हरिगोविंद विश्वकर्मा
साबिर अहमद की हत्या से दाऊद अचानक से बौखला-सा गया था। उसके आदमियों ने आलमज़ेब-अमिरज़ादा के अड्डों पर हमले और तोड़-फोड़ किए। लेकिन इन दोनों का पता नहीं चल पा रहा था। वे कहीं अज्ञात जगह छिप गए थे। लिहाज़ा, उनके हमदर्दों को निशाना बनाया गया। पठान की गली में खड़ी टैक्सियों में आग लगा दी गई। पान बेचने वाले को भी नहीं बख्शा गया। बहुत कोशिश के बाद भी पठानों की कोई जानकारी नहीं मिली कि वे कहां छिपे हैं? मुंबई पुलिस में दाऊद की अच्छी पैंठ थी। पता चला, साबिर को मारने का प्लान मान्या सुर्वे का था। अब दाऊद के दिमाग़ में केवल एक ही शब्द गूंज रहा था, बदला। सबसे पहले इंतक़ाम। वह साबिर की हत्या का बदला लेना चाहता था, अपनी तरह से।
भारतीय न्याय-व्यवस्था पर उसे बिल्कुल भरोसा नहीं था। उसका मानना था, अदालत के चक्कर में पड़ेगा तो कभी बदला नहीं ले सकेगा। मुमकिन है, इकलौती गवाह चित्रा ख़रीद ली जाए। कोई परिस्थितिजन्य सबूत नहीं है। लिहाज़ा, हमलावर आसानी से पहले ज़मानत पा जाएंगे फिर बरी हो जाएंगे। सो, वह अपने ढंग से पठानों का सफ़ाया करना चाहता था। किसी भी कीमत पर। भाई के अंतिम सस्कार की बाक़ी रस्में बाद में होंगी। लिहाज़ा, साबिर को दफ़न करने के बाद आनन-फ़ानन में उसने ख़ास सिपहसालारों की बैठक बुलाई। रणनीति पर बात होने लगी। और, शुरू हो गया दाऊद गिरोह और पठान गैंग के बीच सबसे भयावह खूनी खेल।
मुंबई पुलिस की साबिर की हत्या के बाद खूब किरकिरी हुई। हत्यारों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का भारी दबाव था। पता चल गया था कि साज़िश मान्या सुर्वे और आमिरज़ादा ने रची थी। मान्या सुर्वे निरंकुश हत्यारा था। 1969 में पुलिस की हिरासत से फ़रार होने के बाद कभी उसे गिरफ़्तार ही न किया जा सका। आज़ाद होते ही उसने गिरफ़्तार करने वाले दादर के पुलिस इंस्पेक्टर पर ही हमला कर दिया था। मान्या शंकालु स्वभाव का था। किसी पर भरोसा नहीं करता था। अपनी मूवमेंट हमेशा गोपनीय रखता था। इससे, वह कहां है? क्या कर रहा है? यह जानकारी किसी को नहीं रहती थी। यह भी कहा जाता था कि वह हैंड ग्रेनेड्स और एसिड बॉटल्स हमेशा अपने पास रखता था। यानी हर वक़्त मरने-मारने पर उतारू रहता था। वह सत्तर के दशक का सबसे ख़तरनाक गैंगस्टर्स था। उस वक़्त हर जगह सिर्फ़ उसी की ही धौंस चलती थी। लोगों के बीच उसका डर फैला हुआ था।
इस बीच इब्राहिम भाई तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान अंतुले से मिले और साबिर के हत्यारों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की मांग की। अंतुले कोंकण क्षेत्र के थे, सो परिवार को उम्मीद थी, वह कुछ करेगें। उन दिनों जूलियो रिबेरो शहर के नए पुलिस कमिश्नर बनाए गए थे। वह मुंबई को अपराधमुक्त बनाना चाहते थे। सो, अपराधियों से निपटने के लिए स्पेशल सेल बनाया जिसमें सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर यशवंत भिड़े, राजा तंबत, संजय परांडे, इसहाक बागवान जैसे अफ़सर शामिल किए गए। एनकाउंटर में अपराधियों को मारने का सिलसिला रिबेरो के ही रिजिम में शुरू हुआ।
कहते हैं, मोहब्बत एक ख़ूबसूरत-सा ऐहसास है। जिसे मोहब्बत होती है, उसकी दुनिया ही बदल जाती है। मोहब्बत करने वाला जागते-सोते बस अपने महबूब के सपने देखता रहता है। संभवतः आलोचक इसीलिए मोहब्बत को लाइलाज़ बीमारी मानते हैं। बहरहाल, मोहब्बत भले गुदगुदाने वाले एहसास हो लेकिन कई मशहूर ही नहीं कुख्यात लोगों के लिए यही मोहब्बत मौत का सबब बनी। ढेर सारे अपराधियों तक पुलिस या उनके प्रतिद्वंदी मोहब्बत के रास्ते ही पहुंचे और उन्हें मौत की नींद सुला दिया। यही हाल साबिर का हुआ और उसे मारने वाले मान्या सुर्वे का भी।
मान्या सुर्वे मिलने तो अपनी प्रेमिका से गया था, लेकिन मिल गई मुंबई पुलिस की नवगठित एनकाउंटर टीम। उस टीम ने मान्या को मौत के पास भेज दिया। दरअसल, उन दिनों अपराधियों को अदालत से सज़ा कतई नहीं हो पाती थी। कोई भी डर के मारे गुंडों के ख़िलाफ़ गवाही ही नहीं देता था। क़रीब-क़रीब सारे गवाह सुनवाई के दौरान ही मुकर जाते थे। लिहाज़ा सबूत के अभाव में ख़तरनाक अपराधी भी बरी कर दिए जाते थे। इसके बाद पुलिस कमिश्नर रिबेरो रणनीति बनाई कि क्यों न ख़तरनाक गुंडों को मुठभेड़ में ही मार दिया जाए। यानी उनकी एक्ट्राज्यूडिशियल किलिंग कर दी जाए। जिससे कम से कम अपराधियों का सफ़ाया ही होगा।
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बहरहाल, मुंबई पुलिस का सबसे पहला टारगेट मान्या सुर्वे था। रणनीति के अनुसार मान्या के साथ काम कर चुके कई अपराधियों की ज़मानत करवाई गई ताकि उसके मूवमेंट की सही-सही जानकारी मिल सके। यह ट्रिक कारगर साबित हुई। तक़रीबन साल भर की कड़ी मेहनत के बाद मान्या के बारे में इनपुट्स मिलने लगे। जानकारी मिली कि वह एक छात्रा से मिलने के लिए अकसर वडाला के अंबेडकर कॉलेज आता है और वहां से उसे लेकर किसी गेस्टहाऊस में जाता है। स्पेशल सेल की टीम इस सूचना पर दिन-रात काम करने लगी।
मुखबिरों से पक्की ख़बर मिली कि मान्या गुरुवार यानी 11 जनवरी 1982 को सुबह 10.30 बजे वडाला के अंबेडकर कॉलेज आने वाला है। वहां से अपनी गर्लफ़्रेंड को लेकर वाशी सेक्टर-17 के एक गेस्टहाऊस में जाएगा। बस क्या था, पुलिस की ओर से ट्रैप लगा दिया गया। पुलिस की टीम वहां चारों ओर फैल गई। कम उम्र के पुलिस वाले छात्रों के भेस में थे, तो बड़ी उम्र के पुलिसवाले प्रोफ़ेसर के रूप में। सभी पुलिस वाले इंतज़ार करने लगे। 10.35 बजे एक 22-24 साल की युवती पैदल ही वहां पहुंची। उसने माहौल का मुआयना किया और बस स्टॉप पर खड़ी हो गई। पुलिस की टीम ने माना कि वह युवती ही मान्या की कथित प्रेमिका है।
पुलिस को मिली सूचना सही साबित हुई। क़रीब 10.45 बजे एक आदमी टैक्सी उतरा। पुलिस अफ़सर यशवंत भिड़े ने बाक़ी लोगों संकेत कर दिया कि यह आदमी ही मान्या सुर्वे है। मान्या थोड़ा आगे उतरा था, लिहाज़ा बस स्टॉप के पास वापस आने लगा। वह उस जगह की ओर बढ़ा, जहां प्रेमिका उसकी राह देख रही थी। सहसा, उसने महसूस किया कि कुछ लोग उसकी ओर बढ़ रहे हैं। पुलिस वाले बिजली की फुर्ती से आगे बढ़ रहे थे। मान्या कुछ सोच पाता, उससे पहले राजा तंबत ने मराठी में कहा, “हे मान्या रुक, हम पुलिसवाले हैं। तू ज़िंदा रहना चाहता है तो सरेंडर कर दे। नहीं तो यहीं मारा जाएगा। यहीं तेरा खेल खल्लास कर देंगे।”
लोगों को बंदूक ताने देखकर वहां भगदड़ सी मच गई। जिसे जिधर जगह मिली वह उधर ही भागने लगा। तब तक मुंबई में कोई एनकाउंटर नहीं हुआ था। वह मुंबई ही नहीं देश का पहला एनकाउंटर था। पुलिस को देखकर मान्या गरज उठा। उसने पलक झपकते शर्ट के अंदर से माउज़र निकालकर राजा तंबत और बागवान की ओर फ़ायर कर दिया। दोनों पुलिस अफ़सर वहीं खड़ी कार की आड़ में न छिप गए होते तो तत्काल मारे जाते।
बहरहाल, मान्या वहां से भागता, उससे पहले बागवान और तंबत ने उस पर जवाबी हमला बोल दिया। बागवान की गोली मान्या के सीने को चीरती हुई निकल गई। तो तंबत की दो गोलियां उसके रिवॉल्वर वाले हाथ में लगी। उसका रिवॉल्वर दूर जा गिरा। इसी दौरान बागवान की रिवॉल्वर से दो और गोलियां निकलीं और मान्या के शरीर में जा घुसीं। मान्या निहत्था हो चुका था। उसने एसिड बॉटल निकाली और पुलिस पर फेंकना चाहा, पर उसके हाथ ने साथ नहीं दिया। वह बुरी तरह पस्त हो चुका था। उसके मुंह से ख़ून निकल रहा था। वह जोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था और पुलिस को गालियां दे रहा था। पुलिस उसे एंबुलेंस में बिठाकर सायन के लोकमान्य तिलक अस्पताल लेकर गई, परंतु रास्ते में ही उसकी मौत हो गई थी क्योंकि डॉक्टर ने जांच के बाद उसे ‘डेड ऑन एडमिशन’ घोषित कर दिया। इस तरह जैसे साबिर अपनी प्रेमिका के चक्कर में मारा गया था, वैसा ही हाल डॉन मान्या सुर्वे का भी हुआ।
मान्या सुर्वे के एनकाउंटर इस तरह दो दशक से तक दादर और आस-पास के लोगों के साथ-साथ पुलिस की नींद हराम करने वाला ख़तरनाक अपराधी मारा गया। मान्या की मौत, आमतौर पर आम आदमी और पुलिस के लिए ख़ुशख़बरी थी। राहत और सुकून की सांस लेने वालों में दाऊद भी था। कई पुलिस अफ़सर मानते हैं कि मान्या उस दौर में दाऊद से ज़्यादा ताक़तवर था। उसकी हत्या ‘साबिर की मौत का बदला’ तो थी ही, दाऊद को आगे बढ़ने का पैसेज़ भी मिल गया। सो कहा जा सकता है कि इस एनकाउंटर ने दाऊद को शक्तिशाली बना दिया था। मान्या के एनकाउंटर के तक़रीबन 50 दिन बाद पुलिस लंबी जद्दोजहद के बाद आमिरज़ादा को 28 फरवरी 1982 को गिरफ़्तार करने में सफल रही।
(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)
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