-
हिंदी ग़ज़ल ने 50 साल में ही कथ्य व अभिव्यंजना से अलग पहचान बनाई – प्रो. अजय तिवारी
-
मेरी गज़लें चुनौतियों से रूबरू होकर उनसे सीधी रचनात्मक मुठभेड़ करती हैं – प्रो. वशिष्ठ अनूप
-
अमीर खुसरो से लेकर कबीर तक की रचनाओं में भी हिंदी ग़ज़लों का स्वरूप – प्रो. सूरज पालीवाल
-
राजनीतिक, आर्थिक, सूचना, तकनीकी परिवर्तन भी ग़ज़ल संग्रह की पृष्ठभूमि में है – प्रो. सुमन जैन
वाराणसीः दिल्ली विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के प्रोफेसर अजय तिवारी का कहना है कि हालांकि हिंदी ग़ज़ल की यात्रा केवल पांच दशक पुरानी है, लेकिन हिंदी ग़ज़ल ने इन 50 सालों के सफर में ही अपनी कथ्यात्मकता तथा विशिष्ट अभिव्यंजना से एक अलग पहचान बनाई है, आज की परिस्थितियों, बदलते जीवन मूल्यों और पारंपरिक संबंधों को हिंदी ग़ज़ल ने बड़ी ही खूबसूरती से दर्शाया है।
प्रोफेसर अजय तिवारी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से संबद्ध और महिला शिक्षा और सशक्तिकरण के लिए समर्पित प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान आर्य महिला पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज के सभागार में में बीएचयू के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ अनूप के ग़ज़ल संग्रह ‘बारूद के बिस्तर पर’ के विमोचन के बाद शिक्षकों और छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए यह विचार व्यक्त किए।
अपने ग़ज़ल संग्रह ‘बारूद के बिस्तर पर’ पुस्तक परिचर्चा में आर्य महिला पीजी कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ अनूप ने हिंदी ग़ज़लों की विकास यात्रा पर विस्तृत प्रकाश डाला। ‘बारूद के बिस्तर पर’ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मेरी गज़लें हमारे समय के बहुआयामी यथार्थ और अनेकानेक चुनौतियों से रूबरू होकर उनसे सीधी रचनात्मक मुठभेड़ करती हैं।
प्रो. वशिष्ठ अनूप ने कहा, “इन ग़ज़लों के एक-एक शेर में आवाम की बेचैनी दिखती है, समाज की निःसंगता दिखती हैं, आज के दौर में आदमी का अकेलापन दिखता है, रिश्तों का विखंडन दिखता है और इसके साथ-साथ सियासत के छल-प्रपंच का भी दीदार होता है। वैचारिकी इनके रेशे-रेशे में शामिल है।
इस अवसर पर नवीन एवं भाषा प्रसार विभाग, आगरा के विभागाध्यक्ष प्रो. उमापति दीक्षित ने प्रो. वशिष्ठ अनूप की रचित ग़ज़लों की भावपूर्ण प्रस्तुति देकर सभी का मन मोह लिया। प्रो. दीक्षित की प्रस्तुति की लोगों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा, महाराष्ट्र अध्यापन करने वाले हिंदी के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर सूरज पालीवाल का कहना है कि हालांकि हिंदी ग़ज़ल की यात्रा केवल 50 साल पुरानी है, लेकिन अमीर खुसरो से लेकर कबीर तक की रचनाओं में इसका स्वरूप दिखाई देता है।
प्रो. पालीवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि “हिंदी गज़ल के लिए मुख्यतः दो बातें ध्यान देने लायक हैं। पहली यह कि शेर की बाहरी बनावट तथा बुनावट, दूसरी विषयवस्तु या कथ्य पर। उन्होंने कहा कि यू तो हिंदी ग़ज़ल की यात्रा लगभग 50 साल पुरानी है, लेकिन उसका आयाम व्यापक है।
प्रो. पालीवाल ने कहा, “उर्दू ग़ज़ल शायरी की एक विधा है परंतु वही गज़ल जब हिंदी में आती है तो हाशिए की विधा बनकर रह जाती है, परंतु हिंदी ग़ज़ल को जरा संवेदनशील नजर से देखें और इत्मीनान से अध्ययन करें तो समझ में आएगा कि यह हमारे समय की सबसे सशक्त कविता है, जिसमें लय है, रवानी है, मितकथन है और दो पंक्तियों में भरपूर बात कहने की हुनरमंदी है।”
महिला महाविद्यालय के हिंदी विभाग की प्रोफेसर सुमन जैन ने समकालीन गज़ल पर प्रकाश डालते हुए कहा कि समकालीन ग़ज़ल पारंपरिक ग़ज़ल की काव्य रूढ़ियों से मुक्त होने का प्रयास भी है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घटित हो रहे राजनीतिक, आर्थिक, सूचना, तकनीकी परिवर्तन भी इसकी पृष्ठभूमि में है।
इसी तरह प्रो. भावना त्रिवेदी राजनीति शास्त्र विभाग, आर्य महिला पीजी कॉलेज, ने हिंदी ग़ज़ल की विकास यात्रा पर विस्तृत प्रकाश डाला। डॉ. विवेक सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग ,काशी हिंदू विश्वविद्यालय तथा डॉ.प्रभात मिश्रा, असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर उपस्थित श्री विशाल राव तथा एम.ए. तृतीय वर्ष की छात्रा साक्षी कुमारी ने ग़ज़लों की मनमोहक प्रस्तुति देकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ शशिकांत दीक्षित ने किया। अतिथियों का स्वागत डॉ. मीनाक्षी मिश्रा ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अपर्णा पांडे ने किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ महापुरुषों के तैल चित्र पर माल्यार्पण तथा दीप प्रज्जवलन से हुआ। संगीत विभाग की छात्राओं ने कुलगीत और मंगलाचरण की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर प्राचार्या प्रो. रचना दुबे, अन्य विभाग की शिक्षिकाएं तथा लगभग 100 छात्राएं उपस्थित थीं। कार्यक्रम का संचालन प्रो. सुचिता त्रिपाठी ने किया।
इसे भी पढ़ें – स्त्री की चीख से निकली हैं पूनम की ग़जलें – डॉ. सोमा घोष