संभल हिंसा में पुलिस एक्शन सही कहने पर ट्रिपल तलाक

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से आई एक चौंकाने वाली घटना ने हमारे समाज के बदलते चेहरे और वैवाहिक संबंधों की गहराई पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां एक पति ने महज इस बात पर अपनी पत्नी को तीन तलाक दे दिया क्योंकि उसने संभल हिंसा में पुलिस की कार्रवाई की तारीफ कर दी थी। यह घटना न केवल धार्मिक असहिष्णुता का नमूना है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे एक महिला के विचार व्यक्त करने का अधिकार, पारिवारिक और धार्मिक पहचान के नाम पर कुचला जा सकता है। पति ने पत्नी को “काफिर” कहकर उसकी धार्मिक आस्था पर हमला किया, जो इस बात का संकेत है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धार्मिक मान्यताओं के बीच खाई कितनी गहरी हो गई है। इस घटना ने ट्रिपल तलाक पर बने कानून और महिलाओं के अधिकारों को लेकर एक नई बहस को जन्म दिया है।

इस घटना का संपूर्ण विवरण
मुरादाबाद के एजाजुल आब्दीन (Ejazul Abdeen) ने अपनी पत्नी निदा जावेद (Nida Javed) को कथित तौर पर “तलाक-तलाक-तलाक (Talaq-Talaq-Talaq)” कहकर छोड़ दिया। इसका कारण सिर्फ इतना था कि निदा ने संभल हिंसा में पुलिस की कार्रवाई की सराहना की थी। निदा दरअसल, शुक्रवार को मोबाइल पर संभल हिंसा का वीडियो देख रही थी। जब उसने देखा के कई मुसलमान पुलिस पर पथराव कर रहे हैं और जवाबी कार्रवाई में पुलिस उनके खिलाफ ऐक्शन ले रही है। निदा ने कहा अच्छा कर रही ही पुलिस। उपद्रवियों से ऐसे ही निपटना चाहिए।

उसके पति एजाजुल ने उसकी बात सुन ली। वह आग-बबूला हो गया। उसने अपनी पत्नी पर हिंदुओं का समर्थन करने का आरोप लगाया और कहा, “तू मुसलमान नहीं, बल्कि काफिर है।” इस घटना ने यह सवाल खड़ा किया कि क्या एक व्यक्ति के विचार प्रकट करने का अधिकार उसकी धार्मिक पहचान को चुनौती देने का कारण बन सकता है? निदा ने इस मामले में पुलिस के समक्ष गुहार लगाई है। एसएसपी से मुलाकात कर उसने पूरे मामले की जानकारी दी। पीड़िता ने तीन तलाक दिए जाने के मामले में पति और ससुरालवालों पर गंभीर आरोप भी लगाए हैं। एसएसपी ने महिला थाना की एसएचओ को मामले की जांच के आदेश दिए हैं। मामला कटघर थाना क्षेत्र इलाके के गांव का है।

ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध और कानूनी पहलू
भारत में 2019 में ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध लगाकर इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। यह निर्णय मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए लिया गया। कानून के अनुसार, ट्रिपल तलाक देने पर तीन साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। इसके बावजूद, ऐसी घटनाएं सामने आना दर्शाता है कि समाज के कुछ हिस्से अब भी इस प्रथा से मुक्त नहीं हो पाए हैं।

महिलाओं के अधिकार और सामाजिक दबाव
निदा का मामला इस बात की ओर इशारा करता है कि भारतीय समाज में आज भी महिलाओं को स्वतंत्र विचार रखने और अपनी राय व्यक्त करने पर सजा भुगतनी पड़ती है। यह सवाल उठता है कि क्या महिलाओं के अधिकार सिर्फ कागजों पर सीमित हैं, या समाज में उनकी वास्तविक स्थिति बदल रही है? निदा ने पुलिस की कार्रवाई की तारीफ की, जो उनकी व्यक्तिगत राय थी। लेकिन इसके लिए उनके धार्मिक विश्वास पर सवाल उठाना और उन्हें तलाक देना समाज में मौजूद पितृसत्तात्मक सोच को उजागर करता है।

धार्मिक विचारधारा बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता
इस घटना में एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि व्यक्तिगत विचारधारा को धार्मिक पहचान के साथ जोड़कर देखा गया। क्या किसी की राय उसके धर्म का निर्धारण कर सकती है? एजाजुल का यह कहना कि “तू मुसलमान नहीं, काफिर है” यह दिखाता है कि कैसे कुछ लोग धर्म का इस्तेमाल निजी संबंधों को तोड़ने के लिए कर रहे हैं। यह समाज में असहिष्णुता की बढ़ती प्रवृत्ति का संकेत है।

पुलिस कार्रवाई पर बहस
संभल हिंसा में पुलिस की भूमिका पर विभिन्न विचार हो सकते हैं, लेकिन निदा ने जो कहा, वह एक नागरिक के रूप में उनकी राय थी। पुलिस की कार्रवाई की सराहना करना एक गैरकानूनी या अनैतिक कार्य नहीं है। लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है। इस संदर्भ में, एजाजुल का ऐसा व्यवहार समाज के उन तत्वों को दर्शाता है जो असहमति या अलग विचारों को स्वीकार नहीं कर सकते।

समाज में बदलाव की आवश्यकता
इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि समाज में अभी भी धार्मिक और पितृसत्तात्मक सोच का गहरा प्रभाव है। हालांकि ट्रिपल तलाक पर कानून बनाकर सरकार ने महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने की कोशिश की है, लेकिन इसका सही प्रभाव तभी दिखेगा जब समाज भी इस बदलाव को स्वीकार करेगा। महिलाओं को स्वतंत्रता, सम्मान, और सुरक्षा प्रदान करना केवल कानून का ही नहीं, बल्कि समाज का भी दायित्व है।

सरकार और कानून की भूमिका
सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि ट्रिपल तलाक पर कानून का सख्ती से पालन हो। इसके लिए जागरूकता अभियान चलाना और पीड़ित महिलाओं को कानूनी सहायता प्रदान करना जरूरी है। निदा के मामले में भी यह देखना होगा कि क्या कानून के तहत उन्हें न्याय मिलता है।

मुरादाबाद की यह घटना एक व्यक्ति की स्वतंत्रता, महिला अधिकार, धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक संरचना से जुड़े कई सवाल खड़े करती है। यह केवल एक व्यक्तिगत विवाद नहीं है, बल्कि समाज के गहरे मुद्दों को उजागर करती है। आवश्यकता है कि इस घटना को सिर्फ एक खबर के तौर पर न देखकर, इसे बदलाव का एक अवसर बनाया जाए। महिलाओं को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, और इसे छीनने का किसी को अधिकार नहीं। इस दिशा में समाज और सरकार दोनों को मिलकर काम करना होगा, ताकि ऐसी घटनाएं भविष्य में न हों।

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