्राइक में मसूद के उस ठिकाने पर बम गिराए गए, जहां उसका पूरा परिवार सोया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि बम गिरते ही परिवार के 14 लोग ढेर हो गए. हालांकि, हमले के वक्त घर पर मसूद अजहर मौजूद नहीं था। हालांकि अपुष्ट ख़बरों में मसूद अजहर के भी मारे जाने की बात कही जा रही है।

Vikram-Misri-Addressed-Media-Along-With-Colonel-Sophia-Qureshi-and-Wing-Commander-Vyomika-Singh-300x169 'ऑपरेशन सिंदूर' : जैश के मुख्यालय पर भारत का सटीक प्रहार, 9 आतंकी ठिकाने तबाह, पाकिस्तान में अफरा-तफरी ('Operation Sindoor': India's Precision Strike on Jaish Headquarters, 9 Terror Camps Destroyed in PoK, Panic in Pakistan)
Vikram Misri Addressed Media Along With Colonel Sophia Qureshi and Wing Commander Vyomika Singh

सूत्रों के मुताबिक, ऑपरेशन का सबसे बड़ा निशाना जैश-ए-मोहम्मद का पीओजेके स्थित मुख्यालय रहा, जहां पर सटीक हवाई हमले कर उसे भारी नुकसान पहुंचाया गया। इस ऑपरेशन में ड्रोन, रॉकेट सिस्टम और गाइडेड बमों का इस्तेमाल किया गया। भारत ने यह कार्रवाई पहलगाम में आतंकी हमले के जवाब में की है। इस हमले में 26 पर्यटकों की हत्या कर दी गई थी कई घायल हुए थे। इसके बाद ही सरकार ने सेना को ‘निर्णायक उत्तर’ देने के निर्देश दिए थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना को बधाई देते हुए कहा, “पहलगाम में हमारे जवानों पर हुआ हमला पूरे देश पर हमला था। ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से सेना ने देश की असली ताकत दिखाई है।” रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, “जैश के मुख्यालय को निशाना बनाकर यह संदेश दे दिया गया है कि भारत अब हर हमले का जवाब सीमा पार जाकर देगा।” विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “पहलगाम में शहीद हुए जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। पूरा देश सेना के साथ खड़ा है।”

Operation-Sindoor-3-300x245 'ऑपरेशन सिंदूर' : जैश के मुख्यालय पर भारत का सटीक प्रहार, 9 आतंकी ठिकाने तबाह, पाकिस्तान में अफरा-तफरी ('Operation Sindoor': India's Precision Strike on Jaish Headquarters, 9 Terror Camps Destroyed in PoK, Panic in Pakistan)

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने बताया कि यह ऑपरेशन लंबे समय से तैयार की गई रणनीति का हिस्सा था, और आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए आगे और भी कदम उठाए जाएंगे। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब आतंकी हमलों को सिर्फ सहन नहीं करेगा, बल्कि उसका जवाब दुश्मन के घर में घुसकर देगा। जैश के मुख्यालय पर हमला इस बात का प्रमाण है कि अब आतंक के आका भी सुरक्षित नहीं हैं।

ऑपरेशन सिंदूर अपने आधिकारिक बयान में विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कहा, “22 अप्रैल को पहलगाम में बर्बरतापूर्वक हमला किया। इसमें वहां मौजूद लोगों को करीब से और परिवारों के सामने सिर पर गोली मारी गई। परिवार के सदस्यों को जानबूझकर आघात कराया गया। जम्मू कश्मीरी में पर्यटन बढ़ रहा था। पिछले साल सवा 2 करोड़ से ज्यादा टूरिस्ट कश्मीर आए थे। इस संघ राज्य क्षेत्र में विकास और प्रगति को नुकसान पहुंचाकर पिछड़ा रखने का उद्देश्य था। ये जम्मू-कश्मीर सहित भारत में सामुदायिक घटना कराने की कोशिश की। एक TRF समूह ने जिम्मेदारी ली, जो पाकिस्तानी आतंकी ग्रुप तश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा है। हमारी खुफिया एजेंसियों ने कई जानकारी जुटाई है। पाकिस्तान का लंबा ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। ये आतंकवादियों का शरण स्थली बना है।”

Operation-Sindoor-2-174x300 'ऑपरेशन सिंदूर' : जैश के मुख्यालय पर भारत का सटीक प्रहार, 9 आतंकी ठिकाने तबाह, पाकिस्तान में अफरा-तफरी ('Operation Sindoor': India's Precision Strike on Jaish Headquarters, 9 Terror Camps Destroyed in PoK, Panic in Pakistan)

सचिव विक्रम मिसरी ने कहा, “पाकिस्तान ने अंतराराष्ट्रीय मंचों को गुमराह करता है। साजिद मीर को मृत्य घोषित किया, जो बाद में जिंदा पाया गया। घटना के बाद भारत में रोष देखा गया। भारत सरकार ने पाकिस्तान संग संबंधों पर कई अहम घोषणा की। 22 अप्रैल के हमले के अपराधियों और योजनाकारों को न्याय के कठघरे में लाना जरूरी रहा। पाकिस्तान ने इस पर कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं। पाकिस्तान ने उल्टा आरोप लगाया। हमारी खुफिया निगरानी ने संकेत दिया कि आगे भी भारत के विरुद्ध हमले हो सकते हैं। इसे रोकना जरूरी था। भारत ने सीमा पार हमलों का जवाब देने और उन्हें रोकने के अधिकार का प्रयोग किया है। यह कार्रवाई नपी-तुली और जिम्मेदारी से हुई है। भारत में भेजे जाने वाले आतंकवादियों के खिलाफ एक्शन हुआ है।”

हिंदी हिंदुस्तान की ऑक्सीजन है, हिंदी का विरोध करने वाला बेमौत मर जाएगा

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हिंदी को किसी सरकारी बैसाखी की ज़रूरत नहीं

भारत में हिंदी का विस्तार इतना हो गया है कि यह भाषा इस देश की ऑक्सीजन हो गई है, और जो हिंदी का विरोध करेंगा वह बेमौत मारा जाएगा, क्योंकि हिंदी संपर्क भाषा के साथ साथ कारोबार की भी भाषा बन गई है। जो लोग हिंदी बोलना बंद करेंगे, उनकी इकोनॉमी ही बैठ जाएगी। यही ज़मीनी सच्चाई है। राज ठाकरे और एमके स्तालिन जैसे माने या न माने।

यह कहता अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है कि जिस भाषा की व्यापकता इतनी बृहद हो, उस भाषा को किसी तरह की बैसाखी की ज़रूरत नहीं है। आप हिंदी की पढ़ाई बंद कर दीजिए, हिंदी दिवस मनाना बंद कर दीजिए, तब भी हिंदी फूलती-फूलती रहेगी। हिंदी अब इस स्तर तक पहुंच गई है कि हिंदी का विरोध करने वाले लोग हिंदी का विरोध करके अपनी अदूरदर्शिया को परिभाषित कर रहे हैं।

हिंदी के तथाकथित विरोधी हिंदी की अहमियत को बिल्कुल भी नहीं जानते, क्योंकि अगर जानते तो विरोध कतई नहीं करते। भारत में हिंदी जन-जन की भाषा है। मातृभाषा चाहे जो हो लेकिन 95 फीसदी लोग हिंदी बोल लेते हैं। सेमिनार में लोग भले स्टैटस सिंबल के लिए अंग्रेज़ी में भाषण करें, लेकिन सेमिनार के बाद लंच या डिनर करते समय सब हिंदी ही बोलते हैं।

कुछ साल पहले एक तमिल भाषा सीएसएमटी पर आरक्षित टिकट लेने पहुंचा। उसने फॉर्म तमिल में भर दिया था। तमिलभाषी को अंग्रेज़ी या हिंदी नहीं आती थी। क्लर्क को तमिल नहीं आती थी। अब वह टिकट कैसे निकाले। संयोग से आरक्षण केंद्र में एक तमिलभाषी क्लर्क था, उसने आकर संबंधित क्लर्क को बताया कि कहा का टिकट बुक करना है। कहने का मतलब अगर आपको अंग्रेज़ी या हिंदी नहीं आती तो आप अपने राज्य में ही रहिए। आपको लिए पूरा भारत विदेश की तरह है।

केंद्र को शिक्षा में तीन-भाषा फॉर्मूले को थोपने की ज़रूरत ही नहीं है। हिंदी पढ़कर सीखने की भाषा ही नहीं है। आप तमिलनाडु या किसी भी राज्य में भी हिंदी कोचिंग क्लास का बोर्ड नहीं देखेंगे। इसका मतलब हिंदी को तीन-भाषा फॉर्मूले या कोचिंग क्लास जैसे बैसाखी की ज़रूरत है। वैसे भी भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषाओं को लेकर सदैव बहस होती रही है, विशेष रूप से हिंदी को लेकर। कभी इसे राष्ट्रभाषा घोषित करने की मांग की जाती है, तो कभी इसके विरोध में आवाजें उठती हैं। मगर इन सबके बीच एक सत्य यह भी है कि हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसने बिना किसी विशेष सरकारी संरक्षण या जबरन थोपे जाने के भी, अपने आप को पूरे देश में एक संवाद की भाषा के रूप में स्थापित किया है।

हाल ही में केंद्र सरकार ने शिक्षा में तीन-भाषा फॉर्मूले को पुनः लागू करने पर जोर दिया है। इसके अंतर्गत छात्रों को हिंदी, अंग्रेज़ी और एक स्थानीय भाषा पढ़ाई जाती है। इस नीति को लेकर कुछ राज्यों विशेषकर दक्षिण भारत में विरोध होता रहा है। लेकिन इस विरोध के बावजूद हिंदी ने स्वयं को एक सम्पर्क भाषा के रूप में स्थापित किया है। हिंदी दिवस जैसे आयोजनों की प्रासंगिकता भी इसी संदर्भ में देखी जानी चाहिए। आज के युग में जब हिंदी सिनेमा, समाचार चैनल, यूट्यूब, सोशल मीडिया और रेडियो के माध्यम से घर-घर पहुंच चुकी है, तब उसे संरक्षण देने या जबरन थोपने की आवश्यकता कहां रह जाती है?

हिंदी एकमात्र ऐसी भाषा है जो देश के हर कोने में किसी न किसी रूप में बोली या समझी जाती है। बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में तो यह मुख्य भाषा है ही, दक्षिण भारत में भी ‘काम-चलाऊ हिंदी’ के रूप में इसे खूब अपनाया गया है। ऑटो-रिक्शा चालक, होटल कर्मचारी, दुकानदार या कोई छोटा-मोटा कारोबारी—अधिकांश गैर-हिंदीभाषी राज्यों में भी हिंदी बोलने की कोशिश करते हैं। वे जानते हैं कि हिंदी बोलना उन्हें एक बड़ा ग्राहक वर्ग दिला सकता है।

यह तथ्य है कि दक्षिण भारतीय राज्यों में हिंदी का विरोध ऐतिहासिक रूप से तमिलनाडु की द्रविड़ पार्टियों द्वारा किया गया है। वे इसे उत्तर भारत की संस्कृति थोपने के प्रयास के रूप में देखते हैं। किंतु इस राजनीतिक विरोध के बावजूद हिंदी वहां आम जन के बीच अपनी जगह बना चुकी है। चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद जैसे शहरों में काम करने वाले लाखों उत्तर भारतीय श्रमिक, कर्मचारी और छात्र वहाँ हिंदी को जीवंत बनाए हुए हैं। वहाँ के स्थानीय लोग भी व्यावसायिक और सामाजिक संवाद के लिए हिंदी सीखने को इच्छुक रहते हैं।

भारत में अंग्रेजी को प्रायः एक वैश्विक भाषा और आधुनिकता का प्रतीक माना जाता है। लेकिन यह भी सत्य है कि देश की बहुत बड़ी जनसंख्या आज भी अंग्रेजी में दक्ष नहीं है। ऐसे में संवाद के लिए हिंदी ही सबसे सहज माध्यम बनती है। यह केवल शिक्षित वर्ग के लिए नहीं, बल्कि आम जनता के लिए भी अभिव्यक्ति का माध्यम है। ट्रेन में सफर करते समय, स्टेशन पर टिकट खरीदते वक्त, किसी भी पर्यटन स्थल पर गाइड से बात करते हुए, या किसी छोटे व्यवसायी से सौदा करते हुए—यदि कोई व्यक्ति अंग्रेजी नहीं जानता, तो वह सरल हिंदी में बात कर लेता है। इसे ही ‘कम-चलाऊ हिंदी’ कहा जा सकता है। यह कोई शुद्ध साहित्यिक हिंदी नहीं होती, लेकिन संवाद स्थापित करने में पूर्ण सक्षम होती है।

आज हिंदी केवल भारत तक सीमित नहीं है। मॉरिशस, फिजी, त्रिनिदाद, सूरीनाम, नेपाल, यूएई, अमेरिका, यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य देशों में हिंदी बोलने और समझने वाले लोग बड़ी संख्या में हैं। इन देशों में बसे भारतीय प्रवासी अपने बच्चों को हिंदी सिखाने के लिए प्रयासरत हैं। कई देशों की यूनिवर्सिटियों में हिंदी पढ़ाई जाती है। संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने की मुहिम भी चल रही है। यह सब बताता है कि हिंदी का विकास केवल सरकारी योजनाओं के भरोसे नहीं, बल्कि उसकी जन-स्वीकृति के आधार पर हो रहा है।

आज हिंदी टीवी चैनल्स, अखबारों, यूट्यूब चैनलों, पॉडकास्ट और मोबाइल ऐप्स के ज़रिये न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी पहुँची है। डिजिटल इंडिया अभियान ने हिंदी को और सशक्त किया है। गूगल, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे वैश्विक मंचों पर हिंदी सामग्री की भरमार है।
हिंदी अब केवल ‘काग़ज़ी भाषा’ नहीं रह गई है, यह अब युवाओं की भाषा बन चुकी है। इंस्टाग्राम रील्स, यूट्यूब शॉर्ट्स, ट्विटर ट्रेंड्स—हर जगह हिंदी का बोलबाला है। यहां तक कि अंग्रेज़ी बोलने वाले युवा भी अपने विचारों को हिंदी में व्यक्त करना गर्व की बात मानते हैं।

प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। यह उस दिन की याद दिलाता है जब 1949 में संविधान सभा ने हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। किंतु आज के संदर्भ में यह प्रश्न उठता है कि क्या हिंदी को विशेष दिवस की आवश्यकता है? या फिर यह केवल एक सरकारी औपचारिकता बन कर रह गई है? जब एक भाषा समाज में इतनी गहराई से रच-बस जाए, जब उसका उपयोग सरकारी कामकाज से लेकर सोशल मीडिया तक हर जगह हो, तो उसे ‘संरक्षण’ देने की बात हास्यास्पद लगती है। हाँ, हिंदी को मानक रूप में विकसित करने, तकनीकी शब्दावली को समृद्ध करने, और शिक्षा में इसकी उपयोगिता बढ़ाने के लिए योजनाएँ बनाई जा सकती हैं, लेकिन भाषा का असली विकास तब होता है जब वह जनमानस की भाषा बन जाए—और हिंदी आज वह बन चुकी है।

हिंदी को समर्थन देना या उसका विरोध करना अब एक राजनीतिक बहस का हिस्सा भर रह गया है। सच्चाई यह है कि हिंदी को न तो किसी जबरदस्ती की ज़रूरत है और न ही संरक्षण की। यह भाषा स्वयं लोगों ने चुनी है, स्वयं समाज में फैली है, और स्वयं अपने बलबूते एकता की कड़ी बनी है। आज का भारत नई तकनीक, वैश्विक प्रतिस्पर्धा और विविधताओं के बीच एकजुटता की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में हिंदी वह माध्यम बन रही है जो भारत के कोने-कोने को जोड़ सकती है। यह केवल उत्तर भारत की भाषा नहीं, यह अब भारतीय पहचान का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

क्या कोलिजियम से अयोग्य लोगों को बनाया जा रहा है जज

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न्यायाधीश यानी जज शब्द इतना आदरणीय होता है कि उस अविश्वास करने के सवाल ही पैदा नहीं होता, क्योंकि जज दूध का दूध पानी का पानी करता है। लेकिन कल्पना करिए, कि अगर जज ही  भ्रष्ट निकल जाए तो, क्या होगा? क्या आपको इंसाफ़ मिलेगा? भारत में न्यायपालिका की आजकल हालत ऐसी ही हो गई है।

कुछ उदाहरण देखिए…

  • 14 मार्च 2025 को हाईकोर्ट के जज के जस्टिस यशवंत वर्मा सरकारी घर पर आग बुझाने के दौरान बेहिसाब नकदी बरामद होती है।
  • 21 मार्च 2025 को हाईकोर्ट के जज जस्टिस राममनोहर नारायण मिश्रा कह रहे हैं कि जबरदस्ती स्तन पकड़ना और नाड़ी खोल देना रेप की श्रेणी में नहीं आता।
  • 2019 में मुख्य न्यायाधीश रहते जस्टिस रंजन गोगोई पर पर उसकी कर्मचारी यौन शोषण का आरोप लगाया, गोगोई ने खुद मामले की सुनवाई करके अपने आपको निर्दोष होने का फैसला सुना दिया।
  • 2013 में महिला इंटर्न के सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एके गांगुली पर यौन-उत्पीड़न का आरोप लगाया, लेकिन गांगुली का बाल भी बांका नहीं हुआ।
  • उपरोक्त उदाहरणों से साफ है कि कॉलेजियम सिस्टम से सही लोग नहीं बल्कि अयोग्य वकील जज बनाए जा रहे हैं।

आरंभ से भारत में न्यायाधीशों के फ़ैसले पर किसी भी तरह की टिप्पणी करना अदालत की अवमानना की कैटेगरी में आता है। इसलिए अमूमन लोग जज के फ़ैसले पर टिप्पणी करने से परहेज करते हैं। यहां तक कि अनुचित एवं ग़लत प्रतीत होने वाले फ़ैसले भी लोग भारी मन से स्वीकार कर लेते हैं। अक्सर एक ही मुकदमे का अलग-अलग फैसला आ जाता है। मतलब निचली अदालत कुछ फैसला देती है, हाईकोर्ट कुछ फैसला देता है और सुप्रीम कोर्ट कुछ और कहता है। मतलब मुजरिम, मुकदमा और सबूत वही, लेकिन फैसले जितने जज उतने तरह के आते हैं। इससे दुविधा की स्थिति पैदा होती है कि किसका फैसला न्याय है।

बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार करने वाली तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता का केस मिसाल है। सितंबर 2014 में बेंगलुरु की निचली अदालत के जज जॉन माइकल डिकुन्हा ने जयललिता को चार साल की सजा सुनाई। 10 साल चुनाव लड़ने पर रोक भी लगा दिया। जय ललिता को इस्तीफा देना पड़ा। मई 2015 कर्नाटक हाईकोर्ट के जज जस्टिस सीआर कुमारसामी ने उन्हें बरी कर दिया। वह फिर सीएम बन गई। 14 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट के दो जजों जस्टिस पीसी घोष और जस्टिस अमिताव रॉय की बेंच ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। लेकिन जयललिता का तब तक निधन हो चुका था। उसी मामले में उनकी सहेली शशिकला जेल में हैं।

कहने का मतलब जस्टिस कुमारसामी के पक्षपातपूर्ण फैसले के चलते सत्ता का दुरुपयोग और भ्रष्टाचार करने वाली जयललिता सजा पूरा करने से पहले ही जेल से बाहर आ गई और सीएम बन गई। सीएम के रूप में उसका निधन हुआ तो पूरे राजकीय सम्मान के साथ उसका अंतिम संस्कार किया गया। एमसी रामचंद्रन की समाधि के बग़ल में उनकी समाधि बनवाई गई। जबकि वह सम्मान की नहीं, बल्कि जेल में जीवन गुजारने की पात्र थी। इसके लिए क्या जस्टिस कुमारसामी को ग़लत एवं पक्षपातपूर्ण फैसला देने के लिए जवाबदेह ठहराकर दंडित नहीं किया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

छह मई 2015 को दोपहर मुंबई सेशन कोर्ट के जज डब्ल्यूडी देशपांडे ने हिट-एंड-रन केस में अभिनेता सलमान खान को पांच साल के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई, परंतु फैसला सुनाने के दो घंटे के भीतर ही बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस अभय थिप्से ने उन्हें ज़मानत देकर जेल जाने से बचा लिया।  बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एआर जोशी ने 10 दिसंबर को सबको हैरान करते हुए निचली अदालत का फैसला ही पलट दिया और सलमान को रिहा कर दिया। नौ दिन बाद जोशी रिटायर भी हो गए। महाराष्ट्र सरकार के फैसले के खिलाफ अपील पर सात साल से सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा चल रहा है। अगर सुप्रीम कोर्ट सलमान को दोषी ठहरा दे तो क्या होगा?

इस तरह कई जजों ने हज़ारों की संख्या में इस तरह के विरोधाभासी और ग़लत फैसले दिए, लेकिन किसी के फैसले पर न तो कभी कोई टिप्पणी हुई और न ही किसी जज को ज़िम्मेदार ठहराया गया। कहने का तात्पर्य जज भी हाड़-मांस का बना इंसान होता है। उसका परिवार होता है। वह सामाजिक प्राणी होता है। लिहाज़ा, उसके भी वेस्टेड इंटरेस्ट हो सकते हैं। यानी कहीं न कहीं उसके भी मैनेज्ड हो जाने की संभावना रहती है। इसलिए भारतीय संविधान में जवाबदेही का प्रावधान होना चाहिए ताकि जिस न्य़ायाधीश का फैसला पलटा जाए, या जिसकी टिप्पणी वापस लेनी पड़े, उसके खिलाफ़ कार्रवाई की जा सके।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एके गांगुली पर तो 2013 में एक लॉ इन्टर्न ने 24 दिसंबर को होटल के कमरे में यौन-शोषण का सनसनीखेज़ आरोप लगाया। इसी तरह अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट की एक महिला कर्मचारी ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई पर ही यौन उत्पीड़न का आरोप लगा दिया। लंबे समय तक वह प्रकरण सुर्खियों में रहा। यौन-उत्पीड़न जैसा गंभीर आरोप लगने के बावजूद दोनों में से किसी जज के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।

जज की जवाबदेही सुनिश्चित करना इसलिए भी ज़रूरी है कि समय समय पर उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। 1989-91 में देश के मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस रंगनाथ मिश्रा (पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र के चाचा) ने 1984 के सिख दंगों के केस में कांग्रेस के नेताओं को क्लीन चिट दी। सुप्रीम कोर्ट के सिटिंग जज के रूप में उन्होंने सिख की हत्या की जांच करने वाले आयोग की अध्यक्षता की। आरोप लगा था कि पूछताछ और जांच की कार्यवाही पक्षपातपूर्ण तरीक़े से निपटाई गई थी, जबकि आधिकारिक जांच रिपोर्ट और सीबीआई जांच में कांग्रेस के नेताओं के ख़िलाफ़ गंभीर साक्ष्य थे। बाद में कांग्रेस ने रंगनाथ मिश्रा को राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया।

1991 में 18 दिनों के लिए मुख्य न्यायाधीश रहे न्यायमूर्ति कमल नारायण सिंह पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। आरोप लगा था कि जैन एक्सपोर्ट्स और उसकी सिस्टर कन्सर्न जैन शुद्ध वनस्पति के पक्ष में फ़ैसला देते समय जज साहब अप्रत्याशित रूप से बेहद उदार हो गए। उनके आदेश से कंपनी ने औद्योगिक नारियल का तेल आयात किया था, जबकि उस पर प्रतिबंध लगा था। कंपनी पर कस्टम विभाग के लगाए 5 करोड़ रुपए के ज़ुर्माने को भी जस्टिस केएन सिंह ने आदेश में घटाकर 35 फ़ीसदी कम कर दिया। हालांकि बाद में एमएन वेंकटचलैया ने उस आदेश को रद्द कर दिया और टिप्पणी भी की, “मैं वर्तमान हलफ़नामे पर टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं लेकिन मैं न्यायाधीश पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में चिंतित हूं।”

सन् 1994-1997 के दौरान मुख्य न्यायाधीश रहे एएम अहमदी पर पक्षपात और भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। अहमदी ने भोपाल गैस त्रासदी के हज़ारों पीड़ितों को इंसाफ़ से वंचित कर दिया था। उन्होंने यूनियन कार्बाइड कंपनी के ख़िलाफ़ हत्या के आरोप को खारिज कर दिया। उनके फ़ैसले पर भी गंभीर टिप्पणी हुई कि न्याय के साथ विश्वासघात हुआ। अहमदी ने बाद में यूनियन कार्बाइड अस्पताल ट्रस्ट मंडल का अध्यक्ष बन गए। अहमदी ने पर्यावरण संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अंगूठा दिखा कर बड़खल और सूरजकुंड झील के पांच किलोमीटर के दायरे में अपना शानदार घर बनवाया।

1998 में मुख्य न्यायाधीश रहे एमएम पुंछी का एक फ़ैसला पक्षपातपूर्ण एवं भ्रष्टाचार वाला लगा था। उन्होंने शिकायतकर्ता से समझौता करने के आरोप में जेल की सज़ा भुगत रहे एक प्रभावशाली व्यक्ति को अपने मन से बरी करने का फैसला सुनाया दिया। जबकि यह नॉर्म का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन था।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आदर्श सेन आनंद पर तो फ़र्ज़ी हलफ़नामे से ज़मीन हथियाने के एक नहीं तीन गंभीर आरोप लगे। आनंद पर आरोप था कि उन्होंने जम्मू कश्मीर के होटल व्यापारी के पक्ष में फ़ैसला दिया, बदले में उनकी बेटी को औने-पौने दाम पर भूखंड मिल गया। उन्होंने तो अपने ख़िलाफ़ घोटाले को प्रकाशित करने वाले पत्रकार विनीत नारायण को बहुत टॉर्चर किया। उनको अब तक का सबसे भ्रष्ट मुख्य न्यायाधीश कहें तो हैरानी नहीं। वह कितने ताक़तवर थे, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब भ्रष्टाचार के बारे में जज से क़ानून मंत्री राम जेठमलानी ने स्पष्टीकरण मांगा तो जस्टिस ने उनको क़ानून मंत्री पद से ही हटवा दिया।

न्यायमूर्ति वाईके सभरवाल भी भ्रष्टाचार से अछूते नहीं रहे। उन्होंने कुछ बिल्डरों जज के बेटों को फायदा पहुंचाने के लिए दिल्ली में कॉमर्शियल गालों को सील करने का आदेश दिया। बाद में उनका बेटा एक लाभार्थी बिल्डर का पार्टनर बन गया। सबसे हैरानी वाली बात यह रही कि उनके बेटे की कंपनी का पंजीकृत ऑफिस न्यायाधीश का सरकारी घर था।

विनीत नारायण की किताब ‘भ्रष्टाचार, आतंकवाद और हवाला कारोबार’ के मुताबिक में कहा गया कि हवाला कांड के मुख्य न्यायाधीश रहे जगदीश शरण वर्मा ने साज़िश के तहत बिना सघन जांच के ठंडे बस्ते में डाल दिया। इसके अलावा समय समय पर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज ऐसे फ़ैसले देते रहे हैं, जिनसे फेवर और भ्रष्टाचार की बू आती है।

ये तमाम उदाहरण इंगित करते हैं कि न्यायपालिका पर भी चेक एंड बैलेंस फॉर्मूला लागू होना चाहिए। लिहाज़ा, जजों को निरंकुश नहीं छोड़ा जाना चाहिए। मतलब जिस जज का कोई फ़ैसला क़ानून की प्रचलित परंपराओं के विपरीत जाता दिखे, उन्हें प्रमोशन देने से परहेज़ करना चाहिए। इतना ही नहीं यह भी ग़ौर करना कि किसी न्यायाधीश ने अपने कार्यकाल में कितने मुक़दमे का ईमानदारी से निपटारा किया। इसके अलावा असंवेदनशील मुक़दमों को कुछ सीमित सुनवाई के बाद निपटाने की भी प्रावधान होना चाहिए। इससे मुक़दमों की बढ़ती संख्या पर रोक लगेगी। इतना ही नहीं, जजों की संख्या में बढ़ोतरी भी की जानी चाहिए और हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति कोलेजियम की बजाय संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा के द्वारा होना चाहिए। इससे बड़ी अदालते परिवार वाद से मुक्त होंगी।

जो भी हो, स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को जवाबदेह और ज़िम्मेदार बनाया जाए ताकि इन संस्थानों की मर्यादा और विश्वसनीयता बरकरार रहे। पूरे विश्व की तरह भारतीय समाज में भी न्यायपालिका को बहुत सम्मान की नज़र से देखा जाता रहा है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो जनता का यह विश्वास अब तक कायम रहा, क्योंकि शीर्ष अदालतों में बैठे न्यायाधीश किसी पर भी कोई टिप्पणी सोच-समझ कर करते थे। वे न्यायायल की सत्ता स्वायत्ता और स्वतंत्रता के रक्षक रहे। ऐसे में ज़रूरी है कि सुप्रीम कोर्ट में उन्हीं जजों की नियुक्ति की जाए, जो किसी पर भी संतुलित टिप्पणी करें। अन्यथा न्यायपालिका का सम्मान घट जाएगा, जैसा कि नुपूर शर्मा के केस में हुआ है। न्यायपालिका का सम्मान घटने से जम्हूरियत की बुनियाद कमज़ोर होगी, जो कि नहीं होनी चाहिए।

वक्फ बोर्ड रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा भू-स्वामी

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देश के तीन सबसे बड़े भू-स्वामी

  • भारतीय रेलवे – देशवासियों के यातायात सेवा में समर्पित

  • रक्षा मंत्रालय – देश की सीमाओं की रक्षा के लिए समर्पित

  • वक्फ बोर्ड – मदरसे, मस्जिद व कब्रिस्तान के लिए समर्पित

वक्फ बोर्ड भारत का तीसरा सबसे बड़ा भूस्वामी है। इसके पास 9.4 लाख एकड़ भूमि है। इससे अधिक जमीन रेलवे और रक्षा मंत्रालय के पास है। भारतीय रलवे देश के सभी 140 करोड़ नागरिकों के लिए समर्पित है और रोजाना करोड़ों लोगो को गंतव्यस्थल तक पहुंचने में मदद करना है। इसी तरह रक्षा मंत्रालय देश को समर्पित है और इसके तीनों अंग स्थल सेना, वायु सेना और नौ सेना देश की रक्षा करते हैं। दूसरी ओर वक्फ बोर्ड केवल मुसलमानों के हितों से जुड़े मामले देखता है। इस काम के लिए बोर्ड को इतनी अधिक जमीन की जरूरत नहीं है।

भारत में वक्फ बोर्ड एक महत्वपूर्ण धार्मिक संस्थान है, जो इस्लामिक धर्मार्थ संपत्तियों के प्रबंधन और देखरेख के लिए जिम्मेदार है। वर्तमान में, वक्फ बोर्ड के पास देशभर में लगभग 9.4 लाख एकड़ भूमि है, जो इसे भारतीय रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा भूमि स्वामी बनाती है। यह संपत्तियां धार्मिक, शैक्षिक और सामाजिक कल्याण की गतिविधियों के लिए इस्तेमाल की जाती हैं, लेकिन इनके स्वामित्व, प्रबंधन और उपयोग को लेकर समय-समय पर विवाद भी उठते रहे हैं।

The-Waqf-Board-GFX1-300x169 वक्फ बोर्ड रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा भू-स्वामी

वक्फ बोर्ड का इतिहास और उद्देश्य
वक्फ की अवधारणा इस्लामी परंपरा से जुड़ी हुई है, जिसमें कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को धर्मार्थ कार्यों के लिए दान करता है और इसे अनिश्चित काल के लिए समाज के हित में इस्तेमाल किया जाता है। भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए वक्फ अधिनियम, 1954 और वक्फ अधिनियम, 1995 लागू किए गए, जिनके तहत केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों की स्थापना की गई। इन संस्थाओं का मुख्य कार्य वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण, संरक्षण और इनका उचित उपयोग सुनिश्चित करना है।

वक्फ बोर्ड की संपत्तियां और उनकी स्थिति
वर्तमान में, वक्फ बोर्ड के पास 8,72,336 अचल संपत्तियां और 16,713 चल संपत्तियां दर्ज हैं। जिनकी अनुमानित क़ीमत 1-2 लाख करोड़ रुपए के बीच है। इनका उपयोग मदरसों, मस्जिदों, कब्रिस्तानों और धर्मार्थ अस्पतालों के संचालन के लिए किया जाता है। वक्फ बोर्ड की अधिकांश संपत्तियां उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक में स्थित हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास लगभग 2,17,000 और शिया वक्फ बोर्ड के पास लगभग 15,000 संपत्तियां हैं।

वक्फ़ बोर्ड के पास कुल 8,72,336 अचल संपत्तियां और 16,713 चल संपत्तियां हैं, राज्यवार संपत्तियों की संख्या में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है, जहां सुन्नी वक्फ़ बोर्ड के पास लगभग 2,17,000 संपत्तियां और शिया वक्फ़ बोर्ड के पास लगभग 15,000 संपत्तियां हैं। इसके बाद पश्चिम बंगाल में लगभग 80,000, पंजाब में 75,000, तमिलनाडु में 66,000 और कर्नाटक में 62,000 वक्फ संपत्तियां हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि वक्फ़ बोर्ड की संपत्तियों का विस्तार पिछले 15 वर्षों में दोगुना हुआ है, जो 2009 में लगभग 4 लाख एकड़ से बढ़कर वर्तमान में 9.4 लाख एकड़ हो गया है।

The-Waqf-Board-GFX-300x169 वक्फ बोर्ड रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा भू-स्वामी

विवाद और चुनौतियां

अवैध कब्जा और अतिक्रमण
वक्फ संपत्तियों का एक बड़ा हिस्सा अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया है। कई मामलों में, सरकारी एजेंसियां और निजी संस्थान भी इन संपत्तियों का उपयोग कर रहे हैं।

पारदर्शिता की कमी
वक्फ बोर्ड की संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता की कमी के कारण कई बार भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के आरोप लगते रहे हैं।

विवादित स्वामित्व के मामले
कई संपत्तियों को लेकर कानूनी विवाद जारी हैं, जिनमें हिंदू, मुस्लिम और अन्य समुदायों के लोग अपने-अपने दावे पेश कर रहे हैं।

विकास के अवसर और चुनौतियां
इन संपत्तियों को व्यावसायिक और सार्वजनिक हित के लिए विकसित करने की संभावनाएं हैं, लेकिन कानूनी और धार्मिक प्रतिबंधों के कारण यह एक जटिल प्रक्रिया बन जाती है।

डिजिटलीकरण और पारदर्शिता
वक्फ संपत्तियों का डिजिटल रिकॉर्ड तैयार किया जाना चाहिए, जिससे अतिक्रमण और अवैध कब्जों की निगरानी की जा सके।

बेहतर प्रशासनिक प्रबंधन
वक्फ बोर्डों को अधिक स्वायत्तता और विशेषज्ञों की मदद से काम करने की आवश्यकता है।

कानूनी सुधार
वक्फ अधिनियम में संशोधन कर विवादित संपत्तियों के निपटारे के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचा तैयार किया जाना चाहिए।

विकास और आर्थिक उपयोग
वक्फ संपत्तियों को आय-उत्पन्न करने वाले साधनों में बदलकर इसका लाभ समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाया जा सकता है।

वक्फ बोर्ड की संपत्तियां भारत की बहुसांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं और इनका सही उपयोग समाज के हित में किया जा सकता है। हालांकि, इनसे जुड़े विवादों और चुनौतियों को दूर करने के लिए पारदर्शी प्रशासन, कानूनी सुधार और बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता है। यदि इन सुधारों को लागू किया जाता है, तो वक्फ संपत्तियां न केवल मुस्लिम समुदाय बल्कि संपूर्ण भारतीय समाज के लिए लाभकारी साबित हो सकती हैं।

सुजाता बजाज ने कैनवास पर उकेरा सम्पूर्ण गैलेक्सी

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पेंटिंग बनाती सुजाता बजाज

अगर आपको गहरे नीले आसमान, टिमटिमाते तारों और अनंत ब्रह्मांड का दीदार पसंद है, तो मूर्धन्य कलाकार सुजाता बजाज की पेंटिंग्स में ये सभी नज़ारे जीवंत हो उठते हैं। उनकी कला प्रकृति की व्यापकता और रहस्यमय आकर्षण को अपने रंगों में समेटे हुए है। पिछले पाँच वर्षों में सृजित उनकी कृतियाँ सुरों और रंगों का ऐसा अनूठा संगम प्रस्तुत करती हैं, जिसे देखकर दर्शक सम्मोहित हुए बिना नहीं रह सकते।

पेंटिंग्स केवल रंगों और रेखाओं का खेल नहीं, बल्कि आत्मा की अभिव्यक्ति भी होती है। सुजाता बजाज का वर्क इसी अभिव्यक्ति का बेहतरीन उदाहरण है। दक्षिण मुंबई के प्रमुख कला केंद्र प्रतिष्ठित जहांगीर आर्ट गैलरी में उनकी पेंटिंग्स हर आगंतुक को मंत्रमुग्ध कर रही हैं। उनकी पेंटिंग्स में दिलचस्प पहलू यह है कि वे प्रत्येक पेंटिंग में अपना नाम हिंदी में उकेरती हैं, जो उनकी कला को और भी विशिष्ट बना देता है। यह न केवल उनकी कला को पहचान देने का कार्य करता है, बल्कि हिंदी भाषा के प्रति उनके गहरे लगाव को भी दर्शाता है।

Sujata-Bajaj-7396-298x300 सुजाता बजाज ने कैनवास पर उकेरा सम्पूर्ण गैलेक्सी

मुंबई की प्रतिष्ठित जहांगीर आर्ट गैलरी में 4 मार्च से 10 मार्च तक चल रही उनकी पेंटिंग प्रदर्शनी को देखने दुनियाभर से कला प्रेमी और प्रतिष्ठित कलाकार आ रहे हैं। उनकी कृतियों ने भारतीय दर्शकों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय कला जगत का भी ध्यान आकर्षित किया है और चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं।

भारतीय परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम
सुजाता बजाज की पेंटिंग्स में अब्स्ट्रैक्ट आर्ट का उत्कृष्ट प्रयोग देखने को मिलता है। उनकी शैली में भारतीय परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संतुलन है। रंगों के साहसिक और गतिशील प्रयोग से उनकी पेंटिंग्स में एक अलग ही ऊर्जा झलकती है। उनके चित्रों में भावनाओं और प्रतीकों का अद्भुत समावेश दिखता है। यही कारण है कि पेरिस, लंदन, न्यूयॉर्क और दुबई जैसी प्रतिष्ठित कला दीर्घाओं में उनकी पेंटिंग्स को सराहा गया है। उनकी शैली में पिकासो और मातिस जैसे महान कलाकारों की छवि तो दिखती है, लेकिन इसमें भारतीय पारंपरिक कलात्मकता की झलक भी स्पष्ट रूप से नजर आती है।

Sujata-Bajaj-7397-239x300 सुजाता बजाज ने कैनवास पर उकेरा सम्पूर्ण गैलेक्सी

‘स्पेसस्केप्स’ सीरीज़: ब्रह्मांड से प्रेरित कला
2019 में, सुजाता ने नासा के हबल टेलीस्कोप से ली गई एंड्रोमेडा गैलेक्सी की छवि देखी और इससे गहराई से जुड़ गईं। यह वह क्षण था, जब उनकी कला में अंतरिक्ष की झलक उभरने लगी। उन्होंने जेम्स वेब टेलीस्कोप से ली गई ब्रह्मांडीय छवियों का अध्ययन किया और अपनी कल्पना को नए रंगों और आकारों में ढालने लगीं। ‘स्पेसस्केप्स’ नामक यह अनूठी श्रृंखला उनके नवीन प्रयोगों का परिणाम है, जिसमें अंतरिक्ष की अनंतता और रंगों की ऊर्जा एक साथ सजीव हो उठती हैं।

कला और ब्रह्मांड का अद्भुत समन्वय
सुजाता बजाज की पेंटिंग्स समय और स्थान की पारंपरिक परिभाषाओं को चुनौती देती हैं। जब हम उनकी कला को निहारते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि समय कैनवास से निकलकर किसी अनंत यात्रा पर निकल पड़ा है। यह वैसा ही अहसास है, जैसा ट्रेन में सफर करते समय होता है—जहाँ हर कोई गतिशील है, परंतु यह समझ पाना कठिन होता है कि वास्तविक दिशा क्या है।

Sujata-Bajaj-7394-239x300 सुजाता बजाज ने कैनवास पर उकेरा सम्पूर्ण गैलेक्सी

यह सवाल खगोलशास्त्रियों और कलाकारों दोनों को समान रूप से आकर्षित करता है—हम कौन हैं? हम कहां से आए हैं? और हम कहां जा रहे हैं? खगोलशास्त्री इन प्रश्नों के उत्तर भौतिकी और गणित में खोजते हैं, जबकि कलाकार रंगों और आकृतियों के माध्यम से इन्हें व्यक्त करता है।

सुजाता की कृतियों में दिखने वाले लाल, नीले और हरे रंग केवल रंग भर नहीं हैं, बल्कि ये जीवन, ऊर्जा और पूरे ब्रह्मांड की कहानी कहते हैं। उनकी पेंटिंग्स केवल देखने की चीज़ नहीं, बल्कि अनुभव करने का माध्यम हैं। प्रत्येक चित्र एक नई कहानी कहता है, जो दर्शकों को उनकी कल्पनाओं की गहराइयों में ले जाता है।

Sujata-Bajaj-7395-240x300 सुजाता बजाज ने कैनवास पर उकेरा सम्पूर्ण गैलेक्सी

कला और विज्ञान के बीच सेतु
सुजाता की पेंटिंग्स वैज्ञानिक खोजों और मानवीय संवेदनाओं के बीच एक पुल का कार्य करती हैं, जहाँ वास्तविकता और अमूर्तता एक हो जाते हैं। यही कारण है कि उनकी कला में ब्रह्मांड की गहराई, रहस्य और अनंतता दिखाई देती है। उनकी पेंटिंग्स यह दर्शाती हैं कि ब्रह्मांड का सौंदर्य न केवल वैज्ञानिक खोजों में, बल्कि कलाकार की दृष्टि में भी समाहित है।

उनकी पेंटिंग्स को देखने के बाद यह एहसास होता है कि कला केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि आत्मा से जुड़ने का एक माध्यम भी है। सुजाता बजाज की कला ब्रह्मांड के अनसुलझे रहस्यों और मानव कल्पना के बीच एक अद्भुत संवाद प्रस्तुत करती है। यही कारण है कि उनकी हर कृति ब्रह्मांड की तरह अनंत संभावनाओं से भरी हुई प्रतीत होती है।

लेख -हरिगोविंद विश्वकर्मा

चीन में कोहराम मचाने वाले नए वायरस HMPV की भारत में दस्तक, सावधान रहें…

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बेंगलुरु में 8 महीने की बच्ची इस बीमारी से पीड़ित

कोरोना से भी ख़तरनाक बताया जाने वाला चीनी वायरस चीन में कोहराम मचाने के बाद भारत में प्रवेश कर चुका है। कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में 8 महीने की बच्ची इस बीमारी से पीड़ित पाई गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिल्ली और महाराष्ट्र को सतर्क रहने की एडवाइजरी जारी की है।

नए चीनी वायरस के आने की ख़बर से एक बार फिर से लोगों को कोविड-19 से मची तबाही याद आने लगी है, जब लोग घरों में कैद कर दिए थे। HMPV (ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस) एक आम वायरस है जो इंसानों के श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। इससे ग्रसित व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। यह छोटे बच्चों, वृद्धों और मेडिकली अनफिट लोगों के लिए खतरनाक हो सकता है।

श्वसन वायरस ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (HMPV) फ्लू जैसे लक्षण उत्पन्न करता है, जिनमें खांसी, बुखार, नाक बंद होना और सांस लेने में कठिनाई शामिल है। हालांकि, इस वायरस के लिए अभी तक कोई विशेष टीका या एंटीवायरल दवा उपलब्ध नहीं है, और लक्षणों के आधार पर ही इसका उपचार किया जाता है।

हाल के दिनों में, चीन में HMPV संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े हैं, जिससे वैश्विक स्वास्थ्य समुदाय में चिंता बढ़ी है। यह वायरस चीन के बाद मलेशिया और हांगकांग जैसे देशों में भी पहुंचा है। भारत में HMPV का पहला मामला बेंगलुरु में सामने आया, जहां एक आठ महीने की बच्ची में इस वायरस की पुष्टि हुई है। यह भारत में इस वायरस के संक्रमण का पहला ज्ञात मामला है।

HMPV वायरस मुख्य रूप से श्वसन बूंदों के माध्यम से फैलता है, जैसे कि खांसने या छींकने पर। इसके अलावा, संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने या दूषित सतहों को छूने से भी संक्रमण हो सकता है। संक्रमण से बचने के लिए मास्क पहनना, नियमित रूप से हाथ धोना और सामाजिक दूरी का पालन करना महत्वपूर्ण है।

भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें HMPV के प्रसार को रोकने के लिए सतर्क हैं। दिल्ली और तेलंगाना सहित कई राज्यों में स्वास्थ्य अधिकारियों ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसमें अस्पतालों को इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी) और गंभीर तीव्र श्वसन संक्रमण (SARI) के मामलों की तुरंत रिपोर्ट करने के निर्देश दिए गए हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी स्थिति की समीक्षा के लिए संयुक्त निगरानी समूह की बैठक बुलाई है और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से समय पर जानकारी साझा करने का अनुरोध किया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि HMPV कोई नया वायरस नहीं है। इसे पहली बार 2001 में खोजा गया था, और सीरोलॉजिकल साक्ष्यों के अनुसार, यह कम से कम 1958 से प्रचलित है। यह वायरस रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस (RSV) के साथ न्यूमोविरिडे परिवार में आता है और मौसमी बीमारी के रूप में सर्दियों और शुरुआती वसंत में अधिक सक्रिय होता है।

HMPV संक्रमण के लक्षणों में खांसी, बुखार, नाक बंद होना, गले में खराश, थकान, और सांस लेने में कठिनाई शामिल हैं। गंभीर मामलों में, निमोनिया या ब्रोंकियोलाइटिस जैसी स्थितियां विकसित हो सकती हैं, विशेषकर छोटे बच्चों और बुजुर्गों में। यदि किसी व्यक्ति में ये लक्षण प्रकट होते हैं, तो उसे तुरंत चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए।

HMPV के प्रसार को रोकने के लिए निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए:

  • मास्क पहनना और श्वसन स्वच्छता का पालन करना।
  • नियमित रूप से हाथ धोना और सैनिटाइज़र का उपयोग करना।
  • भीड़-भाड़ वाले स्थानों से बचना और सामाजिक दूरी का पालन करना।
  • संक्रमित व्यक्तियों से संपर्क से बचना।

चूंकि HMPV के लिए कोई विशेष टीका या एंटीवायरल दवा उपलब्ध नहीं है, इसलिए लक्षणों के आधार पर उपचार किया जाता है। हल्के लक्षणों के लिए घर पर आराम, तरल पदार्थों का सेवन, और बुखार या दर्द के लिए पेरासिटामोल जैसी दवाओं का उपयोग किया जा सकता है। गंभीर लक्षणों की स्थिति में अस्पताल में भर्ती की आवश्यकता हो सकती है।

भारत में HMPV के पहले मामले की पुष्टि के बाद, स्वास्थ्य अधिकारियों ने निगरानी और परीक्षण को बढ़ा दिया है। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि घबराने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन सतर्कता और सावधानी बरतना आवश्यक है। सामान्य जनसंख्या को सलाह दी जाती है कि वे स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करें और किसी भी संदिग्ध लक्षण के प्रकट होने पर तुरंत चिकित्सा सहायता लें।

HMPV के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसके प्रसार को रोकने के लिए, सरकार और स्वास्थ्य संगठनों द्वारा विभिन्न प्रचार-प्रसार कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छता बनाए रखने, मास्क पहनने, और सामाजिक दूरी का पालन करने के लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है। इसके अलावा, स्कूलों, कार्यालयों, और अन्य संस्थानों में भी स्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित किया जा रहा है।

HMPV के प्रसार को रोकने में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन करके, हम न केवल स्वयं को, बल्कि अपने परिवार और समुदाय को भी सुरक्षित रख सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति में श्वसन संबंधी लक्षण प्रकट होते हैं, तो उसे तुरंत चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए और दूसरों के संपर्क से बचना चाहिए।

अंत में, HMPV एक ज्ञात श्वसन वायरस है, जो विशेष रूप से कमजोर समूहों को प्रभावित करता है। भारत में इसके पहले मामले की पुष्टि के बाद, स्वास्थ्य अधिकारी सतर्क हैं और आवश्यक कदम उठा रहे हैं। सार्वजनिक जागरूकता और सावधानियों के माध्यम से, हम इस वायरस के प्रसार को नियंत्रित कर सकते हैं और अपने समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।

Sanjay Raut Allegedly Assaulted at Matoshree

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Mumbai: Shiv Sena (UBT) spokesperson and Rajya Sabha MP Sanjay Raut was reportedly locked in a room and physically assaulted during a high-level meeting at Matoshree, the residence of party chief Uddhav Thackeray. Senior journalist Bhai Tosrekar broke the sensational news, claiming the altercation lasted several hours and involved multiple senior leaders of the party. However, Sanjay Raut was not available for the comment on this incident as it is reported that currently he was in Shimla.

Meeting Focused on BMC Elections Turns Chaotic

The meeting, convened to strategize for the upcoming Brihanmumbai Municipal Corporation (BMC) elections, was attended by senior leaders of the Shiv Sena (UBT). However, discussions quickly escalated into a confrontation, with leaders airing grievances about the party’s poor performance in the 2019 Maharashtra Assembly elections, where the Shiv Sena won only 20 seats.

Sanjay Raut, a central figure in the party’s decision-making, was heavily criticized during the meeting. Several leaders accused Raut of excessive rhetoric and divisive tactics that they claimed contributed to the party’s electoral decline and alienated traditional supporters.

Raut Assaulted and Locked in a Room

According to insiders, the situation spiraled out of control when four to five leaders physically confronted Raut. They allegedly grabbed him by the collar and dragged him into a separate room at Matoshree, where he was badly assaulted. The sources further revealed that Raut was locked in the room for nearly three hours as tempers flared during the meeting.

Raut’s attempts to defend his actions, particularly his role in the 2019 split with the BJP and the formation of the Maha Vikas Aghadi (MVA), reportedly angered the dissenting leaders. His detractors accused him of prioritizing his public image over the party’s unity and blamed his aggressive stance for the Shiv Sena’s current challenges.

Uddhav Thackeray’s Intervention

Party chief Uddhav Thackeray, who was present at Matoshree during the incident, is said to have intervened to resolve the conflict. However, his efforts to calm the situation reportedly came only after the assault on Raut had taken place.

Thackeray has yet to issue an official statement regarding the incident, but the altercation has exposed deep divisions within the Shiv Sena (UBT) at a critical juncture.

Political Fallout and Reactions

The news of Raut’s alleged assault has sparked outrage among his supporters, who are demanding an explanation and accountability from the party leadership. Opposition parties have also capitalized on the incident, with the BJP and the rival Shiv Sena faction led by Maharashtra Chief Minister Eknath Shinde criticizing the Shiv Sena (UBT) for its internal discord.

Political analysts warn that this incident could further destabilize the Shiv Sena (UBT), which is already grappling with defections and challenges to its traditional voter base. The upcoming BMC elections, a key battleground for the party, are now expected to be even more challenging due to the apparent lack of unity within the ranks.

As the story continues to develop, all eyes are on Uddhav Thackeray and the Shiv Sena (UBT) leadership to see whether they will publicly address the incident and take steps to heal the party’s growing internal rifts.

मनमोहन सरल के जन्मदिन पर गूंजीं अभिलाष अवस्थी की गजलें

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मुंबई, अपनी कहानियों, कला समीक्षा और संपादन से हंदी साहित्यिक दुनिया एवं कला–जगत को समृद्ध करने वाले वयोवृद्ध पत्रकार मनमोहन सरल का 91वां जन्मदिन समारोह एक यादगार और भावपूर्ण कार्यक्रम के रूप में मनाया गया। यह आयोजन न केवल उनके जीवन और लेखन की यात्रा को संजोने का अवसर था, बल्कि धर्मयुग परिवार की पुरानी स्मृतियों और उनके योगदान को भी एक नई दिशा देने वाला बन गया।

धर्मयुग की खट्टी-मीठी यादें साझा की
सहज स्वभाव और संवेदनशील दृष्टिकोण के धनी सरल ने अपने लेखन में मानवीय भावनाओं और समाज के ज्वलंत मुद्दों को बड़ी गहराई से अभिव्यक्त किया। धर्मयुग जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका से जुड़े रहकर उन्होंने पत्रकारिता को नई दिशा और ऊंचाई दी। उनका जीवन और कार्य एक ऐसा प्रेरणास्त्रोत है, जो आने वाली पीढ़ियों को सृजनशीलता और समर्पण का पाठ पढ़ाता रहेगा। मनमोहन सरल के जन्म दिन के कार्यक्रम की शुरुआत में धर्मयुग की खट्टी-मीठी यादें साझा की गईं। धर्मयुग परिवार के सदस्यों द्वारा भेजे गए भावभीने संदेशों को सुनाया गया और सरल जी के सरल स्वभाव, उनके साहित्यिक योगदान और कला समीक्षा पर चर्चा हुई।

लगभग चार दशक तक रहे धर्मयुग में
उत्तरप्रदेश नजीबाबाद में 28 दिसम्बर 1934 को जन्में मनमोहन सरल ने साइंस से बैचलर के अलावा कला से मास्टर और कानून की भी डिग्री हासिल की। उनकी पहली कहानी 1949 में प्रकाशित हुई और पहला कहानी संग्रह ‘प्यास एक : रूप दो’ 1959 में छपकर आया और बहुत चर्चित भी हुआ। उन्होंने 1958 में महानंद मिशन कालेज, गाज़ियाबाद में प्राध्यापक से शिक्षण करियर का प्रारंभ किया। 1961 में भारत के सर्वश्रेष्ठ और बहुचर्चित साप्ताहिक ‘धर्मयुग’ के उत्कर्ष काल में सहायक संपादक पद संभाला और 1989 तक कार्य किया।

अभिलाष अवस्थी की ग़ज़लें बनीं कार्यक्रम की शान
कार्यक्रम में विशेष आकर्षण प्रतिष्ठित गीतकार और ग़ज़लकार अभिलाष अवस्थी ने अपनी ग़ज़लों से ऐसा समां बांधा कि बांद्रा के पत्रकार नगर में साहित्य की शायद ही कभी ऐसी गूंज सुनाई दी हो। अभिलाष की ग़ज़लें और उनकी प्रस्तुति दोनों ही अद्वितीय रहे। उन्होंने धर्मयुग परिवार को साहित्य और पत्रकारिता के एक नए स्तर पर जोड़ने में अपनी अहम भूमिका निभाई। कार्यक्रम में धर्मयुग परिवार के सदस्यों, ओमप्रकाश सिंह, सुदर्शना द्विवेदी, हरीश पाठक, विनीत शर्मा, रमा कपूर और आशीष पाल ने सरल का शॉल, पुष्पगुच्छ से सम्मान किया और उनके बेहतर स्वास्थ एवं दीर्घायु होने की कामना की।

धर्मयुग की स्मृतियों को मिला नया आयाम
कार्यक्रम में चर्चा हुई कि यदि इस प्रकार की प्रस्तुतियां पहले से होतीं तो धर्मयुग, डॉ धर्मवीर भारती और उनसे जुड़े साहित्य को एक नया आयाम पहले ही मिल गया होता। हरिवंश ने कहा, “हम सब भारती जी के ही बनाए हैं और जो कुछ कर रहे हैं, उसमें धर्मयुग की निरंतरता झलकती है।” मनमोहन सरल कार्यक्रम के दौरान तीन घंटे तक पूरी ऊर्जा के साथ उपस्थित रहे। उन्होंने केक काटा, लड्डू खाया और नाश्ते का आनंद लिया। उनकी प्रसन्नता कार्यक्रम में उपस्थित हर व्यक्ति के लिए एक अद्भुत अनुभव थी।