जब इतिहास पर सभ्यताओं के संघर्ष की बात होती है, तो यहूदी समुदाय का नाम एक मिसाल के रूप में उभरता है। दुनिया के सबसे प्राचीन, सबसे पीड़ित और सबसे जीवट समाजों में से एक — यहूदी समाज — जिसने केवल अस्तित्व नहीं बचाया, बल्कि सभ्यता, संस्कृति और विज्ञान को समृद्ध भी किया। यहूदियों की कहानी कोई सामान्य इतिहास नहीं, बल्कि साहस, संकल्प और आत्मबलिदान की वह गाथा है जो समय के हर दौर में फिर से लिखी जाती रही है।
ग़ाज़ा से यरूशलम तक: यहूदी सभ्यता की जड़ें
आज जो ग़ाज़ा और यरूशलम मुस्लिम-यहूदी संघर्ष का केंद्र हैं, वे कभी यहूदी सभ्यता के गौरवशाली केंद्र थे।
ग़ाज़ा, जिसे आज हम एक ज्वलंत संघर्ष-क्षेत्र के रूप में जानते हैं, वह ईसा पूर्व 10वीं शताब्दी में यहूदी शासक राजा डेविड और राजा सोलोमन के अधीन यहूदी साम्राज्य का हिस्सा था। यह शहर बाइबिल में भी आता है और यहूदी ऐतिहासिक स्मृति का अविभाज्य अंग है।
यरूशलम — केवल राजधानी नहीं, बल्कि यहूदी समाज की आत्मा है। इस पवित्र शहर पर इतिहास में 52 बार आक्रमण, 23 बार घेराव, 39 बार विनाश, और 44 बार कब्जा हुआ। लेकिन यहूदी कभी भी यरूशलम को अपने दिल और दिमाग से अलग नहीं कर सके।
एक भाषण जो आत्मकथा बन गया
इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का एक ऐतिहासिक भाषण है, जो न केवल इज़राइल की चेतावनी है, बल्कि समूचे यहूदी समाज की आत्मकथा है:
75 साल पहले हमारे पास न तो देश था और न ही सेना। सात देशों ने हम पर हमला किया। हम सिर्फ़ 65,000 थे। हमें कोई बचाने वाला नहीं था। हम पर हमले होते रहे, होते रहे। लेबनान, सीरिया, इराक़, जॉर्डन, मिश्र, लीबिया, सऊदी, अरब जैसे कई देशों ने हमारे ऊपर कोई दया नहीं दिखाई। सभी लोग हमे मारना चाहते थे, किंतु हम बच गए। लेकिन हम झुके नहीं। संयुक्त राष्ट्र ने जब हमें वो धरती दी, जो 65 प्रतिशत रेगिस्तान थी। हमने उसे भी अपने लहू से सींच कर राष्ट्र बना दिया। फलता-फूलता राष्ट्र। यहूदी इतिहास का सबसे गौरवशाली पक्ष यही रहा है कि जब-जब हमें मिटाने की कोशिश हुई, हम और मजबूत होकर उभरे। हम आज भी जीवित हैं। हम हिटलर के गैस चेंबरों से बचे, हम अरबों के नरसंहारों से बचे, हम सद्दाम और गद्दाफी जैसे शासकों से बचे, और अब हम हमास, हिज़्बुल्लाह और ईरान से भी टकराने का साहस रखते हैं। हमारे यरूशलम पर 52 बार हमला हुआ, 23 बार घेरा गया, 39 बार तबाह किया गया, लेकिन यहूदी कभी अपने यरूशलम को नहीं भूले। हम हमेशा से कहते आए हैं – यरूशलम हमसे है, और हम यरूशलम से हैं।
हमारे पैगंबर को भी छीन लिया गया…
नेतन्याहू भावनात्मक स्वर में कहते हैं:
हमें वे शुरू से खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने हमारे रस्म-रिवाज पर कब्जा जमाया। उन्होंने हमारे उपदेशों पर कब्जा जमाया। उन्होंने हमारी परंपरा पर कब्जा जमाया। उन्होंने हमारें पैगंबर पर कब्जा जमाया। कुछ समय पश्चात अब्राहम को इब्राहिम कर दिया गया। सोलोमन को सुलेमान कर गया। डेविड को दाऊद बना दिया गया। मोजेज को मूसा कर दिया गया। फिर एक दिन उन्होंने कहा -तुम्हारा पैगंबर (मुहम्मद) आ गया है। हमने इसे नहीं स्वीकार किया। हम करते भी कैसे? उनके आने का समय नहीं आया था। उन्होंने कहा -स्वीकार करो, कबूल लो। हमने नहीं कबूला। फिर हमें मारा गया। हमारे शहर को कब्जाया गया। हमारे शहर यसरब को मदीना बना दिया गया। हम क़त्ल किए गए, हम भगा दिए गए। वे हमें मारते रहे हैं, मारते जा रहे हैं। हमारे शहर-धन, दौलत, घर, पशु, मान-सम्मान सब पर कब्जा जमाते जा रहे हैं। इसके बावजूद हम बचे रहे।उन्होंने हमारे रस्म-रिवाज, उपदेश, परंपराएं और पैगंबर — सब कुछ छीन लिया गया। अब्राहम को इब्राहीम, डेविड को दाऊद, सोलोमन को सुलेमान बना दिया गया। हमारे शहर यसरब को मदीना, हमारी ज़मीन को किसी और का घोषित कर दिया गया।
यहूदी कहते हैं, हमने किसी के धर्म को नकारा नहीं, लेकिन जब हमसे कहा गया कि अब तुम्हारे लिए नया पैगंबर आया है, हमने नहीं स्वीकारा। और इसी कारण हमें भगा दिया गया, मारा गया, क़त्ल किया गया।
1300 वर्षों की यातना
- मक्का में दो लाख यहूदी क़त्ल कर दिए गए।
- सीरिया, इराक़, तुर्की में लाखों यहूदी मार दिए गए।
- हिटलर के शासन में छह मिलियन यहूदियों का नरसंहार हुआ।
- अरब देशों से यहूदियों को पूरी तरह खदेड़ दिया गया।
- फिर भी यहूदी बचे रहे — क्योंकि उन्होंने झुकना नहीं सीखा था।
रेगिस्तान को बनाया ख़ुशहाल
संयुक्त राष्ट्र ने जब इज़राइल की भूमि दी, तो वह भूमि 65 प्रतिशत रेगिस्तान थी। लेकिन आज वही भूमि तकनीकी, चिकित्सा, कृषि और रक्षा के क्षेत्र में दुनिया को राह दिखा रही है।
- इंटेल, माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक, आईबीएम जैसी संस्थाओं में यहूदी दिमाग सबसे अग्रिम पंक्ति में हैं।
- इज़राइल की ड्रिप इरिगेशन, मेडिकल रिसर्च, साइबर टेक्नोलॉजी, और सैटेलाइट टेक्नोलॉजी ने दुनिया को प्रभावित किया है।
हम किसी के दुश्मन नहीं
यहूदियों का सबसे बड़ा दावा यह है कि उन्होंने कभी किसी अन्य धर्म या समाज को खत्म करने की शपथ नहीं ली। नेतन्याहू स्पष्ट कहते हैं:
हमने रेगिस्तान को हरियाली में बदला। हमारे फल, दवाएँ, उपकरण, उपग्रह सभी के लिए हैं। हम किसी के दुश्मन नहीं हैं, हमने किसी को खत्म करने की क़सम नहीं खाई है। हमें किसी को बर्बाद नहीं करना। हम साजिश भी नहीं करते, हम जीना चाहते हैं सिर्फ सम्मान से, अपने देश में, अपनी जमीन पर, अपने घर में। अपने तरीके से।
हम मिटाए गए, पर मिटे नहीं
दुनिया की अनेक महान सभ्यताएं – मिश्र, बाबिलोन, यूनान, रोमन साम्राज्य, ओटोमन साम्राज्य – इतिहास के गर्त में समा गईं। लेकिन यहूदी समाज आज भी खड़ा है। वे कहते हैं:
हम 3000 सालों से यरूशलम में थे। आज फिर अपने पहले देश – इज़राइल – में हैं। यह हमारा था, है और रहेगा।यरुसलम हमसे है और हम यरुसलम से हैं।
प्रेरक है यहूदी संघर्ष
यहूदियों की कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी भी समाज को खत्म करना संभव नहीं, जब तक उसके भीतर अपनी पहचान के लिए मर मिटने का साहस हो। यहूदियों की यह लड़ाई सिर्फ अस्तित्व की नहीं है, यह धरोहर, आस्था, और सम्मान की रक्षा की लड़ाई है। यह संघर्ष जितना भावनात्मक है, उतना ही ऐतिहासिक और प्रेरणादायक भी।यरूशलम और ग़ाज़ा के कण-कण में यहूदियों की सभ्यता की साँसें गूंजती हैं — और यही उनका सबसे बड़ा उत्तर है दुनिया के हर उस हाथ के लिए जो उन्हें मिटाने के लिए उठता है।
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