हरिगोविंद विश्वकर्मा
मुझे अब भी नहीं लग रहा है कि सोनम रघुवंशी ने अपने पति राजा रघुवंशी का क़त्ल किया होगा। मैं कभी पुलिस की थ्यौरी पर यक़ीन नहीं करता। पुलिस जब जांच शुरू करती है, तो उस पर यह दबाव होता है कि लोगों में उसकी इमैज न ख़राब हो। इसलिए अपनी इमैज की रक्षार्थ पुलिस अक्सर उन घटनाओं की प्रकृति ही बदल देती है, जो घटनाएं उसकी इमैज के विपरीत जाती हैं। यानी ज़्यादातर घटनाएं असली घटना कम, कृत्रिम घटना ज़्यादा हो जाती हैं और उससे भी बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि उसी कृत्रिम घटना पर अदालत में तर्क-बितर्क होता है और ज़्यादातर मामलों में आरोपी बरी कर दिया जाता है। इसी को हमारा समाज न्याय कहता है।
ऐसे में राजा रघुवंशी की हत्याकांड में ढेर सारे प्रश्न हैं, जो मन में संदेह पैदा करते हैं कि सोनम ने ही राजा की हत्या की साज़िश रची होगी। अपनी शादी के फोटो में तो वह बिंदास हंस रही है। राजा के साथ डांस भी कर रही है। उसके चेहरे पर वह दर्द नहीं दिख रहा है, जो दर्द ज़बरदस्ती हंसने पर छलकता है और सबको दिख जाता है। लोग जान जाते हैं कि यह हंसी ज़बरी हंसी है। ज़बरदस्ती हंसने पर उभरने वाली पीड़ा को कोई इंसान छुपा नहीं पाता, बशर्ते कि वह बहुत बढ़िया अभिनेता या अभिनेत्री न हो। मतलब अगर सोनम ने ही साज़िश रची है तो वह शातिर दिमाग़ की होगी।
इसलिए सोनम क़ातिल है, यह सिद्धांत मेरा मन अतिरिक्त दबाव डालने पर ही मान रहा है। मन को स्वछंद छोड़ दें तो वह नहीं मान रहा है कि सोनम ने ही हत्या की होगी। वह भी अपने पति की, जिसके साथ दो हफ़्ते पहले ही उसने जीवन गुज़ारने की अग्नि के सामने शपथ ली थी। सोनम 25-26 साल की युवती है। यानी पूर्ण स्त्री है। स्त्री जननी होती हंता नहीं। स्त्री जान देती है, जान लेती नहीं। स्त्री सृजन करती है, संहार नहीं। यह शाश्वत सच है। जहां भी स्त्री अपनी प्रकृति के विपरीत कार्य करती है, चाहे उस कार्य को अपराध ही क्यों न कहा जाए, वहां बहुत ही जेवुइन रिज़न होता है और अक्सर वह जेवुइन रिज़न कभी लोगों के सामने नहीं आ पाता।
इसके बावजूद मैं अपने मन पर अतिरिक्त दबाव डालकर मान लेता हूं कि राजा की हत्या की साज़िश में उसकी पत्नी सोनम किसी न किसी क़िरदार में शामिल रही है। पुलिस का यह दावा भी मान लेता हूं कि राज कुशवाहा नाम का युवक उसका प्रेमी है और अपने प्रेम के बीच में आए राजा को हटाने के लिए दोनों उसकी हत्या की साज़िश का हिस्सा बन गए। अपने प्रेम को वापस पाने के लिए अगर कोई व्यक्ति, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, ख़लल पैदा करने वाले या वाली की हत्या में भागीदार बनता है, तो यह हमारे सामाजिक ताने बाने पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है।
आज के मोबाइल के दौर में प्रेम छिपता नहीं। माता-पिता को तो अपने बच्चों के हाव-भाव से ही पता चल जाता है कि वह प्रेम में है। हमारे पितृसत्तामक या कहें कि स्त्री विरोधी समाज की सबसे बड़ी बिडंबना यह है कि वह प्रेम को ग़लत, अनुचित कहता है। अवैध कहता है। उसे मान्यता देने से ही इनकार करता है। प्रेम जीवन की धुरी है, लेकिन परंपराओं में बंधा समाज उसे ही हिकारत भरी नज़रों से देखता है। ज़ाहिर है कि इस समाज में रहने वाली सोनम के व्यापारी पिता ने हो सकता है बेटी के प्रेम को देख लिया हो, लेकिन चूंकि वह समाज का हिस्सा हैं, तो उन्हें बेटी का प्रेम नागवार लगा हो, क्योंकि उनकी बेटी का प्रेम उनके नौकर से था। भारत में नौकर को बहुत हेय दृष्टि से देखा जाता है। कोई भी व्यक्ति नौकर को बराबरी का दर्ज़ा नहीं देता। ऐसे में अगर मालिक की बेटी ने नौकर से प्रेम कर लिया तो उसका गुनाह कई गुना अधिक हो गया। नौकर को दामाद बनाना जग-हंसाई है, लिहाज़ा, नौकर से बेटी की शादी की ही नहीं जा सकती।
ऐसे में (अगर सोनम सचमुच राजा की हत्या में शामिल रही तो) सोनम के पिता या जिन लोगों ने उन दोनों के शादी करवाई, वे भी अपराधी हैं, क्योंकि उन्होंने सोनम की राजा से शादी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ करवा दी। किसी स्त्री की शादी उस पुरुष से करवा देना, जिससे वह प्रेम नहीं करती या किसी पुरुष की शादी उस स्त्री से करवा देना जो स्त्री किसी और से प्रेम करती है, यह उस स्त्री और उस पुरुष दोनों के साथ छल है। धोखा है। यह सामाजिक अपराध भी है। जब सोनम किसी और से प्रेम करती थी, भले ही वह उसका नौकर था, तो उसकी शादी राजा के साथ क्यों की गई? सोनम के पिता द्वारा कथित “सामाजिक दबाव” के कारण लिए गए इस फ़ैसले से तीन-तीन लोग सज़ा के भागीदार हो गए। पहली सोनम – शादी के बाद वह ऐसे पुरुष से साथ रहने की सज़ा भोगती, जिससे वह प्रेम नहीं। दूसरा राजा – शादी के बाद वह ऐसी स्त्री के साथ रहने की सज़ा भोगता कि जिस स्त्री के साथ वह एक कमरे में रहता, वह उससे प्रेम ही नहीं करती और तीसरा – राज कुशवाहा भी ऐसी सज़ा का भागीदार होता कि जिस स्त्री से वह प्रेम करता है, वह भले ही मजबूरी में किसी और पुरुष के साथ रहती है। यह नैतिक प्रश्न बेशक सोनम के पिता से पूछा जाना चाहिए।
इसका जवाब जाने बिना अगर आगे की कार्रवाई शुरू की गई। मतलब सोनम, पुलिस के अनुसार उसके कथित प्रेमी राज कुशावाहा के ख़िलाफ़ हत्या और हत्या का षड़यंत्र रचने का मुक़दमा दायर किया गया और उन्हें सज़ा भी दिलवा दी गई तो भी यह इंसाफ़ नहीं होगा। ज़ाहिर है, हमारे समाज में जब तक इंसाफ़ नहीं होता, इस तरह के अपराधों की पुनरावृत्ति होती रहेगी। क्योंकि स्त्री-पुरुष का आकर्षण नैसर्गिक है। इसे परंपरा के नाम पर रोका नहीं जा सकता। प्रेम पर चाहे जितनी बंदिशें लगाई जाएं, प्रेम होता रहेगा।
मैं पिछले सात यूरोप गया था। वहां भी भारतीय समाज है। कुछ भारतीय मूल के हैं तो कुछ लोग भारत से गिरमिटिया मजदूर के रूप में सूरीनाम गए लोगों के वंशज हैं, ये लोग नीदरलैंड में हैं। इनके समाज में भी अरेंज मैरिज होती है, लेकिन अपने लिए जीवन साथी बच्चे ही चुनते हैं। माता-पिता और परिवार की ज़िम्मेदारी केवल उनकी शादी कराने की होती है। यह परंपरा भारत में भी शुरू होनी चाहिए।
सोनम अगर सच में राजा की हत्या में शामिल रही है तो इसका यही कारण हो सकता है कि उसकी ज़बरदस्ती शादी कराई गई या उसे ज़बरदस्ती शादी करनी पड़ी। सोनम इस नए रिश्ते को मानसिक रूप से स्वीकार नहीं कर पाई और जब राज ने उससे उसके पति राजा को राह से हटाने की बात की तो वह सहर्ष तैयार हो गई होगी। मतलब इस शादी से सोनम असंतुलित हो गई। उसके अंदर राजा के लिए घृणा पैदा हो गई। यानी ऐसी शादी का क्या मतलब जो ख़ुशी जगह मन में घृणा पैदा करे। यही वजह है कि देश में लोगों शादी नाम की संस्था से बड़ी तेज़ी से मोहभंग हो रहा है।
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