आपने भी ऐसा महसूस किया होगा कि कभी-कभी हम बीमार होने पर संयोग से ऐसे डॉक्टर के पास पहुंच जाते हैं, जो बहुत हंसमुख और ज़िंदादिल होता है। उसकी बात सुनकर ही लगने लगता है कि हम ठीक हो गए हैं, तो क्या वाणी में भी इंसान की बीमारी को दूर करने की ताक़त है? वाणी बीमारी दूर करती है या नहीं यह शोध का विषय हो सकता है, लेकिन बातों का मन-मस्तिष्क पर बहुत गहरा असर पड़ता है। तो क्यों न हम कबीर के दोहे पर अमल करते हुए हमेशा मीठी वाणी ही बोलें। मधुर संवाद यानी बातचीत भी एक तरह की थेरेपी है।
वाणी यानी बोल या बोली से ही सारे कार्य सधते हैं और वाणी से ही सारे कार्य बिगड़ भी जाते हैं। मीठी वाणी जहां बोलने वाले को सम्मान दिलाती है, वहीं अप्रिय वाणी से विवाद पैदा होता है, जो बोलने वाले की बेइज़्ज़्ती तक करवा देती है। कहने का मतलब वाणी बोलने वाले और सुनने वाले दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हम जिस इंसान से बात कर रहे हैं, वह किस तरह की बातें बोल रहा है, इसका हमारे ऊपर बहुत गहरा असर पड़ता है। कभी-कभी तो किसी की बात इतनी प्यारी लगती है कि उसे और सुनने का मन करता है। कॉलेज में भी कई प्रोफेसर मधुर वाणी के साथ सब्जेक्ट को इस तरह डील करते हैं, कि सभी छात्र सम्मोहित होकर उनकी बात सुनते हैं। कॉलेज में वह प्रोफेसर बड़ा लोकप्रिय हो जाता है। उसका पीरियड सबसे ज़्यादा छात्र अटेंड करते हैं।
किसी से मिलने पर उसकी बात सुनकर हम सहज़ सोचने लगते हैं, कितनी अच्छी बातें बोल रहा था या बोल रही थी। कहना न होगा कि मीठी बोली पॉज़िटिविट एनर्जी की स्रोत की तरह होती है। मीठी वाणी बोलने या सुनने से आसपास पॉज़िटिव एनर्जी पैदा होती है। जो हमें ख़ुश रखती है और यह ख़ुशी अंततः हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए रामबाण की तरह काम करती है।
वाणी के महत्व पर धर्मशास्त्रों के नज़रिए से दृष्टिपात करें तो यह इंद्रिय संयम के ज़रिए सुखी जीवन पाने का अहम सूत्र भी है, इसीलिए कहा गया है कि सांसारिक जीवन में मीठी वाणी के अभाव में दान-पुण्य, ज्ञान-अध्ययन या पूजा-पाठ का कोई मतलब नहीं रह जाता। यानी अगर आप मधुर भाषी हैं तो पूजा पाठ या दान-पुण्य न करें तो भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वहीं अगर आपकी बोली कड़वी है या आप अप्रिय बातें बोलते हैं तो आप लाख दान-पुण्य या पूजा-पाठ करें, आपको कोई फल नहीं मिलने वाला। आप अपनी निगेटिव ज़बान के कारण हमेशा परेशान रहेंगे और दूसरों को भी परेशान करते रहेंगे, क्योंकि वाणी का असर सीधे दिल और दिमाग़ पर पड़ता है। मीठे बोल जहां सामने वाले को ख़ुश ही नहीं करते, बल्कि उसमें पॉज़िटिव एनर्जी का संचार करते हैं, वहीं कड़वे बोल हृदय, मर्म और अस्थि को गहरा दु:ख पहुंचाते हैं।
वाणी के व्यावहारिक पक्ष पर गौर करें तो मीठे शब्दों से न केवल बोलने और सुनने वाले को सुकून मिलता है, बल्कि मीठी वाणी से हम दूसरों का मन भी मोह या जीत लेते हैं। कहने का मतलब मीठी वाणी का जादू भी सफलता का सूत्र है। इसलिए हमेशा ध्यान रखना चाहिए किसी से बोलते समय हमारी वाणी कैसी हो? शब्द कैसे हों? कौन से ऐसे ख़ास शब्द हैं, जिनका हर इंसान जीवनभर मेल-मिलाप या व्यवहार के दौरान उपयोग कर जीवनभर सुख बंटोर सकता है और इससे तंदुरुस्त रह सकता है?
भविष्य पुराण में वाणी की अहमियत और मिठास की महिमा का वर्णन किया गया है। कहा गया है कि मीठी वाणी चंदन की भांति शीतल और सुकून देती है, जिससे जीवन और मृत्यु के बाद भी सुख की अनुभूति होती है।
किसी नगर में एक सज्जन रहते थे। उनकी वाणी बहुत मधुर थी। जो उनके पास आता ख़ुश और संतुष्ट होकर जाता था। एक दिन एक व्यापारी आया जो ग़ुस्से में था। दरअसल, उसका इकलौता पुत्र घर छोड़ कर सज्जन के पास आ गया था। व्यापारी ने सज्जन पर अपशब्दों की बौछार कर दी। बहुत देर तक सज्जन को भला-बुरा कहता रहा। उसने नुक़सान पहुंचाने की धमकी भी दी। लेकिन सज्जन एक शब्द भी नहीं बोले। वह व्यापारी की खरी-खोटी सुनते रहे। उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं आई। उल्टे वह चुपचाप मुस्कराते रहे। अंतत: जब व्यापारी बोलते-बोलत थक गया।
तब सज्जन ने कहा, “जो शब्द आदमी के मुंह से निकलता है, वह बाहर आने से पहले उसकी जीभ को स्पर्श करता है? बुरे वचन दूसरों पर जैसा भी प्रभाव डालें, लेकिन सबसे पहले बोलने वाले के मुंह को ही कड़वा कर देते हैं। शायद तुम्हारा मुंह भी कसैला हो रहा है?” यक़ीनन व्यापारी का स्वाद कसैला हो गया था। सज्जन ने फिर कहा कि दुर्वचन की आग पहले दुर्वचन बोलने वाले को ही जलाती है। व्यापारी ने खिड़की के बाहर बगीचे में हंसी-खुशी पढ़ते हुए अपने बेटे को देखा। सज्जन की वाणी की पॉज़िटिव एनर्जी ने व्यापारी के मन का विकार दूर कर दिया। कहने का मतलब मधुर वाणी आत्मा को तृप्त करती है, जबकि कटु वाणी स्वयं सहित सभी को अशांत कर देती है।
अत: हमें हमेशा केवल और केवल मीठा यानी मधुर वाणी ही बोलनी चाहिए। मीठा बोलेंगे तो ख़ुश रहेंगे और ख़ुश रहने का मतलब स्वस्थ होना होता है। यानी तंदुरुस्त रहना चाहते हैं तो मधुर वाणी बोलिए।
लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा
Share this content: