जॉर्ज सोरोस को मुसलमानों की अधिक पीड़ा है तो उन्हें हंगरी या अमेरिका की नागरिकता दिला दें…

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पश्चिमी देश अक्सर भारत को मानवाधिकार, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और शरणार्थियों के प्रति सहिष्णुता का पाठ पढ़ाते रहते हैं। लेकिन क्या वही देश स्वयं इन आदर्शों का पालन करते हैं? क्या जिन्होंने अपनी सीमाओं पर दीवारें खड़ी कर दी हैं, वे भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र से उम्मीद कर सकते हैं कि वह हर प्रवासी को गले लगाए? यह लेख जॉर्ज सोरोस और पश्चिमी देशों की कथनी और करनी के बीच के अंतर को उजागर करता है।

1. जॉर्ज सोरोस कौन हैं और उन्होंने भारत पर क्या कहा?
जॉर्ज सोरोस, अमेरिकी अरबपति निवेशक और ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के संस्थापक हैं। वे 1930 में हंगरी में जन्मे थे और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका जाकर बस गए।

2020 और 2023 में उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा:
-भारत में लोकतंत्र खतरे में है।
-मोदी मुसलमानों को नागरिकता से वंचित कर रहे हैं।
-भारत एक हिंदू राष्ट्र बनने की दिशा में बढ़ रहा है।

सोरोस ने CAA और NRC को लेकर आशंका जताई कि ये नीतियाँ मुसलमानों के खिलाफ हैं और लाखों मुसलमान नागरिकता खो सकते हैं।

2. क्या भारत ने किसी मुसलमान की नागरिकता छीनी है?
नहीं। अब तक भारत सरकार ने किसी एक भी मुसलमान की नागरिकता CAA या NRC के तहत छीनी नहीं है। असम NRC में कुछ लोगों को “डाउटफुल वोटर” जरूर माना गया, लेकिन उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने का पूरा संवैधानिक अवसर मिला।

वास्तविकता यह है:
CAA केवल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देता है।
किसी भारतीय मुसलमान की नागरिकता को इससे कोई खतरा नहीं है।

3. हंगरी का दोहरा चरित्र:
क्या सोरोस अपने देश से यही अपेक्षा करते हैं?
जॉर्ज सोरोस का जन्मस्थान हंगरी है। वहाँ की सरकार, विशेषकर प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन, यूरोप में अप्रवासी-विरोध की प्रतीक बन चुकी है।

हंगरी की कठोर नीतियाँ:
2015 में सीरियाई शरणार्थी संकट के दौरान हंगरी ने अपनी सीमाओं पर कंटीले तारों की बाड़ लगा दी।
मुस्लिम प्रवासियों के विरुद्ध खुलेआम बयान: “हम हंगरी में मुस्लिम प्रवासियों को नहीं चाहते… हम एक क्रिश्चियन राष्ट्र हैं।”
2018 में “Stop Soros Law” लागू किया गया, जिससे अप्रवासी समर्थक संगठनों पर पाबंदी लगा दी गई।

सवाल: क्या जॉर्ज सोरोस ने हंगरी को भी कहा कि वह लाखों मुस्लिम अप्रवासियों को नागरिकता दे?

4. अमेरिका की हकीकत:
क्या उसने मुस्लिम अप्रवासियों को अपनाया?
जॉर्ज सोरोस अब अमेरिका के नागरिक हैं। लेकिन अमेरिका का ट्रैक रिकॉर्ड भी काफी विरोधाभासी है:

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में मुस्लिम बैन लगाया गया — कई मुस्लिम देशों के नागरिकों को वीज़ा देने से इनकार कर दिया गया।
मेक्सिको सीमा पर दीवार बनवाने की घोषणा, और प्रवासियों के बच्चों को उनके माता-पिता से अलग करना जैसी नीतियाँ अपनाई गईं।
नतीजा: अमेरिका और हंगरी दोनों ने दुनिया के सामने दरवाजे बंद किए, लेकिन भारत को कहते हैं कि वो हर किसी को अंदर आने दे।

5. भारत की नीति:
संतुलन और संप्रभुता का अधिकार
भारत ने हमेशा शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खुले रखे हैं:
1947 में लाखों पाकिस्तानी शरणार्थियों को स्वीकारा।
तिब्बती, श्रीलंकाई तमिल, बांग्लादेशी हिंदू, अफगानी सिख — सभी को भारत ने आश्रय दिया।
लेकिन हर राष्ट्र की तरह भारत को भी यह अधिकार है कि वह तय करे कि किसे नागरिकता दी जाए और किसे नहीं। इसे अंतरराष्ट्रीय कानून भी मान्यता देता है।

जिन्होंने अपने दरवाजे बंद कर दिए, वे भारत से दरवाजे खोलने की अपेक्षा कर रहे हैं। यह दोहरा मापदंड नहीं तो और क्या है? भारत को लोकतांत्रिक, संवैधानिक और मानवतावादी आदर्शों का पालन करते हुए अपने राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा को सर्वोपरि रखने का पूरा अधिकार है। जिन्होंने दीवारें खड़ी कीं, वे हमें दरवाजे खोलने को कहें — इससे बड़ा पाखंड और कुछ नहीं।

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