चित्रनगरी संवाद मंच में डॉ. कनकलता तिवारी के काव्य सग्रह ‘अमलतास के फूल’ पर परिचर्चा

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डॉ. मधुबाला शुक्ल

13 अक्टूबर, 2024 की शाम बहुत खुशगवार और यादगार रही। गोरेगॉंव, मुंबई स्थित केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट के मृणालताई हाल में चित्रनगरी संवाद मंच के साप्ताहिक कार्यक्रम में प्रतीक प्रकाशन की ओर से प्रकाशित मशहूर कवयित्री डॉ. कनकलता तिवारी के काव्य संग्रह अमलतास के फूल पर विविध आयामी चर्चा हुई।

चित्रनगरी संवाद मंच संस्था के प्रमुख संस्थापक, एवं कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि के रूप में उपस्थित देवमणि पांडेय ने अपने वक्तव्य के दौरान कहा कि, कविता मैदान में प्रवाहित किसी नदी की तरह होती है। नदी के दोनों किनारे प्रवाह को नियंत्रित करते हैं, तभी लहरों की कल-कल में मोहक संगीत सुनाई देता है। डॉ. कनकलता तिवारी की कविताएँ भी मन में प्रवाहित भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति हैं। अपनी सोच, सरोकार और अपने नज़रिये से डॉ. कनकलता अपने अंतर्मन की भावनाओं पर नियंत्रण रखती हैं। उन्होंने समय और समाज के सवालों के साथ ही अपनी परम्परा और संस्कृति को अपनी अभिव्यक्ति का ज़रिया बनाया है। उनकी कविताओं में नारी अस्मिता के साथ ही भूख, ग़रीबी और देश प्रेम भी परिलक्षित होता है। सावन और आषाढ़ के साथ तीज त्यौहार और उत्सव भी हैं। मन की कोमल अनुभूतियों के साथ ही निजी अनुभवों और स्मृतियों के चित्र भी हैं। उनकी काव्य अभिव्यक्ति में सहजता और संप्रेषणयता है। देवमणि पांडेय ने उम्मीद व्यक्त की कि विविध रंगों और सुगंधों से समृद्ध कनकलता का यह संग्रह पाठकों को अवश्य पसंद आयेगा।

अतिथि वक्ता के रूप में उपस्थित सृजनिका पत्रिका के उपसंपादक राजेश सिन्हा के अनुसार, डा. कनकलता की कविताओँ में जीवन का फलसफा, उसकी कड़वी सच्चाई, मानव मन की उथल-पुथल, अनुभूतियों और स्नेहसिक्त संबंधों में उठने वाले संवेगों के अनेक तत्व गुंधे हुए हैं। जिनके सारे अणु मिलकर एक ऐसा परिदृश्य सामने लाते हैं जहाँ सब कुछ साफ-साफ दिखाई देने लगता है। अमलतास के फूल में संग्रहित कविताएँ मन की पीड़ा, आकुलता, संवेदना और दिल के कोमल से रेशे को स्पर्श करती हुई कवयित्री के मन की गहराइयों और उससे पनपी पीड़ा एक बृहद रूप लेकर समाज की पीड़ा बन जाती है। कनक की कविताओं में विविधता है, तरह-तरह के बिंब हैं जो हमारी सूक्ष्म संवेदना को उद्वेलित कर देती हैं। वर्त्तमान समाज के सामाजिक, राजनैतिक आर्थिक और व्यावहारिक समाज का खाका तैयार करती हुई नजर आती है। कवयित्री की संवेदना के आयामों को शब्दो में व्यक्त करता यह संग्रह अवश्य पढ़ा जाएगा।

वक्ता के रूप में उपस्थित कवि एवं विचारक कृपाशंकर मिश्र कहते हैं- डॉ. कनकलता जी के द्वारा लिखित काव्य संग्रह अमलतास के फूल समाज की विद्रूपता के साथ संघर्ष करता दिखायी देता है। इसमें मानवीय पीड़ा है, सुखद अनुभूति है, जिजीविषा है और शांति को तलासती सुखद आनंद की परिकल्पना है, इसमें प्रश्न है तो उत्तर भी है। कनक की रचनाएँ आज की आधुनिक नारी को ललकारने का काम भी करती हैं। स्त्री शापित नहीं वरन शाप देने के लिए तत्पर है, पलायन उसे स्वीकार नहीं है, सूरज की तरह जलकर प्रकाश फैलाने की बातें करती हैं, मौन की भाषा में किसी क्रान्ति का आह्वान करती हैं। आराधना से ईश्वर का स्मरण और फिर अंत में आनंद की बासुरी के बीच सामाजिक विषमता के साथ जीवन की संगति बिठाती हुई नजर आती है। असहजता को सहज बनाना शायद समय की आवश्यकता है। सामाजिक अंतर्विरोधों के साथ इसका समर्पण भाव प्रतिभाषित होता है। इसका भावपक्ष, कलापक्ष, बिम्ब और संगीतपक्ष काव्य संग्रह की विशेषता है।

रंगकर्मी एवं साहित्यकार विजय पंडित जी ने बधाई देते हुए कहा- कनकलता जी के पहले काव्य संग्रह मौन के मुखर से लेकर उनके तीसरे काव्य संग्रह अमलतास के फूल तक की यात्रा का साक्षी रहा हूँ। वर्तमान समय में विमर्श की परंपरा चल पड़ी है, जिसमें स्त्री विमर्श पर अत्यधिक चर्चा होती है। कनकलता के काव्य संग्रह में भी स्त्री अस्मिता विषयक ढेरों प्रश्न उठाये गए हैं परंतु ये कविताएँ पितृसत्ता के विरोध में नहीं है। कनक की कविताएँ जड़ संस्कारों को तोड़ती हुई नजर आती हैं। उनकी कविताओं में सत्य के साथ, भोगा हुआ यथार्थ भी है। उन्होंने लेखन के जिस पक्ष को भी चुना है उसे निष्पक्ष रूप से कागज़ पर उतारा भी है।

प्रकाशक राजीव मिश्रा ने अपने वक्तव्य में कहा- साहित्य प्रकाशित होने के बाद, सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है, उस साहित्य की चर्चा। बिना साहित्य विमर्श के किसी साहित्य की संकल्पना, सृजन और प्रकाशन अधूरा है। साहित्य विमर्श के लिए मुंबई शहर में चित्रनगरी संवाद मंचकी भूमिका महत्वपूर्ण है। यदि आपके साहित्य, आपके पुस्तक पर चर्चा नहीं होगी तो जो गलतियाँ हुई हैं, उनका दोहराव होना संभावित है। अतः चर्चा होना अनिवार्य है। उन्होंने कहा- जब मैं कविताएँ पढ़ने लगा तो कुछ कविताएँ और कविताओं से हल्की लगी तो मेरा सुझाव था कि ऐसी कविताओं को संग्रह में जोड़ा जाए परंतु कनकलता जी का जो उत्तर मुझे मिला उससे मैं प्रभावित हो उठा”। उनका जवाब था, ये कविताएँ मेरे सृजन की साथी हैं, मेरे सृजन के सफर का उतारचढ़ाव हैं। मैं इन्हें संग्रह से काट नहीं सकती”। यह काव्य संग्रह उनके विकास क्रम के यात्रा का चिन्ह है। उसे सहज रूप से ग्रहण किया जाय और भावी रचना के लिए शुभकामनाएँ प्रदान की।

कनकलता ने अपने वक्तव्य के दौरान साझा किया- बड़े घर की होने के बावजूद भी वे हमेशा पर्दे में घिरी रही। वो एक ऐसे समाज से आईं हैं, जहाँ स्त्रियों पर परंपरागत संस्कार डाले जाते हैं। शायद मेरे अंतर के मौन को मुखर होने का रास्ता चाहिए था जो भाषा मुझे कविता और कहानी ने दी। मेरे अन्तर की ध्वनी ही मेरी कविता है। घर से निकलकर मुंबई तक की उनकी यात्रा संघर्षमय रही। उनकी रचनाधर्मिता में कई लोग सहयोगी बनें, जिसमें मुख्य रूप से विजय पंडित और उनकी जीवनसंगिनी मृदुला पंडित का बहुत सहयोग रहा। कनकलता के लिए कविता एक तीर्थ यात्रा की तरह है जो ह्रदय को शुद्ध करती हुई सारे अधिकारों से मुक्त होती है। हर रचनाकार जानता है, सच और सपना दुनिया में वैसा नहीं होता जैसा दिखाई देता है फिर भी रचनाकार अपने सच को पकड़े रहना चाहता है। विश्व के मानचित्र पर अपनी कविता का एक छोटा सा घरौंदा कनकलता ने भी बनाया। तीसरे घरौंदे के रूप में अमलतास के फूलके लिए उन्हें ढेरों शुभकामनाएँ।

काव्य पाठ के सत्र में कवि और कवयित्रियों ने अपनी विविधरंगी कविताओं से माहौल को ख़ुशगवार बना दिया। कवियों की टीम में शामिल थे- डॉ कनक लता तिवारी, गुलशन मदान, डॉ रोशनी किरण, रीमा राय सिंह, प्रज्ञा मिश्र, रीता कुशवाहा, अम्बिका झा, माया मेहता, अर्चना वर्मा, सुरभि मिश्रा, सविता दत्त, के पी सेक्सेना, प्रदीप गुप्ता, अनिल गौड़, प्रिंस ग्रोवर, प्रदीप मिश्रा, सौरभ दुबे, हीरालाल यादव, राजीव मिश्रा, अजय बनारसी, क़मर हाजीपुरी, अनुज वर्मा, ताज मोहम्मद सिद्दक़ी, आरिफ़ महमूदाबादी और मोईन अहमद दहेलवी। हँसते-मुस्कराते ठहाकों और तालियों के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।

चित्रनगरी संवाद मंच में धरोहर के अंतर्गत गायक आकाश ठाकुर ने संत कवि कबीरदास की सुप्रसिद्ध ग़ज़ल हमन हैं इश्क़ मस्ताना पेश की। कार्यक्रम का सुरुचिपूर्ण संचालन डॉ मधुबाला शुक्ल ने किया।

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(लेखिका साहित्यकार हैं और लेखिका साहित्यिक विषयों पर लिखती रहती हैं।)

 

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