हो रहा है युवा रचनाकारों को निखारने का कार्य
इंशाद फाउंडेशन एक के बा’द एक बेहतरीन कार्यक्रम आयोजित कर के साहित्य के क्षेत्र में भारत भर में धूम मचाए हुए है। प्रतिभाशाली युवा साहित्यकारों, ख़ास कर युवा शायर-शायराओं को मंच प्रदान करने के लिए इंशाद जाना जाता है। बहुत कम समय में इंशाद फाउंडेशन ने साहित्य के क्षेत्र में अपना सिक्का जमाया है।
इंशाद के प्रवर्तक हैं नवीन जोशी। नवीन ख़ुद एक प्रसिद्ध शायर हैं और ‘नवा’ तख़ल्लुस के साथ शायरी करते हैं। विश्वविख्यात रेख़्ता वेब-साइट पर नवीन की कई ग़ज़लें सूचीबद्ध हैं। नवीन की शाइरी उसकी गहराई के लिए और विषयों की विविधता के लिए जानी जाती है। फ़लसफ़ा, दर्शन, रूहानियत, रूमान नवीन की शायरी सभी विषयों पर भाष्य करती है। नवीन एक बहुत अच्छे चित्रकार भी हैं और अपने चित्रों की प्रदर्शनी भी कर चुके हैं।
नवीन पेशे से कंपनी सचिव हैं। इंशाद के कार्यक्रमों के उत्तम और गुणवत्तापूर्ण प्रबंध का श्रेय नवीन साहब अपने प्रबंध के अनुभव को देते हैं। हमारे संवाददाता ने नवीन ‘नवा’ के साथ एक वार्तालाप किया, उसके कुछ अंश।
इंशाद फाउंडेशन कैसे बना इस के बारे में बताएँ।
नवा : मैंने जब अपना साहित्यिक सफ़र शुरू किया तब देखा कि बहुत से प्रतिभाशाली युवा रचनाकार भारत भर में बिखरे हुए हैं। उन्हें शाइरी का व्याकरण सरलता से समझाने वाले बहुत कम है। जब वह लिखते हैं तो उनकी रचनाओं की पुष्टि करने वाले, उन्हें मंच प्रदान करने वाले भी कम है।कुछ प्रतिभाशाली युवा रचनाकारों की इस मुआमले में मैंने जितना मेरा ज्ञान और मेरी हैसियत थी उतनी मदद की। हम साथ जुड़े। एक दूसरे का हाथ थाम कर आगे बढ़े। बहुत सी रचनाओं का सृजन हुआ। धीरे धीरे इन रचनाकारों के सृजन में हुए सकारात्मक बदलाव को औरों ने महसूस किया और वह भी हमारे साथ हो लिए। फिर, जैसे कि मजरूह सुल्तानपुरी साहब का शे’र है, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया। इंशाद के सदस्यों की वर्षो की मेहनत जब सोशल मीड़िया (ख़ास कर रेख़्ता वेब-साइट), आन-लाइन और ज़मीनी कार्यक्रमों के द्वारा लोगों के सामने आने लगी तो लोग अचंभित हो गये। इंशाद ने सदस्यों ने अपनी मेयारी शायरी से धूम मचा दी। इन उभरते हुए जवान रचनाकारों ने सोशल मीड़िया पर और कार्यक्रमों में अपनी शायरी का लोहा मनवा दिया। जब यह महसूस होने लगा कि इंशाद एक समूह से अधिक एक संस्थान का रूप ले रहा है तब यह विचार प्रस्तुत हुआ कि इंशाद को एक वैधानिक रूप देना चाहिए। वह भी हो गया। अब इंशाद फाउंडेशन कंपनी क़ानून के अंतर्गत एक गैर लाभ कंपनी है।
और संस्थाओं में और इंशाद फाउंडेशन में क्या फ़र्क़ है कि युवा रचनाकारों आज इंशाद की तरफ़ आकर्षित हो रहे हैं।
नवा : मैं समझता हूँ कि सभी छोटी बड़ी संस्थाएँ बहुत अच्छा काम कर रही हैं। रचनाकारों और दर्शकों को साथ ला रही हैं। इंशाद के साथ थोड़ा फ़र्क़ यह है कि हम रचनाकारों को केवल मंच प्रदान नहीं करते। हम जब किसी प्रतिभाशाली रचनाकार को चुनते हैं तो उसकी प्रतिभा को और उसके प्रस्तुतिकरण को निखारने की कोशिश भी करते हैं। हम एक लंबे समय तक एक प्रतिभाशाली रचनाकार को विविध प्रकार से दर्शकों के सामने लाते हैं। हमारे किसी भी कार्यक्रम के केन्द्र में हमारी संस्था नहीं प्रस्तोता रचनाकार होते हैं जिनको अधिक से अधिक दर्शकों तक पहुँचाने का भरसक प्रयत्न कार्यक्रम के बहुत पहले से किया जाता है।
इंशाद फाउंडेशन की संरचना के बारे में और इसके लिए जो आप की परियोजनाएं है उनके बारे में बताएँ।
नवा: जैसा कि मैंने बताया इंशाद फाउंडेशन कंपनी क़ानून के अंतर्गत एक ग़ैर लाभ कंपनी है। इसके संचालकों में मेरे साथ देवमणि पाण्डेय जैसे ज्येष्ठ साहित्यिक हैं जिनकी साहित्य सेवा आदरणीय है। वर्षों से साहित्य के क्षेत्र में कार्यरत बहुत सी संस्थाएँ हमारी मित्र संस्थाएँ हैं और हिंदी और उर्दू साहित्य क्षेत्र के भारत भर के गुणी जन हमसे जुड़े हुए हैं। सोशल मीड़िया पर हमारा मज़बूत अस्तित्व है। भारत भर में बड़े और गुणवत्तापुर्ण कार्यक्रम आयोजित कर के इंशाद फाउंडेशन ने ख़ुद को प्रस्थापित किया है। हम यह काम आगे बढ़ाना चाहते हैं। देश भर के युवा प्रतिभाशाली रचनाकारों को ढूँढना, निखारना और प्रस्तुत करना चाहते हैं। भारत में आज एक नया साहित्यिक इतिहास रचा जा रहा है और हम चाहते हैं कि इसमें इंशाद फाउंडेशन का महत्वपूर्ण योगदान हो।
इंशाद 5 नवंबर को मुम्बई में नस्ल-ए-नौ कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है उसके बारे में बताएँ।
नवा: युवा प्रतिभाशाली रचनाकारों को प्रस्तुत करने के लिए इंशाद फाउंडेशन कटिबद्ध है। इसी के तहत हम गोरेगांव के केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट सभागार में पांच नवंबर को एक कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं ‘नस्ल-ए-नौ, मुम्बई दी जेन-नेक्स्ट ऑफ शायरी’। इस कार्यक्रम में मुम्बई और आस-पास के चौदह प्रतिभाशाली युवा रचनाकार अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। हम इस कार्यक्रम को लेकर बहुत उत्साहित हैं। इसमें हमारे साथी प्रायोजक है ‘राब्ता पोएट्री’ जो ख़ुद भी बहुत से कार्यक्रमों के आयोजन का अनुभव रखते हैं और इस कार्यक्रम के साथ मुम्बई के साहित्यिक परिवेश में पदार्पण कर रहे हैं। राब्ता पोएट्री के प्रवर्तक शिवम झा ‘कबीर’ ख़ुद एक युवा रचनाकार भी हैं और काव्य के क्षेत्र में बहुत कम समय में उनकी संस्था ने प्रभावशाली कार्य किया है।
नवीन नवा की ग़ज़लों के चंद शेरों पर गौर फरमाएँ…
पुल बनाते हैं जो उनके लिए सोचा तो करो।
पीठ पर उनके रखो हाथ बस इतना तो करो।।
राम जी जानते हैं सब नहीं कर पाओगे।
उस गिलहरी ने किया जितना तुम उतना तो करो।।
मैं मेरे वक़्त के दामन में नहीं आऊँगा।
एक शाइर के लिए एक ज़माना क्या है।।
मैंने रस्ते से कहा छोड़ ये मंज़िल का फ़ितूर,
और मंज़िल से कहा रास्ते में मत आना।
रौशनी होती रहे रात है जब तक बाक़ी।
अपने जलने का रहे सिलसिला तब तक बाक़ी।
ख़त्म अब तक न हुआ काम उजालों का यहाँ।
कुछ अँधेरे हैं चराग़ों तले अब तक बाक़ी।।
एक क़त्अ….
आज अँधेरों की मुहाफ़िज़ हैं जो भी आवाज़ें,
एक दिन वो भी उजालों की ही मोहसिन होंगी।
रौशनी हम ने चराग़ों में भरी है ऐसी,
जब जलेंगे तो हवाएँ भी मु’आविन होंगी।।
(मुहाफ़िज़ : रक्षक
मोहसिन : उपकारकर्ता
मु’आविन : सहायक)
हो के हर क़ैद से आज़ाद भी मिल सकता हूँ।
तुझ से मैं बन के कोई याद भी मिल सकता हूँ।
मुझसे मिलना हो तो फिर वक़्त कोई शर्त नहीं,
मैं तो शाइर हूँ मेरे बा’द भी मिल सकता हूँ।
प्रस्तुति – हरिगोविंद विश्वकर्मा
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