मेरे घर आने वाले देश के तीनों बड़े अख़बारों के फ़्रंट पेज पर आज सुबह एक विज्ञापन छपा था, भारत के लोग मूर्ख हैं। यह विज्ञापन देखकर मैं बेसाख़्ता चौंक पड़ा। मेरा त्वरित रिएक्शन था, ग़लत विज्ञापन! एकदम बकवास! भारत के लोग मूर्ख कैसे हो सकते हैं। दुनिया को ज्ञान और संस्कार देने वाले लोग मूर्ख कैसे हो सकते हैं। विश्वगुरु देश के लोग मूर्ख, असंभव। मेरी यह धारणा बनी कि किसी सिरफिरे ने शरारत बस यह विज्ञापन छपवा दिया है।
मैंने देश का सबसे बड़ा अंग्रेज़ी अख़बार उठा लिया। पन्ना पलटा तो दूसरे पेज पर भी वही विज्ञापन। भारत के लोग मूर्ख हैं। अरे! दूसरे पन्ने पर भी। ऐसे कैसे? मैं सोच में पड़ गया। क्या भारत के लोग वाक़ई मूर्ख हैं? मेरे मन में यह सवाल उठा। दुनिया को ज्ञान और संस्कार देने वाले लोग मूर्ख भी हो सकते हैं? देर तक मंथन करता रहा। मेरे अंतर्मन से आवाज़ आई। यह असंभव नहीं है। भारत के लोग भी मूर्ख हो सकते हैं। सब लोग नहीं, हाँ कुछ लोग बेशक मूर्ख हो सकते हैं। दूसरी बार विज्ञापन देखकर मेरी धारण थोड़ी बदली। किसी ने शरारत बस नहीं, बल्कि किसी ख़ास मकसद से यह विज्ञापन छपवाया है।
मैंने ख़बरें पढ़ने के लिए फिर पन्ना पलटा। तीसरे पन्ने पर भी वही विज्ञापन। भारत के लोग मूर्ख हैं। फिर मैंने शेष दोनों अख़बारों पर सरसरी नज़र डाली। देश के तीनों बड़े अख़बारों के पहले तीनों पेज पर वही विज्ञापन था। भारत के लोग मूर्ख हैं। अरे, ऐसा कैसे? तीन-तीन पेज पर एक ही विज्ञापन। मेरे दिमाग़ में ‘भारत के लोग मूर्ख हैं’ वाक्य घूमने लगा। यह वाक्य मेरे अंदर चकरघिन्नी करता रहा। तूफान मचाता रहा। मैं सोचने लगा, आख़िर इस विज्ञापन का मकसद क्या है? किसने इसे छपवाया होगा? इतने पैसे ख़र्च किए तो क्यों किए? ज़ाहिर है, सोच-समझ कर किया होगा।
और पन्ने पलटने पर कुछ पर्चे नीचे गिरे। उनमें भी वही विज्ञापन था। भारत के लोग मूर्ख हैं। मैंने लपक कर टीवी ऑन किया। देश के सबसे तेज़ चैनल पर भी विज्ञापन में बता रहा था, भारत के लोग मूर्ख हैं। सबसे स्लो चैनल स्विच्ड किया, तो वह भी बता रहा था। भारत के लोग मूर्ख हैं। मैं जिधर देख रहा हूं उधर ही ‘भारत के लोग मूर्ख हैं’ दिख रहा था। मुझे अपने घर के कोने-कोने से एक ही आवाज़ सुनाई देने लगी। भारत के लोग मूर्ख हैं। भारत के लोग मूर्ख हैं। मैंने अपना सिर थाम लिया।
जल्दी जल्दी तैयार हुआ और ऑफ़िस के लिए निकल दिया। सड़क पर दोनों की होर्डिंग्स में भी चमक रहा था, भारत के लोग मूर्ख हैं। मेरे बग़ल से एक ऑटो रिक्शा निकला। उसके पीछे भी लिखा था, भारत के लोग मूर्ख हैं। ये क्या हो रहा है। मैं मन ही मन बुदबुदाया। मैंने एक ऑटो रिक्शा रोक कर उसमें बैठ गया। देख रहा हूं, ड्राइवर के सिर के ऊपर एक बड़ा स्टिकर चिपका था। उसमें लिखा था, भारत केलोग मूर्ख हैं। ड्राइवर बड़ाख़ुश था। बुदबुदा रहा था, -भारत के लोग मूर्ख हैं।
मन में आया कि उसे टोकूँ कि भाई तुम ये क्या ऊल-जलूल बक रहे हो। पर मैंने उससे उलझना उचित नहीं समझा। मैं चुप ही रहा। रेलवे स्टेशन पहुंचने तक रास्ते में जितनी भी होर्डिंग्स दिखीं, सबमें लिखा था, भारत के लोग मूर्ख हैं। दीवारों पर पोस्टर्स चिपकाए गए थे। उनपर भी चमक रहा था, भारत के लोग मूर्ख हैं। रेलवे स्टेशन पर सभी बोर्डिंग्स, पोस्टर्स में चमक रहा था, भारत के लोग मूर्ख हैं। प्लेटफ़ॉर्म पर भी अनाउंसमेंट के बीच में विज्ञापन आ रहा था, भारत के लोग मूर्ख हैं। भारत के लोग मूर्ख हैं।
ट्रेन आई तो उसमें भी वही विज्ञापन चिपकाया गया था, भारत के लोग मूर्ख हैं। मुझे ऑफिस पहुंचना था, सो ट्रेन में सवार हो गया। ट्रेन केअंदर भी लोग बहस कर रहे थे। विषय था भारत के लोग मूर्ख हैं। ट्रेन भागी जा रही थी। पटरी के किनारे या स्टेशनों पर जितने भी होर्डिंग दिख रहे थे, सब पर वही, भारत के लोग मूर्ख हैं, दिख रहा था। यानी पूरे देश में संदेश चला गया कि भारत के लोग मूर्ख हैं। यह मार्केटिंग स्ट्रेटेजी है। किसी चीज़ को लोगों इतनी बार दिखाइए कि वह उसे ही सच मानने लगे। देश के लोगों ने मान लिया कि वे मूर्ख हैं।
इस दौरान मुझे एक सीट मिल गई। मैं उस पर बैठ गया। मेरे अग़ल-बग़ल लोग बहस कर रहे थे। धीरे-धीरे आम वहां राय बनने लगी, भारत के लोग वाक़ई मूर्ख हैं। सभी ने बहुमत से मान लिया, भारत के लोग मूर्ख हैं।
-अगर भारत के लोग मूर्ख हैं, तो हम विश्वगुरु कैसे? दूर बैठे एक आदमी ने सवाल दाग़ दिया। ज़ाहिर था, वह आम राय के पक्ष में नहीं था।
-मूर्ख भी गुरु हो सकते हैं। एक बुज़ुर्ग टाइप यात्रा ने कहा, -बेटा, मूर्ख की कई कैटेगरी होती है। पहले ज़्यादातर मूर्ख अनपढ़ थे, लेकिन डिसेंट्रलाइजेशन हो रहा है इसका। आजकल पढ़े-लिखे मूर्ख भी सामने आ रहे हैं। कई मूर्ख तो अपने नाम के आगे डॉक्टर भी लगाते हैं। यानी पीएचडी करने वाले मूर्ख भी समाज में बहुतायत में हैं। ऐसे में कई मूर्ख गुरु भी बन जाते हैं। यानी जब मूर्ख गुरु हो सकते हैं तो मूर्खविश्व गुरु भी हो सकते हैं। राष्ट्रीय स्तर के मूर्ख पूरे देश में अपनी मूर्खता का प्रदर्शन करते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर के मूर्ख दुनिया के सामनेअपनी मूर्खता का प्रदर्शन करते हैं। भारत केवल मूर्ख नहीं है। बल्कि परिष्कृत मूर्ख भी हैं।
बुजुर्ग की बात सुनकर सबने यह भी मान लिया कि भारत के लोग बेस्ट क्वालिटी के मूर्ख हैं। ट्रेन की बहस धीरे-धीरे ‘भारत के लोगपरिष्कृत मूर्ख हैं’ से मूर्ख होने के फ़ायदे पर चली गई।
-मूर्खों के कारण ही लोकतंत्र ज़िंदा है, एक सज्जन बोले, -लोकतंत्र मूर्खों का शासन है। वैसे मूर्ख होने के कई फ़ायदे हैं। मूर्ख शांति-दूत होते हैं। राजा कोई भी हो उन्हें कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता। उनके लिए जैसे बुद्धिमान राजा, वैसे ही मूर्ख राजा। मूर्ख राजा से भी कोई प्रॉब्लमनहीं।
उन्होंने आगे कहा, -मूर्खों की ख़ासियत यह होती है कि वे सवाल नहीं पूछते। अगर कभी-कभार पूछते हैं तो केवल अच्छे लगने वाले सवाल। ऐसे सवाल, जिनके जवाब सहज भाव से हंसी-ख़ुशी जवाब दिए जाएं। राजा से भी कभी सवाल ही नहीं पूछते है। अगर राजा ख़ुद जवाब देने का इच्छुक हो जाए और ज़िद करने लगे, तो उससे उसे अच्छे लगने वाले सवाल पूछते हैं। उदाहरण के लिए, आप इतने महान क्यों हैं? इतने ताकतवर होकर भी आप इतने सरल कैसे हैं? आप हर ग़रीब-मजलूम से अपना नाता कैसे जोड़ लेते हैं? आप जनता के इतने हितैषी क्यों हैं? आप जनता का इतना ख़याल कैसे कर लेते हैं? आप इतना अच्छा ढोल कैसे बजा लेते हैं? विश्वमंच पर देश की इतनी अच्छी बैंड कैसे बजा लेते हैं? आप कभी झूठ क्यों नहीं बोलते? आप झूठ वादे क्यों नहीं करते? आपके सबके प्रति इतने जवाबदेह क्यों हैं?
मूर्ख जनता राजा के लिए सुविधाजनक होती है। राजा आसानी से ‘झूठ’ को ‘सच’ बताता है। मूर्ख जनता जानती है। राजा झूठ बोल रहा है। लंबी-लंबी फेंक रहा है। झूठ का डंका पीट रहा है। लेकिन मूर्ख जनता उसके झूठ को सच मान लेती है। राजा ‘पराजय’ को ‘विजय’ बताता है तो मूर्ख जनता उसे भी स्वीकार कर लेती है। पराजय दिवस को विजय दिवस के रूप में मनाती हैं। ग्रेजुएट मूर्ख तो राजा के झूठको सच बताकर उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं। राजा देश को चूना लगाता है, तो ख़ुश होकर हुआं-हुआं करते हैं। राजा जानता है, येलोग मूर्ख हैं।
राजा जनता को भी चूना लगता है और कहता है, जनता का कल्याण हो रहा हैं। नए-नए मूर्ख बने कई बुद्धिजीवी राजा को भगवान की तरह पूजते हैं। राजा अपने झूठ को सच बताकर वोट मांगता है, तो मूर्ख वोट दे देते हैं। कई समझदार लोग भी इन मूर्खों की संगत में मूर्ख बन जाते हैं। वे जानते हैं कि उनके वोट देने या न देने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। वे ये भी जानते हैं कि वे वोट नहीं देंगे तो वह राजा बनेगा। वे वोट देंगे तो भी वही राजा बनेगा। वे ये भी जानते हैं, भारत के लोग मूर्ख हैं। इसीलिए तो भारत में लोकतंत्र है, क्योंकि मूर्खों के बीच विरोध या क्रांति की भावना नहीं पनपती।
-हरिगोविंद विश्वकर्मा
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