यह चमचायुग है। कलियुग तो कब का ख़त्म हो चुका। उसके ख़त्म होते ही चमचायुग शुरू हुआ। कलियुग के बाद सतयुग को आना था। लेकिन कलयुग ने साफ मना कर दिया। नारायण ने सतयुग को मनाने की हर संभव कोशिश की पर सतयुग नहीं माने।
सतयुग ने कहा, -महाराज, मैं धरती पर नहीं जा सकता। आप समझ सकते हैं। वहां आजकल कैसा माहौल है। बोलना कम समझना ज़्यादा प्रभु जी!
मजबूरन विष्णु भगवान ने चमचा महाराज को मृत्युलोक में भेजने का निर्णय लिया।
नारायण ने चमचा महाराज से कहा, -वत्स, सतयुग तो विधायकों-सांसदों की तरह बगावत कर रहा है। कलयुग ख़त्म हो रहा है। धरती बिना युग के रह जाएगी। अब तुम ही धरती पर जाओ। वहां तुम्हारी बहुत ज़रूरत है। तुम्हारे कार्यकाल को चमचायुग के रूप में जाना जाएगा।
-आपका आदेश सिरोधार्य प्रभु जी। आपका आग्रह कैसे टाल सकता हूं। चमचा महाराज ने दंडवत प्रणाम किया। धरती पर आने के लिए तैयार हो गए। चमचा महाराज की बड़ी इच्छा थी कि धरती पर जाएं। ख़ासकर भारत की पवित्र धरती पर। अब मन की मुराद पूरी हो रही थी तो मना करने का सवाल ही नहीं पैदा होता था।
चमचा महाराज के आगमन के साथ ही धरती चमचायुग शुरू हुआ। उन्होंने यहां जी-तोड़ मेहनत की। धरती पर चमचाक्रांति कर दी। चमचाक्रांति का नतीजा यह हुआ कि धीर-धीरे हर जगह चमचे मिलने लगे। कोई जगह या महकमा अथवा कोई दफ़्तर चमचारहित नहीं रह गया। हर जगह चमचे मौजूद। मजे से चमचागिरी कर रहे हैं।
कुछ लोग हैरान हुए। चमचा महाराज के पास जाकर पूछा, -चमचा महाराज जी, आपने चमचाक्रांति कैसे कर दी? आख़िर चमचागिरी है क्या बला?
तो चमचा महाराज आराम से चमचा बनने की टिप्स दी। कहने लगे…
चमचा बनना इज़ वेरी सिंपल। पहले केवल तारीफ़ करना सीखिए। तारीफ़ से चापलूसी। बॉस या मालिक को हर वक़्त यस सर-यस सर कहें। मौक़ा मिलने पर उसके जूते तक पोछने को तत्पर रहें। यह महसूस करें कि आपके रीढ़ की हड्डी नहीं है। इसके अलावा सहयोगियों की नियमित शिकायत करें। सहयोगियों की इतनी शिकायत करें कि बॉस पगला जाए। ये सब व्यवहार जब आदत बनेंगी तो आप अच्छा चमचा बन जाएंगे।
चमचा महाराज की कुछ और टिप्स
वर्क प्लेस पर ऐसा माहौल बनाएं कि काम बिलकुल न हों। ध्यान रखें, काम होगा तो चमचागिरी नहीं होगी। काम और चमचागिरी परस्पर विरोधी हैं। काम करने वाले चमचागिरी में बाधा होते हैं। इसलिए काम करने वाले को दफ़्तर में टिकने ही मत दें। शिकायत करके उसे निकलवा दें। जो लोग किसी तरह टिक भी जाएं तो ध्यान रखें वे बिल्कुल हाशिए पर रहें।
पहले अपने देश में बेचारे चमचों को हेय दृष्टि से देखा जाता था। लोग उपेक्षा के साथ कहते थे, -हुंह चमचा है। कुछ लोग तो गाली देते थे, -साला चमचा है। बॉस का चमचा है। लेकिन चमचा महाराज के प्रयास से अब यह धारण बदल चुकी है। चमचों को सम्मान मिलने लगा है। चमचे सीना तान कर चलते हैं। गर्व के साथ कहते है, -हां-हां मैं चमचा हूं। मुझे चमचा होने का गर्व हैं। किसी को हिंदू होने का गर्व है। किसी को भारतीय होने का गर्व है तो चमचों को चमचा होने पर गर्व है। चमचों को पूरे देश में प्रमोशन और एप्रिशिएशन मिल रहा है। चमचे ऊंचे पदों पर विराजमान हैं। इससे चमचों की संख्या बढ़ रही है। अब तो हर कोई चाहता है, वह चमचा बने। चमचा बनकर ऐश करे।
सच कहें तो चमचा महाराज की चमचाक्रांति के बावजूद देश में पेशेवर चमचों को अभाव है। चमचे उतने तेज़-तर्रार नहीं हैं, जितने होने चाहिए। चमचे प्रशिक्षित भी नहीं हैं। इसकी वजह यहां चमचागिरी का प्रशिक्षण देने वाले किसी कॉलेज का न होना है। इतने इंस्टिट्यूट और यूनिवर्सिटीज़ हैं, परंतु चमचा इंस्टिट्यॉ एक भी नहीं। शिक्षण संस्थानों में चमचागिरी का कोर्स कहीं उपलब्ध नहीं। कहां से सीखे कोई चमचागिरी। उम्र है कि बीती जा रही है। चमचा बनने की कसक मन में ही रह जाती है। देश के मौजूदा चमचों के पास कोई डिग्री नहीं है। काश! देश में कम से कम कुछ चमचा ट्रेनिंग कॉलेज होते।
सरकार नई शिक्षा लाई, लेकिन चमचागिरी के लिए किसी कोर्स का प्रावधान नहीं है। केंद्र सरकार को चाहिए था कि नई शिक्षा नीति में चमचा कोर्स शुरू करने पर ज़ोर देती। बीए, बीएससी की तर्ज पर बीसीएच। बैचलर ऑफ चमचागिरी। इससे चमचा महाराज का बोझ थोड़ा कम हो जाता। बेहतरीन किस्म के चमचे उपलब्ध होते। लोग इच्छानुसार चमचों को हायर करते। उन्हें कॉट्रेक्ट पर रखकर चमचागिरी का लाभ लेते। लेकिन नई शिक्षा नीति ने निराश किया।
वैसे देश में जो भी चमचे हैं वे ख़ुद कोशिश करके चमचे बने है। जिसमें टैलेंट होता है, वह ख़ुद चमचा बन जाता है। अब हर आदमी में तो टैलेंट तो होता नहीं। इसलिए हर कोई चमचा नहीं बन पाता। इसके बावजूद देश में चमचा कॉलेज न होने के बाद भी चमचों की पैदावार उतनी बुरी नहीं है। हां कॉलेज के अभाव में चमचागिरी सीखने में पूरी उम्र गुज़र जाती है। अच्छा चमचा बनते-बनते रिटायरमेंट की उम्र आ जाती है। चमचागिरी का सर्वश्रेष्ठ समय घर में जाया होता है।
वैसे चमचा महाराज की कृपा से आजकल दफ़्तर में चमचे हो गए हैं। कई दफ़्तरों में तो चमचों के चमचे भी हैं। दफ़्तर में चमचों की पूरी श्रृंखला है। एक चमचा तरक़्क़ी के लिए दूसरे चमचे को रास्ते से हटाता है। ताकि वह मजे से चमचागिरी कर सके। चमचागिरी में भी गलाकाट स्पर्धा शुरू हो गई है।
चमचा महाराज कहते हैं कि थोड़ी बहुत चमचागिरी सबको आनी चाहिए। इसका आरंभ घर या दफ़्तर से भी की जा सकती है। झाडू वाले की चमचागिरी करें, मेज साफ़ रखेगा। बाबू की चमचागिरी करें, फाइल आगे सरकती रहेगी। अकांउंटेंट की चमचगिरी करें, पैसे मिलने में देरी न होगी। छोटे साहब की चमचागिरी करें, वह बड़े साहब से आपकी तारीफ़ करेंगे। बड़े साहब पटें तो उनकी भी चमचागिरी करें। आप देखेंगे, पूरा दफ्तर आपकी चमचागिरी करने लगेगा।
वैसे चमचागिरी हर किसी को अच्छी लगती है। इसीलिए तो चमचे बॉस के सबसे प्रिय होते हैं। चमचागिरी के अलावा दफ़्तर में विरोधियों की हरकतों की जानकारी देते रहें। किसी दफ़्तर में कोई बॉस उतना ही ज़्यादा टिकता है, जिसके जितने ज़्यादा चमचे होते हैं। चमचों को नापसंद करने वाला बॉस ज़्यादा दिन नहीं टिक पाता। उसे पनिशमेंट पोस्टिंग हो जाती है।
आज के दौर में चमचे दफ्तर में अपरिहार्य हैं। हर जगह चमचों की ज़रूरत है। दफ़्तर ही नहीं पूरे देश में चमचों की ज़रूरत है। टैलेंटेड चमचे हों तो डॉक्टर, इंजीनियर और वैज्ञानिक की क्या जरूरत है। यानी चमचों की अहमियत सबसे अधिक है। लोकतंत्र चार पाए पर नहीं, बल्कि केवल एक पांव पर खड़ा है। वह पाया है चमचास्तंभ। इसीलिए लोकतंत्र को चमचातंत्र भी कहते हैं। यहां सरवाइव करने के लिए चमचागिरी आनी ही चाहिए। आप भी सरवाइव करना चाहते हैं? तो चमचागिरी शुरू करें। गर्व से कहें हम चमचे हैं। इसके आगे गाइड करने के लिए चमचा महाराज हैं।