कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें…

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अगर आपने अपने शरीर को फिट और निरोग रखा है तो यकीन मानिए, आप धरती के सबसे बड़े शिल्पी यानी कलाकार हैं। आमतौर पर हर इंसान अपने शरीर को सबसे ज़्यादा प्यार करता है। अगर आप अपने आपसे प्यार करते हैं तभी आप दूसरे से प्यार कर सकते हैं। अगर आपको ख़ुद से ही प्यार नहीं है तो आप किसी से प्यार नहीं कर सकते हैं। कभी-कभी इंसान अपने आपसे प्यार तो करता है, लेकिन अपना उचित ख़याल नहीं रखता। मतलब जो अपना ख़याल नहीं रखता, वह दूसरे का ख़याल नहीं रख सकता। हां, वह प्यार करने या ख़याल रखने का अभिनय ज़रूर कर सकता है।

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दरअसल, यह मानव शरीर क़ुदरत से मानव को मिला अनुपम वरदान है। धर्म में आस्था रखने वाले अनुयायी इसे अपने आराध्य़ देव का दिया गया वरदान भी कह सकते हैं। लिहाज़ा, यह हमारी पहली और बुनियादी ज़रूरत हो जाती है कि क़ुदरत से मिले इस अनुपम वरदान को ठीक रखते हुए जीवन को मज़े से जिएं। हम स्वस्थ्य रहेंगे तो ख़ुश रहेंगे और संतुष्ट रहेंगे। ख़ुश और संतुष्ट रहने से हमारे अंदर पॉज़िविट ऊर्जा बढ़ेगी जो अंततः हमारी कार्य-क्षमता और प्रॉडक्टिविटी बढ़ा देगी।

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वस्तुतः मानव शरीर की बनावट ही ऐसी है कि अगर मानव चाहे तो वह ख़ुद एक सौ पचास साल से अधिक समय का जीवन तंदुरुस्त रह कर जी सकता है। इसलिए आप अपने जीवन की आयु से वर्षों को कम क्यों करें। जबकि हक़ीक़त यह है कि जब आप अपने जीवन में अतिरिक्त साल जोड़ सकते हैं और आप स्वस्थ, ख़ुशहाल और लंबा जीवन जी सकते हैं। इससे आप दूसरों को भी स्वस्थ रहने की प्रेरणा दे सकता है।

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जीवन कुछ नहीं, बस शरीर में सेल्स यानी कोशिकाओं का बनने और नष्ट होने का संतुलन मात्र है। मानव शरीर में इन कोशिकाओं का निर्माण और क्षय जीवन पर्यंत चलता रहता है। किसी स्वस्थ मानव शरीर में कुल 37 लाख 20 हजार करोड़ कोशिकाएं होती हैं। इन कोशिकाओं का निर्माण रक्त यानी ख़ून से होता है। इसीलिए मेडिकल साइंस की भाषा में रक्त का सुप्रीम मेडिसीन भी कहा जाता है।

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इसीलिए अस्पतालों में जब भी कोई मरीज़ सीरियस होता है, या किसी मरीज़ की कोई ऑपरेशन या सर्जरी होती है तो ख़ून की ही ज़रूरत पड़ती है। इसलिए रक्तदान को जीवनदान भी कहा जाता है। कहने का मतलब मानव शरीर में रक्त सबसे महत्वपूर्ण अवयव है। इसीलिए डॉक्टर भी मानते ही कि जिसके शरीर में रक्त निर्माण, रक्त प्रवाह और रक्त उपभोग सही होता है, कोई बीमारी उसका बांल भी बांका नहीं कर सकती।

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इसलिए रक्त निर्माण यानी शरीर में ख़ून का बनना, रक्त प्रवाह यानी ख़ून का हर कोशिका तक पहुंचना और रक्त उपभोग यानी ख़ून की ख़पत को जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। ये तीनों प्रक्रियाएं मानव को चोड़कर धरती के बाक़ी जीवों में सामान्य रहती हैं। केवल मानव की महत्वकांक्षा के चलते उसमें ये गड़बड़ हो जाती है और मानव को बीमार कर देती हैं। इसीलिए कहा जाता है कि मानव में भी अगर ये तीनों प्रक्रियाएं दुरुस्त रहें तो मानव का शरीर भी धरती के दूसरे जीवों के शरीर की तरह अपना ख़ुद उपचार कर लेगा और मानव अपना पूरा जीवन जी सकता है।

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इसके लिए ज़रूरी है कि भोजन प्राप्त करने के लिए धरती के बाकी जीवों की तरह मानव भी काम करे। यानी शरीर के हर अंग को गतिशील रखे। गतिशील रखने की इस क्रिया को ही आध्यात्मिक भाषा में योग, ध्यान, आसन या कसरत कहा जाता है। इन सबका यही प्रयोजन होता है कि आप एक जगह स्थिर होकर न रहें, बल्कि शारीरिक गतिविधि भी करते रहें। रक्त तो बनता रहता है, लेकिन वांछित शारीरिक गतिविधि न होने पर उसका प्रवाह और उपभोग प्रभावित होता है। फिर वह वसा यानी फैट में बदल जाता है।

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योग वह आध्यात्मिक प्रकिया है जिसमें शरीर, मन और आत्मा को साथ लाने (योग) का कार्य होता है। योग शब्द भारत से बौद्ध धर्म के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्रीलंका तक फैला है। अब तो दुनिया का हर देश योग को शिद्दत से अपना रहा है। योग संस्कृत धातु ‘युज’ से निकला है, जिसका अर्थ व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन है। योग, भारतीय ज्ञान की दस हजार साल से भी अधिक पुरानी शैली है।

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वास्तव में योग केवल शारीरिक व्यायाम है। जहा लोग शरीर को मोड़ते, मरोड़ते, खींचते हैं और श्वास लेने के जटिल तरीक़े अपनाते हैं। योग विज्ञान में जीवन शैली का पूर्ण सार आत्मसात किया गया है। आज (यानी 21 जून को) अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल वर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दी है। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छह साल की सबसे बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है।

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योग सिर्फ व्यायाम और आसन नहीं है। यह भावनात्मक एकीकरण और रहस्यवादी तत्व का स्पर्श लिए हुए एक आध्यात्मिक ऊंचाई है, जो आपको सभी कल्पनाओं से परे की कुछ एक झलक देता है।

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लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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