मुंबई, अपनी कहानियों, कला समीक्षा और संपादन से हंदी साहित्यिक दुनिया एवं कला–जगत को समृद्ध करने वाले वयोवृद्ध पत्रकार मनमोहन सरल का 91वां जन्मदिन समारोह एक यादगार और भावपूर्ण कार्यक्रम के रूप में मनाया गया। यह आयोजन न केवल उनके जीवन और लेखन की यात्रा को संजोने का अवसर था, बल्कि धर्मयुग परिवार की पुरानी स्मृतियों और उनके योगदान को भी एक नई दिशा देने वाला बन गया।
धर्मयुग की खट्टी-मीठी यादें साझा की
सहज स्वभाव और संवेदनशील दृष्टिकोण के धनी सरल ने अपने लेखन में मानवीय भावनाओं और समाज के ज्वलंत मुद्दों को बड़ी गहराई से अभिव्यक्त किया। धर्मयुग जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका से जुड़े रहकर उन्होंने पत्रकारिता को नई दिशा और ऊंचाई दी। उनका जीवन और कार्य एक ऐसा प्रेरणास्त्रोत है, जो आने वाली पीढ़ियों को सृजनशीलता और समर्पण का पाठ पढ़ाता रहेगा। मनमोहन सरल के जन्म दिन के कार्यक्रम की शुरुआत में धर्मयुग की खट्टी-मीठी यादें साझा की गईं। धर्मयुग परिवार के सदस्यों द्वारा भेजे गए भावभीने संदेशों को सुनाया गया और सरल जी के सरल स्वभाव, उनके साहित्यिक योगदान और कला समीक्षा पर चर्चा हुई।
लगभग चार दशक तक रहे धर्मयुग में
उत्तरप्रदेश नजीबाबाद में 28 दिसम्बर 1934 को जन्में मनमोहन सरल ने साइंस से बैचलर के अलावा कला से मास्टर और कानून की भी डिग्री हासिल की। उनकी पहली कहानी 1949 में प्रकाशित हुई और पहला कहानी संग्रह ‘प्यास एक : रूप दो’ 1959 में छपकर आया और बहुत चर्चित भी हुआ। उन्होंने 1958 में महानंद मिशन कालेज, गाज़ियाबाद में प्राध्यापक से शिक्षण करियर का प्रारंभ किया। 1961 में भारत के सर्वश्रेष्ठ और बहुचर्चित साप्ताहिक ‘धर्मयुग’ के उत्कर्ष काल में सहायक संपादक पद संभाला और 1989 तक कार्य किया।
अभिलाष अवस्थी की ग़ज़लें बनीं कार्यक्रम की शान
कार्यक्रम में विशेष आकर्षण प्रतिष्ठित गीतकार और ग़ज़लकार अभिलाष अवस्थी ने अपनी ग़ज़लों से ऐसा समां बांधा कि बांद्रा के पत्रकार नगर में साहित्य की शायद ही कभी ऐसी गूंज सुनाई दी हो। अभिलाष की ग़ज़लें और उनकी प्रस्तुति दोनों ही अद्वितीय रहे। उन्होंने धर्मयुग परिवार को साहित्य और पत्रकारिता के एक नए स्तर पर जोड़ने में अपनी अहम भूमिका निभाई। कार्यक्रम में धर्मयुग परिवार के सदस्यों, ओमप्रकाश सिंह, सुदर्शना द्विवेदी, हरीश पाठक, विनीत शर्मा, रमा कपूर और आशीष पाल ने सरल का शॉल, पुष्पगुच्छ से सम्मान किया और उनके बेहतर स्वास्थ एवं दीर्घायु होने की कामना की।
धर्मयुग की स्मृतियों को मिला नया आयाम
कार्यक्रम में चर्चा हुई कि यदि इस प्रकार की प्रस्तुतियां पहले से होतीं तो धर्मयुग, डॉ धर्मवीर भारती और उनसे जुड़े साहित्य को एक नया आयाम पहले ही मिल गया होता। हरिवंश ने कहा, “हम सब भारती जी के ही बनाए हैं और जो कुछ कर रहे हैं, उसमें धर्मयुग की निरंतरता झलकती है।” मनमोहन सरल कार्यक्रम के दौरान तीन घंटे तक पूरी ऊर्जा के साथ उपस्थित रहे। उन्होंने केक काटा, लड्डू खाया और नाश्ते का आनंद लिया। उनकी प्रसन्नता कार्यक्रम में उपस्थित हर व्यक्ति के लिए एक अद्भुत अनुभव थी।
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