कविता – अवांछित संतान!

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अवांछित संतान!

अपने माता-पिता की
मैं दूसरी संतान हूं
लेकिन लड़की हूं
लड़की उत्तराधिकारी नहीं होती
उससे वंश नहीं चलता
इसलिए,
मैं अवांछित संतान हूं!

मेरे माता-पिता की
पहली संतान भी
लड़की है
और अब
दूसरी मैं भी
लड़की ही हूं
इसलिए,
मैं अवांछित संतान हूं!

मेरे गर्भ में आते ही
मां रही भारी तनाव में
पूरे नौ महीने तक
उस पर था भयंकर दबाव
पैदा करने का लड़का
यानी वंश का उत्तराधिकारी
लेकिन
वह नहीं उतरी खरी
परिवार की उम्मीदों पर
और जन्म दे दिया
दूसरी लड़की
इसलिए,
मैं अवांछित संतान हूं!

इस पुरुष प्रधान समाज में
इस स्त्री विरोधी समाज में
इस पुत्र अभिलाषी समाज में
इस पुत्री विरोधी समाज में
मैं एक लड़की हूं।
परिवार के लिए हूं बोझ
क्योंकि मैं
भविष्य की स्त्री हूं
इसलिए,
मैं अवांछित संतान हूं!

मेरे जन्म से पहले
सब कुछ था ठीक
परिवार ख़ुशहाल था
माता-पिता के बीच
बेशुमार प्यार था
मेरे जन्म लेते ही
सब कुछ हो गया ख़त्म
इसलिए,
मैं अवांछित संतान हूं।

मेरे पिता ने
और शायद मेरी माता ने भी
चाहत की थी
एक पुत्र की
लेकिन हो गई मैं पुत्री
इसलिए,
मैं अवांछित संतान हूं!

अगर
लिंग परीक्षण वैध होता
तो शर्तिया हत्या हो गई होती
मेरी माँ के गर्भ में ही
क्योंकि मैं कन्या थी
गर्भ में मैं बच गई
गर्भपात नहीं हुआ
मेरी भ्रूण-हत्या नहीं हुई
और पैदा हो गई मैं
इसलिए,
मैं अवांछित संतान हूं!

मेरे पैदा होते ही
मेरी मां हो गई
अपराधी, ग़ुनाहगार
दूसरी लड़की पैदा करने की
उसने खो दिया
सारा मान-सम्मान
और पति का नैसर्गिक प्यार
इसलिए,
मैं अवांछित संतान हूं!

अगर मैं लड़का होती
तो मेरे जन्म पर
होता उल्लास और उत्सव
गाया जाता सोहर
बांटी जाती मिठाइयां
पर मैं तो पुत्री हो गई
और मेरे परिवार में
पसर गया सन्नाटा
इसलिए,
मैं अवांछित संतान हूं!

वैसे तो अब करते हैं सभी
मुझसे प्यार
परंतु
केवल और केवल
मेरी मां ही करती है
मेरी देखभाल
मेरा पालन-पोषण
मुझसे सच्चा प्यार
इसलिए,
मैं अवांछित संतान हूं!

इस संसार में
जैसे स्त्री
दोयम दर्जे की
नागरिक होती है
वैसे ही मैं भी
अपने ही परिवार में
दोयम दर्जे की
सदस्य हूं
इसलिए,
मैं अवांछित संतान हूं!

मेरी मां
जब लेती है
गोद में मुझे
मुझे प्यार करती है
मुझे चूमती है
लेकिन मैं देखती हूं
उसकी आंखों में
अपराधबोध
वंश को
वारिस न दे पाने का
अपराधबोध
मैं हूं वजह
इस अपराधबोध की
इसलिए,
मैं अवांछित संतान हूं!

मेरे पिता भी
करते हैं बहुत स्नेह मुझसे
मुझे चलाते हैं
उंगलियां पकड़ कर
गोदी में ले लेते हैं
चिपका लेते हैं अपने सीने से
परंतु जब-जब भी मैं
देखती हूं उन्हें
बहुत गौर से देखने पर उनके चेहरे पर
एक अल्फ़ाज़ चिपका
दिखता है मुझे
बेटा, काश तू पुत्र होती
मैं बेटा तो हूं, पर पुत्र नहीं हूं
इसलिए,
मैं अवांछित संतान हूं!

जैसे ईश्वर ने
मुझे पैदा कर दिया
अगर मुझे बड़ा कर दिया
मुझे स्त्री बना दिया
तब मैं मां के साथ रहूंगी
अपने नाम के आगे
उसका ही वरण करूंगी
परिवार-समाज का नज़रिया
बदल दूंगी मैं
यही मेरा मिशन होगा
मैं किसी और
नवजात कन्या को
नहीं बनने दूँगी
अवांछित संतान
क्योंकि
मैं ख़ुद अवांछित संतान हूं!

– हरिगोविंद विश्वकर्मा

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