वाह रे ममता बनर्जी… “लड़की रात को निकली थी, इसलिए बलात्कार की वो खुद दोषी है?”

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भारत में बलात्कार के बाद अक्सर अपराधी नहीं, पीड़िता पर सवाल उठाए जाते हैं। लेकिन जब देश की एक महिला मुख्यमंत्री वही काम करती है — तो यह सिर्फ शर्म नहीं, स्त्री जाति के अपमान का ऐलान है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दुर्गापुर में हुई एक एमबीबीएस छात्रा के गैंगरेप पर बयान देकर पूरे देश को हिला दिया। उन्होंने पूछा, “वह 12.30 बजे रात को बाहर क्यों निकली? वह प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में पढ़ती थी, तो उसकी ज़िम्मेदारी किसकी है?” यानी साफ़ है, मुख्यमंत्री के मुताबिक़ — रात को बाहर निकलना ही बलात्कार का निमंत्रण है! वाह दीदी, क्या यही है “मां-माटी-मानुष” का संस्कार?

मुलायम के बाद ममता – भारत की शर्म

मुलायम सिंह यादव ने कभी कहा था, “लड़के हैं, गलती हो जाती है।” लोगों ने सोचा था, ऐसा बयान शायद किसी पुराने दौर की मानसिकता से आता है। लेकिन ममता बनर्जी का यह बयान दिखाता है कि स्त्री-विरोधी सोच की कोई पार्टी, कोई जेंडर नहीं होती। यह सोच सत्ता की कुर्सी पर बैठते ही इंसानियत को निगल जाती है।

पीड़िता नहीं, सोच दोषी है

“वह रात में बाहर क्यों निकली?” यह सवाल नहीं, आरोप है। यह वही गुलामी की सोच है जो मानती है कि औरत की सुरक्षा उसकी बंदिश में है। जो समाज और नेता यह सोचते हैं कि “लड़कियों को घर में रहना चाहिए”, वे असल में अपराधियों को यह संदेश दे रहे हैं कि “सड़कें तुम्हारी हैं, जो चाहो करो।” और यह सब उस ममता बनर्जी के मुंह से निकल रहा है, जिन्होंने खुद लाठियां खाई थीं, जेल गई थीं, आंदोलन किए थे। आज वही दीदी एक लड़की की आज़ादी को ही अपराध ठहरा रही हैं।

यह सवाल नहीं, एक तमाचा है

किसी रेप सर्वाइवर से यह पूछना कि वो रात में क्यों निकली, ऐसा है जैसे किसी मरे हुए इंसान से पूछना कि “मरने से पहले सांस क्यों ली थी?” अरे मुख्यमंत्री महोदया, क्या बलात्कारी रात में ही सक्रिय होते हैं? क्या दिन में हुए रेप के लिए भी यही तर्क देंगे, “वो दिन में क्यों निकली थी?” यह बयान सिर्फ असंवेदनशील नहीं, बल्कि संविधान की आत्मा पर वार है। क्योंकि राज्य की सुरक्षा का दायित्व किसी कॉलेज या हॉस्टल का नहीं, बल्कि आपकी सरकार का है, ममता दीदी!

‘जंगल क्षेत्र’ कहकर अपनी नाकामी ढकना

ममता ने कहा, “वह इलाका जंगल है, छात्राओं को नहीं निकलना चाहिए।” यानी मुख्यमंत्री खुद मान रही हैं कि उनका शासन जंगलराज है! अगर इलाका असुरक्षित है, तो वहां पुलिस किसलिए है? मुख्यमंत्री का काम कानून-व्यवस्था बहाल करना है, न कि महिलाओं को कर्फ्यू में रखना। इस बयान से अपराधियों को खुली छूट मिलती है, “जंगल है, जो चाहे करो।” अगर देश में कोई भी जगह औरतों के लिए असुरक्षित है, तो इसका मतलब है कि राज्य का प्रशासन नाकाम है, और मुख्यमंत्री ने हार मान ली है।

राजनीति में इंसानियत कब मरी?

जैसे ज़हर में मिठास घोलने की कोशिश की जाती है, वैसे ही ममता बनर्जी ने अपनी टिप्पणी के बाद कहा, “ओडिशा में समुद्र तट पर भी बलात्कार हुआ, वहां क्या कार्रवाई हुई?” यह क्या है? राजनीतिक बहाना या संवेदनहीनता का नया रिकॉर्ड? किसी और राज्य के अपराध गिनाकर अपने राज्य की नाकामी को धोया नहीं जा सकता। यह बयान साबित करता है कि राजनीति में अब इंसानियत से ज्यादा ज़रूरी है ‘तुलना की सुविधा’।

औरत की आज़ादी पर ‘कर्फ्यू’ लगाने वाली सोच

भारत की हर बेटी के कानों में यह सवाल गूंजता है, “रात में बाहर क्यों निकली?” यह वही सवाल है जो निर्भया से पूछा गया, जो हाथरस की बेटी से पूछा गया, जो उन्नाव की पीड़िता से पूछा गया, और अब दुर्गापुर की छात्रा से पूछा जा रहा है। हर बार वही पैटर्न, औरत की गलती खोजो, मर्द की सज़ा भूल जाओ। इस देश में बलात्कार के खिलाफ़ कानून तो बने, लेकिन सोच अभी भी मध्यकालीन है।

महिला मुख्यमंत्री, लेकिन मानसिकता पुरुषवादी

ममता बनर्जी उन चंद महिलाओं में हैं जिन्होंने पुरुष-प्रधान राजनीति को चुनौती दी। लेकिन सत्ता में बैठते ही शायद वही मानसिकता उन्हें भी निगल गई। एक महिला से यह उम्मीद थी कि वह बोलेगी, “हर लड़की को रात में, दिन में, कहीं भी जाने का हक़ है। राज्य उसकी सुरक्षा करेगा।” पर ममता ने कहा,“रात में बाहर नहीं निकलना चाहिए।” यह बयान सिर्फ पीड़िता का नहीं, हर भारतीय स्त्री का अपमान है।

नेता नहीं, मातृत्व की आवाज़ चाहिए थी

एक मुख्यमंत्री को ममता बनर्जी नहीं, ममता का रूप दिखाना चाहिए था। लेकिन उन्होंने सत्ता के तकिए पर रखकर इंसानियत को सुला दिया। अगर वह सच में गंभीर होतीं, तो कहतीं, “दोषियों को फांसी तक पहुंचाया जाएगा। लड़कियों की सुरक्षा राज्य का सम्मान है।” लेकिन उन्होंने कहा, “उन्हें बाहर नहीं निकलना चाहिए था।” इतना क्रूर, इतना असंवेदनशील जवाब शायद किसी अपराधी से भी उम्मीद न की जाए।

रात, सड़क और सम्मान — सबका हक़

ममता दीदी, याद रखिए, रातें किसी की निजी संपत्ति नहीं होतीं। सड़कें अपराधियों की जागीर नहीं होतीं। और औरत की आज़ादी पर कोई पहरा नहीं लगाया जा सकता।

अगर किसी मुख्यमंत्री को लगता है कि महिलाओं को अपनी सुरक्षा खुद करनी चाहिए, तो सवाल यह है, फिर राज्य सरकार किसके लिए है? क्यों न टैक्स देने वाले नागरिक खुद अपनी सरकार चुनना बंद कर दें?

अंत में…

ममता बनर्जी का यह बयान एक चेतावनी नहीं, एक स्वीकारोक्ति है, कि भारत की सत्ता में बैठे लोग आज भी औरत की आज़ादी से डरते हैं। वे चाहते हैं कि वह या तो घर में बंद रहे, या मौन रहे। लेकिन देश की बेटियां अब खामोश नहीं रहेंगी।

“ममता दीदी, रात को बाहर जाना अपराध नहीं, अपराध है वो सोच जो अब भी औरत की आज़ादी को गुनाह समझती है। अपराध है उस मानसिकता का जो अब भी औरत की आज़ादी पर पहरा चाहती है।”

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