द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 4 – नाबालिग दाऊद का पहला अपराध (The Most Wanted Don – Episode – 4 – Juvenile Dawood’s First Crime)

0
6694

हरिगोविंद विश्वकर्मा
सन् 1970 की एक ख़ुशनुमा शाम थी वह। दक्षिण मुंबई के बदनाम इलाक़े कमाठीपुरा का टेमकर मोहल्ला आम मोहल्लों की तरह ही गुलज़ार था। ज़िंदगी अपने ढर्रे पर आगे बढ़ती चली जा रही थी। लोग अपने-अपने काम में मशगूल थे। सड़क पर इक्का-दुक्का गाड़ियां आ-जा रही थीं। वहीं सड़क पर ही एक राहगीर कहीं से मिले, अपने पैसे गिन रहा था। थोड़ी दूर बैठा 13-14 साल का एक कमसिन बालक राहगीर के हाथ में नोटों को बराबर देखे जा रहा था। कुछ देर बाद बालक अपने स्थान से उठा और राहगीर के पास पहुंच गया। वह क़रीब से उसे रुपए गिनते देखने लगा। अचानक उसके मन में क्या सूझा, राहगीर के हाथ से नोटों को झपटकर वह गली में भागा।

“देखो-देखो तो, मेरे पैसे। मेरे पैसे ले गया, देखो तो, वह लड़का मेरे पैसे छीन कर भाग गया।” लड़के का पीछा करता हुआ राहगीर चिल्ला भी रहा था। बहरहाल, वह लड़का नौ-दो ग्यारह हो गया। उसके ग़ायब हो जाने पर राहगीर रुक गया। सड़क पर ही रोने लगा।
“क्या हुआ भाई?” उसके पास पहुंचकर किसी ने पूछा।
“वह बालक मेरे पैसे छीनकर भाग गया।” राहगीर रो रहा था।

आसपास और लोग जुट गए। वहां धंधा लगाने वाले भी हैरान थे। इस तरह की घटनाएं तो उस दौर में वहां आम थीं, लेकिन पहली बार इतनी कम उम्र के किसी बालक को यह दुस्साहस करते देखा गया था। वहीं बैठे एक बूढ़े भिखारी ने बताया कि वह लड़का दाऊद था। पुलिस हवलदार इब्राहिम भाई का दूसरा छोकरा। लोगों ने राहगीर को इब्राहिम के पास जाने की सलाह दी।

बूढ़ा भिखारी ने सही बताया था। 14 साल का वह बालक कोई और नहीं बल्कि दाऊद ही था। पुलिस हवलदार शेख इब्राहिम हसन कासकर का दूसरा लड़का था। पुलिस के लड़के ने चोरी की। यह बात बड़ी अटपटी लगी, पर सच थी। सचमुच, पुलिस के लड़के ने ही चोरी की थी। उस समय किसे पता था कि आने वाले 10-15 साल में यह किशोर अपराध की दुनिया का बेहद जाना-पहचाना नाम बन जाएगा। और एक दिन उसे धरती का तीसरा सबसे ज़्यादा ख़तरनाक अपराधी के निगेटिव अलंकरण से नवाज़ा जाएगा।

बात शत-प्रतिशत सही है, दाऊद फ़िलहाल ख़ौफ़ का पर्याय बन चुका है। जहां ‘फ़ोर्ब्स’ उसकी शुमार दुनिया की सबसे ताक़तवर हस्तियों में करती है, तो इंटरपोल दुनिया के मोस्टवॉन्टेड ग़ुनाहगारों में। अमेरिका उसे दुनिया का सबसे ख़तरनाक क्रिमिनल-टेररिस्ट सिंडिकेट चलाने का अपराधी मानता है, तो भारत की नज़र में वह 12 मार्च 1993 के मुंबई ब्लास्ट का मास्टमाइंड है। बहरहाल, डोंगरी के छोकरे दाऊद के माफ़िया डॉन दाऊद इब्राहिम कासकर बनने की कहानी बड़ी रोमांचक, रुचिकर और हैरतअंगेज़ भी है।

ज़ुर्म की दुनिया में दस्तक देने के बाद मौत के इस सौदागर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बहुत कम अवधि में ही मुंबई अंडरवर्ल्ड पर उसका डंका बजने लगा। आरंभ में दाऊद ने हत्याओं के व्यापारी करीम लाला और येलो मेटल किंग हाजी मस्तान मिर्ज़ा के लिए काम किया। इस दौरान ज़ुर्म के इस कारोबार का फ़लसफ़ा उसने बहुत अच्छी तरह समझ लिया। लिहाज़ा, हत्या और डकैती जैसे अपराधों में पांव जमाने के बाद उसने स्मगलिंग की दुनिया में क़दम रखा और बहुत जल्दी ही अपना बहुत बड़ा एंपायर खड़ा कर लिया। अस्सी के दशक के मध्य तक उसका गिरोह डी-कंपनी यानी डी-सिंडिकेट कहा जाता था। मुंबई से पलायन कर दुबई में ठिकाना बनाने के बाद उसके ज़ुर्म की फसल और अधिक पैदावार देने लगी।

दाऊद इब्राहिम की संपूर्ण कहानी पहले एपिसोड से पढ़ने के लिए इसे क्लिक करें…

मुंबई सीरियल ब्लास्ट के बाद ग्लोबल टेररिस्ट घोषित किया गया, दाऊद दुनिया के मोस्टवॉन्टेड आतंकियों की फ़ेहरिस्त में है। लिहाज़ा उसके पास पाकिस्तान की ख़ुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज़ इंटेलिजेंस यानी आईएसआई की शरण में जाने के सिवा कोई चारा नहीं था। लिहाज़ा, जैसे 1986 में वह रातोंरात मुंबई से दुबई भागा था, उसी तरह दुबई से कराची पलायन कर गया। ज़ुर्म का उसका हेडक़्वार्टर पड़ोसी मुल्क में शिफ़्ट हो गया। इसके बावजूद अंडरवर्ल्ड पर अपनी पकड़ उसने उसी तरह बनाए रखी। कराची में बैठकर वह कॉन्ट्रेक्ट किलिंग, एक्सटॉर्शन और प्रोटेक्शन मनी वसूलने जैसे अपराध के अलावा नशीले पदार्थ, जाली करेंसी, आर्म्स स्मगलिंग जैसे तमाम आर्गेनाइज़्ड क्राइम में भी लिप्त हो गया।

कालांतर में वह भारत और पाकिस्तान की सीमा लांघकर मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, श्रीलंका, नेपाल और दुबई पहुंच गया। नई जानकारी के अनुसार, डी कंपनी का अवैध कारोबार एशिया के अलावा फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन और अफ्रीका के कई मुस्लिम देशों में भी फल-फूल रहा है। दाऊद फ़िल्म फ़ाइनेंसिंग, रियल इस्टेट और शेयर डीलिंग से भी बेशुमार दौलत बना रहा है। शिपिंग, एविएशन और दूसरे सेक्टर्स में भी धड़ल्ले से निवेश कर रहा है। मुंबई पुलिस की इकॉनॉमिक विंग, प्रवर्तन निदेशालय और इस कारोबार से जुड़े विशेषज्ञों के आकलन के मुताबिक दाऊद का ‘बिज़नेस’ 75 हज़ार करोड़ रुपए पार कर गया है, अकेले उसके पास 35 हज़ार करोड़ की चल-अचल संपत्ति है। ऐसे में यह कहना बिल्कुल अतिरंजनापूर्ण नहीं होगा कि ज़ुर्म को पेशा बनाकर काम करने वाले किसी आदमी ने धरती के किसी कोने में इतनी दौलत नहीं बनाई।

अगस्त 2020 में भारतीय ख़ुफिया एजेंसियों के हवाले से हाल ही में ख़बर आई थी कि अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के पास कैरेबियाई के ख़ूबसूरत विंडवर्ड आइलैंड्स में स्थित कॉमनवेल्थ ऑफ़ डोमिनिका (सीओडी) का पासपोर्ट है। हालांकि डोमिनिका ने इस दावे को खारिज कर दिया। डोमेनिका ने बयान जारी कर कहा, दाऊद इब्राहिम ना तो उनके देश का नागरिक है और ना ही कभी वहां रहा है। सरकार ने ये भी कहा कि दाऊद को किसी भी तरह की नागरिकता नहीं दी गई है।

मीडिया में दावा किया गया था कि पाकिस्तान के विदेश मामलों के मंत्रालय की मदद से अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम ने डोमिनिका का पासपोर्ट हासिल किया था। 80 हज़ार से भी कम की आबादी वाले इस देश में दाउद को आर्थिक नागरिक कार्यक्रम के तहत ये पासपोर्ट दिया गया था। इसके बाद जैसे ही भारत ने सीओडी को सतर्क किया था, डॉन के कैरिबियन सहयोगी ने भागने की योजना बना ली।

संयुक्त राष्ट्र को सौंपे गए इस डोज़ियर में दाऊद के कराची में छह ठिकानों समेत आठ पते को भी सूचीबद्ध किया गया है, हालांकि पाकिस्तान ने इन आठ पते में से केवल तीन को ही स्वीकार किया है। ये पते क्लिफ़्टन में व्हाइट हाउस, डिफेंस हाउसिंग अथॅरिटी में 30 वीं स्ट्रीट पर एक घर और कराची में नूराबाद के पहाड़ी इलाके में एक महलनुमा बंगले के हैं।

डोज़ियर के मुताबिक डी-कंपनी के वित्तीय साम्राज्य को नियंत्रित करने वाला दाऊद का छोटा भाई अनीस अपने परिवार के साथ क्लिफ़्टन रोड पर ब्लॉक 4 में स्थित डीसी-13 बंगले में रहता है। वहीं अंडरवर्ल्ड की गतिविधियां कंट्रोल करने वाला छोटा शकील डिफेंस अथॉरिटी एरिया में रहता है। दाऊद के दो अन्य भाई हुमायूं और मुस्तकीन सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच लगातार यात्रा करते रहते हैं। हुमायूं डी-कंपनी के कुछ वैध व्यवसायों की देखभाल करता है और ज़्यादातर कराची में रहता है।

(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)

अगला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें – द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 5

Share this content: