ग़ज़ल लेखन के लिए बहर का ज्ञान ज़रूरी क्यों?
अगर आप शायर बनने की ख़्वाहिश रखते हैं तो आपके लिए बहर को जानना ज़रूरी है। ग़ज़ल की महत्ता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि साहित्य या संगीत में रूचि लेने वाला कोई व्यक्ति नहीं होगा जो, ग़ज़ल से परिचित न हो। कवि-सम्मेलन से लेकर मुशायरा तक, मंचीय गायन से लेकर फिल्मी गाने तक, उप-शासत्रीय गायन से शास्त्रीय संगीत तक, कब्बाली से लेकर हिंदुस्तानी संगीत तक ग़ज़ल हर जगह व्याप्त हैं। जिस प्रकार बाथरूम सिंगर होते हैं, उसी प्रकार टाइम-पास यानी शौक़िया कवि या शायर भी होते हैं। ये लोग कुछ पंक्ति लिखने का प्रयास करते हैं। ग़ज़ल, शेर, शायरी के प्रारूप में ही कुछ पंक्ति लिखने की कोशिश करते हैं। आज कल सोशल मीडिया के ज़माने में, ऐसे नौसिखिया कवियों एवं शायरों की बाढ़-सी आ गई है। यह स्थिति सुखद भी है, क्योंकि इन्ही नौसिखियों में से कुछ अच्छे कवि या शायर के रूप में भी उभर कर सामने आ रहे हैं। यह इसलिए भी सुखद स्थिति है कि अब कलमकार सोशल मीडिया की मदद से काव्य शिल्पों, काव्य-व्याकरण से परिचित होने का प्रयास कर रहे हैं।
यह खे़द की बात है कि ऐसे बहुत सारे शायर हैं जो अपने आप को ग़ज़लकार कहते हैं। ग़ज़लों की किताब भी छपवा लिए हैं, किंतु उन्हें ग़ज़ल शिल्प का ज्ञान नहीं है। अगर है तो आंशिक ज्ञान है। ज़्यादातर कवि या ग़ज़लकार ग़ज़ल के तीन मूलभूत शब्द रदीफ़, क़ाफ़िया और बहर में से रदीफ़ और क़ाफ़िया का पालन करते हुए तो दिखते हैं, किंतु बहर का पालन नहीं कर पाते। जबकि यह सर्वविदित है कि बिना बहर में लिखी गई बे-बहर ग़ज़ल ग़ज़ल होती ही नहीं है। इन्हें भाव प्रधान कविता कह सकते हैं, किंतु शिल्प विधान के अनुसार ग़ज़ल कदापि नहीं कह सकते। ऐसे कवियों और शायरों को ग़ज़ल शिल्प-विधान का अध्ययन, मनन और चिंतन करना चाहिए। फिर उनके ग़ज़ल लेखन विधा में निखार आ जाएगा। वे शायर या शायरा कहलाने का दर्ज़ा हासिल कर लेंगे। बेशक ऐसे कवियों में कई का भाव पक्ष बहुत प्रबल होता है। शब्द चयन और वाक्य विन्यास बेजोड़ होता है किंतु कमी ग़ज़ल शिल्प का न होना, उनके लेखन पर सवाल पैदा करता है, इसलिए ग़ज़ल लेखन के इच्छुक लोगों का बहर जानना अपरिहार्य है।
ग़ज़ल से परिचय
ग़ज़ल वस्तुतः अरबी साहित्य की प्रसिद्ध काव्य विधा है, जो फ़ारसी, उर्दू से होते हुए हिंदी यहां तक कि क्षेत्रीय बोली-भाषाओं में भी प्रवेश कर गया है। भारतीय संदर्भ में कह सकते हैं – ‘ग़ज़ल, गंगा-जमुनी तहज़ीब का संगम है।’ ग़ज़ल विभिन्न भाषाओं के साहित्यों का संगम स्थल है। हिंदी के अनेक रचनाकारों ने इस विधा को अपनाया। जिनमें सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, शमशेर, बलबीर सिंह रंग, भवानी शंकर, जानकी वल्लभ शास्त्री, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, त्रिलोचन आदि प्रमुख हैं। हालांकि इस विधा में सर्वाधिक प्रसिद्धि दुष्यंत कुमार को मिली।
ग़ज़ल क्या है?
ग़ज़ल एक ही बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का एक समूह है। ग़ज़ल कि इस परिभाषा में भी बहर को ही महत्व दिया गया है, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि बहर ग़ज़ल का प्राण है, इसलिए ग़ज़ल लिखने के लिए बहर को जानना बहुत ज़रूरी है। आमतौर पर ग़ज़लों में शेरों की विषम संख्या होती है (जैसे तीन, पाँच, सात…)। एक ग़ज़ल में जिसमें न्यूनतम चार ग़ज़लों से लेकर दस या उससे भी अधिक 25 शेर तक हो सकते हैं। एक ख़बर के अनुसार डॉ. अशोक पांडेय ‘गुलशन’ ने 43 शेर यानी 86 पंक्तियों की दुनिया की सबसे बड़ी ग़ज़ल लिखकर एशिया बुक ऑफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराया है। इन शेरों के भाव और अर्थ की दृष्टिकोण से एक दूसरे से जुड़े हुए अथवा स्वतंत्र भी हो सकते हैं।
ग़ज़ल के कुछ परिभाषिक शब्द
ग़ज़ल
ग़ज़ल शेरों का ऐसा समूह है जिसके प्रत्येक शेर समान रदीफ़ (समांत), समान क़ाफ़िया (तुकांत) और समान वज़न (मात्राक्रम) मतलब बहर (स्केल) में होते हैं। गैरमुरद्दफ ग़ज़ल में रदीफ़ नहीं होता किंतु बहर होना अनिवार्य माना जाता है।
शाइरी या शायरी
ग़ज़ल लिखने के लिए अपने विचारों को ग़ज़ल के पैमाने में पिराने अर्थात लिखने की प्रक्रिया को शाइरी या शायरी कहते हैं। ज़ाहिर है जो अपनी ग़ज़ल के प्रत्येक शेर को रदीफ़, क़ाफ़िया और वज़न यानी बहर (स्केल) में लिखता है, उसे शाइर या शायर या शायरा कहते हैं।
शेअर या शेर
समान रदीफ़ (समांत), समान क़ाफ़िया (तुकांत) और समान वज़न (मात्राक्रम) मतलब बहर (स्केल) में लिखे दो पंक्ति को शेअर कहते हैं।
ग़ज़ल का उदाहरण दुष्यंत कुमार की एक रचना से
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए।
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी।
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में।
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं।
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही।
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।।
-दुष्यंत कुमार
मिसरा
शेअर जो दो पंक्तियों का होता है, उसके प्रत्येक पंक्ति को मिसरा कहते हैं। शेअर की पहली पंक्ति को मिसरा-ए-उला कहते हैं और शेअर की दूसरी पंक्ति को मिसरा-ए-सानी कहते हैं।
मिसरा, मिसरा-ए-उला, मिसरा-ए-सानी के उदाहरण
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए (पहली पंक्ति – मिसरा-ए-उला)
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए (दूसरी पंक्ति – मिसरा-ए-सानी)
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही (पहली पंक्ति-मिसरा-उला)
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए (दूसरी पंक्ति-मिसरा-ए-सानी)
उपरोक्त चारों पंक्ति अलग-अलग मिसरे हैं।
मतला
ग़ज़ल के पहले शेर जिसके दोनों मिसरे में रदीफ़ और क़ाफ़िया हो उसे मतला कहते हैं।
मतला का उदाहरण
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए। (रदीफ़ – चाहिए, क़ाफ़िया – अलनी)
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।। (रदीफ़ – चाहिए, क़ाफ़िया – अलनी)
मक़ता
ग़ज़ल के आखरी शेर को मक़ता या मक़्ता कहते हैं, इस शेर में प्राय: शायर का नाम आता है।
मक़ता का उदाहरण
मैंने माना कि कुछ नहीं ‘ग़ालिब’।
मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है।।
ग़ज़ल के प्रकार
ग़ज़ल दो प्रकार के होते हैं।
मुरद्दफ ग़ज़ल-जिसके शे़रों में रदीफ़ होता है।
ग़ैर-मुरद्दफ ग़ज़ल-जिसके शे़रों में रदीफ़ नहीं होता है।
रदीफ़
रदीफ़ एक समांत शब्द (अंत में आने वाला समान शब्द) होता है जो मतला (ग़ज़ल के पहले शेर की दोनों पंक्ति) और सभी शेर के मिसरा-ए-सानी मतलब शेर की दूसरी पंक्ति में आता है।
रदीफ़ का उदाहरण
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
क़ाफ़िया
रदीफ़ के ठीक पहले आने वाले समतुकांत शब्द को क़ाफ़िया कहते हैं।
क़ाफ़िया का उदाहरण
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
वज़न या वज़्न
किसी शब्द के मात्रा भार या मात्रा क्रम को वज़न या वज़्न कहते हैं।
वज़न का नाम | मात्रा भार | उदाहरण शब्द |
फअल | 12 | असर, समर, नज़र ऩबी, यहाँ आदि |
फैलुन | 22 | राजन, राजा, बाजा, इसको आदि |
फाअ | 21 | राम, राज, आदि |
वज़न तय करना
शब्दों को बोलने यानी उसके उच्चारण में जो समय लगता है, उसके आधार पर शब्दों का वज़न को तय किया जाता है। इसके लिए प्रत्येक अक्षर का दो भार दिया गया है- एक को लाम और दूसरे को गाफ कहा जाता है।
लाम
जिन अक्षरों के उच्चारण में कम समय लगता है, उन्हें लाम कहते हैं। यह हिंदी छंदों में लघु मात्रा कहलाता है और इस तरह इसका वर्ण भार यानी वज़न 1 होता है।
हिंदी वर्ण माला के अ, इ, उ स्वर और इनसे बने व्यंजन एकमात्रिक यानी लाम कहलाते हैं।
जैसे- अ -1, इ-1, उ-1, क-1, कि-1, कु-1 इसी प्रकार आगे
चँद्र बिंदु युक्त व्यंजन भी लाम होते हैं जैसे कँ-1, खँ-1 आदि
गाफ़
जिन वर्णों के उच्चारण में लाम से ज़्यादा समय लगता उसे गाफ़ कहते हैं। यह हिंदी छंदों में दीर्घ मात्रा कहलाता है और इस तरह इसका वर्ण भार यानी वज़न 2 होता है।
हिंदी वर्णमाला के आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं स्वर और स्वरों से बनने वाले व्यंजन गाफ़ कहलाते हैं।
जैसे – आ-2, ई-2, ऊ-2, ए-2 आदि
का-2, की-2 कू-2 के-2 आदि
इसके अतिरिक्त जिन दो लाम या लघु वर्णो का उच्चारण एक साथ होता है उसे शाश्वत गुरु या गाफ कहते हैं। यही उर्दू साहित्य में हिंदी साहित्य की मात्रा गणना में भिन्नता है।
जैसे – घर, जल, शब्द हिंदी 1,1 है जबकि उर्दू साहित्य में यह 2 है क्योंकि इसका उच्चारण एक साथ हो रहा है।
‘अजर’ शब्द हिंदी में 111 है जबकी उर्दू साहित्य में अजर- अ-1 और जर-2 है।
रूकन
जिस प्रकार हिंदी छंद शास्त्र में ‘यमाताराजभानसलगा’ गण लघु गुरु का क्रम होता है उसी प्रकार उर्दू साहित्य में लाम और गाफ़ के समूह रूकन और बहुवचन में इसे अरकान कहते हैं।
रूकन के भेद
सालिम रूकन
मुजाहिफ रूकन
सालिम रूकन
उर्दू साहित्य में मूल रूकन को सालिम रूकन कहते हैं इनकी संख्या 7 होती है । ये इस प्रकार है-
क्रमांक | रूकन का प्रकार | रूकन का नाम | मात्रा वज़न | उदाहरण शब्द/वाक्यांश |
1. | फईलुन | मुतकारिब | 122 | हमारा |
2. | फाइलुन | मुतदारिक | 212 | रामजी |
3. | मुफाईलुन | हज़ज | 1222 | चलो यारा |
4. | फाइलातुन | रम़ल | 2122 | रामसीता |
5. | मुस्तफ्यलुन | रज़ज | 2212 | आओ सभी |
6. | मुतफाइलुन | कामिल | 11212 | घर में नहीं |
7. | मुफाइलतुन | वाफिर | 12112 | कबीर कहे |
मुजाहिफ रूकन
सालिम रूकन या मूल रूकन की मात्रा को कम करने से रूकन बनता है।
उदाहरण
सालिम रूकन – मुफाईलुन- 1222 के तीसरी मात्रा 2 को घटा कर 1 करने पर मुफाइलुन 1212 बनता है।
इसी प्रकार- मुस्तफ्यलुन- 2212 रूकन से मफाइलुन 1212, फाइलुन 212, मफऊलुन 222 बनाया जाता है।
अरकान
रूकन के समूह को अरकान कहते हैं, इससे ही बहर का निर्माण होता है।
जैसे- फाइलातुन मूल रूकन की पुनरावृत्ति करने पर
फाइलातुन / फाइलातुन / फाइलातुन / फाइलातुन /
बहर
ग़ज़ल जिस लय पर, जिस मात्रा पर, जिस मीटर पर लिखि जाती है, या जिस अरकान पर लिखी जाती है, उसे ही बहर कहते हैं।
वास्तव में बहर रूकनों से बनते हैं। रूकनों की पुनरावृत्ति से ही बहर का निर्माण होता है। जिस प्रकार हिंदी छंद शास्त्र में सवैया गणों की पुनरावृत्ति से बनते हैं उसी प्रकार ग़ज़ल का बहर रूकनों के पुनरावृत्ति से बनते हैं। इसलिए ग़ज़ल लेखन के लिए बहर को जानना ज़रूरी होता है।
जैसे- बहर-ए-रमल में रमल मजलब फाइलातुन की चार बार आवृती होती है-
फाइलातुन / फाइलातुन / फाइलातुन / फाइलातुन /
बहर का उदाहरण
फाइलातुन / फाइलातुन / फाइलातुन
2122 / 2122 / 2122
यह बहर फाइलातुन रूकन जिसका नाम रमल है, की तीन बार पुनरावृत्ति से बनाई गई है। इसी प्रकार किसी भी रूकन की पुनरावृत्ति से बहर बनाया जा सकता है।
बहर का नामकरण
बहर का नाम = रूकन का नाम + रूकन के पुनरावृत्ति का नाम + सालिम या मज़हूफ़
बहर का निर्माण रूकनों से होता है इसलिए जिस रूकन की पुनरावृत्ति हो रही है, उस मूल रूकन का नाम पहले लिखते हैं, फिर उस रूकन की जितनी बार पुनरावृत्ति हो रही है, उस आधार पर निश्चित पुनरावृत्ति के एक नाम निर्धारित है जिसे नीचे टेबल पर दिया गया, उसका नाम लिखते हैं अंत में रूकन मूल हो तो सालिम और यदि रूकन मूल न हो होकर मूज़ाहिफ़ या उपरूकन हो तो मज़हूफ़ लिखते हैं।
रूकनों के पुनरावृत्ति का नाम
पुनरावृत्त की संख्या | पुनरावृत्त का नाम |
2 बार | मुरब्बा |
3 बार | मुसद्दस |
4 बार | मुसम्मन |
बहर नामकरण का उदाहरण
- 2122 / 2122 / 2122 – फाइलातुन / फाइलातुन / फाइलातुन
- बहर का नाम = रूकन का नाम + रूकन के पुनरावृत्ति का नाम + सालिम या मज़हूफ़
- यहाँ रूकन का नाम रमल है, इसकी तीन बार पुनरावृत्ति हुई इसलिए मुसद्दस होगा और मूल रूकन है, इसलिए सालिम, इस प्रकार इस बहर का नाम ‘रमल मुसद्दस सालिम’ होगा।
- 2122 / 2122 / 212 – फाइलातुन / फाइलातुन / फाइलुन
- बहर का नाम = रूकन का नाम + रूकन के पुनरावृत्ति का नाम + सालिम या मज़हूफ़
- यहॉं मूल रूकन का नाम रमल है, इसकी तीन बार पुनरावृत्ति हुई इसलिए मुसद्दस होगा और किंतु तीसरे बार फाइलातुन 2122 के स्थान पर फाइलुन 212 आया है इसलिए मज़हूब होगा, इस प्रकार इस बहर का नाम ‘रमल मुसद्दस मज़हूब’ होगा। इस पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
मूल रूकन 7 होते हैं, इनकी तीन प्रकार दो बार, तीन बार या चार बार पुनरावृत्त किया जा सकता है, इसलिए मूल रूकन से कुल 21 प्रकार के बहर बनेंगे-
बहर | मूल रूकन का नाम | रूकन की पुनरावत्ति | रूकन का भेद | बहर का नाम |
122/ 122 | मुतकारिब | 2 बार, मुरब्बा | सालिम | मुतकारिब मुरब्बा सालिम |
122/ 122/ 122 | मुतकारिब | 3 बार, मुसद्दस | सालिम | मुतकारिब मुसद्दस सालिम |
122/122/122/122 | मुतकारिब | 4 बार, मुसम्मन | सालिम | मुतकारिब मुसम्मन सालिम |
212/ 212 | मुतदारिक | 2 बार, मुरब्बा | सालिम | मुतदारिक मुरब्बा सालिम |
212/ 212/212 | मुतदारिक | 3 बार, मुसद्दस | सालिम | मुतदारिक मुसद्दस सालिम |
212/ 212/212/212 | मुतदारिक | 4 बार, मुसम्मन | सालिम | मुतदरिक मुसम्मन सालिम |
1222/1222 | हजज | 2 बार, मुरब्बा | सालिम | हजज मुरब्बा सालिम |
1222/1222/1222 | हजज | 3 बार, मुसद्दस | सालिम | हजज मुसद्दस सालिम |
1222/1222/1222/1222 | हजज | 4 बार, मुसम्मन | सालिम | हजज मुसम्मन सालिम |
2122/2122 | रमल | 2 बार, मुरब्बा | सालिम | रमल मुरब्बा सालिम |
2122/122/2122 | रमल | 3 बार, मुसद्दस | सालिम | रमल मुसद्दस सालिम |
2122/2122/2122/2122 | रमल | 4 बार, मुसम्मन | सालिम | रमल मुसम्मन सालिम |
2212/2212 | रजज | 2 बार, मुरब्बा | सालिम | रजज मुरब्बा सालिम |
2212/2212/2212 | रजज | 3 बार, मुसद्दस | सालिम | रजज मुसद्दस सालिम |
2212/2212/2212/2212 | रजज | 4 बार, मुसम्मन | सालिम | रजज मुसम्मन सालिम |
11212/11212 | कामिल | 2 बार, मुरब्बा | सालिम | कामिल मुरब्बा सालिम |
11212/11212/11212 | कामिल | 3 बार, मुसद्दस | सालिम | कामिल मुसद्दस सालिम |
11212/11212/11212/11212 | कामिल | 4 बार, मुसम्मन | सालिम | कामिल मुसम्मन सालिम |
12112/12112 | वाफिर | 2 बार, मुरब्बा | सालिम | वाफिर मुरब्बा सालिम |
12112/12112/12112 | वाफिर | 3 बार, मुसद्दस | सालिम | वाफिर मुसद्दस सालिम |
12112/12112/12112/12112 | वाफिर | 4 बार, मुसम्मन | सालिम | वाफिर मुसम्मन सालिम |
इसी प्रकार उपरूकनों से बहर बनाया जा सकता है।
मात्रा गिराने का नियम
ग़ज़ल लेखन में बहर में मात्रा कब गिराया जा सकता है, इसे समझना भी आवश्यक है। वास्तव में मात्रा गिराने का कोई नियम रिजु शास्त्र में नहीं कहा गया है किंतु ग़ज़लकार जब गाफ़ यानी कि दीर्घ मात्रा को बिना ज़ोर दिए लाम यानी लघु की तरह पढ़ते हैं तो इसे ही मात्रा गिराना कहते हैं। जब तक हम यह नहीं समझेगें कि मात्रा कब-कब गिराना चाहिए तब तक बहर में ग़ज़ल लिखना सरल नहीं होगा। आइए इन्हीं स्थितियों को देखते हैं कि मात्रा कब-कब गिरता है।
नियम
- आ, ई, ऊ, ए, ओ स्वर तथा इन स्वरों से बने दीर्घ अक्षर को गिराकर लघु बना सकते हैं। यहां ध्यान रखना होगा कि शाश्वत दीर्घ का मात्रा नहीं गिराया जा सकता न ही अर्ध व्यंजन के योग से बने दीर्घ को लघु किया जा सकता।
- आ, ई, ऊ, ए, ओ स्वर तथा इन स्वरों से बने दीर्घ अक्षर को गिरा कर लघु केवल और केवल तभी कर सकते हैं जब ये दीर्घ शब्द के अंत में हो, शब्द के शुरू या मध्य में आने वाले दीर्घ को लघु नहीं किया जा सकता।
- संज्ञा शब्द किसी व्यक्त, स्थान या वस्तु के नाम में मात्रा नहीं गिराया जा सकता।
मात्रा गिराने का उदाहरण
- ‘राखिये’ शब्द में ‘ये’ की मात्रा गिराई जा सकती है। किंतु शाश्वत दीर्घ शब्द जैसे ‘सम’ की मात्रा नहीं गिराई जा सकती। अर्धवर्ण के योग से बने दीर्घ जैसे ‘लक्ष्य’ ‘ल+क्ष्’ दीर्घ है इसमें मात्रा नहीं गिराई जा सकती।
- ‘काया’ शब्द में केवल ‘या’ का मात्रा गिराया जा सकता है ‘का’ का नहीं क्योंकि ‘का’ शब्द के प्रारंभ में है और ‘या’ अंत में।
- ‘रखेगा’ शब्द में ‘गा’ का मात्रा गिराया जा सकता है ‘खे’ का नहीं क्योंकि ‘खे’ शब्द के मध्य में आया है।
एक बात ध्यान में रखें केवल और केवल शब्द के आख़िर में आए दीर्घ को गिराकर लघु किया जा सकता है प्रारंभ और मध्य के दीर्घ का नहीं ।
मात्रा गिराने के नियम के अपवाद
- समान्यतः ऐ स्वर और इनके व्यंजन के मात्रा नहीं गिराए जाते किंतु ‘है’ और ‘मैं’ में मात्रा गिराया जा सकता है।
- ‘मेरा’, ‘तेरा’ और ‘कोई’ ये तीन शब्द हैं जिसके प्रारंभ के दीर्घ को लघु किया जा सकता है। जैसे मेरा 22 में ‘मे’ को गिरा 12 किया जा सकता है ।
सारांश – जब किसी शब्द के अंत में ‘आ, ई, ऊ, ए, ओ स्वर तथा इन स्वरों से बने दीर्घ अक्षर’ आएं तो उसे गिरा कर लघु कर सकते हैं। अपवाद स्वरूप ‘मै’ और ‘है’ को लघु मात्रिक किया जा सकता है एवं ‘तेरा, मेरा और कोई’ शब्द के पहले दीर्घ को भी लघु किया जा सकता है।
सलाह-मात्रा गिराने से बचना चाहिए।
तक्तीअ करना
ग़ज़ल लेखन में शेर में बहर को परखने के लिए जिस तरह मात्रा की गणना की जाती है उसे तक्तीअ करना कहते हैं। यह वास्तव में किसी शब्द में लाम और गाफ़ का क्रम लिखना होता है जिससे निश्चित रूप से कोई न कोई रूकन फिर रूकन से बहर बनता है। ग़ज़ल के मिसरे में गाफ़ (दीर्घ) और लाम (लघु) को क्रमवार लिखते हुए बहर का निर्धारण करना तक्तिअ कहलाता है। तक्तिअ करते समय बहर को शुद्ध रूप में लिखते हैं गिरे मात्रा के स्थान पर दीर्घ नहीं लिखते। तक्तिअ करने की प्रक्रिया को समझना आवश्यक है।
तक्तिअ करने का उदाहरण पहला
कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं
एक कब्रिस्तान में घर मिल रहा है
जिसमें तहखानों से तहखाने लगे हैं
-दुष्यंत कुमार
जहाँ पर मात्रा गिराई गई है, रंगीन और बोल्ड कर दिया गया है-
अब तो इस ता / लाब का पा / नी बदल दो
2122 / 2122 / 2122
ये कँवल के / फूल कुम्हला / ने लगे हैं
2122 / 2122 / 2122
एक कब्रिस् / तान में घर / मिल रहा है
2122 / 2122 / 2122
जिसमें तहखा / नों से तहखा / ने लगे हैं
2122 / 2122 / 2122
तक्तिअ करने का उदाहरण दूसरा
उसे अबके वफाओं से गुज़र जाने की जल्दी थी
मगर इस बार मुझको अपने घर जाने की जल्दी थी
मैं अपनी मुट्ठियों में कैद कर लेता जमीनों को
मगर मेरे क़बीले को बिखर जाने की जल्दी थी
वो शाखों से जुदा होते हुए पत्ते पे हँसते थे
बड़े जिन्दा नज़र थे जिनको मर जाने की जल्दी थी
-राहत इन्दौरी
जहॉं पर मात्रा गिराई गई है, रंगीन और बोल्ड कर दिया गया है-
उसे अबके / वफाओं से / गुज़र जाने / की जल्दी थी
1222 / 1222 / 1222 / 1222
मगर इस बा/ र मुझको अप/ ने घर जाने / की जल्दी थी
1222 / 1222 / 1222 / 1222
मैं अपनी मुट् / ठियों में कै / द कर लेता / जमीनों को
1222 / 1222 / 1222 / 1222
मगर मेरे / क़बीले को / बिखर जाने / की जल्दी थी
1222 / 1222 / 1222 / 1222
वो शाखों से / जुदा होते / हुए पत्ते / पे हँसते थे
1222 / 1222 / 1222 / 1222
बड़े जिन्दा / नज़र थे जिन / को मर जाने / की जल्दी थी
1222 / 1222 / 1222 / 1222
कुछ प्रचलित बहर के नाम, उनके अरक़ान और वज़न
ग़ज़ल लिखने के लिए उपयोग मे लाए जाने वाले कुछ प्रचलित बहर के नाम, उनके अरक़ान और वज़्न (लघु- 1, गुरु/ दीर्घ- 2) आशा है आप अवश्य लाभान्वित होंगे।
ग़ज़ल की 32 प्रचलित बहरें
1
11212 11212 11212 11212
2
2122 1212 22
3
221 2122 221 2122
4
1212 1122 1212 22
5
221 2121 1221 212
6
122 122 122
7
122 122 122 122
8
122 122 122 12
9
212 212 212
10
212 212 212 2
11
212 212 212 212
12
1212 212 122 1212 212 22
13
2212 2212
14
2212 1212
15
2212 2212 2212
16
2212 2212 2212 2212
17
2122 2122
18
2122 1122 22
19
2122 2122 212
20
2122 2122 2122
21
2122 2122 2122 212
22
2122 1122 1122 22
23
1121 2122 1121 2122
24
2122 2122 2122 2122
25
1222 1222 122
26
1222 1222 1222
27
221 1221 1221 122
28
221 1222 221 1222
29
212 1222 212 1222
30
212, 1212, 1212, 1212
31
1212, 1212, 1212, 1212
32
1222, 1222, 1222, 1222
विस्तृत विवरण
1
बहरे कामिल मुसम्मन सालिम
मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
11212 11212 11212 11212
उदाहरण
ये चमन ही अपना वुजूद है इसे छोड़ने की भी सोच मत
नहीं तो बताएँगे कल को क्या यहाँ गुल न थे कि महक न थी
2
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
उदाहरण
प्या ‘स’ को प्या ‘र’ करना था केवल
एक अक्षर बदल न पाये हम
3
बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़
मुख़न्नक मक़्सूर
मफ़ऊलु फ़ाइलातुन मफ़ऊलु फ़ाइलातुन
221 2122 221 2122
उदाहरण
जब जामवन्त गरजा, हनुमत में जोश जागा
हमको जगाने वाला, लोरी सुना रहा है
4
बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22
उदाहरण
भुला दिया है जो तूने तो कुछ मलाल नहीं
कई दिनों से मुझे भी तेरा ख़याल नहीं
5
बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब
मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
उदाहरण
क़िस्मत को ये मिला तो मशक़्क़त को वो मिला
इस को मिला ख़ज़ाना उसे चाभियाँ मिलीं
6
बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122
उदाहरण
कहानी बड़ी मुख़्तसर है
कोई सीप कोई गुहर है
7
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
उदाहरण
वो जिन की नज़र में है ख़्वाबेतरक़्क़ी
अभी से ही बच्चों को पी. सी. दिला दें
8
बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़उल
122 122 122 12
उदाहरण
इबादत की किश्तें चुकाते रहो
किराये पे है रूह की रौशनी
9
बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212
उदाहरण
सीढ़ियों पर बिछी है हयात
ऐ ख़ुशी! हौले-हौले उतर
10
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2
उदाहरण
अब उभर आयेगी उस की सूरत
बेकली रंग भरने लगी है
11
बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
उदाहरण
जब छिड़ी तज़रूबे और डिग्री में जंग
कामयाबी बगल झाँकती रह गयी
12
बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 22
उदाहरण
बड़ी सयानी है यार क़िस्मत, सभी की बज़्में सजा रही है
किसी को जलवे दिखा रही है, कहीं जुनूँ आजमा रही है
13
बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212
उदाहरण
ये नस्लेनौ है साहिबो
अम्बर से लायेगी नदी
14
बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून
मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन
2212 1212
उदाहरण
क्या आप भी ज़हीन थे?
आ जाइये – क़तार में
15
बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212
उदाहरण
मैं वो नदी हूँ थम गया जिस का बहाव
अब क्या करूँ क़िस्मत में कंकर भी नहीं
16
बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212 2212
उदाहरण
उस पीर को परबत हुये काफ़ी ज़माना हो गया
उस पीर को फिर से नयी इक तरजुमानी चाहिये
17
बहरे रमल मुरब्बा सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122
उदाहरण
मौत से मिल लो, नहीं तो
उम्र भर पीछा करेगी
18
बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
2122 1122 22
उदाहरण
सनसनीखेज़ हुआ चाहती है
तिश्नगी तेज़ हुआ चाहती है
19
बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन ,
2122 2122 212
उदाहरण
अजनबी हरगिज़ न थे हम शह्र में
आप ने कुछ देर से जाना हमें
20
बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122
उदाहरण
ये अँधेरे ढूँढ ही लेते हैं मुझ को
इन की आँखों में ग़ज़ब की रौशनी है
21
बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212
उदाहरण
वह्म चुक जाते हैं तब जा कर उभरते हैं यक़ीन
इब्तिदाएँ चाहिये तो इन्तिहाएँ ढूँढना
22
बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
2122 1122 1122 22
उदाहरण
गोया चूमा हो तसल्ली ने हरिक चहरे को
उस के दरबार में साकार मुहब्बत देखी
23
बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]
फ़इलातु फ़ाइलातुन फ़इलातु फ़ाइलातुन
1121 2122 1121 2122
उदाहरण
वो जो शब जवाँ थी हमसे उसे माँग ला दुबारा
उसी रात की क़सम है वही गीत गा दुबारा
24
बहरे रमल मुसम्मन सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122 2122
उदाहरण
कल अचानक नींद जो टूटी तो मैं क्या देखता हूँ
चाँद की शह पर कई तारे शरारत कर रहे हैं
25
बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन ,
1222 1222 122
उदाहरण
हवा के साथ उड़ कर भी मिला क्या
किसी तिनके से आलम सर हुआ क्या
26
बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222
उदाहरण
हरिक तकलीफ़ को आँसू नहीं मिलते
ग़मों का भी मुक़द्दर होता है साहब
27
बहरे हजज़ मुसमन अख़रब
मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़
मफ़ऊलु मुफ़ाईलु मुफ़ाईलु फ़ऊलुन
221 1221 1221 122
उदाहरण
आवारा कहा जायेगा दुनिया में हरिक सम्त
सँभला जो सफ़ीना किसी लंगर से नहीं था
28
बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब
मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊलु मुफ़ाईलुन मफ़ऊलु मुफ़ाईलुन
221 1222 221 1222
उदाहरण
हम दोनों मुसाफ़िर हैं इस रेत के दरिया के
उनवाने-ख़ुदा दे कर तनहा न करो मुझ को
29
बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर
मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम
फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
212 1222 212 1222
उदाहरण
ख़ूब थी वो मक़्क़ारी ख़ूब ये छलावा है
वो भी क्या तमाशा था ये भी क्या तमाशा है
30
बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर, मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़
फ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन
212, 1212, 1212, 1212
उदाहरण
लुट गये ख़ज़ाने और गुन्हगार कोइ नईं
दोष किस को दीजिये जवाबदार कोई नईं
31
बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़
मुफ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन
1212, 1212, 1212, 1212
उदाहरण
गिरफ़्त ही सियाहियों को बोलना सिखाती है
वगरना छूट मिलते ही क़लम बहकने लगते हैं
32
बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन, मुफ़ाईलुन, मुफ़ाईलुन, मुफ़ाईलुन
1222, 1222, 1222, 1222
उदाहरण1
बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है।
हवाओं रागिनी गाओ मिरा (मेरा) महबूब आया है।।
बहारों फू ल बरसाओ मेरा महबू ब आया है।
1222 1222 1222 1222
हवाओं रा गिनी गाओ मेरा महबू ब आया है।।
1222 1222 1222 1222
उदाहरण 2
मुझे पहले यूँ लगता था करिश्मा चाहिये मुझको
मगर अब जा के समझा हूँ क़रीना चाहिये मुझको
1 – मुझे तेरी / मुहब्बत का / सहारा मिल / गया होता
2 – किसी पत्थर /की मूरत से /मुहब्बत का/ इरादा है
3 – चलो इक बा/र फिर से अज/नबी बन जा/एँ हम दोनों
अभ्यास ही गुरु
ग़ज़ल लेखन की प्रक्रिया में जब तक अभ्यास नहीं करेंगे, इसे अच्छे से नहीं समझ पाएंगे। जितना ज़्यादा अभ्यास करेंगे उतने ही सिद्धहस्त होंगे। इसलिए कहा गया है – ‘अभ्यास ही गुरु है।’ लिहाज़ा अभ्यास में बहर पर विशेष ध्यान दें। इस जानकारी के आधार पर आप अधिकाअधिक अभ्यास करें।
संकलन एवं प्रस्तुति -हरिगोविंद विश्वकर्मा