मुंबई आजकल अपने नागरिकों को कोरोना महामारी से मरते हुए असहाय देखने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रही है। आलम यह है कि मुंबई में संक्रमित मरीज़ों की बढ़ती संख्या के चलते अब अस्पतालों में बेड कम पड़ रहे हैं। अस्पतालों में बिल्कुल जगह नहीं है। कोरोना मरीज़ को अस्पताल में भर्ती होने के लिए दो-दो तीन-तीन दिन तक इंतज़ार करना पड़ रहा है। यहां तक कि पॉज़िटिव करार दिए गए लोग अस्पताल में भर्ती होने के लिए सोर्स-सिफ़ारिश कर रहे हैं।
यह कहने में गुरेज़ नहीं कि महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण राज्य सरकार के नियंत्रण से बाहर होती जा रही है। मुंबई में तो कोरोना संक्रमित मरीज़ के परिजनों को क्वारंटीन भी नहीं किया जा रहा है। मुंबई में संक्रमित मरीज़ों के संपर्क में आए लोगों की तादाद इतनी अधिक है कि सबको अलग अलग क्वारंटीन सेंटर में रखना संभव नहीं है। इसीलिए बीएमसी ने 19 मई को दिशा निर्देश जारी किया कि जिन इमारतों में कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ मिलेगा, वहां अब पूरी बिल्डिंग को नहीं बल्कि उस मंज़िल विशेष को ही सील किया जाएगा। मुंबई में संक्रमित मरीज़ों की बढ़ती संख्या से अस्पतालों में बेड कम पड़ रहे हैं।
राज्य में सरकारी तंत्र और राज्य मंत्रिमंडल में किसी तरह का आपसी तालमेल नहीं दिख रहा है। संपूर्ण मंत्रिमंडल कोरोना से डरा हुआ लग रहा है। दो मंत्री कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ख़ुद वर्षा की बजाय मातोश्री में रहते हैं। यही हाल महाराष्ट्र के सारे मंत्रियों का है। पालक मंत्री तक अपने जिले में नहीं जा रहे हैं। जब से मातोश्री के पास पहले चायवाला और बाद में सीएम सुरक्षा में तैनात कई पुलिस वाले संक्रमित मिले, तब से उद्धव बमुश्किल ही घर से बाहर निकलते हैं। कहा जा रहा है वह भी कोरोना से भयभीत हो गए हैं, इसलिए अपनी कार ख़ुद ड्राइव करते हैं। तालमेल के अभाव में राज्य में अफरा-तफरी का माहौल है। इससे कोरोना से निपटने भारी मुश्किलात आ रही हैं। बांद्रा के एमएआरडीए ग्राउंड और गोरेगांव के एग्ज़िबिशन सेंटर में भारी-भरकम अस्थाई अस्पताल बनाए गए हैं, लेकिन वहां कोरोना मरीज़ों का इलाज करने के लिए डॉक्टर और अन्य मेडिकल स्टॉफ़ ही नहीं है।
अगर प्रवासी मज़दूरों के महाराष्ट्र से पलायन की बात करें, तो प्रवासी मज़दूरों को राज्य सरकार रोक नहीं पा रही है। उन्हें राशन या दूसरी आर्थिक मदद तो दूर अपनापन तक नहीं दे पाई। उनकी तकलीफ़ को समझने का प्रयास ही नहीं किया। यही वजह है कि राज्य के विकास के लिए अपना ख़ून-पसीना बहाने वाला मज़दूर यहां से गांव चला जा रहा है। मज़दूर को लगता है कि यह राज्य न तो राशन देगा और न ही कोई आर्थिक मदद। ऐसे में यहां से जान बचाकर भागना ही बेहतर होगा। इसीलिए जिसे जो भी साधन मिल रहा है, उसी से भाग रहा है। जिन्हें कोई साधन नहीं मिल रहा है, वे पैदल ही अपने गांव जा रहे हैं।
इसका परिणाम यह हो रहा है कि महाराष्ट्र कोरोना संक्रमितों और मौतों की संख्या के मामले में पूरे देश में शीर्ष पर है। 28 मई 2020 तक देश में 1,58,333 कोरोना संक्रमित मरीज़ थे। इसमें महाराष्ट्र का योगदान करीब 60 हजार था, जो लगभग 40 फीसदी है। देश में अब तक कोरोना से 4531 मौतें हुई हैं, जबकि महाराष्ट्र में 1900 लोगों की जान जा चुकी है। यह क़रीब 41 फ़ीसदी होता है। महाराष्ट्र में कोरोना बेक़ाबू है। दरअसल, महाराष्ट्र में औसतन 22 सौ से 23 सौ लोग रोजाना कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं। कोरोना को संभालने में राज्य की नाकामी साफ़ दिख रही है।