ये कैसी अजब दास्तां हो गई है, छुपाते-छुपाते बयां हो गई।
या
आजकल में ढल गया दिन हुआ तमाम, तू भी सो जा सो गई रंग भरी शाम
इन कर्णप्रिया गानों के बोल तो ख़ूबसूरत हैं ही, इनके संगीत यानी म्यूज़िक में एक मिठास है जो मन को बेहद सुकून देता है। यह सुकूव सुनने वाले के अंदर ऊर्जा का संचार करता है। इसी तरह कई फ़िल्मी गाने या ग़ज़ल हैं, जो मन को फ्रेश कर देते हैं। मन ताजगी भर देते हैं। इसीलिए उन्हें बार बार सुनने का मन होता है। संगीत से मिलने वाला सुकून और ताज़गी दिमाग को सक्रिय कर देती है। गाना सुनते-सुनते श्रोता एक काल्पनिक दुनिया में प्रवेश करने लगता है। यानी संगीत इंसान को वास्तविकता से दूर ले जाता है, जिससे उसे अपने हित और खुशी पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पर्याप्त समय मिलता है। मधुर संगीत सुनने की प्रक्रिया में सारे अवसाद दूर हो जाते हैं। इसी कला को संगीत चिकित्सा यानी म्यूज़िक थेरेपी कहा जाता है।
वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के मनोविज्ञान संकाय की विभागाध्यक्ष प्रो. रश्मि सिंह कहती हैं कि संगीत कोई दवा नहीं है जो किसी मरीज़ को रातोरात ठीक कर दे। दरअसल, संगीत चिकित्सा ऐसी थेरेपी बन गई है जो पांच कारकों ध्यान, व्यवहार, भावनाओं, अनुभूति और संचार को नियंत्रित करती है जो हमें बाहरी उत्तेजनाओं के कारण उत्पन्न अवसाद और नकारात्मक भावनाओं से लड़ने में मदद करता है। इससे मरीज बीमारी से उबरने लगता है और उसका मानसिक असंतुलन ठीक होने लगता है।
भावना
संगीत में मस्तिष्क क्षेत्र को नियंत्रित करके हमारी भावनाओं को नियंत्रित करने की शक्ति है जो विभिन्न प्रकार की भावनाओं की उत्पत्ति, शुरुआत, रखरखाव और समाप्ति के लिए जिम्मेदार है। इसलिए, जब आप किसी बाहरी कारक के कारण उदास या परेशान महसूस कर रहे हों, तो संगीत आपके मस्तिष्क को विचलित कर सकता है और संगीत के शब्दों से जुड़ी भावना को मुक्त कर सकता है।
ध्यान
संगीत हर जीव के मन को प्रभावित करता है। संगीत मस्तिष्क की उत्तेजनाओं को विचलित कर देता है, जिससे इंसान चिंता, चिंता और दर्द जैसी नकारात्मक भावनाओं की ओर अग्रसर हो जाता है। ध्यान इंसान को हमें स्थिति से बेहतर ढंग से लड़ने और उसके अनुसार परिस्थिति को नियंत्रित करने में मदद करता है।
व्यवहार
चिकित्सा के रूप में संगीत किसी विशेष व्यवहार या क्रिया को जागृत करने और नियंत्रित करने में भी सहायक होता है। यह चलने, बात करने, सोने और खाने सहित किसी भी चीज़ से संबंधित हो सकता है। कोई भी व्यक्ति संगीत चिकित्सा गीतों के साथ व्यवहार संबंधी समस्याओं को सहजता से सुधार सकता है।
अनुभूति
संगीत का संबंध अनुभूतियो से होता है। मस्तिष्क सहजता से संगीत वाक्य-विन्यास को एन्कोड, स्टोर और डिकोड करता है, गीत याद रखता है और अनुभवों को संगीत से कनेक्ट करता है। इससे संज्ञानात्मक क्षमता बढ़ाने में मदद मिलती है। संज्ञानात्मक क्षमता को बढ़ाने के इच्छुक लोगों के लिए यह बहुत सही है।
संचार
संगीत का सीधा ताल्लुकात संचार से है, क्योंकि संगीत बिना शब्दों के भी संवाद करने में मदद करता है। कोई भी व्यक्ति बिना शब्दों के बात करने की कला सहजता से सीख सकता है। संगीत थेरेपी के माध्यम से कोई भी इंसान आसानी से बिना अधिक प्रयास के लोगों से संवाद करने में बढ़त हासिल कर सकता है।
प्रो. रश्मि सिंह आगे कहती हैं, “संगीत सदियों से ग्रामीण परिवेश तथा छोटे कस्बों आदि में रहने वाली महिलाओं के लिए अपनी भावनाओं, अपने द्वंद्व, अपने घुटन, अपनी इच्छाओं को अभिव्यक्त करने का एकमात्र साधन रहा है। वर्त्तमान में इस क्षेत्र में हो रहे शोध कार्य ये बताते हैं कि संगीत चिकित्सा महिलाओं के सशक्तिकरण एवं कल्याण, उनकी पहचान को पुनः परिभाषित करने, उन्हें उनके तक़लीफ़ देने वाले अनुभवों से उबरने में सहायक हो सकता है। संगीत चिकित्सा पेरिमेनोपॉज़ल महिलाओं के मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक लक्षणों में मदद कर सकती है और उपचार के लिए प्रभावी है।”
वह कहती हैं, “दिमाग़ यानी मस्तिष्क शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। लाखों सेल्स से बना मस्तिष्क बहुत संवेदनशील होता है। यही शरीर का संचालन करता है। इस पर मामूली बात या छोटी घटना का भी व्यापक असर होता है। इसीलिए अप्रिय बातों या घटनाओं से मस्तिष्क बीमार हो जाता है। बीमार मस्तिष्क वाला शरीर महज एक ढांचा बन कर रह जाता है। इसके बाद शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होने लगती है और शरीर पर बीमारियों का आक्रमण होने लगता है। समय रहते उचित इलाज न करने पर बीमारी गंभीर रूप धारण कर लेती है।”
प्रो. रश्मि सिंह आगे कहती हैं, “मस्तिष्क की विशेष देखभाल इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि भागदौड़ और तनाव भरी जीवनशैली के चलते इंसान को कई तरह की मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कभी वह अवसाद से घिर जाता है, तो कभी उस पर तनाव का आक्रमण होता है। रात को अनिद्रा उसे सोने नहीं देती और रही सही कसर चिंता पूरी कर देती है। इन सभी मानसिक समस्याओं से निपटने के लिए म्यूज़िक थेरेपी सबसे प्रचलित और कारगर है। संगीत किसी चिकित्सा से कम नहीं है। मन की स्थित कैसी भी हो हर कोई म्यूज़िक चाव से सुनता है। म्यूज़िक मानव मन के भावों को व्यक्त करता है। म्यूज़िक थेरेपी से मानव की मनोदशा में बदलाव होने लगता है। नतीजतन, दवाइयों के बिना ही वह ठीक हो जाता है। कभी-कभार तो म्यूज़िक थेरेपी उसे हमेशा के लिए ठीक कर देती है।”
विद्यापीठ के मनोविज्ञान विभाग ने की संगीत के जरिए चिकित्सा करने की पहल
प्रो. रश्मि सिंह ने हाल ही मे महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के मनोविज्ञान विभाग में स्थापित संगीत चिकित्सा प्रकोष्ठ एवं शोध केंद्र (उच्चानुशीलन केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अनुदानित) एवं महिला अध्ययन संस्थान, लखनऊ विश्वविद्यालय के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर के बाद आयोजित कार्यक्रम में लोगों को संबोधित करते हुए संगीत चिकित्सा की बारीक़ियों को समझाया। शोध कार्य ये बताते हैं कि संगीत चिकित्सा महिलाओं के सशक्तिकरण एवं कल्याण, उनकी पहचान को पुनः परिभाषित करने, उन्हें उनके तक़लीफ़ देने वाले अनुभवों से उबरने में सहायक हो सकता है। संगीत चिकित्सा पेरिमेनोपॉज़ल महिलाओं के मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक लक्षणों में मदद कर सकती है और उपचार के लिए प्रभावी है। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दोनों सस्थानों के बीच समझौता हुआ।
संगीत चिकित्सा प्रकोष्ठ एवं शोध केंद्र के समन्वयक डॉ. दुर्गेश उपाध्याय ने बताया कि दोनों केंद्रों के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर 06 फ़रवरी 2024 में हुआ। दोनों विश्वविद्यालय इस समझौते के अंतर्गत एक दूसरे के विद्यार्थियों को कार्यशालाओं, एवं व्याख्यानों के माध्यम से प्रशिक्षित करेंगे तथा शोध कार्य में भी साझेदार होंगे। उन्होंने कहा महिला अध्ययन संस्थान, लखनऊ विश्वविद्यालय की समन्वयक डॉ. मानिनी श्रीवास्तव के सार्थक पहल से यह सम्भव हो सका। यह उत्तर प्रदेश के किसी भी राज्य अथवा केंद्रीय विश्वविद्यालय में सबसे पहले काशी विद्यापीठ के मनोविज्ञान में “संगीत चिकित्सा प्रकोष्ठ एवं शोध केंद्र” की स्थापना माननीय कुलपति प्रो. आनंद कुमार त्यागी के कुशल मार्गदर्शन, कुलसचिव डॉ. सुनीता पांडेय के सहयोग एवं विभागाध्यक्ष प्रो. रश्मि सिंह के नेतृत्त्व में हुआ है।
टेलिफोनिक बातचीत में प्रो. रश्मि सिंह ने कहा कि संगीत मन ही नहीं शरीर पर गहरा असर डालता है। म्यूज़िक थेरेपी में एक ख़ास तरह का म्यूज़िक उपयोग में लाया जाता है। जब मरीज को संगीत सुनाया जाता है, तो संगीत की तरंगों का संपर्क शरीर से होता है। वायब्रेशन धीरे-धीरे शरीर के अंदर प्रवेश करते हैं। इससे शरीर और दिमाग़ भी वाइब्रेट होने लगते हैं। वायब्रेशन की वजह से उस ख़ास अंग में और उसके आसपास सक्रियता बढ़ जाती है। उन ख़ास हिस्सों में ब्लड सर्क्युलेशन सामान्य होने लगता हैं। ब्लड और ऑक्सीजन उस ख़ास अंग पर सकारात्मक असर डालता है और उसकी हीलिंग शुरू हो जाती है। इस प्रॉसेस में शरीर शिथिल होने लगता है जिससे आराम मिलता है।
म्यूज़िक का ज़्यादातर प्रभाव मानसिक अवस्था पर पड़ता है। आजकल इसका इस्तेमाल अल्टरनेट थेरेपी के रूप में किया जा रहा है। आधुनिक युग में म्यूज़िक थेरेपी एक अच्छा विकल्प बन कर उभर रहा है। तभी तो इस थेरेपी का उपयोग अब कई अस्पतालों में भी होने लगा है। म्यूज़िक कैंसर, पार्किंसंस, अवसाद, अन्य मानसिक समस्या जैसी कई असाध्य बीमारियों को ठीक करने में कारगर साबित हुआ है।
मस्तिष्क
संगीत की ध्वनि से उठनेवाली तरंगों की बीट से मस्तिष्क की तरंगें तालमेल बनाने की कोशिश करतीं हैं। इसके अनुसार अगर तेज़ बीट का म्यूज़िक सुना जाए तो एकाग्रता और सोचने की क्षमता बढ़ती है। इसके विपरीत धीमी बीट वाला संगीत शरीर को शांत करने में सहायक होता है और ध्यान की अवस्था में व्यक्ति को लेकर जाता है। मस्तिष्क पर म्यूज़िक का असर लंबे समय तक बना रहता है। इस प्रकार व्यक्ति मस्तिष्क के स्वास्थ्य को अपने अनुसार बना सकता है।
हृदय एंव ब्रीथिंग
मस्तिष्क की तरह ही म्यूज़िक का प्रभाव दिल यानी हृदय पर भी होता है। संगीत से पैदा तरंगों से सांस और हृदय की गति सामान्य हो जाती है। ऐसी स्थिति में रोगी आराम से सांस लेने लगता है और उसकी धड़कन सामान्य गति से चलने लगती है। इससे शरीर में रिलेक्सेशन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और म्यूज़िक से शरीर में तनाव के कारण होनेवाले हानिकारक प्रभाव दूर हो जाते हैं।
मन या मनोदशा
संगीत का लोगों की मनोदशा पर बहुत सकारात्मक असर पड़ता है। इसके कारण लोगों पर अवसाद, तनाव और चिंता से होने वाले नकारात्मक ऊर्जा का असर कम होने लगता है। संगीत थेरेपी लोगों को सकारात्मक और आशावादी बनाती है। इससे मरीज़ को बीमारी से लड़ने का उत्साह और ऊर्जा मिलती है।
क्यों ज़रूरी है म्यूसिक थेरेपी
हर आदमी की अपनी मुश्किलें, परेशानियां और ज़िम्मेदारियां होती हैं। इसकी वजह से अकसर वह तनाव में रहता है। लंबे समय तक तनाव में रहने का असर उसकी हेल्थ पर दिखने लगता हैं। उसे चिंता और थकान होने लगती और वह चिड़चिड़ेपन का शिकार होने लगता है। म्यूज़िक थेरेपी ऐसे लोगों के लिए आसान और फ्री-ऑफ-कॉस्ट विकल्प है। इससे मिलनेवाला आराम शारीरिक और मानसिक दृष्टि से भी लाभदायक होता है। व्यक्ति अपनी मनोदशा के आधार पर म्यूज़िक का चुनाव कर सकता है। स्ट्रेस-फ्री रहने के लिए भी म्यूज़िक की सहायता ली जा सकती है। अगर आप तनाव महसूस कर रहें हों या काम के कारण थकान होने लगी हो, तो कुछ समय के लिए म्यूज़िक सुनना फायदेमंद साबित होता है। यह मस्तिष्क को शांत करके शरीर को नई स्फूर्ति प्रदान करता है।
म्यूज़िक थेरेपी कई और समस्याओं को दूर करने में सहायक होती है-
डर
डर सबके लिए नुकसानदेह होता है। यह सही फैसले लेने से रोकता है। इसका अच्छा उदाहरण है प्लेन का सफर। अगर हवाई सफर से आपको डर लगता है तो म्यूज़िक एक अच्छा विकल्प हो सकता है। प्लेन में बैठते ही आप हेडफोन से म्यूज़िक सुनने लगे तो डर से ध्यान हट जाता है। इसके अलावा अंधेरा, ऊंचाई, तेज़ रफ्तार जैसी फोबिया से लड़ने में म्यूज़िक से अच्छा कोई उपाय नहीं।
निराशा
ज़रूरत से ज़्यादा काम के बाद भी कामयाबी ना मिले तो निराशा होती है। ऐसे में व्यक्ति कोई भी कार्य करने से कतराने लगता है। इससे निपटने के लिए उसे मोटिवेशनल म्यूज़िक सुनना चाहिए। संगीत से उसमें नई आशा का संचार होता है। इस तरह वह आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होता है। इस प्रकार कोई भी अपनी निराशाजनक स्थिति से बाहर निकल सकता है।
चिंता
कहते हैं कि चिंता मनुष्य की सबसे बड़ी शत्रु है। इससे निकलना भी आसान नही होता। इसके उपचार में म्यूज़िक की अहम् भूमिका होती है। भरपूर म्यूज़िक सुनने से मन में समस्याओं से निपटने का साहस मिलता है और व्यक्ति जल्दी ही इस स्थिति से बाहर आ जाता है। चिंता की वजह से मस्तिष्क में रक्त प्रवाह धीमा हो जाता है, म्यूज़िक प्रमुख रूप से रक्त प्रवाह को सामान्य करता है।
तनाव
मौजूदा जीवनशैली तनाव की जड़ है। मानसिक बीमार व्यक्ति शारीरिक रूप से प्रभावित होता है। यही कारण है कि लोग हार्ट और ब्लडप्रेशर जैसी समस्याओं से घिरे रहते हैं। ऐसी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए म्यूज़िक लाभदायक हो सकता है। मधुर संगीत तनाव दूर करता है। पियानो, बांसुरी, वायोलिन जैसे इंस्ट्रूमेंट शरीर में नई स्फूर्ति पैदा कर देते हैं और तनाव रफूचक्कर हो जाता है।
कसरत करते हुए सुनें संगीत
कसरत अपने-आप में दवा का काम करता है। इससे शरीर में एंटीस्ट्रेस हार्मोन का स्तर बढ़ता है। अगर कसरत करने का मन न करे तो म्यूज़िक सुनते हुए कसरत करें। शर्तिया कसरत में मज़ा आएगा और शरीर के साथ-साथ मस्तिष्क भी शांत रहेगा। म्यूज़िक के साथ कसरत ज़्यादा आसान हो जाता है। सांस की गति के अनुसार म्यूज़िक सुनने से एकाग्रता बढ़ती है। मस्तिष्क आराम की अवस्था में पहुंचता है। अगर आप ताल और लय के साथ व्यायाम करते हैं तो शरीर अपने आप इसके अनुसार कार्य करने लगता है और शरीर को इस तरह ज़्यादा फायदा होता है।
क्या है स्पंदनों का साइंस
ध्वनि हर्ट्ज़ में नापी जाती है। आमतौर पर, मनुष्य 20 हर्ट्ज़ से 20 किलो हर्ट्ज़ तक की फ्रीक्वेंसी की आवाज़ सुन लेता है। इन ध्वनियों में बेस स्वरों से वाइब्रेशन अधिक होता है। इसके वाइब्रेशन शरीर के ब्लड सर्कुलेशन को प्रभावित करते हैं। इसलिए रोग के निदान के लिए इनका उपयोग होता है। वाइब्रेशन की मदद से दी जानेवाली इस थेरेपी को वायब्रो आकुस्टिक थेरेपी कहा जाता है। यह पार्किंसन रोगियों को भी दी जाती है। रोगी को शांत और आरामदायक जगह बैठाया जाता है। स्पीकर से बेस फ्रिक्वेन्सी यानी 200 हर्ट्ज़ से कम की फ्रीक्वेंसी वाले साउंड वेव को उसके शरीर में पहुंचाया जाता है। इस प्रयोग को एक मिनट के अंतराल में पुन: दोहराया जाता है। इससे रोगी के मस्तिष्क में ब्लड-सर्कुलेशन सामान्य होने लगता है। रोगी निर्धारित समय से पूर्व ठीक होने लगता है। यह थेरेपी मानसिक रोगियों के लिए अत्यंत लाभदायक मानी जाती है। म्यूज़िक से व्यक्ति के शरीर और मन में तालमेल बनाना आसान हो जाता है। इसका असर न केवल वयस्कों पर बल्कि बच्चों पर भी पड़ता है। हमारे मन के भावों को व्यक्त करने का सबसे बेहतर ज़रिया म्यूज़िक होता है। थेरेपी के रूप में इसका उपयोग करना लोगों के लिए अत्यंत लाभदायक सिद्ध हुआ है।
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