जब परिपक्व नेता के रूप में वापसी करने वाले थे, तभी हो गई उनकी हत्या
सौम्य, शिक्षित और आधुनिक सोच वाले राजीव गांधी भारतीय राजनीति के उन दुर्लभ नेताओं में थे, जिन्हें एक जेंटलमैन पॉलिटिशियन कहा जाता है। तकनीकप्रिय, आधुनिक सोच वाले और सादगी से भरे व्यक्तित्व के धनी राजीव जी ने देश को 21वीं सदी की ओर ले जाने की नींव रखी। प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने पंचायती राज, टेलीकॉम क्रांति और कंप्यूटर युग की शुरुआत की। हालांकि 1989 में सत्ता से बाहर होने के बाद उन्होंने विपक्ष में रहते हुए अपने नेतृत्व कौशल को और परिपक्व किया। वे विवादों से ऊपर उठकर फिर से एक दूरदर्शी नेता की तरह उभर रहे थे। राजीव गांधी कभी भी राजनीति में नहीं आना चाहते थे। वह बिना किसी राजनीतिक दबाव और सत्ता की लालसा के सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन जीना चाहते थे। वह मूलतः पारिवारिक, शर्मीले और निजी जीवन में रमने वाले व्यक्ति थे।
राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को मुंबई (तब बॉम्बे) में हुआ था। वह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाती और फिरोज गांधी तथा इंदिरा गांधी के पुत्र थे। उनका लालन-पालन एक राजनीतिक और शिक्षित परिवार में हुआ, लेकिन राजीव का स्वभाव अन्य गांधी परिवार के नेताओं से थोड़ा अलग था—वे अंतर्मुखी और शांत प्रवृत्ति के थे। राजीव और उनके छोटे भाई संजय गांधी ने अधिकतर समय अपनी मां इंदिरा गांधी और नाना नेहरू के साथ बिताया। यद्यपि पंडित नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे, लेकिन उन्होंने अपने नाती-पोतों के पालन-पोषण में पूरा ध्यान दिया। राजीव को किताबों, संगीत और मशीनों से लगाव था। बचपन से ही वे नेतृत्व के बजाय तकनीकी चीजों में रुचि दिखाते थे।
राजीव गांधी की प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के प्रतिष्ठित दून स्कूल (Doon School) में हुई। यह स्कूल आज भी देश के अभिजात्य वर्ग के बच्चों के लिए शिक्षा का केंद्र माना जाता है। यहां पढ़ाई के दौरान राजीव गंभीर, विनम्र और पढ़ाई के साथ-साथ एक्स्ट्रा करिकुलर गतिविधियों में रुचि रखने वाले छात्र थे। उन्होंने कुछ समय के लिए दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज में भी अध्ययन किया, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए वे इंग्लैंड चले गए। उन्होंने इंपीरियल कॉलेज, लंदन (Imperial College, London) और फिर ट्रिनिटी कॉलेज, कैंब्रिज (Trinity College, Cambridge) में दाखिला लिया। इन दोनों संस्थानों में उन्होंने इंजीनियरिंग और बाद में मैकेनिकल विषय में रुचि ली, हालांकि पढ़ाई को लेकर वे उतने गंभीर नहीं थे जितना कि तकनीकी चीजों को लेकर।
सोनिया गांधी से मुलाकात: एक खूबसूरत संयोग
राजीव गांधी की जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़ आया जब वे इंग्लैंड में पढ़ाई कर रहे थे। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान ही 1965 में उनकी मुलाकात हुई एक इटालियन लड़की से—एदविग एंटोनिया अल्बिना माइनो, जिन्हें आज दुनिया सोनिया गांधी के नाम से जानती है। यह मुलाकात एक सामान्य संयोग की तरह हुई, लेकिन धीरे-धीरे यह एक गहरे प्रेम में बदल गई। सोनिया, जो उस समय इंग्लैंड में अंग्रेजी भाषा का कोर्स कर रही थीं, राजीव के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुईं। राजीव की सादगी, शालीनता और तकनीकी विषयों के प्रति प्रेम ने सोनिया को आकर्षित किया। दोनों का यह रिश्ता धीरे-धीरे गहराता गया। इस दौरान राजीव ने भारत में अपने परिवार को सोनिया के बारे में बताया, और प्रारंभ में इंदिरा गांधी को यह रिश्ता स्वीकार करना थोड़ा कठिन लगा। लेकिन समय के साथ उन्होंने इस रिश्ते को समझा और स्वीकार किया।
राजीव और सोनिया ने लगभग तीन साल तक एक-दूसरे को समझा, और फिर 1968 में दिल्ली में दोनों का विवाह हुआ। यह शादी एक पारिवारिक और सांस्कृतिक मिलन थी—भारत के एक राजनीतिक परिवार और इटली की एक सामान्य लेकिन सुसंस्कृत लड़की के बीच। विवाह के समय सोनिया ने पारंपरिक भारतीय परिधान पहना और हिंदू रीति-रिवाजों से विवाह संपन्न हुआ। शादी के बाद सोनिया ने भारतीय संस्कृति को पूर्ण रूप से अपनाया। इस विवाह के बाद राजीव गांधी ने राजनीति से दूरी बनाए रखी और एक सामान्य पारिवारिक जीवन को प्राथमिकता दी। उन्होंने दिल्ली में इंडियन एयरलाइंस में बतौर पायलट नौकरी की और यहीं से उनका पेशेवर जीवन शुरू हुआ। सोनिया भी उनके साथ एक गृहिणी की भूमिका में रहीं और परिवार की जिम्मेदारी संभाली।
राजीव गांधी ने विवाह के बाद कई वर्षों तक राजनीति से दूरी बनाए रखी। वे दिल्ली में रहते हुए एक पायलट के रूप में काम करते रहे और पूरी तरह से पारिवारिक जीवन में रम गए। इस बीच उनके दो बच्चे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी हुए। राजीव गांधी की यह जीवनशैली पूरी तरह से ‘गांधी-नेहरू’ परंपरा से हटकर थी। वे निजी जीवन को प्राथमिकता देने वाले, किसी भी तरह की सार्वजनिकता से दूर रहने वाले व्यक्ति थे। वह न तो भाषण देने में रुचि रखते थे और न ही किसी राजनीतिक गतिविधि में भाग लेने की लालसा रखते थे। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि संजय गांधी उस समय इंदिरा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में उभर रहे थे, और राजीव को राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन संजय की असमय मृत्यु (1980) ने पूरी तस्वीर बदल दी।
राजीव की राजनीति में अनचाही एंट्री
1980 में संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मौत के बाद इंदिरा गांधी को परिवार के उत्तराधिकारी की तलाश करनी पड़ी। उस समय पार्टी और देश, दोनों की नजरें राजीव पर टिक गईं। हालांकि उन्होंने प्रारंभ में राजनीति में आने से इनकार किया, लेकिन मां के कहने और देश की स्थिति को देखते हुए उन्होंने राजनीति में कदम रखा। यह कदम एक जिम्मेदारी के रूप में था, न कि सत्ता की लालसा के तहत। उनका यह निर्णय देश के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ। उन्होंने न केवल कांग्रेस को फिर से मजबूती दी बल्कि 1984 में प्रधानमंत्री बनकर देश को तकनीकी युग की ओर अग्रसर किया।
उनके कार्यकाल में बोफोर्स तोप का बहुचर्चित घोटाला हुआ। हालांकि उसी बोफोर्स तोप की बदौलत भारत 1999 में कारगिल से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने में सफल रहा। बहरहाल 1991 के चुनाव प्रचार के दौरान उनकी लोकप्रियता फिर से चरम पर थी, और देश उन्हें एक बार फिर प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता था। लेकिन ठीक उसी समय, श्रीपेरंबदूर में एक आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी गई। यह न केवल कांग्रेस, बल्कि पूरे भारत के लिए अपूरणीय क्षति थी। पूर्व प्रधानमंत्री को अपने आसन्न अंत के बारे में किसी तरह का पूर्वाभास था। पत्रकार नीना गोपाल ने अपनी पुस्तक “द असैसिनेशन ऑफ राजीव गांधी” में यही लिखा है। उनसे पूछा था, “क्या आपने देखा है कि हर बार जब कोई भी दक्षिण एशियाई नेता किसी महत्वपूर्ण पद पर पहुंचता है या अपने या अपने देश के लिए कुछ हासिल करने वाला होता है, तो उसे मार दिया जाता है, हमला किया जाता है, मार दिया जाता है…” इसके कुछ समय बाद ही आतंकवादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) के आत्मघाती दस्ते ने उनकी हत्या कर दी।
21 मई 1991 को लिट्टे के आत्मघाती हमले से कुछ घंटों पहले ही नीना गोपाल ने राजीव गांधी का इंटरव्यू लिया था। उन्होंने राजीव से पूछा था कि क्या उन्हें लगता है कि उनकी जिंदगी खतरे में है? इस पर राजीव ने खुद सवाल करते हुए कहा था: ‘क्या आपने कभी गौर किया है कि दक्षिण एशिया में जब भी कोई महत्वपूर्ण नेता सत्ता पर काबिज होता है या अपने देश के लिए कुछ हासिल करने के करीब होता है, तब उसे कैसे नीचे गिराया जाता है, उस पर हमला किया जाता है, उसे मार दिया जाता है… श्रीमती इंदिरा गांधी को देखिए, शेख मुजीबुर रहमान, जुल्फिकार अली भुट्टो, एसडब्ल्यूआरडी भंडारनायके को देखिए।’ बकौल नीना, इस इंटरव्यू के कुछ ही देर बाद उनकी भी हत्या कर दी गई।
पत्रकार नीना गोपाल, जो राजीव गांधी की हत्या के समय उनके साथ थीं, ने इस पुस्तक में यह भी लिखा है कि कैसे एलटीटीई के नेता प्रभाकरन ने इस साजिश को अंजाम दिया। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि एलटीटीई के उप-प्रमुख महत्तया को भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ (RAW) ने अपना एजेंट बनाया था, जिससे संगठन के भीतर विभाजन हुआ और अंततः महत्तया की हत्या कर दी गई। हालांकि बाद में प्रभाकरन भी श्रीलंका सेना के अभियान में मारा गया।
इंटरसेप्ट हुए थे लिट्टे के राजीव की हत्या वाले संदेश
पड़ोसी देश श्रीलंका में लिट्टे के विद्रोह को समाप्त करने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों को भेजना बतौर प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बड़े फैसलों में एक था। तत्कालीन उनको यह जोखिम भरा और बड़ा कदम उठाने की सलाह कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग, सैन्य कमांडरों और खुफिया एजेंसियों ने दी थी। इस दौरान, कई भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गंवाई, लेकिन लिट्टे पर काबू नहीं पाया जा सका। बाद में भारतीय सैनिकों को वापस बुला लिया गया. लेकिन तब तक लिट्टे राजीव गांधी का दुश्मन बन चुका था।
लिट्टे के इंटरसेप्ट किए गए कई संदेशों में राजीव गांधी की हत्या करने के इरादे जाहिर किए गए। ये तमाम खुफिया इनपुट अप्रैल 1990 से मई 1991 के बीच इंटरसेप्ट किए गए थे। नीना गोपाल ने कर्नल हरिहरन के हवाले से अपनी किताब में लिखा है कि जब उनकी (हरिहरन) टीम ने राजीव गांधी की हत्या की साजिश रचने का संकेत देने वाला लिट्टे का एक कैसेट उन्हें सुनाया, तो वे सन्न रह गए। कर्नल हरिहरन के पास जाफना के तमिलों की एक छोटी-सी सेना थी, जो लिट्टे पर नजर रखती थी। इंटरसेप्ट किए गए संदेशों में से कुछ इस प्रकार थे: ‘राजीव गांधी अवारंड मंडालई अड्डीपोडलम’, ‘डंप पन्निडुंगो’ और ‘मारानई वेचिडुंगो।’ इनका संभावित हिंदी आशय यही था कि राजीव गांधी को जहां भी मौका मिले उड़ा दो या उन्हें खत्म कर दो।
सरकार ने की थी सुरक्षा की भारी अनदेखी
किसी अनहोनी होने के राजीव गांधी के स्वयं के पूर्वाभास ही नहीं, बल्कि खुफिया एजेंसियों के पास लिट्टे के इस तरह के खुले इरादों के जाहिर होने के बावजूद उनकी सुरक्षा को लेकर भयावह लापरवाही बरती गई। 1991 में केंद्र में चंद्रशेखर सरकार के नाटकीय पतन के बाद मध्यावधि चुनावों की घोषणा हो गई। उन दिनों राजीव गांधी तमिलनाडु के चुनावी दौर पर थे। 21 मई की रात राजीव चेन्नई से करीब 40 किलोमीटर दूर श्रीपेरंबुदुर पहुंचे। रात के 10 बजने वाले थे। उस वक्त वहां सुरक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं था। राजीव रेड कार्पेट पर तेजी से चलते हुए लोगों से फूलमालाएं स्वीकार कर रहे थे। लेकिन तभी उनकी नजर एक छोटी-सी लड़की कोकिला पर गई, जो कविता सुना रही थी। वह आत्मघाती दस्ते की ही सदस्य थी। उसे देखकर राजीव वहीं रुक गए। इतने में उनकी हत्यारिन धनु हाथ में चंदन की माला लेकर आगे बढ़ी। इस बीच राजीव को भी आभास हो गया कि कुछ तो गलत और असामान्य हो रहा है। उन्होंने कांस्टेबल अनुसूया को भीड़ को नियंत्रित करने का इशारा किया। लेकिन तब तक धनु राजीव के चरण स्पर्श करने का बहाना करते हुए झुक गई और अपने शरीर से लिपटे आरडीएक्स विस्फोट से लदे डिवाइस का बटन दबा दिया।
दरअसल, अपनी मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला, उस समय वह महज 40 साल के थे। इस तरह उन्होंने भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाया और यह रिकॉर्ड आज तक कायम है। प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने तय अवधि से पहले आम चुनावों की घोषणा कर दी। राजीव गांधी के पक्ष में सहानुभूति लहर के बलबूते कांग्रेस 543 लोकसभा सीटों में से 414 पर जीत दर्ज की। यह ऐसा आंकड़ा था, जिसे न तो कभी उनकी मां इंदिरा गांधी और न ही नाना जवाहरलाल नेहरू हासिल कर पाए थे। उसके बाद कोई भी पार्टी यह रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाई। पार्टी की प्रचंड जीत के जश्न मनाने के दौरान यह संभवत: पहला और एकमात्र मौका था, जब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) का 24 अकबर रोड स्थित मुख्यालय लगातार तीन दिन तक रोशनी से सराबोर रहा।
क्या राजीव गांधी ‘नरम हिंदुत्व’ के पक्षधर थे?
कुछ समकालीन इतिहासकार मानते है कि हिंदू श्रद्धालुओं के लिए राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल के ताले खोलने का राजीव गांधी का निर्णय ‘नरम हिंदुत्व’ था, जिसका मकसद शाह बानो मामले में मौलवियों के रुख का समर्थन करने को लेकर हो रही आलोचनाओं से उबरना था। हालांकि, राजीव गांधी के कार्यकाल में प्रधानमंत्री कार्यालय में तैनात रहे जम्मू-कश्मीर कैडर के आईएएस अधिकारी वजाहत हबीबुल्ला ने बाद में अपनी किताब में दावा किया था कि प्रधानमंत्री को फरवरी 1986 में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि के ताले खोले जाने की जानकारी नहीं थी। अपने संस्मरणों के संग्रह ‘माई ईयर्स विद राजीव गांधी: ट्रंफ एंड ट्रेजेडी’ में हबीबुल्ला ने लिखा है कि जब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री से पूछा कि क्या वे ताले खोलने के निर्णय में शामिल थे, तब राजीव ने दो टूक जवाब दिया था, ‘नहीं, किसी भी सरकार को धार्मिक स्थलों के संचालन या अन्य मामलों में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है। मुझे इस घटनाक्रम के बारे में तब तक कुछ भी मालूम नहीं था, जब तक कि आदेश पारित होने और उसके क्रियान्वयन के बाद मुझे इसके बारे में बताया नहीं गया।’
अनिरुध्य मित्रा ने अपनी किताब “नाइन्टी डेज़ (Ninty Days)” में भी इस प्रकरण के बारे में लिखा है। कहा जाता है कि यह पुस्तक राजीव गांधी की हत्या के बाद हत्यारों की तलाश और जांच प्रक्रिया का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करती है। मित्रा ने बताया है कि कैसे जांच एजेंसियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, और कुछ महत्वपूर्ण सुरागों की अनदेखी हुई। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि कैसे एक स्थानीय फोटोग्राफर की तस्वीर ने जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सीबीआई के पूर्व अधिकारी के. रघोथमन ने अपनी पुस्तक “कॉन्सिपिरेसी टू किल राजीव गांधी (Conspiracy to Kill Rajiv Gandhi)” में दावा किया है कि तत्कालीन खुफिया ब्यूरो (IB) प्रमुख एमके नारायणन ने एक वीडियो फुटेज को दबा दिया था, जिसमें आत्मघाती हमलावर धानु की उपस्थिति दिखाई गई थी। यह वीडियो जांच टीम को नहीं सौंपा गया, जिससे जांच प्रक्रिया प्रभावित हुई।
राजीव गांधी का जीवन असाधारण परिवर्तन की कहानी है। एक शांत, तकनीकी रुचि रखने वाला युवक जो पायलट बनना चाहता था, कैसे परिस्थितियों और कर्तव्य के चलते देश का सबसे युवा प्रधानमंत्री बन गया—यह उनके जीवन की त्रासदी भी है और प्रेरणा भी। उनका सोनिया गांधी से प्रेम, विवाह और संयुक्त पारिवारिक जीवन आज भी भारतीय राजनीति में एक अनोखी मिसाल है। यह संबंध न केवल एक अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक पुल बना, बल्कि एक मजबूत राजनीतिक विरासत की नींव भी रखी। राजीव गांधी का यह पहलू हमें यह सिखाता है कि राजनीति में आने वाले नेता केवल मंच पर बोलने वाले नहीं होते, बल्कि वे भी एक सामान्य जीवन जीने की ख्वाहिश रखते हैं, और परिस्थितियां जब उन्हें बदल देती हैं, तो वे इतिहास रचते हैं।
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