हरिगोविंद विश्वकर्मा
डी-कंपनी में किसी भी ऑपरेशन के लिए छोटा राजन उर्फ नाना से अप्रूवल लेना छोटा शकील, शरद शेट्टी अन्ना और सुनील सावंत सावत्या को बहुत नागवार लगता था। वे लोग दाऊद से नाना की शिकायत करते तो सेठ हंसकर टाल देता और कहता, “नहीं, आपका आकलन सही नहीं है। नाना यक़ीनन सही और ईमानदारी से काम कर रहा है।” लिहाज़ा, राजन के विरोधी लंबे समय से मौक़ा तलाश रहे थे। इब्राहिम इस्माइल की हत्या का बदला लेना उनके लिए एक अवसर बनकर आया था, क्योंकि डेढ़ महीने से ज़्यादा वक़्त गुज़र जाने तक छोटा राजन कोई एक्शन नहीं ले सका। विरोधी फिर सेठ के पास पहुंचे और कहा, “भाई, जीजाजी के हत्यारों को दंडित करने को लेकर नाना सीरियस नहीं है।” शकील ने ज़ोर दिया कि बदला लेने का कम से कम एक मौक़ा उसे दिया जाए। दाऊद कुछ पल सोचता रहा, फिर पहली बार छोटा राजन से बिना पूछे ही उन्हें ‘गो अहेड’ कह दिया।
भाई की इजाज़त मिलते ही छोटा शकील के ख़ास शरद अन्ना और सावत्या मुंबई रवाना हो गए। गवली गैंग से बदला लेने और दाऊद के प्रति वफादारी साबित करने का यह सुनहरा मौक़ा था। महज़ दो दिन के अंदर शैलेश हल्दनकर और बिपिन शेरे को मारने की साज़िश को अंतिम रूप दे दिया गया। वारदात से पहले अस्पताल के अंदर और बाहर कई बार रेकी की गई। इस रेकी के दौरान शकील को पता चला था कि बिपिन शेरे का इलाज अस्पताल की पहली मंजिल के चार नंबर वार्ड में चल रहा है, जबकि शैलेश हलदनकर तीसरी मंजिल पर 18 नंबर वार्ड में भर्ती है। दोनों जगह पुलिस का सख्त पहरा है। रेकी के दौरान शूटरों ने नोट किया कि पहली मंजिल की खिड़की के बाहर कुछ दूरी पर नारियल का एक बड़ा पेड़ है। उन्होंने तय किया कि इस पेड़ पर चढ़कर पहले बिपिन शेरे का काम तमाम करेंगे और फिर नीचे से सीधे तीसरी मंजिल पर शैलेश हलदनकर के वार्ड में घुस जाएंगे।
ऑपरेशन के लिए हथियार-गोली और बाक़ी ज़रूरी सामान का इंतज़ाम कर लिया गया। 12 सितंबर, 1992 को सबसे पहले डेढ़ बजे दो लोगों जेजे अस्पताल परिसर में सुरक्षा का जायजा लेने प्रवेश किया। रैकी करने के बाद वापस चले गए और एक घंटे बाद फिर वापस आए। दरअसल, शैलेश और बिपिन को अलग-अलग वार्ड में शिफ़्ट कर दिया गया था। पौने चार बजे बृजेश सिंह, सुभाष ठाकुर, बच्ची पांडेय, सुनील सावत्या, श्याम गरिकापट्टी, श्रीकांत राय और विजय प्रधान जैसे ख़तरनाक शूटर जेजे अस्पताल में दाखिल हो गए। वे लोग ऑपरेशन को प्लान के अनुसार कार्यान्वित करना चाहते थे, लेकिन पहली मंजिल पर भर्ती एक मरीज ने उनकी सारी रणनीति पर पानी फेर दिया। दरअसल, उस दिन तेज हवा चल रही थी, इसलिए शायद मरीज ने हवा से बचने के लिए खिड़की का परदा गिरा दिया। लिहाज़ा, शूटरों को अंदर का कुछ दिखाई नहीं पड़ा। इस कारण अत्याधुनिक हथियारों से लैस शूटर सीधे तीसरी मंजिल पर वार्ड 18 में घुस गए। वहां तैनात सबइंस्पेक्टर कृष्ण अवतार गुलाब सिंह ठाकुर से उनका सामना हुआ। उस वार्ड में पूरे 50 सेकेंड तक अंधाधुंध गोलीबारी होती रही।
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शूटआउट में कभी आरोपियों की तरफ से, तो कभी पुलिस की तरफ से गोलियां चल रही थीं। शूटरों में कम से कम दो बुलेट प्रूफ जैकेट पहने हुए थे। बुलेट प्रूफ जैकेट की कहानी इसलिए पता चली, क्योंकि वार्ड 18 में सबइंस्पेक्टर कृष्ण अवतार गुलाब सिंह ठाकुर ने जब एक शूटर को महज़ एक फीट की दूसरी से गोली मारी, तब भी वह घायल नहीं हुआ। शूटरों के पास सिर्फ बुलेट प्रूफ जैकेट ही नहीं थे, बल्कि कई लोगों के हथियार में साइलेंसर भी लगे थे, ताकि गोलियों की तड़तड़हट सुनाई ही न पड़े। पुलिस की ओर से हमलावरों का कड़ा विरोध किया गया लेकिन डी-कंपनी के शूटरों के पास आधुनिक हथियार होने के कारण पुलिस को शिकस्त झेलनी पड़ी। शैलेश का शरीर गोलियों से छलनी हो गया। गोलीबारी में दो पुलिस वाले भी मारे गए। 10 लोग गंभीर रूप से ज़ख़्मी हुए जिनमें मरीज़, नर्स और पुलिसकर्मी भी शामिल थे।
सबइंस्पेक्टर कृष्ण अवतार गुलाब सिंह ठाकुर के साथ इस केस के बाद बहुत बुरा बर्ताव किया गया। वह गंदी पॉलिटिक्स के शिकार हुए। नवभारत टाइम्स में छपी सुनील मेहरोत्रा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ठाकुर का नाम पहले गैंलेंट्री अवॉर्ड के लिए प्रस्तावित किया गया था, परंतु बाद में उनकी फाइल पुलिस मुख्यालय में ही रोक ली गई। उन्हें उनकी बहादुरी के लिए राज्य सरकार की ओर उन्हें एक लाख रुपए का इनाम देने की भी घोषणा की गई थी, परंतु बाद में पुरस्कार राशि घटाकर 25 हज़ार रुपए कर दी गई। इसके बाद ठाकुर ने यह पुरस्कार लेने से ही मना कर दिया। मुकदमे के दौरान उन्हें कोर्ट में हॉस्टाइल घोषित कर दिया गया, फिर उन्हें पुलिस की नौकरी से निकाल दिया। उन्होंने सरकार से अपील की और अपना पक्ष रखा, तो उन्हें नौकरी में वापस रख दिया गया। अगस्त, 2013 में वह पुलिस सर्विस से रिटायर हो गए।
कुछ लोग तो बताते हैं कि डी-कंपनी के कुल 24 शूटर ऑपरेशन में शामिल थे। इसी बात पर छोटा राजन ने कड़ी आपत्ति जताई कि इन लोगों ने इतना तामझाम किया और केवल एक हत्यारे को ही मारा जा सका जबकि दूसरे का बाल भी बांका नहीं हुआ। मुंबई में यह पहला हत्याकांड था, जिसमें एके 47 राइफ़ल, माउज़र और 9 एमएम पिस्तौल का इस्तेमाल किया गया। दोनों ओर से कुल 500 राउंड गोलियां चलीं। ऑपरेशन में दाऊद गैंग को भिवंडी-निज़ामपुर के मेयर जयंत सूर्याराव, तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय के भतीजे वीरेंद्र राय और उल्हासनगर के कांग्रेस विधायक पप्पू कालानी से लॉजिस्टिक सपोर्ट मिला।
जेजे शूटआउट में कुल 24 लोग आरोपी बनाए गए थे। 9 अभी भी वॉन्टेड हैं। इस केस के आरोपी सुनील सावंत उर्फ सावत्या की दुबई में हत्या हो गई, जबकि सुभाष सिंह ठाकुर और बच्ची पांडेय को आजीवन कारावास की सजा हुई। यूपी के डॉन बृजेश सिंह और वीरेंद्र राय बरी कर दिए गए। कई आरोपी इसलिए भी बरी कर दिए गए, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि मुकदमे के दौरान कई गवाहों को अंडरवर्ल्ड से धमकी भरे फोन आते थे। खुद सबइंस्पेक्टर कृष्ण अवतार गुलाब सिंह ठाकुर को भी धमकी भरे फोन कॉल आते थे। टाडा कोर्ट में मुंबई पुलिस इनके ख़िलाफ़ पुख़्ता सबूत दे पाने में नाकाम रही। बृजेश सिंह 14 साल बाद पुलिस के हाथ लगा था। उसे दिल्ली और उड़ीसा पुलिस ने 24 जनवरी 2008 को भुवनेश्वर से गिरफ्तार किया था। आजकल वो उत्तर प्रदेश विधान परिषद का सदस्य है। 2022 में उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार बन सकता है।
(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)
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