बाबा सिद्दीकी की वजह से ख़त्म हुआ था सलमान और शाहरुख के बीच शीतयुद्ध

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फोटो - साभार मोशल मीडिया

वैसे तो बॉलीवुड में सुपरस्टार्स के बीच खटपट कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब यह खटपट दो सबसे बड़े स्टार्स के बीच हो, तो यह मुद्दा गंभीर चिंता और चर्चा का विषय बन जाती है। अपने समय के दो बड़े स्टार्स सलमान खान और शाहरुख खान के बीच कई साल तक शीत युद्ध चलता रहा। लगभग एक दशक तक चली इन दोनों सुपरस्टार्स की आपसी दुश्मनी ने न केवल फिल्म इंडस्ट्री में बल्कि उनके फैन्स के बीच भी गहरी दरार पैदा कर दी थी।

इस शीत युद्ध को समाप्त करने में जो व्यक्ति सबसे महत्वपूर्ण कड़ी बने, वो थे मुंबई के जाने-माने राजनेता और महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी। दरअसल, बाबा सिद्दीकी का नाम हर साल रमज़ान के पवित्र महीने में होने वाली इफ्तार पार्टी के साथ जुड़ा हुआ है, और इसी इफ्तार पार्टी ने ही दोनों सुपरस्टार्स के बीच सुलह कराने में अहम भूमिका निभाई। बाबा सिद्दीकी के परिवार का ताल्लुक बिहार की राजधानी पटना से है। लेकिन उनका जन्म और परवरिश मुंबई में ही हुई। बांद्रा से उन्होंने कांग्रेस के माध्यम से अपनी राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियां शुरू कीं।

बाबा चर्चा में तब आए जब उन्होंने अभिनेता-राजनेता सुनील दत्त की सद्भावना यात्रा से जुड़े। इससे पहले सुनील दत्त 1980 के दशक में सिख उग्रवाद के उदय और स्वर्णमंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद के सांप्रदायिक तनाव के बीच शांति का संदेश देने के लिए शांति पदयात्रा पर निकले थे। सांप्रदायिक सौहार्द्र और शांति का संदेश फैलाने के उद्देश्य से महात्मा गांधी की जयंती के दिन 2 अक्टूबर 1984 से मुंबई से अमृतसर तक की पदयात्रा हुई थी जो 78 दिन चली थी। उस ऐतिहासिक पदयात्रा के दौरान ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी। बहरहाल, सुनील दत्त की  उन यात्राओं में शामिल तीन लोगों को कालांतर में बहुत अधिक राजनीतिक माइलेज मिला। उन तीन लोगों के नाम थे बाबा सिद्दीकी, सुरेश शेट्टी और बलदेव खोसा। सुनील दत्त ने अपनी ऐतिहासिक पदयात्रा के दौरान ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी। यह यात्रा लगभग 78 दिनों तक चली और 18 दिसंबर 1984 को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पहुंचकर समाप्त हुई।

इसके बाद बाबा सुनील दत्त के परिवार से अभिन्न रूप से जुड़ गए और बांद्रा में अपनी पहचान बनाई। वह पहले नगरसेवक चुने गए। बांद्रा पश्चिम से फिर महाराष्ट्र विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। आगे चल कर बाबा कांग्रेस के बड़े राजनेता बने। वह न केवल राजनीतिक रूप से सक्रिय थे, बल्कि बॉलीवुड में भी उनके मधुर संबंध बन गए। वह हर साल रमज़ान के मौके पर बैंडस्टैंड के होटल ताज़ लैड्स इंड में भव्य इफ्तार पार्टी का आयोजन करते थे, जिसमें राजनीति, बॉलीवुड और अन्य क्षेत्रों से जुड़ी प्रमुख हस्तियां शामिल होती थीं। उनकी यह पार्टी सिर्फ़ इफ्तार का आयोजन नहीं होती थी, बल्कि इसे एक सामाजिक मेल-मिलाप का मंच भी माना जाता है, जहां लोग आपसी मतभेद भुलाकर एक-दूसरे से मिलते थे।

सलमान खान और शाहरुख खान दोनों ही बॉलीवुड के सबसे बड़े सितारे हैं और उनकी दोस्ती 1990 के दशक में बहुत गहरी थी। इन दोनों की जोड़ी न केवल व्यक्तिगत रूप से बल्कि फिल्मी दुनिया में भी ख़ूब चर्चा में रही। 1990 के दशक में दोनों ने कई हिट फिल्में दीं और उनके बीच की दोस्ती एक मिसाल बन चुकी थी। लेकिन 2008 में कैटरीना कैफ के जन्मदिन की पार्टी के दौरान दोनों के बीच विवाद हो गया, जिसने उनकी दोस्ती को ख़त्म कर दिया। यह विवाद इतना ज़्यादा गहरा गया था कि दोनों ने एक-दूसरे से बात करना बंद कर दिया और यह दुश्मनी कई-कई साल तक चलती रही।

इस विवाद के बाद सलमान और शाहरुख ने एक-दूसरे के बारे में मीडिया में सार्वजनिक तौर पर कम ही बात की, और जहां भी दोनों एक साथ आते, वहां तनाव का माहौल बना रहता। फिल्मी इंडस्ट्री में भी दोनों खेमों में बंट गया था। शाहरुख के क़रीबी दोस्त और फिल्मकार सलमान से दूर हो गए और सलमान के समर्थक और दोस्त शाहरुख से दूर हो गए। दोनों स्टार्स के फैंस के बीच भी एक अनकहा संघर्ष शुरू हो गया, जो दोनों के पक्ष में बंट चुके थे।

दोनों ख़ान के बीच सालों तक चले शीत युद्ध ने उनके प्रशंसकों और फिल्मी दुनिया के लोगों को निराश किया था। दोनों सितारे एक-दूसरे से नज़रें चुराते हुए नज़र आते थे और सार्वजनिक समारोहों में भी एक-दूसरे से दूरी बनाए रखते थे। ऐसे में किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि उनकी दुश्मनी इतनी आसानी से ख़त्म हो जाएगी। लेकिन 2013 की बाबा सिद्दीकी की इफ्तार पार्टी इस मामले में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई। हर साल की तरह, बाबा सिद्दीकी ने उस साल भी अपनी पार्टी में बॉलीवुड और राजनीतिक जगत के प्रमुख चेहरों को आमंत्रित किया। सलमान और शाहरुख दोनों ही इस पार्टी में आमंत्रित थे, और बाबा सिद्दीकी ने दोनों के बीच की दूरी को कम करने का प्रयास किया।

पार्टी के दौरान बाबा सिद्दीकी ने ऐसा मौका देखा, जब सलमान और शाहरुख दोनों हॉल में मौजूद थे। वह दोनों का हाथ पकड़ एक कोने में ले गए और बातचीत शुरू की। धीरे-धीरे माहौल हल्का होने लगा। यह पहली बार था जब दोनों सुपरस्टार्स ने वर्षों बाद एक-दूसरे के साथ बातचीत की और हाथ मिलाया। इस दृश्य ने मीडिया में हलचल मचा दी, और उस रात की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया और समाचार चैनलों पर वायरल हो गए।

इस घटना से रातोंरात बाबा सिद्दीकी की इफ्तार पार्टी राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गई। बाबा का महत्व और भी बढ़ गया। इसे सिर्फ़ एक इफ्तार पार्टी नहीं माना गया, बल्कि इसे दो बॉलीवुड दिग्गजों के बीच दुश्मनी को समाप्त करने का प्रतीक माना गया। बाबा सिद्दीकी की भूमिका को हर तरफ़ से सराहा गया, क्योंकि उन्होंने न केवल सलमान और शाहरुख को एक साथ लाने का साहसिक कदम उठाया, बल्कि एक ऐसे मंच की भी व्यवस्था की, जहां दोनों एक-दूसरे से बिना किसी तनाव के मिल सकें।

बाबा सिद्दीकी की इस पहल का प्रभाव लंबे समय तक महसूस किया गया। सलमान और शाहरुख के बीच सुलह ने बॉलीवुड के अन्य सितारों के बीच भी एक सकारात्मक माहौल तैयार किया। दोनों ने सार्वजनिक तौर पर एक-दूसरे के प्रति अच्छे विचार प्रकट किए और एक-दूसरे के काम की तारीफ़ की। यह सुलह सिर्फ़ व्यक्तिगत स्तर पर नहीं रही, बल्कि इसका असर उनके पेशेवर जीवन पर भी पड़ा।

दोनों सितारों ने एक-दूसरे के फिल्मी प्रोजेक्ट्स में कैमियो भी किया, जैसे कि शाहरुख खान ने सलमान की फिल्म “ट्यूबलाइट” में एक छोटी भूमिका निभाई और सलमान ने शाहरुख की फिल्म “ज़ीरो” में एक गाने की भूमिका की। इस तरह, दोनों की दोस्ती ने इंडस्ट्री के बाक़ी लोगों को भी यह संदेश दिया कि व्यक्तिगत मतभेदों को किनारे रखकर साथ मिलकर काम किया जा सकता है।

बाबा सिद्दीकी को सलमान और शाहरुख के बीच सुलह कराने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए व्यापक सराहना मिली। मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री ने उनकी पहल की तारीफ की, और उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा गया जो न केवल राजनीति में बल्कि सामाजिक मेल-जोल में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। बाबा सिद्दीकी की इस पहल ने साबित किया कि बॉलीवुड में भी आपसी संबंधों को बेहतर बनाने के लिए एक तीसरी पार्टी की ज़रूरत हो सकती है, जो दोनों पक्षों के बीच की खाई को पाट सके।

सलमान खान और शाहरुख खान के बीच का शीत युद्ध बॉलीवुड के इतिहास में एक यादगार घटना रही है, और इसे समाप्त करने में बाबा सिद्दीकी की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता। उनकी इफ्तार पार्टी न केवल सामाजिक एकता का प्रतीक बनी, बल्कि यह इस बात का भी उदाहरण बनी कि कैसे व्यक्तिगत और पेशेवर विवादों को सुलझाया जा सकता है। बाबा सिद्दीकी की यह पहल न केवल उनकी व्यक्तिगत कूटनीतिक क्षमता को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि सही समय और सही मंच पर की गई बातचीत कैसे वर्षों की दुश्मनी को समाप्त कर सकती है।

बाबा सुनील दत्त को अपना गॉडफादर मानते थे। सुनील दत्त के निधन के बाद, बाबा सिद्दीकी ने दत्त परिवार के साथ अपना संबंध और भी मजबूत किया। उन्होंने प्रिया दत्त और संजय दत्त को अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने में हर संभव मदद दी। वर्तमान समय में भी बाबा सिद्दीकी और दत्त परिवार के बीच वह पुराना विश्वास और सम्मान बना हुआ था। प्रिया दत्त और बाबा सिद्दीकी राजनीतिक सहयोगी रहे। बाबा का यह रिश्ता राजनीतिक या पेशेवर स्तर तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक पारिवारिक और व्यक्तिगत संबंध था। बहरहाल, बाबा सिद्दीकी को राजनीति और फिल्मी दुनिया में मिसाल के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।