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द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 26 – गैंगस्टर माया डोलस और बहुचर्चित लोखंडवाला एनकाउंटर

द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 26 – गैंगस्टर माया डोलस और बहुचर्चित लोखंडवाला एनकाउंटर

हरिगोविंद विश्वकर्मा

मुंबई पुलिस कमिश्नर रहे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी जूलियो फ्रांसिस रिबेरो के कार्यकाल में मुंबई में अपराधियों का सफाया करने के लिए शुरू की गई पुलिस मुठभेड़ यानी अतिरिक्त न्यायिक हत्या यानी एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग का सिलसिला इस सदी के आरंभ तक जारी रहा। इस दौरान पुलिस ने मुठभेड़ के नाम पर हजारों अपराधियों को मार गिराया।चूकिं पुलिस समाजविरोधी तत्वों का सफाया करने में जुटी हुई थी, इसलिए इस अतिरिक्त न्यायिक हत्या का जनता ने विरोध भी नहीं किया। सबसे अहम बात पुलिस इन हत्याओं को मुठभेड़ करार देती रही है। लेकिन मुंबई पुलिस के इतिहास में केवल एक एनकाउंटर ऐसा हुआ, जिस पर कभी कोई विवाद नहीं खड़ा हुआ, क्योंकि वह इकलौता इनकाउंटर था और वह था लोखंडवाला इनकाउंटर। सबसे अहम बात यह रही कि लोखंडवाला मुठभेड़ की भी टिप दाऊद इब्राहिम कासकर ने बगावत करने वाले अपने शूटरों को ख़त्म करने के लिए दी थी।

दरअसल, दगड़ी चॉल पहले दाऊद इब्राहिम और उसके गिरोह डी-कंपनी के साथ था, लेकिन बाबू रेशिम और रमाकांत नाईक की हत्या के बाद दाऊद से अरुण गवली और गवली गैंग की दूरी अचानक बहुत ज़्यादा बढ़ गई। इसी दौरान डी-कंपनी ने गवली के भाई किशोर गवली उर्फ पापा की माहिम के शीतलादेवी मंदिर के पास हत्या करवा दी। इसके बाद तो गवली दाऊद का कट्टर दुश्मन हो गया। गवली के साथी अशोक जोशी ने रमाकांत और पापा की हत्या का बदला लेने की शपथ ली। चार महीने बाद 21 नवंबर 1988 को भायखला चौराहे पर दाऊद के ख़ास आदमी सतीश राजे की कार में हत्या कर दी गई। सतीश दाऊद गैंग का मुंबई चीफ़ था और दाऊद के भाई नूरा से मिलने जा रहा था।

सतीश राजे की हत्या डी कंपनी की रीढ़ पर वार जैसी थी। इससे दाऊद तिलमिला उठा और चार दिन बाद 25 नंवबर को गवली के ख़ास अरविंद ढोलकिया मार डाला गया। दो दिन बाद होटलियर मनु करमचंदानी की हत्या कर दी गई। 12 दिन बाद 3-4 दिसंबर 1988 की रात पुणे जाते समय छोटा राजन, माया डोलस, भाई ठाकुर और सुनील सावंत सावत्या ने पनवेल के पास अशोक जोशी, सतीश शंकर सावंत, दिलीप लांडगे और करूपाकर हेगड़े को एक 47 राइफल से छलनी कर दिया। बहरहाल, महीने भर माफिया गिरोह आपस में खून की होली खेलते रहे। जिसमें ढेर सारे अपराधी मारे गए। बाबू रेशिम और रमाकांत के बाद ब्रा गैंग में केवल गवली बचा। विरोधियों और पुलिस से बचता हुआ वह दाऊद के समांतर डॉन बनकर उभरा।

वैसे डी-कंपनी की मुख़ालफ़त करने वालों में अमर नाईक, दशरथ रोहणे और तान्या कोली भी थे। ये लोग हफ्ता वसूली, अपहरण और सुपारी हत्याएं कर रहे थे। छोटा राजन के दाऊद के साथ होने के कारण ये लोग उसकी जान के भी दुश्मन बने हुए थे। बहरहाल, दाऊद गैंग और गलवी गिरोह के बीच हुए गैंगवार में ढेर सारे अपराधियों का अपने आप सफ़ाया हो गया। यह पुलिस के लिए एक तरह से सकारात्मक बात थी, लेकिन शहर में दिन दहाड़े हो रही इन हत्याओं से पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे। इसी दौरान 16 नवंबर 1991 को एक ऐसी घटना हुई जो आज भी लोगों के जेहन में तरोताज़ा है। वह घटना थी लोखंडवाला एनकाउंटर। कई लोग कहते हैं कि मुंबई पुलिस ने अब तक केवल एक ही ऐसा इनकाउटर किया जिसे सही मायने में इनकाउंटर कहा जा सकता है।

इनकाउंटर का शतक लगाने वाले प्रदीप शर्मा, विजय सालास्कर और दया नायक जैसे इनकाउंटर स्पेशलिस्ट्स ने भी जितने इनकाउंटर किए जब फिलिंग द ब्लैंक जैसे थे। मसलन, पुलिस को टिप मिली कि अमुक गिरोह का अमुक अपराधी किसी काम के सिलसिले में या किसी से मिलने के लिए अमुक समय पर अमुक जगह आने वाला है। इसके बाद पुलिस ने उस जगह ट्रैप लगा दिया। जैसे ही अपराधी वहां पहुंचा पुलिस टीम ने उसे हथियार डालने की निर्देश दिया, लेकिन अपराधी ने पुलिस टीम पर फायर कर दिया। लिहाज़ा, पुलिस टीम को आत्मरक्षा में न चाहते हुए भी जवाबी फ़ायरिंग करनी पड़ी। जवाबी गोलीबारी में अपराधी बुरी तरह घायल हो गया। घायल अवस्था में उसको फौरन अमुक अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे डेड बीफोर एडमिशन घोषित कर दिया।

वह 16 नवंबर 1991 की सुबह थी। मुंबई में सर्दियां अभी शुरू नहीं हुई थीं। अडिशनल कमिश्नर (नॉर्थ जोन) आफताब अहमद ख़ान कार्टर रोड, बांद्रा पश्चिम दफ़्तर में बैठे थे। उनको सूचना मिली, डी कंपनी का ख़तरनाक अपराधी दिलीप बुआ लोखंडवाला की एक इमारत में कई दिन से देखा जा रहा है। एए खान ने सूत्रों से इस जानकारी को वेरीफ़ाई किया तो सूचना सही निकली। प्रत्यक्षदर्शी ने उन्हें बताया कि आरटीओ के पास स्वामी समर्थ नगर के अपना घर सोसाइटी में बड़ी महंगी गाड़ियां खड़ी हैं। फ़्लैट में रहने वाले लोग अपराधी प्रवत्ति के लग रहे हैं। उन दिनों एस राममूर्ति मुंबई के पुलिस कमिश्नर थे। बस क्या था, पुलिस मुख्यालय से एक टीम अंधेरी के लिए रवाना कर दी गई जिसे बांद्रा में एए ख़ान ने बतौर लीडर जॉइन कर लिया।

दिलीप बुवा का जन्म 1966 में मुंबई के कांजूरमार्ग में हुआ था। कांजूरमार्ग और घाटकोपर शुरू से ही अपराधियों के लिए ऊर्वर भूमि रही हे। वहा से एक से बढकर एक अपराधी निकले। यही से दिलीप बुवा कम उम्र में ही अपराधियो के संगत में आ गया और धीरे धीरे उस दौर का सबसे बड़ा शार्प शूटर बन गया। 1980 के दशक के आखिरी चरण में बुवा से बड़ा कोई शूटर मुंबई में नही था। उसके निशाने को देखकर रमा नाईक ने उसे अपना बॉडीगार्ड रख लिया था और लंबे समय तक वह रमा के साथ ही रहा था। दिलीप बुआ के ख़िलाफ़ कई सारे केस विभिन्न पुलिस स्टेशनों में दर्ज थे। का तो यह भी जाता है कि रमा के सैलून में होने की टिप दिलीप ने ही दाऊद को दी थी। बहरहाल, एए ख़ान, तीन इंस्पेक्टर्स, छह एसपीआई और सात कॉन्सटेबल्स की पुलिस टीम ने अपना घर सोसाइटी के परिसर में प्रवेश किया। उत्तर-पश्चिमी कोने की स्वाति अपार्टमेंट के ए-विंग में ग्राउंड फ़्लोर पर फ़्लैट नंबर पांच में दिलीप बुआ के होने की ख़बर थी। दो दरवाज़े वाला यह इकलौता फ़्लैट था। उत्तरी दरवाजा सीढ़ी के पास खुलता था, दक्षिणी दरवाज़ा बाहर कॉम्प्लेक्स की ओर। सामने दो मारुति इस्टीम कारें खड़ी थीं, जिन्हें देखकर लग गया कि यहां दिलीप बुआ तो है ही, उसके साथ और भी कई लोग हैं।

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पुलिस के लोग जानते थी कि बुआ मारुति इस्टीम कार से ही चलता है। आम आदमी के लिए तब मारुति 800 कार खरीदना भी बहुत बड़ी बात मानी जाती थी। मारुति इस्टीम की बात करें तो वह कार विरला लोगों के पास ही हुआ करती थी। बहरहाल, इंस्पेक्टर एमए क़ावी ने इलाक़े का मुआयाना करके ऑपरेशन का एक अचूक रोडमैप तैयार किया। रोपमैप ऐसा था कि कोई भी अपराधी भागकर निकल न सके। पुलिस की दो टीमें दोनों दरवाज़ों से फ्लैट में घुसने वाली थीं। बाक़ी लोग कवर देने के लिए बाहर विभिन्न जगह पोजिशन लेने वाले थे।

एमए क़ावी के नेतृत्व में पूरी तैयारी के साथ पुलिस का ऑपरेशन एक बजे शुरू हो गया। कावी एक पुलिस वाले के साथ दरवाज़े पर पहुंचे तो पता चला कि तेज़ वॉल्यूम पर फ़िल्म चल रही है। क़ावी ने दरवाज़े को धक्का मारकर अंदर प्रवेश किया। दिलीप बुआ सामने बैठा दिखा। उसकी रिवॉल्वर तिपाई पर रखी थी। उसने फ़ौरन रिवॉल्वर उठाई और फ़ायर कर दिया। गोली सीधे सबइंपेक्टर झुंझर राव घरल के सीने में लगी। घरल वहीं गिर पड़े। आसपास ख़ून फैल गया। क़ावी ने कवर फ़ायर करते हुए उन्हें बाहर खींच लिया, लेकिन इसी दौरान उन्हें भी गोली लग गई। अंदर केवल बुआ ही नहीं, बल्कि कई और अपराधी थे। लिहाज़ा, हेडक्वार्टर से अतिरिक्त पुलिस फ़ोर्स मंगाई गई।

उस समय प्राइवेट टीवी न्यूज़ नहीं शुरू हुए थे और न ही लाइव टेलीकास्ट का दौर नहीं था। वरना मुंबई ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया उस एनकाउंटर का लाइव टेलीकास्ट देखती। उस समय मोबाइल या एसएमएस अथवा वॉट्सअप भी नहीं थे,  इसके बावजूद पूरी मुंबई में ख़बर घूमने लगी। प्रिंट मीडिया में ख़बर पहुंच गई कि लोखंडवाला में लाइव एनकाउंटर चल रहा है। मीडिया के लोग वहां पहुंचने लगे। दो बजे तक अपना घर परिसर किसी किले में तब्दील हो गया। ब्रेकिंग न्यूज़ यह थी कि डी-कंपनी का ख़तरनाक शूटर महेंद्र डोलस उर्फ माया डोलस भी फ़्लैट में मौज़ूद था। दरअसल, नब्बे के दशक के आरंभ तक माया बेहद ख़तरनाक अपराधी बन गया। वह दाऊद के लिए काम करता था। बहुत जल्दी ही मुंबई में वह दाऊद का बिज़नेस संभालने लगा था।

माया डोलस का जन्म मुंबई के प्रतीक्षा नगर मे हुआ था। उसे सब माया के नाम से बुलाते थे। माया अपने पिता बिठोबा डोलस और मां रत्न प्रभा के छ: संतानों में से एक था। उसने मैट्रिक के बाद मुंबई के एक संस्थान से आईटीआई कर लिया, लेकिन नौकरी नहीं की। 22 साल कि उम्र मे ही वह अशोक जोशी गैग शामिल हो गया। थोड़े ही दिनों में इस धंधे में उसने अपनी धाक जमा ली। डोलस अशोक जोशी गैंग के लिए कंजूर गांव से अपने सारे कारोबार को संचालित करता था। जल्द ही वह गैग का टॉप शूटर बन गया। पनवेल शूटआउट में अशोक जोशी के मारे जाने के बाद छोटा राजन ने माया डोलस को दाऊद गैंग में शामिल कर लिया और अब माया दाऊद के लिए काम करने लगा। उसने जल्दी ही मुंबई में वह अपनी मर्जी से बिल्डरों धमकाने और उनसे फिरौती वसूलने लगा।

कुछ दिन बाद ही माया डोलस और दिलीप बुआ दोनों ने दाऊद से विद्रोह कर दिया। दाऊद का कोई आदमी बग़ावत करे, यह दाऊद को मंजूर नहीं। रमाकांत नाईक ने भी दाऊद से बग़ावत की तो दाऊद ने पुलिस को उसकी टिप दे दी। अब माया डोलस और दिलीप बुआ ने दाऊद से बग़ावत की तो डॉन ने पुलिस को उनकी भी टिप दे दी। माया डोलस उस समय तक शहर का सबसे ख़तरनाक अपराधी बन चुका था। वह कई लोगों की हत्या कर चुका था और बेख़ौफ़ हफ़्ता वसूली कर रहा था। उसी साल माया 14 अगस्त को पुलिस टीम पर हमला करके पुलिस हिरासत से फ़रार हो गया था। उसने अशोक जोशी के मारे जाने से पहले भांडुप के गणपति पंडाल में उसकी हत्या की कोशिश की थी, उसी आरोप में वह गिरफ़्तार किया गया था।

बहरहाल, पुलिस की सूचना के अनुसार फ़्लैट में दूसरे शूटर गोपाल पुजारी, अनिल खूबचंदानी, राजू नादकर्णी और अनिल पवार थे। एए ख़ान लाउडस्पीकर के ज़रिए अपराधियों को आत्मसमर्पण कर देने की सलाह दे रहे थे। उसी समय दिलीप बुआ एक अज्ञात युवक के साथ दक्षिणी दरवाज़े से कार की ओर भागा, लेकिन दोनों के जिस्म को गोलियों से छलनी कर दिया गया। उसके बाद गोपाल और राजू ने सीढ़ियों की ओर बढ़ने की कोशिश की। गोपाल को पुलिस ने पहली मंज़िल पर पहुंचते-पहुंचते मार गिराया जबकि राजू और ऊपर गया लेकिन दूसरी मंज़िल पर वह भी ढेर कर दिया। पुलिस ने बहुत देर तक इंतज़ार किया लेकिन अनिल खूबचंदानी नहीं दिखा। मान लिया गया कि उसका भी काम तमाम हो गया।

अंत में माया डोलस और अनिल पवार कमरे से निकले और सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगे। ऊपर जाने की कोशिश के दौरान दोनों अपराधी पुलिस द्वारा मार गिराए गए। मुंबई के इतिहास में उस समय तक वह पहला और इकलौता गैरविवादित मुठभेड़ था। छह अपराधियों के साथ-साथ एक पुलिस वाला जो ऑपरेशन कर रही पुलिस टीम का हिस्सा नहीं था, भी मारा गया। उसकी शिनाख़्त 28 साल के विजय चाकोर के रूप में की गई। वह यरवड़ा जेल में सिपाही था। पुलिस समझ नहीं पाई कि वह फ़्लैट में किसलिए आया था? बहरहाल, इस सफलता के बाद पुलिस कमिश्नर एस राममूर्ति को हटाने की चर्चा थम गई।
(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)

अगला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें – द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 27

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Harigovind Vishwakarma is basically a Mechanical Engineer by qualification. With an experience of over 30 years, having worked in various capacities as a journalist, writer, translator, blogger, author and biographer. He has written two books on the Indian Prime Minister Narendra Modi, ‘Narendra Modi : Ek Shakhsiyat’, detailing his achievements as the Gujarat chief minister and other, ‘Narendra Modi: The Global Leader’. ‘Dawood Ibrahim : The Most Wanted Don’ is another book written by him. His satires are regularly published in prominent publications.

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