15 साल की उम्र में दोनों आंखें गंवा देने वाला युवक बना बैंक मैनेजर

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नेत्रहीनता को सफलता की सीढ़ी बनाने वाले युवक की कहानी

क्या आपने कभी किसी को अपनी बीमारी का शुक्रिया अदा करते हुए सुना है? नहीं न। हाँ, आपने लोगों को बीमारी के आगे हथियार डालते हुए, हार मानते हुए, निराश होते हुए और बेचारा बनते हुए देखा होगा। लेकिन मुंबई के 25 वर्षीय नेत्रहीन मैराथन धावक हेमेंद्र प्रताप सिंह (Hemendra Pratap Singh) उर्फ़ अपनी मम्मी-पापा का प्यारा शिवम ने इस मिथक को तोड़ दिया है। आफत को अवसर में बदलने वाले हेमेंद्र ने अपनी नेत्रहीनता को सफलता की सीढ़ी बना दिया और उसी सीढ़ी पर चढ़ते हुए वह आगामी 17 मई से लखनऊ में बैंक मैनेजर के रूप में जीवन की नई पारी खेलने के लिए तैयार हैं।

केवल 15 साल की उम्र में दोनों आंखें गंवा देने वाले हेमेंद्र बैंक ऑफ इंडिया द्वारा संचालित आर्यावर्त बैंक (Aryavart Bank) में मैनेजर बन गए हैं। 12 मई को उन्हें नियुक्ति पत्र मिल गया। उनकी पहली पोस्टिंग उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के ब्रांच में हुई हैं, जहाँ वह आगामी 17 मई से पद ग्रहण करेंगे। अपनी सफलता से हेमेंद्र बहुत उत्साहित है और नए सिरे से अपने जीनव की प्लानिंग शुरू कर दी है। हेमेंद्र की सफलता पर उसके पिता देवविजय सिंह (Deovijay Singh) समेत पूरा परिवार खुश है। देवविजय कहते हैं, “ऊपर वाले के यहां देर है अंधेर नहीं। राहत की सांस ली है। 2012 में उसके साथ कुदरत ने जो अन्याय किया था, उसकी भरपाई हो गई है। बैंक में नौकरी मिलने के बाद वह अपना बेहतर ज़िंदगी जी सकेगा।”

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हेमेंद्र आने वाले दिनों में सफलता के झंडे गाड़ने वाले हैं और अगर आप उनसे किसी न किसी तरह जुड़े हुए हैं तो कल शर्तिया आप यह कहने वाले हैं, कि अरे ये तो वही लड़का है जो कल तक मुझसे मिला करता था और आज सफलता के आसमान में ध्रुव तारे की तरह चमक रहा है और रोशनी बिखेर रहा है। वह बहुत उम्दा अभिनेता हैं। उनके लीड रोल वाली मराठी फिल्म ‘दृष्टांत’ (Drishtant) शीघ्र ही रिलीज़ होने वाली है। 2019 में उनके पास इस मराठी मूवी का प्रस्ताव आया था। मार्च 2020 में उस पूरी फिल्म की शूटिंग पूरी हुई। फिल्म में शिवम ने लीड रोल यानी मेन हीरो आजिंक्य का क़िरदार निभाया है। फिल्म का पोस्ट-प्रोडक्शन काम पूरा हो चुका है। कुछ ही दिन में वह फिल्म रिलीज होगी।

स्कूल के दिनों में शिवम अत्यंत प्रतिभाशाली एवं कुशाग्र दिमाग़ के छात्र थे और जाहिर तौर पर जो परिवार के लिए बड़ी उम्मीदें जगा रहा था, क्योंकि केवल माता-पिता या परिवार ही नहीं बल्कि हर कोई उनमें संभावना देख रहा था। बचपन से हाथ में बैट लेने वाले शिवम ग़ज़ब का क्रिकेट खेलते थे। गेंदबाजों की इस कदर धुनाई करते थे कि मध्य मुंबई के लालबाग में वह केरन पोलार्ड के नाम से मशहूर थे। शिवम क्रिकेट को ही करियर बनाना चाहते थे। उनका पहला लक्ष्य मुंबई के क्रिकेट लीग में खेलकर रणजी एवं आईपीएल तक पहुँचना और फिर अपने महान देश का प्रतिनिधित्व करना था। शिवम ग़ज़ब के प्लानर भी थे। वह जानते थे कि क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है। अगर भाग्य ने साथ नहीं दिया तो कुछ कर पाना मुमकिन नहीं होता है।

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लिहाज़ा, शिवम ने दूसरा लक्ष्य भी तय कर रखा था और उसका दूसरा लक्ष्य सीएस में कंप्यूटर इंजीनियरिंग करके कामयाब व्यक्ति बनने का था। दसवीं कक्षा तक सब कुछ ठीक चल रहा था। शिवम सही ट्रैक पर थे। ग्यारहवीं में उनके सब्जेक्ट भी कंप्यूटर साइंस और सीएस के ही थे। हेमेंद्र अपने मिशन को हासिल करन में जी-जान से जुटे हुए थे। अपने सपने को साकार करने के लिए उन्होंने केवल दो ही काम करने का निर्णय लिया था। कॉलेज और घर में मन लगाकर पढ़ाई करते थे और मैदान में जाकर क्रिकेट खेलते थे और ख़ूब अभ्यास करते थे।

ग्यारहवीं में पढ़ाई के दौरान चौथे महीने में अचानक एक दिन इस अति संभावनाशील किशोर पर कुदरत का कहर टूट पड़ा। उन्होंने उस दिन महसूस किया कि उन्हें आँखों से थोड़ा कम दिखाई दे रहा है। उन्होंने आँख को पानी वगैरह से धोया, लेकिन दूसरे दिन उनकी दृष्टि और भी कम हो गई। उनके माता-पिता आनन-फानन में उन्हें आँख के डॉक्टर के पास लेकर गए। डॉक्टर ने कई टेस्ट कराए। कई आई ड्रॉप दिया, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। दो हफ्ते बीतते-बीतते शिवम ने अपना पूरा का पूरा विज़न ही गँवा दिया।

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बहरहाल, बारीक़ी से जांच करने करने के बाद डॉक्टरों ने कहा कि शिवम को ऑप्टिक न्यूराइटिस (Optic Neuritis) नाम की आँख की बीमारी हो गई। ये बीमारी कभी ठीक नहीं होती। जिसे होती है उसे इस बीमारी के साथ ही जीना पड़ता है। मतलब शिवम अब पहले की तरह इस दुनिया को नहीं देख पाएँगे। लेकिन शिवम और उनके माता-पिता ने हार नहीं मानी। उन्हें एक से बढ़कर एक आई स्पेशलिस्ट के पास लेकर गए। सबका एक ही निष्कर्ष था, अब शिवम को बिना दुनिया को देख ही जीवन जीने का आदत डालनी होगी।

शिवम और उसके मॉम-डैड के लिए यह स्वीकार करना बेहद मुश्किल हो रहा था कि आगे की जिंदगी उन्हें इस दुनिया को देखे बिना ही गुज़ारनी पड़ेगी। माता-पिता के साथ साथ मेडिकल साइंस, सब के सब लाचार थे। दो साल तक शिवम का ट्रीटमेंट चलता रहा। 2011 और 2012 के दो साल का समय उनके लिए बहुत तकलीफ़देह रहे। इस दौरान डॉक्टर उन्हें स्टेरायड के डोज़ देते रहे, जिससे शिवम वेट गेन करते हुए 116 किलोग्राम के हो गए। हाँ, उच्च स्तरीय ट्रीटमेंट से बहुत थोड़ा सा फायदा हुआ। उनके दाहिनी आँख का विज़न 15 फ़ीसदी वापस आ गया, लेकिन बाईं आंख विज़नलेस ही रही।

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ज़ाहिर है जीवन में अंधेरा छा जाने से शिवम सदमे में चले गए। वह बीमारी से हार गए और घनघोर निराशा में डूब गए। उन्हें अपना जीवन एकदम से निरर्थक लगता था। वह अपने घर के पास एक जगह एक अंधेरे कमरे में बैठकर रोते रहते थे। शिवम पूरी तरह टूट चुके थे। उससे भी ज़्यादा उनके मॉम-डैड टूट चुके थे। उसके अंदर से बस एक ही सवाल उठता था कि लोगों की नज़र में बेचारा और माता-पिता पर बोझ बन कर जीना क्या जीना है? उससे बेहतर तो मौत है। बस ख़ुदकुशी करने की उनकी प्रबल इच्छा होने लगी, क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि इस तरह का जीवन कम से कम वह नहीं जी सकेंगे।

लिहाज़ा, दो बार उन्होंने मौत को गले लगाने और ख़ुद को ख़त्म करने की कोशिश भी की, लेकिन मौत बहुत पास तो आई, फिर बैरंग वापस लौट गई। यमराज ने उनसे कहा, “अरे ये क्या कर रहा है शिवम? अभी तो तुझे जीना है। अपने ही नहीं अपने मम्मी-पापा के सपने को पूरा करना है। तुझे तो इस आफत को अवसर में बदल कर दुनिया के सामने एक नजीर पेश करनी है। तुझे सफलता के शिखर को चूमना है। तू ऐसा पहला युवक बनेगा जिसने बीमारी को ही सफलता की सीढ़ी बना दिया।”

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हालांकि तब भी शिवम नहीं संभल सके। उन्होंने अपने डैड से कहा कि वह मुंबई में नहीं रहना चाहते। लिहाज़ा उन्हें उनके गांव भेज दिया गया। जब डॉक्टर से मिलना रहता था, तब वह मुंबई आ जाते थे। एक दिन एक रेलवे स्टेशन पर शिवम की मुलाकात एक ब्लाइंड परसन से हो गई। उस व्यक्ति के हाथ में केन देखकर शिवम ने समझ लिया कि वे टोटली ब्लाइंड परसन है। शिवम को उस व्यक्ति पर दया आई। उन्होंने उसे बैठने के लिए सीट ऑफर किया, लेकिन उस व्यक्ति ने सधन्यवाद मना कर दिया और बताया कि वह इस स्टेशन का स्टेशन मास्टर हैं। यही शिवम के जीवन का टर्निंग पॉइट था। उस समय शिवम को लगा कि उन्हें कम से कम एक आंख से 15 फ़ीसदी तो दिखता है। जब बिल्कुल न देख पाने वाला व्यक्ति सफल हो सकता है तो वह क्यों नहीं। उन्हें उसी समय लग गया कि वह तो बहुत कुछ कर सकते हैं। उनके अंदर अचानक से विल पावर आ गया। बस उन्हें मौत की बात याद आई।

शिवम ने यह देखना शुरू किया कि इस नेत्रहीनता से उबरने के लिए उनकी कौन-कौन से लोग मदद कर सकते हैं। कौन-कौन से संगठन हैं जो इस तरह के लोगों की मदद करते हैं। इस गहन खोजबीन के दौरान शिवम को नेशनल ब्लाइंड असोसिएशन (National Blind Association) यानी एनबीए (NBA) के बारे में पता चला। एनबीए एक एनजीओ है, जो ब्लाइंड लोगों के कल्याण के लिए काम करता है। बस शिवम अपने एक दोस्त के साथ एनजीओ के दफ्तर गए। जब उन्हें पता चला कि ब्लाइंड परसन पढ़ाई करके सरकारी नौकरी भी पा जाते हैं। वहाँ उन्होंने ढेर सारे ब्लाइंड लोगों को सफलता हासिल करते हुए देखा। औरों के मुक़ाबले शिवम का दुख इसलिए भी ज़्यादा था कि वह जन्मजात ब्लाइंड नहीं थे। वह इस खूबसूरत दुनिया को 17 साल की उम्र तक देखते रहे, लेकिन अब एकदम से अंधेरे में चला गए थे।

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बहरहाल, एनजीओ में उन्हें स्पेशल एजुकेशन के बारे में बताया गया। शिवम उत्तर प्रदेश माध्यमिक बोर्ड से बारहवीं कक्षा पहले ही पास कर चुके थे। लिहाज़ा, एनजीओ में एक अधिकारी ने उन्हें टीचिंग का कोर्स करने का सुझाव दिया। बस क्या था, शिवम ने स्पेशल टीचर यानी दो साल का डीएड इन वीआई का कोर्स पूरा कर लिया। उन दो सालों के दौरान शिवम ने बहुत कुछ सीखा। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि इन दो सालों ने उनकी पूरी दुनिया ही बदल दी। उनके क्लास में कई ब्लाइंड छात्र थे। उनमें से कई से शिवम की दोस्ती हो गई। उन लोगों ने उन्हें यह हुनर सिखाया कि नेत्रहीन लोग कैसे जीवन जीते हैं। कैसे अपनी ख़ुशियों को तलाशते हैं, कैसे अपने सपने को साकार करते हैं।

कुल मिलाकर ये डीएड कोर्स उनके लिए वरदान साबित हुआ। कोर्स पूरा करते ही शिवम को 2016 में संस्थान में ही स्पेशल एजुकेटर का जॉब मिल गया। एक ही साल में उनका प्रमोशन हुआ और वह मैथ टीचर बन गए। छठी से दसवीं तक के छात्रों को वह गणित पढ़ाने लगे। इसी दौरान संस्थान में ‘अंधाधुंध (Andhadhun)’ फिल्म का एक प्रोजेक्ट आया। अभिनेता आयुष्मान खुराना उसमें लीड रोल में थे। वह उसमें ब्लाइंड किरदार को निभाने वाले थे। अंधाधुंध की टीम ने शिवम को लेक्चर लेते हुए देखा। उन्हें उनमें ग़ज़ब की प्रतिभा और आत्मविश्वास दिखा। लिहाज़ा, उन लोगों ने शिवम से पूछा कि एक ब्लाइंड परसन किसी सीन को किस तरह करता है?

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शिवम ने उन लोगों को कुछ डेमो करके दिखाया। अंधाधुंध के डायरेक्टर श्री राम उनके काम से इतने अधिक इम्प्रेस्ड हुए कि उन्हें अपनी टीम में ले लिया। शिवम ने आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) के साथ तीन महीने काम किया और उन्हें यह सिखाया कि दृष्टिहीन असल जिंदगी कैसे जीते हैं। बाद में अंधाधुंध सुपरहिट फिल्म साबित हुई और तो और आयुष्मान ने खुद फिल्म की सफलता का क्रेडिट शिवम को दिया।

इसके बाद तो शिवम के लिए सफलता के नए द्वार खुल गए। 2018 के अंत में उसे मराठी फिल्म ‘31 दिवस’ में काम करने का मौक़ा मिला। उसके हीरो शशांक केतकर (Shashank Ketkar) और हिरोइन रीना अग्रवाल (Reena Aggarwal) थीं। फिल्म में दोनों ने नेत्रहीन का क़िरदार निभाया था। इन दोनों कलाकारों को नेत्रहीन के अभिनय करने की पूरी की पूरी ट्रेनिंग शिवम ने ही दी। उस मराठी फिल्म ने भी अच्छा कारोबार किया। शशांक और रीना के साथ साथ फिल्म के डायरेक्टर ने भी फिल्म की सफलता का क्रेडिट शिवम को ही दिया।

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सबसे अहम बात शिवम फिल्म की स्क्रिप्ट ध्यान से पढ़ते हैं और अगर स्क्रिप्ट में नेत्रहीनों के लिए कुछ भी नकारात्मक होता है तो उसे निकालने का आग्रह करते हैं क्योंकि शिवम चाहते हैं कि वह जिस फिल्म से जुड़े हों, उसमें पॉज़िटिविटी ही दिखाई जाए। वह ब्लाइंड से जुड़ी रियलिस्टिक चीज़ें ही परदे पर दिखाने का आग्रह करते हैं। क्योंकि नेत्रहीन होने के कारण शिवम को पता है कि नेत्रहीन मोबाइल फोन कैसे इस्तेमाल करता है। वह भीड़ में किस तरह चलता है। वह अपने सेंसेज कैसे इस्तेमाल करता है। सबसे बड़ी बात बड़े से बड़ा निर्देशक उनकी हर बात, उनका हर सुझाव सिर-माथे पर रखते हुए मान लेते हैं। इससे फिल्म बहुत सहज और ऑथेंटिक हो जाती है।

इसके बाद शिवम को बिग बाज़ार का एक डिजिटल विज्ञापन मिला। उसे भी बहुत सराहा गया। 2019 के अंत में शिवम को एक नई मूवी ‘शुभो बिजॉय (Shubho Bijoya)’ मिली। इस फिल्म में अभिनेता गुरमीत चौधरी (Gurmeet Choudhary) को ब्लाइंड के रोल के लिए ट्रेनिंग दी हैं। उस फिल्म से शिवम को काफी कुछ सीखने को मिला, क्योंकि उस फिल्म में एक किरदार शिवम के लिए बनाया गया। इस तरह शिवम अभिनय भी करने लगे। पहली बार उन्होंने कैमरा फेस किया और एक्टिंग की। इससे शिवम का कॉन्फिडेंस लेवल बहुत बढ़ गया।

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फिलहाल शिवम दो प्रोजेक्ट कर रहे हैं। पहला मिस्ट्री थ्रिलर ‘ब्रीद: इनटू द शैडोज़ (Breathe: Into the Shadows)’ का तीसरा सीजन है। इसमें शिवम साइबर ऑफिसर के रोल में नजर आएंगे। अमेजन ओरिजिनल की इस सीरीज में उनकी टक्कर अभिनेता अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan) और अमित सध से होगी। साथ ही नए ट्वीस्ट एंड टर्न देखने को मिलेंगे। दूसरा प्रोजेक्ट धारावी बैंक (Dharavi Bank) वेब सीरीज़ में भी शिवम काम कर रहे हैं। इसमें सुनील शेट्टी (Suniel Shetty) और विवेक ओबेरॉय (Vivek Oberoi) हैं। सबसे बड़ी बात शिवम अब डायरेक्शन की टीम में हैं और वह डायरेक्टर के साथ काम करते हैं। ब्लाइंड के सारे सीन शिवम प्लान करते हैं और उसे एग्जीक्यूट करवाते हैं। उनका निर्देश अभिनेता मानते हैं। कोई सीन परफेक्ट है या नहीं शिवम यह भी तय करते हैं।

शिवम नैसर्गिक एथलीट हैं। जिम के साथ-साथ रनिंग भी करते हैं। रनिंग में उनका मेन स्ट्रैंथ है 42 किलोमीटर रन है। वह उसकी विशेष, तैयारी करते हैं। शिवम मुंबई मैराथन (Mumbai Marathon), दिल्ली मैराथन (Delhi Marathon) और बेंगुलुरु मैराथन (Bengluru Marathon) समेत कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते रहते हैं। 42 किलोमीटर का उनका बेस्ट टाइम 4 घंटे 3 मिनट का है। हाफ मैराथन में उनका बेस्ट टाइम 1 घंटा 43 मिनट का है। जो उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर का मैराथन धावक बनाता है। शिवम मानते हैं कि अगर आपको जीना है तो आपका फिट रहना ज़रूरी है और आप फिट तभी रह सकते हैं, जब आप एक्सरसाइज़ करेंगे। वह नेत्रहीनों को कल्याण के लिए भी काम करते हैं। इस तरह नेत्रहीन होने का बावजूद शिवम लोगों को मोटिवेट करते रहते हैं।

लेख – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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