द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 17 – कोर्ट के विटनेस बॉक्स में आमिरजादा का खून

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हरिगोविंद विश्वकर्मा
अपराधिक पृष्ठभूमि वाली फिल्म शोले ने भले सिनेमा-प्रेमियो का खूब मनोरंजन किया और सुपर-डुपर हिट हो गई, लेकिन अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, अमजद ख़ान, हेमा मालिनी और जया भादुड़ी की यह मूवी पठानों के लिए एकदम से अशुभ साबित हुई। दरअसल, शोले फ़िल्म का पोस्टर ही पठानों तक पहुंचने के लिए लैंडमार्क साबित हुए। दरअसल, एक दुस्साहसपूर्ण कार्रवाई में पठान गिरोह के लोगों ने गनपॉइंट पर वरली से दिन दहाड़े फिल्मकार मुशीर-रियाज़ जोड़ी के फ़िल्मकार मुशीर अहमद आलम का अपहरण कर लिया। मुशीर की अमिताभ बच्चन, दिलीप कुमार और स्मिता पाटिल अभिनीत फ़िल्म ‘शक्ति’ 22 सितंबर 1982 को रिलीज़ हुई। क्रिटिक्स की राय में फ़िल्म भले ज़्यादा सफल नहीं रही लेकिन वास्तव में शक्ति ने रिकॉर्डतोड़ बिज़नेस किया था। इससे इस फिल्म के निर्माता मुशीर-रियाज बड़ी चर्चा में थे।

अचानक मुशीर आलम के अपहरण से बॉलीवुड ही नहीं, बल्कि पूरे देश में हड़कंप सा मच गया। मुंबई में क़ानून व्यवस्था पर सवाल उठने लगा। पुलिस बैकफुट पर आ गई। आलमज़ेब ने मुशीर की रिहाई के लिए 25 लाख रुपए की भारी-भरकम फिरौती मांगी। मुशीर के परिवार ने मोहम्मद रियाज़ के साथ मिलकर तीन-चार घंटे में क़रीब तीन लाख रुपए का ही इंतज़ाम कर सका। उस धनराशि को लेकर मोहम्मद रियाज़ रात नौ बजे ग्रांट रोड पहुंचे और कैश आलमज़ेब को सौंप दिया। बाक़ी की रकम के जल्द भुगतान के आश्वासन के बाद मुशीर को उसके चंगुल से मुक्त कराया गया। मुशीर की नज़र शोले के एक बड़े पोस्टर तक गई जो ग्रांटरोड में पठान गैंग के मुख्यालय के पास लगी थी।

मुशीर के अपहरण की इस घटना से दिलीप कुमार ख़ासे नाराज़ हुए। उन्होंने पुलिस प्रमुख जुलियो रिबेरो से मुलाक़ात की। उस समय मधुकर झेंडे, जिन्होंने बाद में बिकनी किलर चार्ल्स शोभराज के गिरफ़्तार किया, सहायक पुलिस आयुक्त थे। रिबेरो ने झेंडे से कहा कि किसी बेहतरीन अफसर को जांच की जिम्मेदारी दें। पुलिस कमिश्नर से निर्देश मिलने के बाद झेंडे ने जांच की ज़िम्मेदारी तेज़-तर्रार पुलिस अधिकारी इंस्पेक्टर इसहाक बागवान को सौंप दी। इसके बाद पुलिस आमलज़ेब के वयोवृद्ध पिता जंगरेज़ ख़ान को उठाकर थाने ले गई। उसके बाद सूचना मिली थी कि आलमज़ेब गुजरात में कहीं छुपा हुआ है। बहरहाल, अपहरण के चौथे दिन पुलिस उसे पकड़ने में कामयाब रही। इसके बाद आमिरज़ादा भी पुलिस ट्रैप में फंस गया।

जंगरेज़ के दोनों बेटे आमिरज़ादा और आमलजेब जेल में पहुंच गए लेकिन दाऊद इंतकाम की आग में जल रहा था। वह किसी भी कीमत पर आमिरज़ादा को ख़त्म करना चाहता था। सो हत्या के लिए घाटकोपर के ख़तरनाक सुपारी किलर बड़ा राजन उर्फ अन्ना राजन नायर से संपर्क किया। अन्ना राजन पूर्वोत्तर मुंबई यानी चेंबूर, कुर्ला, घाटकोपर और मुलुंड में मान्या सुर्वे की ही तरह सुपारी किलर के रूप में कुख्यात था। दाऊद के अनुरोध के बाद उसने ऑपरेशन आमिरज़ादा शुरू कर दिया। बड़ा राजन ने आमिर को मारने की ज़िम्मेदारी एकदम से नए लड़के डेविड परदेसी को सौंपी। राजन ने डेविड परदेसी जैसे नए और अनुभवहीन लड़के को इसलिए चुना, ताकि हत्या के बाद पुलिस किसी पर कोई शक न कर सके। अन्ना ने चतुराई से पता कर लिया था कि आमीरज़ादा की कोर्ट में पेशी 6 सितंबर 1983 को है।

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6 सितंबर 1983 का दिन था। समय 11.30 बजे का। सुरक्षा व्यवस्था बहुत तगड़ी थी। इतनी तगड़ी कि मुंबई सेशन्स कोर्ट को किले में तब्दील कर दिया गया था। पुलिस की कड़ी सुरक्षा के बीच आमिरज़ादा को आर्थर रोड जेल से सेशन्स कोर्ट में लाया गया। चूंकि आमिरज़ादा दाऊद के भाई की हत्या का आरोपी थी, इसलिए पुलिस कोई चांस नहीं लेना चाहती थी। लेकिन अन्ना राजन मुंबई पुलिस से भी ज़्यादा स्मार्ट निकला। सुनवाई शुरू होने से बहुत पहले 10.30 बजे ही डेविड परदेसी को हथियार लेकर कोर्ट में घुसा दिया। परदेसी पुलिस के पीछे लगी एक कुर्सी पर आराम से बैठ गया। सुनवाई के दौरान आमिरज़ादा विटनेस बॉक्स में खड़ा था। सरकारी वकील जिरह कर रहा था। जज समेत वहां बैठे सभी लोग चुपचाप कार्यवाही सुन रहे थे।

सुनवाई के दौरान ही सामने रखी कुर्सियों पर बैठा परदेसी अचानक उठा। बगल बैठे व्यक्ति से उसने लघुशंका का इशारा किया। सभी लोगों को लगा कि वह वॉशरूम जाने के लिए उठा है। तभी अचानक परदेसी लपककर आमिरज़ादा के बेहद क़रीब पहुंच गया और बेहद नज़दीक से उसके माथे पर गोली दाग़ दी। आमिरज़ादा विटनेस बॉक्स में ही गिर पड़ा और वहीं ठंडा पड़ गया। इस गोलीबारी से अदालत में भगदड़ मच गई। लोग घबराकर बाहर की ओर भागने लगे। इसका लाभ उठाकर परदेसी भी कोर्ट से बाहर भाग निकला, लेकिन मुस्तैद इशाक बागवान ने उसके पैर में गोली मार दी, जिससे वह वहीं गिर पड़ा। पुलिस की टीम ने उसे धर दबोचा। सबसे अहम हत्या के वक़्त बड़ा राजन और दाऊद अदालत में ही मौजूद थे। दोनों काम होते ही चुपचाप खिसक लिए।

बहरहाल, आमिरज़ादा की दिन-दहाड़े हत्या पठान गैंग के लिए बड़ा आघात था। एक तरह से दाऊद का पठान गैंग को यह खुली चुनौती थी। हत्या के तुरंत बाद करीम लाला के ख़तरनाक भतीजे समद ख़ान ने यह पता लगा लिया कि दाऊद ने आमिरज़ादा की हत्या की सुपारी किसी और को नहीं, बल्कि अन्ना राजन को दी थी। आमिर की हत्या करने वाला परदेसी उसी का शूटर था। उधर, पुलिस पूछताछ में परदेसी ने भी उगल दिया कि आमिरज़ादा की हत्या का पूरा ख़ाका बड़ा राजन ने ही तैयार किया था। हालांकि परदेसी के बयान के आधार पर मुंबई पुलिस ने बड़ा राजन को चेबूर से गिरफ़्तार कर लिया। अदालत ने अन्ना को आर्थर रोड जेल भेज दिया। दाऊद के लिए राहत की बात थी कि साबिर का दूसरा हत्यारा आमिरज़ादा भी मारा गया। इसके बावजूद वह बदले की आग में जलता रहा।

आमिरज़ादा की हत्या के बाद बदले की आग में अब आलमज़ेब भी जलने लगा। वह अपने भाई के हत्यारे राजन नायर को ख़ुद मारना चाहता था। लेकिन अनुभवी करीम लाला ने उसे सलाह दी कि अन्ना को मारने के लिए सुपारी किलर की मदद से बदला लेना ज़्यादा सेफ़ रहेगा। यह बात आलम को भी अधिक ठीक लगी। उसे अपराधी अब्दुल कुंजू के बारे में बताया गया। उसके लोगों ने कुंजू से संपर्क किया। कुंजू तुरंत हत्या करना स्वीकार कर लिया। दरअसल उसे अन्ना से अपना पुराना हिसाब भी चुकना था, ऊपर से यहां हत्या के बदले पैसे भी मिल रहे थे जो बोनस था। लिहाज़ा कुंजू अपने अजीज दोस्त महेश ढोलकिया के साथ आलमज़ेब से मिला। उनके बीच डील डन हो गई। कुंजू को मुंह मांगी रकम ऑफ़र की गई। एडवांस भी मिल गया। बैठक में यह तय किया गया कि जैसे आमिरज़ादा को अदालत में मारा गया उसी तरह राजन अन्ना को कोर्ट में ही मारा जाएगा।

(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)

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