द लिस्ट : मीडिया ब्लडबाथ इन कोविड टाइम्स

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महेश राजपूत ने बखूबी उभारा है कोरोना संक्रमणकाल में पत्रकारिता का क्रूर एवं अमानवीय पक्ष

देश में कोरोना वायरस के तीसरी लहर की आशंका बन रही है। अलग-अलग रूपों इस वायरस की वापसी से यही लग रहा है कि चीन के वुहान शहर से निकली महामारी समूची दुनिया के लिए संकट बन गई है। कोरोना के कारण इंसानी गंतिविधियों पर लगी रोक का नकारात्मक असर कमोबेश हर क्षेत्र में हो रहा है। विकासशील देश तो अपने समृद्ध संसाधन की बदौलत संकट का सामना कर ले रहे हैं, लेकिन भारत जैसे सुविधाहीन और विकासशील देश में कोरोना का संकट महात्रासदी में तब्दील हो चुका है। सीरियस मुद्दों को भी नॉन-सीरिसली लेने वाली केंद्र सरकार ने कोरोना संक्रममण के महासंकट को महाविनाश में तब्दील कर दिया है।

ख़स्ताहाल हेल्थ इनफ्रास्ट्रक्चर के चलते कोरोना वायरस से संक्रमित लगभग साढ़े चार लाख लोग असमय काल के गाल में समा गए। करोड़ों लोगों की आजीविका छिन गई। कोरोना संक्रमण की लगभग डेढ़ साल की अवधि में केंद्र सरकार की भूमिका बहुत निराशाजनक रही। एक तरफ़ लोग ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ रहे थे तो दूसरी ओर केंद्र सरकार रोज़ाना पेट्रोल और डीज़ल के भाव बढ़ा रही थी। केवल कोरोना संक्रमण काल में पेट्रोल और डीज़ल के दाम में क्रमशः 37 रुपए और 42 रुपए की बढ़ोतरी कर दी गई। यह अमानवीय कार्य केवल एक असंवेदनहीन प्रधानमंत्री ही कर सकता था। इस वृद्धि का असर हर सेक्टर पर हुआ। सबसे भयावह सरकार ने महीने के अंत में मिलने वाले वेतन पर जीवन-यापन करने वाले लोग विशुद्ध मुनाफ़ाख़ोर मालिकों के भरोसे छोड़ दिए गए। श्रमिकों के श्रम पर करोड़ों रुपए मुनाफ़ा कमाने वाले मालिकों ने लॉकडाउन लगते ही हाथ खड़े कर दिए। सबसे गंभीर त्रासदी यही रही।

महामारी की विभीषिका की ख़बर परोसने वाला मीडिया कोरोना से सबसे अधिक संक्रमित हुआ है। सैकड़ों पत्रकार कोरोना से अपनी जान गंवा बैठे, लेकिन जो वायरस से किसी तरह बच गए, उनकी हालत जान गंवा चुके पत्रकारों से भी बदतर हुई है। कोरोना संक्रमण की दो लहरों के दौरान लगाए गए लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में प्रकाशन संस्थानों ने अपने कर्मचारियों की छंटनी कर दी। जिन्हें नौकरी से निकाला नहीं गया, उनका वेतन पचास फ़ीसदी से लेकर 70 फ़ीसदी तक कम कर दिया गया। यूएनआई वरिष्ठ पत्रकार महेश राजपूत ने अपनी लघु फिल्म में इसी सब्जेक्ट को उठाया है। उन्होंने ‘द लिस्ट : मीडिया ब्लडबाथ इन कोविड टाइम्स’ (The List : Media Bloodbath in Covid Times) में उसी संक्रमित भारतीय मीडिया की कहानी को बखूबी फिल्माया है।

फिल्म कैसे बनी, इस बारे में निर्देशक महेश राजपूत बताते हैं, “मार्च 2020 में लॉकडाऊन लगते ही मीडिया संस्थानों के एडीशन बंद होने लगे। पत्रकार और गैर-पत्रकार कर्मचारियों को संस्थान से निकाले जाने की सूचनाएं मिलने लगी थीं। उसके बाद लगा मुझे कि मुझे कुछ करना चाहिए। पत्रकारिता का क्रूर एवं अमानवीय पक्ष को लोगों के सामने लाना चाहिए। कई लोगों के वास्तविक अनुभवों को ही पटकथा में पिरोया गया है। अर्थात इसे वास्तविक घटनाओं का फिक्शनलाइज़्ड अकाउंट कह सकते हैं। यह सही है कि कोरोना काल में सभी क्षेत्रों में नौकरियां गईं, लेकिन हमने मीडिया को इसलिए चुना क्योंकि कि यहां नौकरियां जाने पर कोई ख़बर तक नहीं बनी।”

महेश राजपूत बताते हैं कि वह फिल्म में सभी नये कलाकारों को नहीं लेना चाहते थे। इसलिए मोहाली के एक्टिंग स्कूल की अनीता शब्दीश से संपर्क किया। उन्हें पटकथा पसंद आई थी और कुछ कलाकार मुहैया कराए। बाद में डॉ: गुरतेज सिंह, जो खुद नाटक लेखक और निर्देशक हैं, ने भी एक किरदार निभाने की सहमति दे दी। फिल्म हालांकि सीमित बजट (करीब डेढ़ लाख रुपए) में बनी है लेकिन इतनी छोटी सी रकम जुटाने में भी काफी दिक्कतें आईं। महेश ने इसके लिए क्राऊड फंडिंग से लेकर दोस्तों से मदद लेकर फिल्म को पूरी की। रकम जुटाने के बाद लोकेशन हासिल करना भी मनोज और महेश के लिए चुनौती से कम न था।

महेश राजपूत को लोकेशन के चयन में बहुत अधिक मुश्किलात का सामना करना पड़ा। महेश के शब्दों में, “हम मीडिया संस्थानों में छंटनी पर फिल्म बना रहे थे और लगभग सभी मीडिया संस्थानों में छंटनी हुई थी। ऐसे में कोई मीडिया संस्थान हमें कैसे अपने दफ़्तर में यहां शूटिंग करने दे सकता था? बहुत मुश्किल के बाद हमने चंडीगढ़ के एक स्थानीय हिंदी अखबार ‘अर्थप्रकाश‘ और मोहाली के पंजाबी दैनिक “रोजाना स्पोक्समैन‘ की प्रबंध संपादक को अपने यहां शूटिंग की अनुमति के लिए मनाया। उनके सहमति देने से हमारी आधी परेशानी हल हो गई।“

फिल्म के बारे में कार्यकारी निर्माता और मुख्य कलाकार मनोज कुमार शर्मा कहते हैं, “लॉकडाउन में अख़बारों में बड़ी तेज़ी से छंटनी हो रही थी। रोज़ाना बड़े पैमाने पर लोगों को नौकरी से निकालने की ख़बर सुनने को मिल रही थी। मैंने भी अपना अनुभव महेश के साथ शेयर किया। इसके बाद महेश ने फिल्म की रूपरेखा तैयार कर दी और पटकथा लेखन शुरू कर दिया। महेश ने कहा कि फिल्म में संपादक का किरदार मैं निभाऊं। उसने तो मेरे मन की बात कह दी थी, क्योंकि मैं पहले से ही सोच रहा था कि मैं स्थानीय संपादक की भूमिका मैं अच्छी तरह से निभा सकता हूं। बतौर अभिनेता मेरे लिए यह सिखाने वाला अनुभव रहा। कैमरे के सामने मुझे कोई दिक्क़त नहीं आई। हमें स्थानीय संपादक की पत्नी के किरदार के लिए किसी की तलाश थी। मेरी पत्नी रश्मि उस भूमिका के लिए तैयार हो गई।”

दरअसल, 15 मिनट की यह फिल्म बेहद कसी हुई है। इसमें एक भी ऐसी सीन नहीं है जिसे अनावश्यक कहा जाए। मनोज बताते हैं, “कम समय में संदेश दर्शकों तक पहुंचाने की चुनौती समय के महत्व के बारे में इतना सचेत कर देती है कि आप पटकथा के समय ही अनावश्यक चीज़ें छांट देते हैं। सौभाग्य से हमारी पटकथा कसी हुई थी। वैसे महेश ने पहले छह सिंधी फिल्मों की पटकथा लिखी हुई है। उनके इस अनुभव का लाभ इस फिल्म को मिला है।”

फिल्म की शुरुआत अंग्रेजी दैनिक द व्हिसल ब्लोअर के चंडीगढ़ संस्करण के संपादक मनीष की दुविधा शुरू होती है। मनीष को आधी रात को प्रधान संपादक का फोन आता है। उसने बताया कि कोरोना संक्रमण से अख़बार का बिज़नेस बहुत कम हो गया है। लिहाज़ा पंद्रह लोगों को निकालना पड़ेगा। इसलिए वह कर्मचारियों की सूची बनाए, ताकि उनसे इस्तीफे लिए जा सकें। मनीष दुविधा में पड़ गया। उसके सामने दो विकल्प था, पहला अपने सहयोगियों की बलि दे दे या फिर अपनी नौकरी को दांव पर लगा दे। कोविड संकट के चलते अख़बार की आमदनी कम हो गई है। लिहाज़ा, कॉस्ट कटिंग करनी ही पड़ेगी। लिहाज़ा, संपादक को कर्मचारियों की बलि ले ली। संपादक को इनाम क्या मिला यह बहुत अहम सीन है। वह फिल्म का सस्पेंस है और सस्पेंस जानने के लिए फिल्म देखनी पड़ेगी।

सभी कलाकारों का अभिनय शानदार है। मनोज कुमार शर्मा (मनीष – संपादक), संजीव कौशिश (बॉस) और रश्मि भारद्वाज (रितु, मनीष की पत्नी) ने एकदम पेशवराना अभिनय किया है। इसी तरह आकांक्षा शांडिल (रजनी – एचआर प्रमुख), साहिर बनावैत (रिपोर्टर – जगबीर), गुरविंदर कौर (सरबजीत), डॉ. गुरतेज सिंह (शशांक) और जसप्रीत कौर (नीतू) ने भी अपने-अपने किरदार को समर्थ अभिनेता की तरह निभाया है। फिल्म का निर्माण मैडनेस विदाऊट मेथड इंटरटेनमेंट के बैनर तले किया गया है। निर्माता पद्मिनी राजपूत हैं। फिल्म का संपादन गोपाल राघानी ने किया है और कैमरा सुनिल वेद ने संभाला है। फिल्म ओटीटी एबीसी टाकीज़ (फिल्म देखने का Link – https://abctalkies.com/app/movie-detail/608da21636880f2254c9807a ) पर देखी जा सकती है। सबक्रिप्शन शुल्क महज 20 रुपए हैं।

ऐसा माना जाता है कि पत्रकारिता एवं फिल्में समाज का आईना होती हैं। इस फिल्म ने उसी दायित्व को ईमानदारी से निभाया है। यह फिल्म अब महेश राजपूत के यू-ट्यूब पर उपलब्ध है। फिल्म देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – द लिस्ट : मीडिया ब्लडबाथ इन कोविड टाइम्स

हरिगोविंद विश्वकर्मा

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