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हरिगोविंद विश्वकर्मा
आज पहली जनवरी थी। दिल्ली में भी कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। भरपूर कपड़े पहनने के बाद भी शैल को काफी ठंड लग रही थी, ठीक कश्मीर की तरह। छात्र जीवन पर बारह साल की मोटी परत चढ़ गई थी, लेकिन उसको लग रहा था कि कल की ही तो बात है। कॉलेज, कैंपस, पढ़ाई, प्रैक्टिकल, चुहलबाज़ी, मौज़–मस्ती बग़ैरह उसके मानस–पटल पर घूमने लगे।
शैल के हाथ...
मेरे घर आने वाले देश के तीनों बड़े अख़बारों के फ़्रंट पेज पर आज सुबह एक विज्ञापन छपा था, भारत के लोग मूर्ख हैं। यह विज्ञापन देखकर मैं बेसाख़्ता चौंक पड़ा। मेरा त्वरित रिएक्शन था, ग़लत विज्ञापन! एकदम बकवास! भारत के लोग मूर्ख कैसे हो सकते हैं। दुनिया को ज्ञान और संस्कार देने वाले लोग मूर्ख कैसे हो सकते हैं। विश्वगुरु देश के लोग मूर्ख, असंभव। मेरी यह धारणा...
भारत के सामाजिक इतिहास में डॉ. भीमराव अंबेडकर वह व्यक्तित्व हैं जिन्होंने दलित समाज को आत्मसम्मान, अधिकार और पहचान दिलाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने जाति व्यवस्था के क्रूर ढांचे को चुनौती दी, शोषित वर्ग को संगठित किया और समानता के सिद्धांत को संविधान का आधार बनाया। लेकिन उनकी दीर्घ संघर्ष-यात्रा में एक ऐसा क्षण आया, जो बाद में स्वयं अंबेडकर के लिए पीड़ा और...