महिलाओं पर मेहरबान कोरोना वायरस

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वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (Coronavirus) के अजीबोग़रीब व्यवहार को लेकर पूरी दुनिया के लोग हैरान हैं। दरअसल, कोरोना महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज़्यादा हमला कर रहा है। ‘क्लीनिकल इंफेक्शस डिजीजेस’ पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में कोरोना से जितने लोगों की मौत हुई है या फिर जितने लोग संक्रमित हुए हैं, उनमें महिलाओं की संख्या केवल 30 फ़ीसदी है, जबकि कोरोना 70 फ़ीसदी पुरुषों को अपना शिकार बना चुका है। भारत में भी कोरोना की चपेट में आने वालों में महिलाओं की संख्या केवल 30 फ़ीसदी है।

कोराना वायरस के संक्रमण के कारण भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में समाज का ताना-बाना बदल गया है। लोगों के आपसी संबंध नए सिरे से निर्धारित और परिभाषित किए जा रहे हैं। मास्क, सेनेटाइज़र, ग्लब्स, सोशल डिस्टेंसिंग और पीपीई किट्स मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। कोरोना काल में जिस तरह प्रकृति के साथ वन्य जीव गुलजार हुए हैं, उसी तरह इस वैश्विक महामारी के संक्रमण काल में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है, क्योंकि एक नहीं, बल्कि दो-दो ग्लोबल रिसर्च में पाया गया है कि कोरोना वायरस के संक्रमण का असर पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं में बहुत कम देखने को मिल रहा है।

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स्त्री-पुरुष की भूमिका में अदला-बदली
कोरोना के संक्रमण को लेकर आए रिसर्च के इन नतीजों के बाद मानव समाज में एक और महत्वपूर्ण परिवर्तन होने की संभावना जताई जा रही है। वह परिवर्तन परिवार में स्त्री-पुरुष की भूमिका को लेकर है। समाज में स्त्री और पुरुष की भूमिका की आपस में अदला-बदली हो रही है। अब तक आमतौर पर घर का ख़र्च पुरुष चलाता था, इसलिए काम के लिए वही घर से बाहर निकला करता था और महिला घर को संभाला करती थी, लेकिन कोरोना के संक्रमण काल में यह उल्टा हो रहा है। अब पुरुष को घर में बैठना पड़ सकता है। यानी उनके ज़िम्मे रसोई संभालने का काम आ सकता है, जबकि महिलाएं काम के लिए घर से बाहर निकल सकती हैं और परिवार चलाने के लिए पैसे कमाने का दायित्व संभाल सकती हैं।

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घर में महिलाओं की हुकूमत
अगर यह संभावना सही साबित हुई तो मानव समाज जो अब तक पुरुष प्रधान रहा है, वह महिला प्रधान हो सकता है। यानी भविष्य में परिवार पर घर के पुरुष की बजाय घर की महिला की हुकूमत चल सकती है। कहने का मतलब हेड ऑफ द फैमिली गृहस्वामी नहीं, बल्कि अब गृहस्वामिनी हो सकती है। यह दुनिया भर में पूरे सामाजिक ताने-बाने को ही बदल सकता है, क्योंकि तब घर के बाहर महिलाएं उसी तरह भीड़ के रूप में नज़र आएंगी, जिस तरह अब तक हर जगह पुरुषों की भीड़ नज़र आती रही है।

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कोरोना का वार पुरुषों पर अधिक
दरअसल, रिसर्च में पाया गया है कि कोरोना वायरस के निशाने पर अधिकतर पुरुष हैं। महिलाओं पर कोरोना का असर बहुत ही कम देखने को मिल रहा है। कोरोना के भय और लॉकडाउन की आपाधापी में लोगों ने कोरोना के इस व्यवहार पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन सच तो यही है, कि कोरोना वायरस परिवार की महिलाओं की बजाय पुरुषों पर प्रहार कर रहा है। अगर परिवार के बाहर से कोरोना संक्रमण आ भी रहा है तो महिलाओं की बजाय पुरुषों को अधिक पॉजिटिव कर रहा है। महिलाओं को अगर कोरोना का संक्रमण हो भी रहा है तो वह इतना माइल्ड है कि उसके सिम्टम्स ही नहीं दिख रहे हैं।

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लिंगभेद कर रहा है कोरोना
पहले लोग कह रहे थे कि कोरोना वायरस एक तरफ़ से जो मिल रहा है, उसी पर हमला बोल रहा है। यह चीनी वायरस किसी की जाति, धर्म, लिंग या संपन्नता-विपन्नता नहीं देख रहा है। लेकिन रिसर्च के बाद अब जो आंकड़े आ रहे हैं, उनके अनुसार कोरोना वायरस स्त्री और पुरुष में गंभीर पक्षपात कर रहा है। चीन के वुहान शहर से निकली यह संक्रामक बीमारी अपना शिकार बनाने में भी भारी भेदभाव कर रही है। कोविड-19 (Covid 19) की महामारी अधिकतर मर्दों को अपनी चपेट में ले रही है, जबकि औरतों की ओर नज़र भी उठाकर नहीं देख रही है। वायरस के इस तरह के व्यवहार पर जहां सामाजिक विज्ञानी हैरान हैं, तो मेडिकल फील्ड से जुड़े लोगों का कहना है कि हर तरह के वायरस महिलाओं की बजाय पुरुषों पर व्यापक असर छोड़ते हैं।

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नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ़ हेल्थ की रिपोर्ट
अमेरिकी की स्वास्थ्य संबंधी अनुसंधान करने और मानव जीवन को बचाने वाली रिसर्च एजेंसी ‘यूएस डिपार्टमेंट ऑफ़ हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेस’ (Department Of Health And Human Services) की ‘नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ़ हेल्थ’ National Institute Of Health) यानी एनआईएच (NIH) ने अपने हाल के रिसर्च के बाद कहा है कि कोविड 19 वैश्विक महामारी के प्रति स्त्री और पुरुष का रिस्पॉन्स एकदम अलग-अलग और आश्चर्यजनक है। एनआईएच दुनिया भर में मेडिकल क्षेत्र में रिसर्च के लिए जाना जाता है, क्योंकि इसने दुनिया को कई कई नामचीन मेडिकल साइंटिस्ट्स दिए हैं। इस अग्रणी संस्थान ने अपने रिसर्च में कहा है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर कोरोना वायरस का असर बहुत कम देखा जा रहा है। रिसर्च में दावा किया गया है कि महिलाओं का इम्यून सिस्टम पुरुषों के मुक़ाबले बहुत अधिक होता है, इसी वजह से उन पर कोरोना वायरस का संक्रमण बहुत कम हो रहा है। अमेरिका में भी महिलाओं की तुलना में पुरुष बहुत अधिक संख्या में संक्रमित हुए और मरने वालों में भी महिलाओं की तुलना में पुरुषों की संख्या कई गुनी अधिक है।

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एंजियोटेंसिन – कंवर्टिंग एंजाइम 2 जीन
एनआईएच के डायरेक्टर डॉ. फ्रांसिस कोलिन्स (Dr Francis Collins) के मार्गदर्शन में हुए रिसर्च में दावा किया गया है कि चीन से निकले कोरोना वायरस का मानव पर प्रभाव शरीर में मौजूद ‘एक्स क्रोमोसोम्स (X chromosomes)’ और सेक्स हारमोन्स (sex hormones)’ के अनुसार हो रहा है। कहा गया है कि दरअसल एक्स क्रोमोसोम्स में एंजियोटेंसिन – कंवर्टिंग एंज़ाइम (एसीई) 2 जीन पाया जाता है, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के लिए ज़िम्मेदार होता है। बीमारियों के कारण एक्स क्रोमोसोम्स की क्षमता कम हो जाती है और आदमी की इम्यूनिटी घट जाती है। रिसर्च में कहा गया है कि महिलाओं में मौजूद एक्स क्रोमोसोम्स अधिक मज़बूत होता है, क्योंकि महिला के शरीर में दो एक्स क्रोमोसोम्स पाए जाते हैं। एनआईएच दुनिया के कई देशों में कोरोना के असर पर अध्ययन कर रहा है। दक्षिण कोरिया ने कोरोना पर शुरुआत में नियंत्रण कर लिया था, लेकिन वहां भी मरने वालों में 1.2 फ़ीसदी पुरुष थे, जबकि महिलाओं का प्रतिशत केवल 0.5 था। इस एजेंसी के पास यूरोप के नतीजे आए हैं। एजेंसी के मुताबिक जवान महिला और पुरुष के संक्रमित होने की तादाद क्रमशः 42.3 और 57.7 फ़ीसदी है। जबकि बुजुर्ग महिला और पुरुष में संक्रमण की संख्या क्रमशः 10.7 फ़ीसदी और 89.3 फ़ीसदी है।

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ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी का रिसर्च
इसी तरह ब्रिटेन की मशहूर शिक्षण संस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड (University Of Oxford) में इन दिनों कोरोना वैक्सीन का मानव पर ट्रायल चल रहा है। अभी कुछ दिन पहले ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर फ़िलिप गोल्डर ने चीन और यूरोप में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों पर एक गहन अध्ययन किया था। प्रो. गोल्डर ने पाया कि यूरोप में कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले मरीज़ क़रीब 70 फ़ीसदी पुरुष थे, जबकि कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले मरीज़ों में महिलाओं की संख्या केवल 30 फ़ीसदी थी। कमोबेश यह प्रतिशत कोरोना वायरस से जान गंवाने वालों का पाया गया। सबसे बड़ी बात प्रो. गोल्डर ने अपने रिसर्च में कोरोना संक्रमितों और उससे जान गंवाने वालों का हूबहू यही डेटा चीन के वुहान में पाया, जहां से कोरोना वाइरस का उदय हुआ था।

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महिलाएं कोरोना वायरस से प्रोटेक्टेड
मुंबई में नायर अस्पताल (Nair Hospital) के सेवा निवृत्त डिप्टी डीन डॉ. शिवराज दास कहते हैं, “महिलाएं अपने विशेष हार्मोन के कारण दूसरे वायरस की तरह कोरोना वायरस से भी प्रोटेक्टेड हैं। यानी भारत में महिलाओं पर कोरोना वायरस का असर पुरुषों के मुक़ाबले बहुत कम हो रहा है। भारत में कुपोषित महिलाओं को छोड़ दें तो सामान्य महिला की हेल्थ हिस्ट्री पुरुषों के मुक़ाबले बेहतर होती है। इसीलिए कोरोना वायरस से देश की महिलाएं बेहतर तरीक़े से लड़ सकती हैं और वे इस वैश्विक महामारी को हरा भी सकती हैं। अगर भारत को सही मायने में कोराना वायरस को हराना है तो देश के सारे पुरुषों को घर में बंद कर देना चाहिए और महिलाओं को घर से बाहर निकलने के लिए प्रमोट करना चाहिए।” उन्होंने यहां तक कहा कि घर का खाने का सामान, दूध और सब्ज़ी लेने के लिए पुरुषों की बजाय महिलाओं को बाहर निकलना चाहिए। इससे आपके घर में कोरोना वायरस के प्रवेश करने की संभावना शून्य हो जाएगी।

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महिलाओं में दो ‘एक्स क्रोमोसोम’
डॉ. शिवराज दास कहते हैं, “महिलाओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता पुरुषों की तुलना में बेहतर होती है। दरअसल, किसी भी बीमारी के वायरस के ख़िलाफ़ सक्रिय होने के लिए जिस प्रोटीन की आवश्यकता होती है वो ‘एक्स क्रोमोसोम’ में मौजूद होता है। एक्स क्रोमोसोम प्रोटीन की आवश्यकता ख़ासतौर से कोरोना वायरस से लड़ने के लिए होती है। इसी प्रोटीन को इम्यूनिटी कहते हैं। सबसे अहम यह है कि दुनिया भर में महिलाओं के शरीर में दो ‘एक्स क्रोमोसोम’ होते हैं, जबकि पुरुषों में केवल एक ‘एक्स क्रोमोसोम’ होता है। इसीलिए महिलाओं में कोरोना वायरस ही नहीं, बल्कि दूसरे किसी भी वायरस का प्रकोप झेलने और उसे हरा देने की क्षमता अधिक होती है। बशर्ते महिला कुपोषण की शिकार न हो।”

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कोरोना के शिकार 70 फ़ीसदी पुरुष
डॉ. शिवराज दास कहते हैं, “पूरे यूरोप और चीन में कोरोना वायरस से मरने वाले क़रीब 70 फ़ीसदी सिर्फ़ पुरुष हैं। अमेरिका में तो यह फीसदी 70 से भी अधिक रहा है। कोरोना वायरस का का प्रकोप झेलने वाले अन्य किसी देश में भी कमोबेश यही स्थिति है। भारत में अब तक 73 लाख लोग कोरोना से संक्रमित हुए और इनमें 1 लाख 11 हज़ार से ज़्यादा लोगों की जान चली गई। देश में कोरोना से मरने वालों में 70 फ़ीसदी पुरुष हैं, जबकि महिलाओं का फ़ीसदी केवल 30 है। यहां कोरोना से जंग हारने वालों में 53 फ़ीसदी 60 साल से ऊपर के लोग है। केवल 1 प्रतिशत मौतें 17 से 25 आयु वर्ग के लोगों की हुई। 10 प्रतिशत मौत 26 से 44 आयु वर्ग के लोगों की दर्ज की गई। 35 प्रतिशत मौत में लोग 45 से 60 आयु वर्ग के थे। आंकड़े कह रहे हैंं कि भारत, खासकर मुंबई में भी कोरोना के मरीज़ों और जान गंवाने वालों की संख्या ज़्यादातर पुरुष हैं। आप देखते होंगे घर के पुरुष कोरोना से संक्रमित हो जाते हैं, लेकिन उस पुरुष के साथ रहने वाली उसकी पत्नी, बहन, बेटी या मां कोरोना से संक्रमित नहीं होती है। इसका मतलब यह है कि महिला के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता पुरुष के मुकाबले अधिक है।”

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धूम्रपान से घटती है इम्यूनिटी
डॉ. शिवराज दास आगे कहते हैं कि कोरोना वायरस के पुरुषों को ज़्यादा शिकार बनाने की एक वजह उनका गुटखा, तंबाकू या सिगरेट का सेवन करना है। कहने का मतलब पुरुषों का ज़िंदगी जीने का सलीक़ा महिलाओं से एकदम अलग होता है। लिहाज़ा, पुरुषों में किसी भी बीमारी के पनपने की संभावना ज़्यादा रहती है। सिगरेट पीने वालों के लिए तो किसी भी तरह के संक्रमण का शिकार होना बहुत ही आसान होता है। महिलाएं पुरुषों की तुलना स्मोक या ड्रिंक नहीं के बराबर या बहुत कम करती हैं। दुनिया भर में 50 फ़ीसदी से अधिक पुरुष सिगरेट पीते हैं, जबकि सिगरेट पीने वाली महिलाओं का प्रतिशत केवल पांच है। यही वजह है कि कोरोना महिलाओं की बजाय पुरुषों पर वार ज़्यादा कर रहा है।

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महिलाएं आसानी से झेल जाती हैं संक्रमण
नायर अस्पताल के पूर्व डिप्टी डीन डॉ दास कहते हैं कि यही वजह है कि भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी महिलाएं कोरोना वायरस के संक्रमण को आसानी से झेल जाती हैं। अव्वल तो उनमें संक्रमण होता नहीं, और होने पर उनमें कोरोना का अमूमन लक्षण दिखता ही नहीं और वे घर पर ही जल्दी से ठीक हो जाती है। यानी उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत नहीं आती है। इसके विपरीत पुरुषों में बड़ी तादाद में कोरोना वायरस का संक्रमण हो रहा है और उसी अनुपात में पुरुषों की जान भी जा रही है।

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अमिताभ का परिवार बढ़िया उदाहरण
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का परिवार इसका बहुत बढ़िया उदाहरण है। अमिताभ के परिवार में आठ सदस्य हैं। दो पुरुष – अमिताभ और उनका बेटा अभिषेक बच्चन और छह महिलाएं – उनकी पत्नी जया बच्चन, उनकी पुत्रवधू ऐशवर्या रॉय, उनकी पोती आराध्या, उनकी बेटी श्वेता नंदा, उनकी दो नातिन अगस्त्या नंदा और नव्या नंदा। परिवार में बाहर से किसी भी माध्यम से कोरोना वायरस आ गया। परिवार के दोनों पुरुष संक्रमित हो गए और दोनों को सिम्टम्स ऐसे थे कि उन्हें अस्पताल भर्ती कराना पड़ा। दूसरी ओर परिवार की छह महिलाओं में से केवल दो कोरोना से संक्रमित हुईं। शेष चार पर कोरोना वायरस का कोई असर ही नहीं हुआ और दो पर भी कोरोना का असर इतना कम था कि लक्षण ही नहीं दिखा।

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पुरुष अस्पताल में महिलाएं घर
अमिताभ बच्चन को हल्का फीवर होने पर एहतियातन परिवार के सभी सातों सदस्यों का रैपिड एंटीजन टेस्ट कराया गया था। रैपिड एंटीजन टेस्ट का नताजा कुछ ही घंटे में आ जाता है। रैपिड एंटीजन टेस्ट का नतीजा आने पर पता चला कि अमिताभ और अभिषेक कोरोना पॉजिटिव थे, जबकि जया, ऐश्वर्या, आराध्या और श्वेता और उसकी बेटियों की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव थी। इसके बाद एहतियातन दूसरा फिर से टेस्ट हुआ, जिसमें ऐश्वर्या और आराध्या पॉज़िटिव निकलीं, जबकि जया और श्वेता और उसकी दोनों बेटियों की रिपोर्ट निगेटिव ही रही। यही हाल मुंबई ही नहीं, संपूर्ण देश में है। पुरुष संक्रमित हो गए, लेकिन महिलाएं महफ़ूज़ हैं। हालांकि, अंततः बच्चन परिवार ने कोरोना वायरस को हरा दिया।

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केवल महिलाएं बाहर निकलें
कोरोना संक्रमण काल में अधिकतर लोग घरों में  क़ैद हैं। सारा कामकाज ठप है। किसी को कुछ नहीं सूझ रहा है कि क्या किया जाए। ऐसे में केवल और केवल एक ही विकल्प बचता है, वह है, काम करने के लिए घर से बाहर महिलाएं निकलें और पुरुष घर के अंदर रहें और रसोई संभालें। डॉ. शिवराज दास कहते हैं कि सब्ज़ी लेना हो या दूसरे सामान ख़रीदना हो या फिर काम पर जाना हो, हर जगह घर से बाहर महिलाओं को निकलना चाहिए। डॉ. शिवराज दास केंद्र सरकार और राज्य सरकार को सलाह देते हुए कहते हैं कि एक साल के अंदर देश के सारे पुरुषों को घर के अंदर बंद कर उनकी जगह काम के लिए महिलाओं को घर से बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित करें तो कोरोना अपने आप ख़त्म हो जाएगा। इससे देश कोरोना वायरस पर आसानी से विजय श्रीप्राप्त कर लेगा। इसके अलावा कोरोना वायरस के कारण बोनस में महिलाओं का सशक्तिकरण भी हो जाएगा।

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महिलाओं का वर्चस्व कायम होगा?
डॉ. शिवराज दास कहते हैं, “किसी ने सही कहा है। प्रकृति यानी क़ुदरत अपने आपको ख़ुद ही बैलेंस कर लेती है। किसी का भी अत्याचार प्रकृति बहुत दिन तक बर्दाश्त नहीं करती है और उसे उचित समय पर सज़ा ज़रूर देती है। फिलहाल कोरोना वायरस के ज़रिए प्रकृति दुनिया भर के पुरुषों को दंडित कर रही है। कहा जा सकता है कि प्रकृति मानव सभ्यता के आरंभ से ही पुरुषों द्वारा महिलाओं पर किए गए अत्याचार का बदला ले रही है।” ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या क़ुदरत ने कोरोना वायरस को दुनिया के सामाजिक ताने-बाने में अभूतपूर्व परिवर्तन करने के लिए भेजा है? कोरोना वायरस ने जिस तरह से प्रकृति, नही और वन्यृजीवों को आबाद किया है, क्या वाक़ई यह वायरस दुनिया भर में हर समाज में पुरुषों के वर्चस्व को ख़त्म करके महिलाओं का वर्चस्व कायम कर देगा?

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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