आप भी बदल सकते हैं गुस्से को प्यार में…

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आजकल की व्यस्त एवं भागदौड़ की जिंदगी में गुस्सा आना आम बात है। बच्चे हो बूढ़े हो या फिर जवान, हर किसी को ग़ुस्सा आता है, लेकिन कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो अपने ग़ुस्से पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं, जिसका नतीजा बहुत भयावह होता है। कभी-कभी किसी दूसरे की ग़लती या चीज़ें अपने मुताबिक़ न होने से ग़ुस्सा आ ही जाता है। ऐसा होना बहुत स्वाभाविक है, क्योंकि ग़ुस्सा मानव का नेचुरल इमोशन है। रोज़मर्रा की ज़िदगी में वैसे भी तरह-तरह की परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है। ऐसे में हर चीज़ मन के मुताबिक़ हो ही नहीं सकती। लिहाज़ा, धीरज से काम न लेने पर ग़ुस्सा आ ही जाता है। वैसे, ग़ुस्सा आना बुरी बात नहीं है, लेकिन उसका बेक़ाबू हो जाना ज़रूर बुरा है। यह घातक नतीजा देता है और शांत होने पर पछताना पड़ता है।

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जानेमाने मनोचिकित्सक डॉ. पवन सोनार कहते हैं, “ग़ुस्सा भावना का एक रूप है। जैसे हम ख़ुश होते हैं, दुखी होते हैं या तनाव में आते हैं, उसी तरह हमें ग़ुस्सा भी आता है, लेकिन कभी-कभी ग़ुस्से की भावना व्यवहार और आदत में बदल जाती है। जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर असर डालने लगती है। तब ग़ुस्सा करने वाले के साथ दूसरों पर इसका सीरियस इंपैक्ट होने लगता है। इसलिए ज़रूरी है कि ग़ुस्से की सही वजहों की पहचान करके उस पर अंकुश रखें अन्यथा नुक़सान उठाना पड़ता है।” छोटी-छोटी बातों पर ग़ुस्सा होना यानी अपना ही ख़ून जलाना समझदारी भरा काम तो बिल्कुल नहीं है। पहले यह सोचना चाहिए कि आख़िर ज़्यादा ग़ुस्सा क्यों आ रहा है? इससे ज़िंदगी प्रभावित तो नहीं हो रही है। रिसर्च से पता चला है कि ज़्यादा ग़ुस्से से अपना ही नुक़सान होता है। हम मानसिक रूप से परेशान तो होते ही हैं, अक्सर रिश्ते पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। करियर ख़राब हो जाता है। बेक़ाबू ग़ुस्सा सामाजिक जीवन (Social Life) को भी प्रभावित करता है। ऐसे में कहने में गुरेज नहीं कि ग़ुस्सा हमें तहस-नहस करके चला जाता है, जिसकी पीड़ा हम लंबे समय तक महसूस करते हैं।

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पति-पत्नी का ग़ुस्सा तो अक्सर बड़े विवाद के रूप में तब्दील हो जाता है, जो बड़ा नुकसान करके ही शांत होता है। सबसे बुरी बात यह है कि ग़ुस्से में आदमी सही-ग़लत का भेद भूल जाता है। वह ऐसे-ऐसे शब्द बोल देता है, जो अंततोगत्वा स्थाई टीस की वजह बनते हैं। रिश्ते में ग़ुस्से का सामना शांत होकर करना चाहिए। एक व्यक्ति ग़ुस्से में है, तो दूसरे को चुप हो जाना चाहिए, बात संभालने की कोशिश करनी चाहिए। महान दार्शनिक अरस्तू ने कहा है कि ग़ुस्सा किसी को भी आ सकता है, लेकिन सही समय पर, सही मकसद के लिए और सही तरीक़े से ग़ुस्सा करना हर किसी के वश की बात नहीं है। ग़ुस्सा अगर क्रिएटिव है तो ज़रूर करना चाहिए, लेकिन अगर निगेटिव है तो ग़ुस्से से बचना चाहिए।

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आख़िर कैसे आता है ग़ुस्सा

ग़ुस्सा दरअसल मन के मुताबिक़ काम न होने की दशा में सामने आता है। आदमी प्रायः अपनी झुंझलाहट, चिड़चिड़ाहट और निराशा ग़ुस्से के रूप में व्यक्त करता है। यानी यह एक तरह का तेज़ रिएक्शन है। चूंकि यह नेचुरल इमोशन है इसलिए इससे पूरी तरह मुक्त होना मुमक़िन नहीं है। किसी को ग़ुस्सा आने पर हाथ-पैरों में रक्त संचार तेज़ हो जाता है, हार्टबिट्स बढ़ जाती हैं, एड्रिनलिन हॉर्मोन तेज़ी से रिलीज़ होता है। यह बदलाव शरीर को कोई ताक़त से भरा ऐक्शन लेने के लिए तैयार कर देता है। ग़ुस्सा उस समय पूरे व्यक्तित्व पर हावी हो जाता है। इससे शरीर में कुछ और रसायन रिलीज़ होते हैं, जो थोड़ी देर के लिए शरीर का एनर्जी लेवल बढ़ा देते हैं। इसी दौरान नर्वस सिस्टम में कॉर्टिसोल समेत थोड़े और रसायन निकलते हैं, जो शरीर और दिमाग़ को लंबे समय तक अपनी गिरफ़्त में लिए रहते हैं। इससे दिमाग़ उत्तेजित अवस्था में रहता हैं, जिससे विचारों का प्रवाह बहुत तेज़ी से होता है।

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ग़ुस्सा आने के कारण

  • अपेक्षाएं पूरी न होने से पैदा होने वाली निराशा गुस्से की वजह होती है।
  • रिजल्ट मन मुताबिक न होने से बेचैनी होती है। जो ग़ुस्से के रूप में व्यक्त होती है।
  • अगर कोई हमारी भावनाओं को हर्ट कर दे तो उस पर हमें गुस्सा आने लगता है।
  • लंबे समय तक ऊहापोह की स्थिति में रहने से परिणाम गुस्से के रूप में सामने आता है।
  • कोई धोखा करे तक दुख के साथ ग़ुस्से भी आता है।
  • आजकल वर्क प्रेशर के चलते भी लोगों में ग़ुस्सा आने लगा है।
  • कहीं किसी काम से गए हैं परंतु लाइन लंबी है तब भी ग़ुस्सा आता है।
  • सहनशक्ति कम होने पर छोटी-छोटी बात पर ज़्यादा गुस्सा आता है।
  • भय, निराशा और अपराध बोध की स्थितियों में भी गुस्सा आता है।
  • नया ट्रेंड यह है कि कमज़ोर लोगों पर शक्तिशाली लोगों को ग़ुस्सा आता है।

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करें सच का सामना

  • कोई भी इंसान दुनिया तो दूर अपने आसपास के लोगों और चीजों को नहीं बदल सकता। ऐसे में हालात को जस का तस स्वीकार कर लेना समझदारी भरा क़दम होता है।
  • किसी पर ग़ुस्सा आने पर कुछ बोलने से पहले धीमी आवाज़ में गिनती गिनें। इससे आपका ग़ुस्सा कंट्रोल हो जाएगा। रोम में यह नुस्खा बहुत प्रचलित है।
  • ग़ुस्सा आए तो उस जगह को छोड़कर कहीं और चले जाएं। थोड़ा इधर-उधर तफरी करके वापस आएं। जब चित्त शांत हो जाए तो अपनी बात को सहजता से रखें।
  • ग़ुस्से को तर्क के ज़रिए भी शांत किया जा सकता है। ग़ुस्सा आने पर मन में ही तर्क करें। जवाब मिल जाने से ग़ुस्सा ख़त्म हो जाएगा।
  • कोशिश करें कि शांत रहें। घर और ऑफिस की ढेर सारी जिम्मेदारियां चिड़चिड़ा कर सकती हैं, पर यथासंभव चुप रहने की कोशिश करें।
  • लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर भी ग़ुस्से को काबू किया जा सकता है। भागदौड़ कम करके अपने लिए रोज़ाना आधे घंटे का वक़्त निकालें।
  • पद्मासन बैठकर ओम का जाप करें। पद्मासन के अलावा सिंहासन, शवासन, मर्कटासन और अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका और भ्रामरी रोज़ाना करें। ग़ुस्से पर क़ाबू रख सकेंगे।
  • पानी ज्यादा पीएं। लिक्विड फूड का ज़्यादा सेवन करें। खाने में हरी सब्जियों ज़्याद हो तो ग़ुस्सा कम आता है।

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ग़ुस्सा अच्छी सेहत का संकेत

अमूमन यह माना जाता है कि ग़ुस्सा नुकसानदेह होता है। उसका बुरा प्रभाव तन व मन दोनों पर पड़ता है, लेकिन जर्नल साइकोलॉजिकल साइंस में प्रकाशित एक रिसर्च में यह पता चला है कि ग़ुस्सा बुरा नहीं, बल्कि अच्छी सेहत का संकेत है। यह भी पता चला है कि अत्यधिक क्रोध को कुछ लोग, ख़ासकर जापानी समाज बेहतर जैविक स्वास्थ्य से जोड़कर देखता है।

जैसा कि बताया गया है कि ग़ुस्सा एक तरह की भावना है। ग़ुस्सा आने पर हृदय की गति बढ़ जाती है; ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। इसीलिए इसे सेहत के लिए ठीक नहीं माना जाता है। इसीलिए ग़ुस्से को मानव के लिए नुक़सानदायक माना जाता है। University of Michigan के मनोचिकित्सक शिनोबु कितायामा कहते हैं कि क्रोध को बुरे स्वास्थ्य से जोड़कर देखना आमतौर पर पश्चिमी संस्कृति का हिस्सा है, जहां ग़ुस्से को मायूसी, निराशा, डिप्रेशन निर्धनता और उन कारकों से जोड़कर देखा जाता है, जो सेहत को नुक़सान पहुंचाते हैं। रिसर्चर्स ने अमेरिका और जापान में एकत्र किए गए आंकड़ों का अध्ययन किया। अच्छे स्वास्थ्य के स्तर को मापने के लिए उत्तेजना और हृदय से जुड़ी गतिविधियों का अध्ययन किया।

अध्ययन में पता चला कि अमेरिका में अत्यधिक क्रोध को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है, जबकि पूर्व के शोधों में भी कहा गया है कि अत्यधिक क्रोध को जैविक स्वास्थ्य के ख़तरे के स्तर में गिरावट लाने और अच्छे स्वास्थ्य की निशानी से जोड़कर देखा जाता है। कितायामा ने कहा कि अध्ययनों से पता चलता है कि सामाजिक-सांस्कृतिक कारक भी जैविक प्रक्रियाओं को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं।

कहानी – बदचलन

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ग़ुस्सा कैसे कंट्रोल करें

  • ग़ुस्से पर कंट्रोल करने के लिए ज़रूरी है, ख़ुद अपने बारे में ठीक से जानें कि आपका अपने प्रति व्यवहार कैसा है। आपको किसी बात पर ग़ुस्सा आख़िर क्यों आ रहा है।
  • शांत रहकर अपनी समस्याओं से लड़ने की क्षमता बढ़ाएं और विचार करें कि ग़ुस्सा वाकई जायज था।
  • अपने व्यवहार में यथासंभव बदलाव लाएं। ग़ुस्से आने पर यह भी सोचें कि इस ग़ुस्से से आपके अपने तो हर्ट नहीं हुए होंगे।
  • शांत होने के बाद आराम से बैठें और इस बात पर बहुत गहन विचार करें कि आपको आख़िर किस बात पर ग़ुस्सा आता है और क्यों आता है।
  • अगर मुमकिन हो तो जब भी ग़ुस्सा आए, थोड़ा पानी पी लिया करें।
  • जिसकी बात बुरी लगी हो अगर संभव हो तो उससे शांत होकर नाराज़गी ज़ाहिर कर दें।
  • कोशिश करें कि आपका अटेंशन डाइवर्ट हो जाए। आप कोई दूसरी बात सोचने लगें।
  • कहने का मतलब इस तरह की छोटी-छोटी बातों पर गौर करके आप ग़ुस्से पर काबू पा सकते हैं और भविष्य में ग़ुस्से से बच सकते हैं।

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सुकरात को नहीं आता था ग़ुस्सा

महान यूनानी दार्शनिक सुकरात के व्यवहार में बिल्कुल अहंकार नहीं था। वे सबको अपने बराबर मानते थे। सुकरात की पत्नी उनके स्वभाव के विपरीत बहुत ग़ुस्सैल थीं। वह हमेशा छोटी-छोटी बातों पर सुकरात से लड़ती थीं, लेकिन सुकरात एक भी शब्द नहीं बोलते थे। वे एकदम शांत रहते थे। उनके तानों का भी जवाब नहीं देते थे। पत्नी का व्यवहार और कटु हो जाने पर भी उनके अंदर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती थी। एक बार सुकरात शिष्यों के साथ गंभीर चर्चा कर रहे थे। उसी समय उनकी पत्नी ने आवाज लगाई, लेकिन चर्चा में मशगूल सुकरात का ध्यान पत्नी की ओर नहीं गया। पत्नी का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। उसने शिष्यों के सामने ही एक घड़ा पानी सुकरात ऊपर डाल दिया। शिष्यों को बहुत बुरा लगा। लेकिन शिष्यों की भावना समझकर सुकरात शांत स्वर में बोले, “मेरी पत्नी कितनी अच्छी है जिसने भीषण गर्मी में मेरे ऊपर पानी डालकर दिया। मेरी सारी गर्मी जाती रही।” सुकरात की सहनशीलता से शिष्य अभिभूत हो गए और पत्नी का क्रोध भी जाता रहा।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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