तरुण भारत संघ की यात्रा और जलवायु परिवर्तन का समाधान

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सरोज कुमार

यात्राएं अक्सर समाधान का रास्ता दिखाती हैं। महात्मा गांधी की दांडी यात्रा ने देश को आजादी का रास्ता दिखाया। आचार्य विनोबा भावे की भूदान यात्रा ने भूमिहीनों को भूस्वामी बनाने का रास्ता दिखाया। कई राजनीतिक यात्राओं ने राजनेताओं को समाधान के रास्ते दिखाए। और अब जलवायु परिर्वतन के समाधान का रास्ता दिखाने एक अलग तरह की यात्रा शुरू हुई है। पानी और पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था, तरुण भारत संघ (तभासं) के पचास साल पूरे होने के उपलक्ष्य में इस यात्रा की शुरुआत आचार्य विनोबा की जयंती 11 सितंबर को हुई। यह यात्रा विनोबा को तरुण भारत संघ की एक सच्ची श्रद्धांजलि है। ’सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन से जलवायु परिवर्तन अनुकूलन व उन्मूलन अध्ययन यात्रा’ का उद्देश्य बड़ा है, जिस तरह दांडी और भूदान यात्रा का उद्देश्य बड़ा था।

जलपुरुष राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में यात्रा का शुभारंभ चंबल क्षेत्र के अधीन आने वाले धौलपुर (राजस्थान) जिले के मथारा गांव में किसान जागृति शिविर के साथ हुआ। यात्रारंभ के लिए मथारा को चुनने के पीछे की कहानी लंबी, मगर दिल को छू लेने वाली है। तीन नदियों की उद्गमस्थली मथारा न जाने कब से पानी के मामले में बेचारा बन गया था। हरियाली का दर्शन यहां के लिए किसी देव-दर्शन से कम नहीं था। पलायन यहां की प्रकृति बन गई थी और पेट-पालन के लिए लूट-पाट लोगों का पेशा। तरुण भारत संघ ने पूरी परिस्थिति का अध्ययन किया और फिर शुरू हुआ समाधान का अनुष्ठान। गांव वालों को उनके पौरुष, उनके पानी, और पानी-धानी के बारे में बताया, समझाया कराया। पानी सहेजने का काम शुरू हुआ। काम परिणाम में बदलने लगा। जिन नदियों में बारिश के मौसम में चुल्लू भर पानी नहीं होता था, वे अब गर्मी के मौसम में अविरल बहने लगीं। नदियां सदानीरा हो गईं। मथारा जल संरक्षण का मॉडल बन गया। पानी जीवन के साथ समृद्धि भी लाता है। मथारा में ऐसा ही हुआ। पेट की भूख मिटाने जो लूट-पाट पर निर्भर थे, अब वे दूसरों के पेट भरने लगे। मजदूर मालिक बन गए, अच्छी कास्त के किसान गांव की शान बन गए।

साल में 200 कुंतल गेहूं, 100 कुंतल सरसों पैदा करने वाले निर्भय सिंह शिविर में अपने अतीत को याद कर भावुक हो उठते हैं। तभासं, खासतौर से राजेंद्र सिंह की प्रशंसा में निशब्द, ’’…प्रशंसा में लिखना शुरू करूं तो रामायण जैसे कई ग्रंथ भर जाएंगे। हमें पेट के लिए क्या-क्या नहीं करने पड़े। मगर पानी ने हमारा जीवन बदल दिया। अब हम दूसरों के पेट भर रहे हैं। अनाज बेच रहे हैं। सबकुछ राजेंद्र बाबू के कारण हो पाया है। ये न होते तो आज हम नहीं होते। हमारा मथारा आज मथुरा (समृद्धि का प्रतीक) बन गया है।’’

शिविर में गांव के अन्य कई किसानों ने भी मथारा में आए इस बदलाव की गाथा जिस तरह सुनाई, उपस्थित लोगों की आंखें भर आईं। किसानों ने संकल्प लिया कि जहां-जहां पानी सहेजने का काम करने की जरूरत होगी, किया जाएगा और पूरे जिले को पानीदार बनाया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि जलवायु परिवर्तन के शमन की चाबी जल संरक्षण में छिपी हुई है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था एफएओ की तरफ से कई देशों में पानी, पर्यावरण और कृषि संबंधित मामलों के प्रमुख के तौर पर काम कर चुके कृषि विज्ञानी डॉ. प्रेम निवास शर्मा ने सरल शब्दों में किसानों को समझाया कि वे पानी के काम के जरिए सिर्फ अपना नहीं, पूरी दुनिया का भला कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पानी को सहेजना जलवायु परिवर्तन के शमन में सबसे बड़ा योगदान है।

तरुण भारत संघ के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह ने शिविर में पानी के भौतिक और अध्यात्मिक पक्षों की सांख्यिकी प्रस्तुत की और उदाहरणों के जरिए समझाया कि किस तरफ पानी ने इस इलाके को ’पानीदार, मालदार और इज्जतदार’ बनाया है। उन्होंने शिविरार्थियों का आह्वान किया कि पानी की यह पवित्र यात्रा उसकी प्रकृति की तरह अविरल जारी रहनी चाहिए, और तभासं इस अनुष्ठान में हर कदम जलाभिषेक के लिए तैयार है।

वयोवृद्ध गांधीवादी रमेश शर्मा ने पानी के शांति पक्ष का दर्शन प्रस्तुत किया, और नदी गीत के माध्यम से पानी का पूरा विज्ञान सामने रख दिया। यात्रा में हिस्सा लेने आए आगरा के सामाजिक कार्यकर्ता अनिल शर्मा ने मथारा में हुए पानी के इस पुण्य प्रयोग की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इसके पहले यात्रा की पूर्व संध्या पर 10 सितंबर, 2024 को आगरा स्थित शिरोज कैफै सभागार में राजेंद्र सिंह की अध्यक्षता में एक संगोष्ठी हुई, जहां जल कार्यकर्ताओं ने पानी और हवा के संकट पर गहन चिंतन-मंथन किया और ’सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन से जलवायु परिवर्तन अनुकूलन व उन्मूलन अध्ययन यात्रा’ निकाले जाने की प्रासंगिकता को रेखांकित किया।

मथारा में किसान जागृति शिविर के बाद यह यात्रा गांव की तीनों नदियों -बमाया, बामनी और खरवाई- के तट पहुंची और उसके बाद इलाके के अन्य जल स्रोतों के भ्रमण-दर्शन करते हुए आगे बढ़ गई। करौली में रात्रि विश्राम के बाद 12 सितंबर, 2024 को सुबह सात बजे यात्रा अपने अगले गंतव्य की तरफ चल पड़ी। जल-यात्रियों ने कोट गांव, तीन पोखर, मानखुर, श्यामा का पुरा और नया पुरा जैसे गांवों को पानीदार बना रहीं नदियों और तालाबों के भ्रमण किए और इन जल स्रोतों के पुनर्जीवन में भागीदार रहे किसानों के साथ संवाद किए।

यात्रा जैसे-जैसे आगे बढ़ी लोग जुड़ते गए। दोपहर में यह यात्रा देवनारायण मंदिर पहुंची, जहां किसान जागृति शिविर का आयोजन हुआ। यहां किसानों के साथ पानी और पर्यावरण के प्रबंधन पर चर्चा की गई। शिविर में कुल 11 गांवों के कोई 100 किसानों ने हिस्सा लिया। किसानों ने पानी के काम से प्राप्त अपने अनुभव साझा किए और आगे की अपनी योजनाएं भी प्रस्तुत कीं। किसानों ने बताया कि किस तरह पानी उनके जीवन में शांति और समृद्धि का स्रोत बनता जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि तरुण भारत संघ ने इस पूरे इलाके की समृद्धि के लिए ’पानीदार, मालदार और इज्जतदार’ जैसा नारा बुलंद कर रखा है। संस्था ने इसके लिए इलाके की 23 नदियों को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया है। कुछ नदियां पुनर्जीवित हो चुकी हैं और कुछ पर काम चल रहा है। संस्था ने इस काम में समाज को भागीदार और हिस्सेदार बनाने का एक पारदर्शी सहकारी मॉडल पेश किया है। पानी के किसी भी काम में लागत के दो हिस्से का प्रबंधन संस्था करेगी और एक हिस्से के साथ समाज को सहभागी होना होगा। सहकारिता का यह मॉडल चंबल के इस इलाके में सफलता और समृद्धि का मॉडल बनता दिखाई दे रहा है।

दिन भर के किसान जागृति शिविर के बाद यात्रा राजस्थान से हरियाणा की ओर बढ़ गई। हरियाणा के भिवानी जिले में स्थित तरुण भारत संघ के आश्रम में रात्रि विश्राम के बाद जल-यात्रियों ने 13 सितंबर, 2024 की सुबह गांव में उन जलसंरचनाओं का भ्रमण किया, जिनका उद्धार तभासं के कई सालों के अथक परिश्रम का परिणाम है। अरावली पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसा यह गांव अतिक्रमण, अवैध खनन और अंधाधुंध भू-जल दोहन के कारण बेपानी हो गया था। खेती और पीने के पानी का संकट इलाके के लिए किसी आपदा से कम नहीं था। जमीन के नीचे का पानी नमकीन हो गया था। तभासं के प्रयासों से एक बार फिर यह गांव पानी के मामले में अपने प्राकृतिक स्वरूप की ओर लौट रहा है।

सुबह के भ्रमण के बाद आश्रम में जलवायु परिवर्तन के शमन में जल प्रबंधन की भूमिका पर एक शिविर का आयोजन किया गया। कृषि एवं जलवायु विज्ञानी डॉ. प्रेम निवास शर्मा ने शिविरार्थियों को बड़ी बारीकी से समझाया कि वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का संतुलन किस तरह बिगड़ रहा है, उसके कारक क्या हैं और पानी का काम कैसे इस असंतुलन को संतुलित करने में योगदान कर रहा है। डॉ. शर्मा ने पॉवर पॉइंट प्रजेंटेशन के जरिए आंकड़ों के साथ समझाया कि पानी से पैदा होने वाली हरियाली वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को सोख कर जलवायु परिवर्तन को रोकने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

डॉ. शर्मा ने कहा कि वर्षों पहले राजेंद्र सिंह ने कहा था कि ’जल ही जलवायु है’। यह बात बिलकुल सच है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जो लोग पानी को सहेजने और हरियाली बढ़ाने के काम में जुटे हुए हैं, और अपने काम के जरिए कार्बन को वायुमंडल से कम कर रहे हैं, सरकार को चाहिए कि वह ऐसे लोगों को उनके काम का मुआवजा देने की व्यवस्था बनाए। इससे जलवायु परिवर्तन को रोकने के प्रयासों को गति मिलेगी।

पानी का नोबेल कहे जाने वाले स्टॉकहोम वाटर प्राइज (स्टॉकहोम जल पुरस्कार) से सम्मानित राजेंद्र सिंह ने इस मौके पर कहा कि पानी और हवा को प्राकृतिक स्वरूप लौटाने के उद्देश्य से शुरू हुई यह यात्रा पूरे देश और दुनिया भर में जाएगी, और इसके जरिए जलवायु परिवर्तन अनुकूलन व उन्मूलन के लिए जन जन को जागरूक किया जाएगा। लोगों को बताया जाएगा कि पानी का काम जलवायु परिवर्तन को रोकने में किस तरह भूमिका निभा रहा है और सभी को इस काम में सहभागी बनाने का प्रयास किया जाएगा। यात्रा के इस शुरुआती चरण में राजेंद्र सिंह, डॉ. प्रेम निवास शर्मा, रमेश शर्मा, सरोज मिश्र, अनिल शर्मा, रणवीर सिंह, दशरथ आदि लोगों के अलावा बड़ी संख्या में स्थानीय किसान शामिल रहे।