हरिगोविंद विश्वकर्मा
समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने अपनी अपनी दूसरी पत्नी साधना गुप्ता (Sadhna Gupta) के निधन के तीन महीने बाद ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया। साधना गुप्ता प्रतीक यादव की सगी और अखिलेश यादव की सौतेली मां थीं। साधना गुप्ता हमेशा-हमेशा के लिए साथ छोड़कर पंचतत्व में विलीन हो रही थीं और मुलायम गाड़ी में बैठे हुए हाथ जोड़े उन्हें आखिरी बार निहारे जा रहे थे। करीबी लोग बताते हैं कि साधना गुप्ता से मुलायम का खास लगाव था और उनके जाने के बाद से वह टूट गए थे। यह विचित्र संयोग है कि दोनों की प्रेम कहानी 1980 के दशक में एक अस्पताल से ही हुई थी और एक ही अस्पताल में दोनों ने अंतिम सांस ली। तो आइए जानते हैं दोनों की अनोखी प्रेम कहानी के बारे में।
1967 में बतौर विधान सभा सदस्य राजनीतिक सफ़र शुरू करने वाले मुलायम सिंह यादव अस्सी के दशक तक उत्तर प्रदेश के बहुत प्रभावशाली और शक्तिशाली नेता बन गए थे। चौधरी चरण सिंह के बाद वह उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग और यादवों के सबसे ज़्यादा कद्दावर नेता थे। वैसे राजनीतिक सफ़र में नेताओं के जीवन में महिलाओं का आना आम बात रही है। मुलायम सिंह भी अपवाद नहीं थे। जब वह उत्तर प्रदेश के शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे तो उनके जीवन में सहसा साधना गुप्ता की एंट्री हुई। मुलायम सिंह और साधना गुप्ता की प्रेम कहानी कब शुरू हुई, इस बारे में अधिकृत या लिखित ब्यौरा किसी के पास नहीं है। अखिलेश यादव की जीवनी ‘विंड्स ऑफ़ चेंज’ लिखने वाली हिंदुस्तान टाइम्स के लखनऊ संस्करण की संपादक रहीं पत्रकार सुनीता एरोन ने मुलायम सिंह यादव और साधना गुप्ता की लव-स्टोरी के बारे में विस्तार से लिखा है।
औरैया जिले के बिधूना गांव के रहने वाले कमलापति गुप्ता और हेम लता गुप्ता की 20 साल की बेटी साधना गुप्ता 1982 में लखनऊ से नर्सिंग कोर्स की ट्रेनिंग कर रही थी। आकर्षक एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व की धनी साधना की रुचि पॉलिटिक्स में भी थी। वह राजनीति में करियर बनाना चाहती थी। ‘विंड्स ऑफ़ चेंज’ में बताया गया है कि मुलायम की मां मूर्ती देवी अक्सर बीमार रहती थीं। उन्हे अस्पताल में भर्ती कराया गया तो अस्पताल में नर्स होने के कारण साधना गुप्ता ही मूर्ति देवी की देखभाल करती थीं। वहीं अस्पताल में मुलायम की साधना गुप्ता से पहली मुलाक़ात हुई। मुलायम की नज़र उन पर गई तो हटी ही नहीं। 20 साल की तरुणी साधना गुप्ता इतनी ख़ूबसूरत थीं कि जो भी देखता था, बस देखता ही रह जाता था। मुलायम ने उनसे राजनीति में आने को कहा तो साधना तपाक से हां कह दिया।
इसके बाद साधना गुप्ता ने विधिवत लोकदल की सदस्यता ले ली और यदाकदा राजनीतिक कार्यक्रमों में जाने लगी। एक दिन वह लोकदल के कार्यक्रम में पहुंची तो उसी साल लोकदल के अध्यक्ष बने मुलायम सिंह यादव से उनका दूसरी मुलाक़ात हुई। कुछ मुलाकात के बाद मुलायम उम्र में अपने से 23 साल छोटी साधना को दिल दे बैठे। यहीं से मुलायम-साधना की अनोखी प्रेम कहानी शुरू हुई, जो साढ़े तीन दशक से ज़्यादा समय तक चली।
शुरुआत में साधना और मुलायम के बीच क्या चल रहा है, इसकी भनक किसी को नहीं लग सकी। लंबे समय तक साधना गुप्ता के बारे में कहीं भी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी। हां, मुलायम सिंह यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति वाले मामले की जांच के दौरान सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट में दर्ज हुआ कि 1962 में जन्मी औरैया जिले की साधना गुप्ता और फर्रुखाबाद के चंद्रप्रकाश गुप्ता की शादी 4 जुलाई 1986 को हुई थी। अगले साल 7 जुलाई 1987 को प्रतीक गुप्ता (अब प्रतीक यादव) का जन्म हुआ। चंद्रप्रकाश को अपनी पत्नी और मुलायम सिंह के बीच अफेयर की भनक लग गई। इस पर दोनों में बहुत गंभीर विवाद हुआ, लेकिन साधना गुप्ता ने साफ-साफ कह दिया कि वह नेताजी का साथ नहीं छोड़ सकतीं। लिहाज़ा 1990 में चंद्रप्रकाश गुप्ता और साधना गुप्ता का औपचारिक रूप से तलाक़ हो गया।
‘विंड्स ऑफ़ चेंज’ के मुताबिक, मुलायम सिंह यादव राजनीति में इतने व्यस्त थे कि परिवार को समय ही नहीं दे पाते थे। इसका असर उनके बेटे टीपू उर्फ अखिलेश यादव पर अधिक हुआ। अगर टीपू की बात करें तो उनका जन्म इटावा जिले के सैफई गांव में हुआ था। सैफई की धूल-धूसरित और डकैतों की आवाजाही वाली गलियों में खेलते चार साल के टीपू को पता था कि स्कूल में उसका यह नाम नहीं चलने वाला है। लिहाज़ा, उसे अपना नाम बदलना होगा। बस क्या था उस बालक ने बिना किसी को बताए ही अपना नाम टीपू से अखिलेश रख लिया। इटावा में सेंट मैरी स्कूल में अपना नाम अखिलेश यादव पुत्र मुलायम सिंह यादव लिखवा लिया। जब मुलायम की लव स्टोरी के बारे में कानाफूसी होने लगी तो अखिलेश को दूर रखने के लिए मुलायम ने उन्हें धौलपुर स्थित राजस्थान मिलिट्री स्कूल में भेज दिया। स्कूलिंग के बाद अखिलेश ने मैसूर विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग में स्नातक किया और उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए सिडनी यूनिवर्सिटी चले गए। वहीं से उन्होंने एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग में परास्नातक की उपाधि हासिल की। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वह वापस भारत आ गए।
बताया जाता हैं कि साधना गुप्ता के साथ प्रेम संबंध की भनक मुलायम सिंह यादव की पहली पत्नी और अखिलेश की मां मालती देवी यादव को लग गई। वह बहुत ही सीधी-साधी और दान-धर्म में बहुत अधिक यक़ीन करने वाली भद्र महिला थीं। यहां यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मुलायम सिंह यादव का पूरा परिवार अगर कई दशक तक एकजुट बना रहा है तो इसका सारा श्रेय अखिलेश की मां मालती देवी को ही जाता है। मुलायम सिंह राजनीति में सक्रिय थे। उस दौरान वह एक-दूसरे को शायद ही कभी-कभार देख पाते थे, लेकिन मालती देवी अपने परिवार और 1973 में जन्मे बेटे अखिलेश यादव का पूरा ख़्याल रख रही थीं।
दिसंबर 1989 में कांग्रेस की पराजय और जनता दल की जीत के बाद जब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तब पहले कानाफूसी शुरू हुई, फिर धीरे-धीरे बात फैलने लगी कि मुलायम सिंह की दो पत्नियां हैं। मालती देवी और साधना गुप्ता। लेकिन उस समय मुलायम इतने ताक़तवर नेता थे कि किसी की मुंह खोलने की हिम्मत ही नहीं पड़ती थी। अलबत्ता सीबीआई को प्रतीक यादव के एक रिकॉर्ड से पता चला कि उन्होंने 1994 में अपने घर का पता मुलायम सिंह के आधिकारिक सरकारी निवास को लिखवाया था। बहरहाल, नब्बे के दशक के अंतिम दौर में अखिलेश को भी अपने पिता की प्रेम कहानी के बारे में पता चल गया। उन्हें यह भी पता चला की साधना गुप्ता अपने बेटे प्रतीक गुप्ता के साथ उनके परिवार में घुसपैठ करना चाहती हैं। एक बार तो उन्हें बिल्कुल यकीन नहीं हुआ, लेकिन बात आख़िरकार सच निकली।
अखिलेश के घोर विरोध के चलते मुलायम सिंह बचाव की मुद्रा में आ गए। इसीलिए उन्हें पढ़ाई करने के बहाने सात संदर पार ऑस्ट्रेलिया भेज दिया। बहरहाल, उस समय तक मुलायम सिंह अपनी प्रेमिका साधना गुप्ता की कमोबेश हर बात मानने लगे थे। इसलिए मुलायम सरकार में साधना गुप्ता सत्ता का बेहद शक्तिशाली केंद्र बनकर उभर थीं। कहा जाता है कि मुलायम सिंह के शासन (1993-2007) में साधना गुप्ता ने अकूत संपत्ति बनाई। आय से अधिक संपत्ति का उनका केस आयकर विभाग के पास अब भी लंबित है। बहरहाल, 2003 में अखिलेश की मां मालती देवी का निधन हो गया। अब मुलायम सिंह पर किसी तरह की बंदिश नहीं थी, लिहाज़ा, उनका सारा ध्यान साधना गुप्ता पर था। हालांकि वह लोक-लाज वश इस रिश्ते को स्वीकार करने की स्थिति में तब भी नहीं थे।
मुलायम सिंह और साधना गुप्ता के संबंध की जानकारी मुलायम सिंह परिवार के अलावा उनके सबसे क़रीबी मित्र स्वर्गीय अमर सिंह को भी थी। मालती देवी के निधन के बाद साधना गुप्ता चाहने लगी थी कि नेताजी उन्हें अपनी आधिकारिक पत्नी का दर्जा दे दें, लेकिन पारिवारिक दबाव, ख़ासकर अखिलेश यादव के अड़ियल रवैये के कारण मुलायम सिंह इस रिश्ते को कोई नाम नहीं दे पा रहे थे। अगर साधना गुप्ता की मुलायम परिवार में प्रवेश के मुद्दे को छोड़ दें तो मुलायम सिंह के जीवन में 2005 तक सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। अखिलेश यादव उनके इकलौते उत्तराधिकारी के रूप में अपने को तैयार कर रहे थे।
2005 में पूरे प्रकरण में विश्वनाथ चतुर्वेदी नाम के सामाजिक कार्यकर्ता की एंट्री होती है। विश्वनाथ चतुर्वेदी ने तो सारा गुड़ गोबर कर दिया। उन्होंने 2 जुलाई 2005 को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर दिया और हलफ़नामे में पूछा कि 1979 में 79 हजार रुपए की संपत्ति वाले समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव राजनीति में आकर करोड़ों रुपए की संपत्ति के मालिक कैसे बन गए? बस क्या था, सुप्रीम कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति के इस मामले की सीबीआई को जांच करने का निर्देश जारी कर दिया। सीबीआई ने मुलायम सिंह यादव के खिलाफ अधिक संपत्ति के इस मामले जांच शुरू कर दी। उनके उनसे जुड़े सभी लोगों के बारे में जानकारी जुटाने लगी। इसी दौरान सीबीआई ने साधना गुप्ता के बारे में भी जानकारी जुटाई, जो कोर्ट के रिकॉर्ड में है।
साधना गुप्ता इस बीच 2006 में नेताजी के सबसे अंतरंग रहे ठाकुर अमर सिंह से नियमित मिलने लगीं और उनसे आग्रह करने लगीं कि वह नेताजी को शादी करने के लिए राजी करें। लिहाज़ा, अमर सिंह उसी समय मुलायम सिंह को साधना गुप्ता और प्रतीक गुप्ता को अपनाने के अभियान में जुट गए। 2007 में अमर सिंह ने एक समारोह में सार्वजनिक मंच से मुलायम सिंह से साधना गुप्ता को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने का विशेष आग्रह किया और इस बार नेताजी अपने दोस्त का आग्रह टाल नहीं पाए और साधना से शादी करने और दूसरी पत्नी का दर्जा देने के लिए तैयार हो गए।
अमर सिंह के उस बयान से मुलायम के परिवार में फिर खलबली मच गई। मुलायम के परिवार के लोग साधना गुप्ता को अपनाने के लिए कतई तैयार नहीं थे। इसके बावजूद परिवार और अखिलेश के विरोध को दरकिनार करते हुए मुलायम ने अपने ख़िलाफ़ चल रहे आय से अधिक संपत्ति से संबंधित मुक़दमे में सुप्रीम कोर्ट में एक शपथ-पत्र दिया, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि साधना गुप्ता उनकी पत्नी और प्रतीक गुप्ता उनके बेटे हैं। मुलायम के साधना और प्रतीक को पत्नी और बेटे के रूप में स्वीकार करते ही साधना गुप्ता और प्रतीक गुप्ता क्रमशः साधना यादव और प्रतीक यादव बन गए। रातोंरात अखिलेश यादव इकलौते भाई से दो भाई हो गए। इससे अखिलेश बहुत अधिक हर्ट हुए। उन्होंने साधना के अपने परिवार में एंट्री के लिए केवल और केवल अमर सिंह को ही ज़िम्मेदार माना। तब से वह अमर सिंह से बहुत अधिक चिढ़ने लगे थे। उनके मन में बात घर कर गई कि साधना गुप्ता और अमर सिंह के चलते ही उनके पिताजी ने उनकी वफादार मां के साथ न्याय नहीं किया।
बहरहाल, मार्च सन् 2012 में मुख्यमंत्री बनने पर अखिलेश यादव शुरू में साधना गुप्ता को कतई घास नहीं डालते थे। इससे मुलायम सिंह नाराज़ हो गए। लिहाज़ा, अखिलेश को पिता के आगे झुकना पड़ा। इस तरह बाहरवाली से घरवाली बनी साधना गुप्ता ने मुलायम सिंह के ज़रिए प्रदेश के मुख्यमंत्री पर शिकंजा कस दिया और अपने चहेते अफ़सरों को मनपसंद पोस्टिंग दिलाने लगीं। ‘द संडे गार्डियन’ ने सितंबर 2012 में अपनी रिपोर्ट में साधना गुप्ता की सिफारिश पर मलाईदार पोस्टिंग पाने वाले अधिकारियों की पूरी फेहरिस्त छाप दी, तब साधना गुप्ता पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आईं।
यह साफ़ हो गया कि मुलायम सिंह की विरासत को लेकर चले संघर्ष में अखिलेश की लड़ाई सीधे लीड्स यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाले अपने सौतेले भाई प्रतीक यादव से थी। लखनऊ में रियल इस्टेट के बेताज बादशाह बन चुके प्रतीक यादव की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी और मुलायम सिंह खुद नहीं चाहते कि साधना राजनीति में आएं तो साधना गुप्ता ने अपनी बहू अपर्णा बिष्ट यादव को आगे कर दिया। अपर्णा ट्विटर पर अपर्णा बिष्ट यादव के नाम से अति सक्रिय रहती थीं। उनके ट्वीट देखकर साफ़ लगता था कि वह राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाना चाहती थी। चूंकि साधना नेताजी के साथ रहती थीं और उनकी बात मुलायम सिंह टाल ही नहीं सकते थे। यानी कहा जा सकता था कि साधना गुप्ता की बात टालना फ़िलहाल मुलायम सिंह के वश में नहीं था। इसलिए अपर्णा के कदम को उनकी मौन स्वीकृति प्राप्त थी।
2016 में जब अखिलेश का अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव से क्लैश हुआ तो लखनऊ के गलियारे में साधना गुप्ता को कैकेयी कहा लगा था। आमतौर पर परदे के पीछे रहने वाली साधना गुप्ता तब अखिलेश से बहुत ज़्यादा नाराज़ हुईं, जब उन्होंने उनके आदमी गायत्री प्रजापति को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। प्रतीक यादव के बहुत ख़ासम-ख़ास गायत्री प्रजापति को मुलायम सिंह के कहने पर खनन विभाग जैसा मलाईदार महकमा दिया गया था। कहा जाता है कि यह विभाग हुक्मरानों को हर महीने दो सौ करोड़ की अवैध उगाही करवाता था। जब इसकी भनक अखिलेश को लगी तो वह प्रतीक यादव के रसूख और कमाई के स्रोतों पर हथौड़ा चलाने लगे। यह बात साधना यादव को बहुत बुरी लगी। नाराज़ साधना को मनाने के लिए ही मुलायम सिंह ने पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी अखिलेश से छीनकर साधना खेमे के शिवपाल यादव को दे दी। उसी के चलते बाप-बेटे यानी अखिलेश और मुलायम आमने-सामने आ गए थे।
इटावा जिले के सैफई में 22 नवंबर, 1939 को स्व. सुघर सिंह यादव और स्व. मूर्ति देवी के यहां जन्में और पांच भाइयों में तीसरे नंबर के मुलायम सिंह यादव भले तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन यह सच है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश की जनता के लिए कुछ नहीं किया। कई राजनीतिक टीकाकार मुलायम को समाजवादी नहीं बल्कि अवसरवादी करार देते हैं। उन्होंने कुछ किया तो केवल और केवल अपने परिवार के लिए किया। परिवार को उन्होंने राजनीतिक और आर्थिक रूप से इतना ताक़तवर बना दिया कि आने वाले समय में उनके कुटुंब के दर्जनों लोग सांसद या विधायक होंगे। पिछले दशक के दौरान तो मुलायम सिंह समेत उनके परिवार में सांसदों और विधायको की फौज थी। भारतीय राजनीति में वंशवाद का तोहमत कांग्रेस पर लगता है, लेकिन यूपी में मुलायम परिवार ने कांग्रेस को मीलों पीछे छोड़ चुका था। बहरहाल, नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीति में उबार के बाद मुलायम का क्रेज़ खत्म हो गया।
वैस मुलायम सिंह के बारे में एक बात कही जाती है कि उन्होंने मुसलमानों को ख़ुश करने और अपने परिवार के ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को राजनीति में प्रमोट करने के अलावा कुछ नहीं किया। समाजवादी पार्टी के संस्थापक वह भले हों, लेकिन पार्टी के वर्तमान और भविष्य अखिलेश यादव ही हैं। 2012 के विधान सभा चुनाव में पार्टी को जो जनादेश मिला था, वह मायावती की स्टैट्यू पॉलिटिक्स की नाराज़गी और अखिलेश की ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं में जान फूंकने से मिला था। लेकिन पारिवारिक कलह के चलते अखिलेश उत्तर प्रदेश की जनता का भरोसा फिर नहीं जीत पाए और सत्ता भाजपा के हाथ में चली गई।
कह सकते हैं कि मुलायम सिंह यादव के निधन से एक युग की समाप्ति हो गई। अगर एक प्रेमी और पति के रूप में मुलायम सिंह का आकलन किया जाए तो यही कहा जाएगा कि वह अपनी प्रेमिका-पत्नी साधना गुप्ता के प्रति अंत तक वफादार रहे। इसीलिए जब जब भी राजनीति प्रेम कहानियों का ज़िक्र होगा, तब तक मुलायम सिंह का नाम सबसे पहले होंठों पर आएगा। मुलायम सिंह यादव का श्रद्धांजलि।
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