भारत पाकिस्तान को तबाह करके आतंकवाद के नासूर की स्थायी सर्जरी कर सकता था। बहुत होता तो चीन की मदद से पाकिस्तान भारत के दो-चार और फाइटर जेट गिरा देता लेकिन पाकिस्तान का तो नाम ही दुनिया के मानचित्र से हमेशा के लिए मिट जाता। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर भारत का हिस्सा होता। पिछले पांच दशक से आतंकवाद से जूझ रहा भारतीय जनमानस तन-मन-धन से इसके लिए तैयार भी था। भारत जानता था कि ऐसे मौके इतिहास में एकाधबार ही आते हैं। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पता नहीं किस डर से युद्धविराम पर सहमत हो गए। अब दुनिया के सेटेलाइट इमैज के एक्सपर्ट ने एक्स (ट्ववीटर) पर खुलासा किया है कि भारत की ब्रह्मोस मिसाइल पाकिस्तानी सेना के बेस सरगोधा में Kirana Hills पर गिरी थी। जिससे पाकिस्तान के अस्तित्व समाप्त होने का ख़तरा पैदा हो गया था। मोदी की यह ऐतिहासिक गलती थी, जिसे यह देश कभी माफ़ नहीं करेगा।
Operation Sindoor: एक संभावित निर्णायक कार्रवाई
‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ की गई सीमित सैन्य कार्रवाई थी, के दौरान ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल पाकिस्तान के सरगोधा स्थित किरणा हिल्स (Kirana Hills) में गिराई गई। यह पाकिस्तान के अस्तित्व को सीधी चुनौती देने वाली सैन्य कार्रवाई थी। दरअसल, किराना हिल्स वही जगह है जिसे पाकिस्तान अपनी परमाणु क्षमता के परीक्षण और भंडारण स्थल के रूप में प्रयोग करता रहा है। 1980 के दशक में पाकिस्तान और चीन के सहयोग से यहां भूमिगत परमाणु सुरंगों की पहचान हुई थी। अगर भारत ने इस पर हमला किया, तो यह सामान्य सैन्य कार्रवाई नहीं थी, बल्कि यह एक संकेत था कि भारत अब केवल ‘रणनीतिक धैर्य’ नहीं, बल्कि ‘निर्णायक आक्रामकता’ की ओर बढ़ रहा है।
ऐसा मौका बार-बार नहीं आता
भारत के पास यह अवसर था कि वह न केवल पाकिस्तान को उसकी हरकतों की कीमत चुकवाए, बल्कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) को भारत में मिलाकर एक ऐतिहासिक लक्ष्य भी प्राप्त करे। देश की जनता, मीडिया, सेना और राजनीतिक नेतृत्व — सभी इस समय एक ही भाव में बंधे हुए थे: अब नहीं तो कभी नहीं। ब्रह्मोस मिसाइल का सरगोधा में गिरना कोई छोटी बात नहीं थी। यह पाकिस्तान के परमाणु अवसंरचना के बिलकुल पास हमला था। अगर भारत ने इसके बाद और मिसाइलें चलाई होतीं, तो पाकिस्तान के रणनीतिक ठिकानों को ध्वस्त किया जा सकता था। भले ही पाकिस्तान चीन की मदद से दो-चार भारतीय फाइटर जेट गिरा देता, लेकिन समग्र युद्ध में भारत की बढ़त स्पष्ट थी।
तो फिर युद्धविराम क्यों?
इतिहास में कई बार युद्ध सिर्फ सैन्य शक्ति से नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय दबाव, कूटनीति और आंतरिक राजनीति के चलते भी रुकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह फैसला कि इस निर्णायक क्षण पर ‘युद्धविराम’ स्वीकार किया जाए, कई सवाल खड़े करता है।
कुछ संभावित कारण
1. अमेरिका और चीन का दबाव
पाकिस्तान की परमाणु क्षमता के कारण अमेरिका हमेशा ही दक्षिण एशिया में ‘संयम’ की वकालत करता रहा है। भारत द्वारा अगर व्यापक हमले किए जाते, तो पाकिस्तान की ओर से ‘परमाणु हमले’ की धमकी को लेकर अमेरिका हस्तक्षेप कर सकता था। अमेरिका को डर था कि अगर पाकिस्तान की सत्ता ढहती है, तो उसके परमाणु हथियार आतंकवादियों के हाथ में जा सकते हैं।
2. चीन का अप्रत्याशित हस्तक्षेप
चीन, जो पाकिस्तान का रणनीतिक सहयोगी है, भारत के खिलाफ अपने सीमावर्ती इलाकों में सैन्य गतिविधियां बढ़ाकर भारत पर दोतरफा दबाव बना सकता था। डोकलाम और गलवान जैसी घटनाएं पहले से ही इस तनाव की मिसाल हैं।
3. देश की अर्थव्यवस्था और युद्ध की लागत
पूर्ण युद्ध में भारत को भले ही सामरिक जीत मिल जाती, लेकिन इसकी आर्थिक कीमत बहुत अधिक होती। कोरोना महामारी के बाद भारत की आर्थिक स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हुई थी। लम्बे युद्ध की स्थिति में वैश्विक बाजारों से निवेश हटता, ऊर्जा आपूर्ति बाधित होती और घरेलू महंगाई पर असर पड़ता।
4. राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन
भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था है, जहां हर निर्णय का राजनीतिक मूल्यांकन होता है। हो सकता है कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने यह समझा हो कि सीमित सफलता के साथ युद्ध रोकना, पूर्ण युद्ध में उलझने से बेहतर है।
क्या यह एक चूक थी?
सवाल यही है कि क्या यह रणनीतिक संयम था या ऐतिहासिक चूक? देश के कई रणनीतिक विशेषज्ञ और पूर्व सैनिक अधिकारी मानते हैं कि भारत को इस मौके का लाभ उठाना चाहिए था। पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र (Failed State) की श्रेणी में है। इसकी अर्थव्यवस्था, सामाजिक संरचना और सुरक्षा ढांचा सभी बिखराव की स्थिति में हैं। कई आलोचकों का मानना है कि भारत ने 1971 के बाद पहली बार ऐसा स्पष्ट मौका पाया था जब वह पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई कर सकता था। यदि भारत POK को आज़ाद करा लेता, तो पाकिस्तान को दोबारा भारत विरोधी आतंक का अड्डा बनने में कई दशक लगते।
ब्रह्मोस मिसाइल और संदेश की ताकत
ब्रह्मोस मिसाइल के प्रयोग ने निश्चित रूप से पाकिस्तान को झकझोर दिया। ब्रह्मोस, भारत और रूस के सहयोग से बनाई गई एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है जो 300 से 800 किलोमीटर तक की दूरी पर लक्ष्य भेद सकती है। इसकी गति, सटीकता और ध्वनि से तेज गति इसे दुश्मनों के लिए बेहद खतरनाक बनाती है। सरगोधा में इसका गिरना कोई चेतावनी नहीं, बल्कि “हम सक्षम हैं और तैयार भी” का स्पष्ट संकेत था। पाकिस्तान को यह समझ आ गया कि भारत अब सिर्फ कूटनीतिक नोट नहीं, बल्कि मिसाइलों के ज़रिए भी संवाद कर सकता है।
आगे का रास्ता: संयम या निर्णायकता?
भले ही Operation Sindoor रुक गया हो, लेकिन इससे भारत की रणनीतिक स्थिति मजबूत हुई है। अब पाकिस्तान जान चुका है कि भारत केवल प्रतिक्रिया देने वाला देश नहीं रहा, बल्कि पहल कर सकने वाला शक्ति-संपन्न राष्ट्र बन चुका है। अब भारत को तय करना है कि क्या हर बार निर्णायक मौके पर युद्धविराम ही उसका अंतिम कदम होगा, या फिर एक दिन वह निर्णायक आघात कर पाकिस्तान के ‘आतंकवाद निर्यातक’ अस्तित्व को खत्म करेगा।
इतिहास ठहरता नहीं
Operation Sindoor भले ही अधूरा रह गया हो, लेकिन इसने भारत की सैन्य क्षमता और रणनीतिक सोच को स्पष्ट कर दिया। यह एक ‘मिस की गई ऐतिहासिक संभावना’ हो सकती है, लेकिन यह भी हो सकता है कि भारत ने जानबूझकर आधे रास्ते पर रुककर अगली बार के लिए एक बड़ी योजना तैयार रखी हो। एक प्रसिद्ध कहावत है — “युद्ध वही जीतता है जो सही समय पर सही निर्णय लेता है।” हो सकता है, अगला सही समय अभी आना बाकी हो।
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