हरिगोविंद विश्वकर्मा
कितनी विचित्र बात है। समाजसेवी अण्णा हज़ारे के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जन आंदोलन के समय अरविंद केजरीवाल हीरो बने थे। वह इतने लोकप्रिय हुए कि दिल्ली की जनता ने आंख मूंद कर अभूतपूर्व बहुमत के साथ उन्हें दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी। अब केजरीवाल ख़ुद भ्रष्टाचार के ही आरोप में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ़्तार कर लिए गए हैं। यानी कहीं न कहीं दाल में काला ज़रूर है, वरना उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट से राहत ज़रूर मिलती। उनके कई मंत्रियों को जमानत देने से सुप्रीम कोर्ट खुद इनकार कर चुका है, तो कहने का मतलब उनके कार्यकाल में शराब नीति में गड़बड़ हुई है। वरना इतने ज़्यादा लोग कैसे गिरफ़्तार हो गए और जेल की हवा खा रहे है।
इतना ही नहीं 2013 में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जन आंदोलन के दौरान और आम आदमी पार्टी का गठन करते समय केजरीवाल ने खुद ‘एक व्यक्ति एक पद’ का भी नारा दिया था। वह कहते थे एक व्यक्ति दो पद अपने पास नहीं रखेगा। लेकिन खुद दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद भी आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा बने रहे। आप के गठन के बाद से ही वही पार्टी के प्रमुख है। इसीलिए अब उनके और मनीष सिसोदिया के जेल जाने के बाद भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है कि दिल्ली सरकार और आप का नेतृत्व कौन करेगा, क्योंकि पार्टी में मनीष और अरविंद के बाद किसी की वरीयता ही निर्धारित नहीं है।
सवाल यह भी उठता है कि अगर केजरीवाल वाक़ई पाक-साफ़ थे। दिल्ली शराब घोटाले में उनकी कोई भूमिका नहीं थी तो उन्हें प्रवर्तन निदेशालय के पहले ही समन पर उसके पास सीना तानकर चले जाना चाहिए था और दूध का दूध पानी का पानी कर देना चाहिए था। कहावत भी है कि सांच को आंच नहीं। बैशक अगर ईमानदार होने के बावजूद उन्हें ईडी परेशान करती तो ज़ाहिर तौर पर देश की न्यायपालिका उनके समर्थन में खड़ी रहती, लेकिन केजरीवाल ने ऐसा नहीं किया। ईडी के सवालों का सामना करने की बजाय वह इधर-उधर करते रहे। अब जब उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिली तो प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें उनके घऱ से उठा लिया।
जिस आदमी ने पहले भ्रष्टाचार से लड़ने का भ्रम पैदा किया, बाद में उसका भी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाना बहुत दुखद है। अरविंद केजरीवाल ने जो हथकंडे अपनाए उससे भारतीय लोकतंत्र का बहुत नुकसान हुआ। उन्होंने सत्ता पाने के लिए भ्रष्टाचार को टूल के रूप में इस्तेमाल किया और देश के दो राज्यों में सत्ता हथिया ली। अरविंद केजरीवाल का चाहे जो हो, अब भविष्य में अगर कोई व्यक्ति भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ खड़ा होगा तो जनता उस पर यकीन नहीं करेगी। मतलब भविष्य में कोई भ्रष्टाचार से लड़ने की बात करेगा तो लोग हंसेगे और मान लेंगे कि यह आदमी मूर्ख बना रहा है। इसका मतलब यह भी है कि भारतीय राजनीति और लोकतंत्र में ईमानदारी की बात कोई नहीं करेगा, क्योंकि हमाम में सब नंगे हैं।
आज कांग्रेस भ्रष्टाचार करने और ग़ल़त अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति की सज़ा भुगतती हुई राष्ट्रीय राजनीति से बड़ी तेज़ी से दूर होती और बुद्धिजीवियों का मानना है, “विकल्प के अभाव में भारतीय जनता पार्टी मनमानी कर रही है। इलेक्टोरल बॉन्ड के नाम पर खुले आम फिरौती ली जा रही है। भाजपा के सामने विपक्ष बौना हो गया है। कोई विकल्प नहीं दिख रहा है। ऐसे में एक ऐसी पार्टी की शिद्दत से दरकार महसूस की जा रही है, जो वाक़ई भ्रष्टाचार से लड़ती और देश भक्त होती।” और वह पार्टी भाजपा और कांग्रेस का विकल्प बनती, लेकिन इस तरह का कोई विकल्प दूर-दूर क्या बहुत दूर तक नहीं दिख रही है। इसका यह भी मतलब है कि 10 प्रतिशत सत्ता वर्ग देश के 90 प्रतिशत संसाधन पर क़ब्ज़ा बरक़रार रखेगा। आम आदमी लाचारी से अनैतिक कार्य होते देखता रहेगा और कर कुछ नहीं पाएगा।
बहरहाल, अब आम आदमी पार्टी आरोप लगा सकती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इशारे पर प्रवर्तन निदेशालय ने केजरीवाल को गिरफ़्तार किया है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि केजरीवाल ईडी के समन के बावजूद जांच एजेंसी के सामने पेश नहीं हो रहे थे। वह नाटक पर नाटक करते रहे। बृहस्पतिवार को भी दिन भर ड्रामा होता रहा और दिल्ली हाईकोर्ट से कोई राहत न मिलने के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने केजरीवाल को गिरफ़्तार कर लिया। इस तरह जो आदमी भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जन आंदोलन के समय हीरो बना था वह ख़ुद कथित तौर पर भ्रष्टाचार करके जीरो बन गया।
शायद लोगों को याद होगा 2013 में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ पूरे देश में आक्रोश के चलते अचानक जननायक बन गए अरविंद केजरीवाल स्टिंग ऑपरेशन पर ख़ूब ज़ोर देते थे। वह बेबाक कहते थे, “कोई ग़लत कर रहा हो तो उसका स्टिंग कर लो और उस स्टिंग को पब्लिक कर दो।“ 2013 में दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वह कहते रहे, “जो रिश्वत मांगे, उसकी आवाज़ रिकॉर्ड कर लो और मेरे पास भेज दो, मैं उसे फ़ौरन जेल भेज दूंगा।“ सत्ता मिलने के बाद वही स्टिंग ऑपरेशन आम आदमी पार्टी के गले की हड्डी बन गया, क्योंकि स्टिंग ऑपरेशन के चलते पहले अरविंद खुद बेनक़ाब हुए और अब उनकी पार्टी के आदर्शवादी नेता एक-एक करके एक्सपोज़ हो रहे हैं। अगर कहें कि केजरीवाल की महत्वकांक्षा ने आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय पार्टी बनने की संभावना को ही ख़त्म कर दिया।