जनसांख्यिकीय और मानवीय दृष्टिकोण से रेलवे प्रशासन से सीधी माँग
भारतीय रेलवे का मीरा रोड संभवतः इकलौता रेलवे स्टेशन है जिसमें शारीरिक रूप से कमज़ोर लोग ड्यूटी ऑवर्स में ट्रेन में घुस ही नहीं सकते। यहां तक कि एसी लोकल में भी लोग नहीं चढ़ पाते। इस कारण हर एसी लोकल यहां पांच से सात मिनट तक रुकी रहती है, क्योंकि इस स्टेशन पर यात्रियों को कोच में ठूंसना पड़ता है। दरअसल, मीरा रोड में ट्रेन पकड़ना टेढ़ी खीर है। मीरा रोड स्टेशन एक ऐसा दुर्लभ उदाहरण बन चुका है, जहां की भीड़ न केवल सिस्टम को चुनौती देती है, बल्कि यात्रियों की शारीरिक और मानसिक परीक्षा भी लेती है। 2025 तक मीरा रोड की आबादी 6 से 7 लाख के बीच पहुँच चुकी है और यह लगातार बढ़ रही है। इस तेज़ी से फैलते उपनगर में रहने वाले लाखों लोग रोज़ाना मुंबई की ओर काम के लिए निकलते हैं। लेकिन अफसोस की बात यह है कि मीरा रोड से एक भी लोकल ट्रेन की शुरुआत नहीं होती, जिससे लोगों को मुंबई जाने के लिए बहुत कठिनाई से गुजरना पड़ता है।
जब ट्रेन चढ़ना बन जाती है ताकत की परीक्षा…
मीरा रोड स्टेशन की सबसे भयावह पहचान बन चुकी है — ट्रेन पकड़ना टेढ़ी खीर है। पीक आवर्स यानी सुबह 8 से 10 और शाम 6 से 8 के बीच इस स्टेशन पर ट्रेन में चढ़ पाना आम आदमी के लिए एक दैनिक संघर्ष है। शारीरिक रूप से कमज़ोर, बुज़ुर्ग, महिलाएं, दिव्यांगजन — इन सभी के लिए यह एक असंभव कार्य जैसा हो चुका है। यहां तक कि महंगे टिकट वाली एसी लोकल ट्रेन में भी लोग चढ़ नहीं पाते, क्योंकि कोच पहले से ही ठसाठस भरे होते हैं।
दरअसल, मीरा रोड वो स्टेशन बन चुका है जहां एसी लोकल को 5 से 7 मिनट तक ठहराना पड़ता है, क्योंकि यात्री ट्रेन में किसी तरह “ठूंसे” जाते हैं। यह न केवल सुरक्षा के लिहाज़ से खतरनाक है, बल्कि इंसानियत और रेलवे की योजना व्यवस्था पर भी एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।
जनसंख्या के अनुपात में सुविधाओं की भारी कमी
- 6–7 लाख की जनसंख्या में से करीब 60% यानी लगभग 4 लाख लोग कामकाजी आयु वर्ग में आते हैं।
- इनमें से 40 प्रतिशत यानी 1.3–1.4 लाख लोग रोज़ाना लोकल ट्रेन से यात्रा करते हैं।
- इसके बावजूद मीरा रोड से एक भी लोकल ट्रेन रवाना नहीं होती।
यह आँकड़ा अपने-आप में एक गहरी विडंबना को उजागर करता है — इतनी बड़ी संख्या में लोग मीरा रोड से यात्रा करते हैं लेकिन उनके लिए यहां से यात्रा प्रारंभ करने की कोई सुविधा नहीं है। उन्हें या तो विरार से आ रही भीड़भाड़ वाली ट्रेन में घुसना पड़ता है, या फिर बोरीवली से रवाना हो चुकी ट्रेन को किसी तरह पकड़ने की जद्दोजहद करनी पड़ती है।
मालाड, नालासोपारा से ट्रेन तो मीरा रोड से क्यों नहीं
रेलवे प्रशासन की ओर से जब भी मीरा रोड से लोकल ट्रेन शुरू करने की माँग उठाई जाती है, तो जवाब होता है कि यहां केवल चार प्लेटफॉर्म हैं, इसलिए ट्रेन शुरू नहीं की जा सकती। लेकिन यह तर्क तथ्यात्मक रूप से अधूरा और भेदभावपूर्ण लगता है, क्योंकि नालासोपारा और मालाड जैसे स्टेशनों पर भी केवल चार प्लेटफॉर्म हैं। फिर भी इन दोनों स्टेशनों से लोकल ट्रेन रवाना होती है, जिससे खासकर शारीरिक रूप से कमज़ोर या वरिष्ठ नागरिक यात्रा में आसानी महसूस करते हैं। यदि वहीं सुविधा नालासोपारा और मालाड में संभव है, तो मीरा रोड क्यों नहीं?
समाधान क्या है?
रेलवे के पास विकल्पों की कोई कमी नहीं है, बस इच्छाशक्ति और प्राथमिकता की ज़रूरत है।
- मीरा रोड से चर्चगेट के लिए सुबह कम से कम दो लोकल ट्रेनें चलाई जाएं।
- इससे मीरा रोड स्टेशन पर भीड़ का दबाव घटेगा और लोगों को राहत मिलेगी।
- स्टेशन पर ट्रेन प्रारंभ करने के लिए एक अतिरिक्त लूप लाइन या शेड्यूल स्लॉट तैयार किया जाए।
- प्लेटफॉर्म की कमी का रोना रोने से बेहतर है कि तकनीकी समाधान निकाला जाए, जैसा अन्य स्टेशनों में किया गया।
- स्पेशल सीनियर सिटीजन या महिला फ्रेंडली लोकल – मीरा रोड जैसे स्टेशन से यदि शुरुआत हो तो यह अन्य उपनगरों के लिए भी एक प्रेरणा बन सकता है।
शारीरिक रूप से कमज़ोर यात्रियों के लिए अपमानजनक स्थिति
- मीरा रोड की स्थिति उन लोगों के लिए और भी अमानवीय हो जाती है, जो शरीर से कमज़ोर हैं।
- ऐसे कई बुज़ुर्गों की रोज़ाना यात्रा इसी कारण बंद हो चुकी है, क्योंकि वे ट्रेन में चढ़ ही नहीं पाते।
- दिव्यांगों के लिए यह स्टेशन “एक्सेस डिनाइड” बन गया है, क्योंकि दिव्यांग में आम यात्री घुस जाते हैं।
- महिलाएं, खासकर गर्भवती या बच्चों के साथ यात्रा करने वाली, पूरी तरह असहाय महसूस करती हैं।
- यह स्थिति सिर्फ “यातायात” का मुद्दा नहीं है, बल्कि “सामाजिक न्याय और गरिमा” से जुड़ा मसला है।
मीरा रोड की आर्थिक और सामाजिक प्रगति पर असर
मीरा रोड मुंबई मेट्रो क्षेत्र का एक तेज़ी से उभरता हुआ उपनगर है। यहां की रियल एस्टेट, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की स्थिति लगातार बेहतर हो रही है।
लेकिन लोकल ट्रेन सुविधा न होने के कारण:
- नौकरीपेशा वर्ग को रोज़ाना मानसिक और शारीरिक थकान का सामना करना पड़ता है।
- महिलाएं देर शाम नौकरी करने से कतराती हैं, क्योंकि वापसी के समय ट्रेन पकड़ना असंभव हो जाता है।
हमारी माँग
हम, मीरा रोड के नागरिक और करदाता, भारतीय रेलवे से निम्नलिखित माँग करते हैं:
- मीरा रोड से चर्चगेट के लिए कम-से-कम 5 लोकल ट्रेनें (सुबह और शाम पीक आवर्स में) शुरू की जाएं।
- प्लेटफॉर्म की कमी का तकनीकी समाधान निकाला जाए, जैसा अन्य स्टेशनों में किया गया है।
- दिव्यांग, वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष कोच या प्राथमिकता टिकट सुविधा उपलब्ध कराई जाए।
- लोकल स्तर पर यात्रियों की राय लेकर रेलवे समय सारिणी तैयार की जाए।
निष्कर्ष
मीरा रोड जैसे भीड़भाड़ वाले और जनसंख्या-घनत्व वाले उपनगर से लोकल ट्रेन न चलाना एक योजना संबंधी विफलता है। यह केवल एक परिवहन समस्या नहीं है, बल्कि एक सामाजिक और प्रशासनिक असंतुलन का उदाहरण है।
यदि भारतीय रेलवे वाकई में “जन सेवा” और “जनसंपर्क” की बात करता है, तो मीरा रोड से लोकल ट्रेन शुरू करना उसकी ज़िम्मेदारी बनती है।
अब बहुत हुआ इंतज़ार। हमें ट्रेन चाहिए — मीरा रोड से, हमारे लिए।
यदि आप इस माँग का समर्थन करते हैं, तो इसे साझा करें, अपने स्थानीय जनप्रतिनिधि को लिखें, और रेलवे को सुनवाई के लिए बाध्य करें।
मीरा रोड बोलेगा-
हमें हमारी ट्रेन दो!
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