मुंबई, प्रतिष्ठित शायर एवं सिने गीतकार विविध भारती के पूर्व उद्घोषक मुहतरम अहमद वसी (Ahmed Wasi) ने संगीतकार ओपी नैयर को हिंदी सिनेमा के सबसे बेहतरीन संगीतकारों में से एक करार देते हुए कहा कि उन्होंने अपनी फीस से कभी भी समझौता नहीं किया। हां, उनके दौर में अगर कोई निर्माता अपनी फिल्म की नायिका अगर उनकी सबसे फेवरिट हिरोइन को बनाता तो वह जरूर अपनी फीस कम कर देते थे।
अहमद वसी रविवार की शाम चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई के साप्ताहिक आयोजन में बतौर ख़ास मेहमान उपस्थित शायरों, संगीतकारों, गायकों और साहित्यप्रेमियों से रूबर थे। एक प्रसंग का ज़िक्र करते हुए वसी साहब ने कहा कि ओपी नैयर अपनी फीस कभी भी कम नहीं करते थे। इसी कारण उनके हाथ से नमक हलाल और दास्तान जैसा बड़ी फिल्में निकल गई। एक प्रसंग का ज़िक्र करते हुए वसी साहब ने कहा कि ओपी नैयर सदाबहार अभिनेत्री मधुबाला के फैन थे और अगर कोई निर्माता मधुबाला को अपनी फिल्म में बतौर नायिका लेता था तो नैयर साहब फीस कम करने पर राजी हो जाते थे।
अहमद वसी ने बताया कि नमक हलाल के लिए ओपी नैयर का संगीत लेने के लिए निर्माता के साथ उनका होटल ताज में बैठक हुई। फीस कम करने का आग्रह करते हुए निर्माता ने कहा कि आपको अमिताभ बच्चन की फिल्म में संगीत देने का मौक़ा मिल रहा है। तो ओपी नैयर ने दो टूक शब्दों में कहा कि चाहे अमिताभ को लीजिए या किसी और अभिनेता को उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता और वह अपनी फीस कम नहीं करेंगे और वह मीटिंग के बीच से ही उठ गए।
इसी तरह उन्होंने दास्तान फिल्म भी छोड़ दी थी। ओपी नैयर के संगीत निर्देशन में बतौर गीतकार अपना पहला गाना लिखने वाले अहमद वसी ने कहा कि ओपी साहब जिंदादिल इंसान थे। अनगिनत रोमांटिक गीतों को संगीत में ढालने वाले ओपी साहब हमेशा कहते थे कि गीत के अल्फाज जिंदा होने चाहिए न कि मुर्दा।
अब तक पांच किताबें लिख चुके प्रतिष्ठित शायर अहमद वसी ने अपनी चुनिंदा ग़ज़लें और नज़्मे सुना कर कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की। “गहराइयों से मुझ को किसी ने निकाल के, फेंका है आसमान की जानिब उछाल के। हर शख़्स से मिला हूँ बड़ी एहतियात से, हर शख़्सिय्यत को मैं ने पढ़ा है सँभाल के।”
सीतापुर के मूल निवासी अहमद वसी साहब ने लखनऊ से लेकर मुंबई तक के अपने रचनात्मक सफ़र पर श्रोताओं के साथ बातचीत की। संगीतकार ओपी नैयर के साथ बतौर सिने गीतकार शुरुआत करने वाले वसी साहब ने ओपी नैयर किया, ख़य्याम और चित्रगुप्त से संबंधित कई रोचक अनुभव साझा किए। फ़िल्म ‘क़ानून और मुज़रिम’ में लिखा हुआ उनका गीत बेहद लोकप्रिय हुआ- शाम रंगीन हुई है तेरे आंचल की तरह। सुरमई रंग सजा है तेरे काजल की तरह।
इस गीत के प्रति संगीतकार सी अर्जुन की दीवानग़ी की दिलचस्प घटना उन्होंने सुनाई। बिहार से पधारे हुए वरिष्ठ गीतकार माधव पांडेय’ निर्मल’ ने इस अवसर पर भोजपुरी गीत ‘बेटी की विदाई’ सुना कर सबको भाव विह्वल कर दिया। तबस्सुम बरबरा, अंबिका झा, पूनम विश्वकर्मा और डॉ दमयंती शर्मा ने विविधरंगी कविताएं सुनाईं। कवि सुभाष काबरा के व्यंग्य लेख से कार्यक्रम का समापन हुआ।
इस अवसर पर डॉ बनमाली चतुर्वेदी, कवि राजेंद्र वर्मा, गीतकार रास बिहारी पांडेय, कवि अनिल गौड़, कवि अभिनेता अरुण शेखर, अभिनेता अविनाश प्रताप सिंह, कवि प्रदीप गुप्ता, कवि राजेश ऋतुपर्ण, पत्रकार चंद्रकांत जोशी, और संगीतकार उस्ताद वजाहत हुसैन ख़ान ने अपनी मौजूदगी से आयोजन की गरिमा बढ़ाई।
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