हरिगोविंद विश्वकर्मा
वीपी रोड गिरगांव के सिक्का नगर बिल्डिंग का परिसर। दाऊद इब्राहिम के हथियारों से लैस आधा दर्जन से ज़्यादा शूटरों ने पोज़िशन संभाल रखी थी। दाऊद टीम की अगुआई कर रहा था। उसके सिर पर ख़ून सवार था। वह किसी भी कीमत पर समद ख़ान को मारना चाहता था। नूरा के दर्द का बस यही इंतक़ाम था। उसके साथ उसका सबसे भरोसेमंद साथी छोटा राजन, चचेरा भाई अली अंतुले और बाक़ी शूटर थे। वे समद ख़ान की राह देख रहे थे जो इमारत से नीचे उतरने ही वाला था।
यह 4 अक्टूबर 1984 का दिन था। समुद्र के पास होने के कारण सिक्का नगर बिल्डिंग परिसर के इलाके का मौसम बेहद ख़ुशनुमा और कुछ-कुछ गुलाबी था। समद ख़ान अपनी प्रेमिका शिल्पा जवेरी के साथ सातवीं मंज़िल पर उसके फ़्लैट में था। शिल्पा ने उसका सुबह से दोपहर तक इंतज़ार किया था। लंच दोनों साथ ही करने वाले थे। शिल्पा ने खाना बनाकर रखा था। फ़िलहाल दोनों साथ में एक ही बिस्तर पर निजी लम्हात में थे । यूं तो अन्य अपराधियों की तरह समद के भी अनगिनत महिलाओं से रिश्ते थे लेकिन उसके सबसे अच्छे लम्हात शिल्पा के साथ होते थे। शिल्पा भी उसे टूटकर चाहती थी और समद भी उस पर फिदा था। समद उस दिन प्रेमिका के साथ क़रीब दो घंटे रहा। बाद में दोनों विस्तर से उठ गए। लंच करने के समद फटाफट नीचे उतर गया।
समद जैसे ही लिफ़्ट से बाहर आया तो उसका एनकाउंटर सामने खड़े दाऊद एंड कंपनी से हो गया। इतने अधिक शूटरों को देखकर वह हैरान रह गया। उसे तो मारो काठ सा मार गया। वह कुछ समझ पाता या उसका हाथ अपनी गन तक पहुंच पाता, उससे पहले उस पर फ़ायर हो गया। गोलियों की बौछार हो गई। हर कोई उस पर गौली ही चला रहा था। चंद मिनट तक उस पर अनवरत गोली चलती रही। उसका पूरा का पूरा जिस्म गोलियों से छलनी हो गया और उसकी तत्काल वहीं मौत हो गई।
बाद में खुलासा हुआ कि दाऊद ने उसकी प्रेमिका शिल्पा जवेरी को ही ख़रीद लिया था। पुलिस में कई सूत्र यह भी बताते हैं कि समद की हत्या में रमा नाईक और उसके शूटर भी शामिल हुए थे। जो भी हो, समद ख़ान की मौत करीम लाला के लिए बहुत बड़ा आघात था। करीम ने दुनिया को बताने के लिए भले ही समद ख़ान को बेदख़ल कर दिया था लेकिन सच तो यह था कि करीम समद को अपने प्राण से भी ज़्यादा प्यारा था। लिहाज़ा, करीम लाला ने भतीज़े की मौत का बदला लेने का संकल्प लिया। वह कोई क़दम उठा पाता उससे पहले किसी अन्य अपराध में गिरफ़्तार कर लिया गया। ज़मानत पर छूटते ही फिर उसे रासुका में उठा लिया गया। उस पर भिवंडी और दक्षिण मुंबई में दंगा भडकाने के भी आरोप लगे थे।
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हालांकि, समद ख़ान की हत्या के पीछे एक और कहानी बताई जाती है। कहा जाता है कि अनीस की शादी में समद ने फ़ायरिंग की थी जिसमें इक़बाल कासकर घायल हो गया था। उसके बाद उसे ख़त्म करने की साज़िश रची गई। दिल्ली से एक ख़ूबसूरत कश्मीरी लड़की नसीम को बुलाया गया। समद नसीम के जाल में फंस गया और उसके यहां आने-जाने लगा। बस क्या था, एक दिन जैसे ही नसीम के पास गया। बाहर दाऊद के साथ रमाकांत नाईक, बाबू रेशिम, छोटा राजन, संजय रग्गड़, दिलीप बुआ और सुनील सावंत ने हथियार के साथ पोज़िशन ले ली। जैसे ही समद नसीम के साथ वक़्त गुज़ार कर नीचे आया उसे भून दिया गया। बाद में अजीज दलीप ख़ान के बंगलोर में रहने वाले बेटे हमीद दलीप ख़ान ने समद की हत्या कराने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। अजीज ख़ान की हत्या समद ने 1983 में कर दी थी।
इस बीच नाना उर्फ छोटा राजन उर्फ अंडरवर्ल्ड डॉन राजेंद्र सदाशिव निखलजे की ओर से राजन अन्ना की हत्या के सूत्राधार अब्दुल कुंजू को मारने की कई बार कोशिश हुई, लेकिन हर बार वह बच ही गया। 1984 में छोटा राजन, संजय रग्गड़ और साधु शेट्टी ने कुंजू को मारने की फूलप्रूफ़ प्लानिंग कर दी। चार बार मौत के क़रीब से गुज़रने से कुंजू बहुत डर गया था। उसे हर जगह हर वक़्त अपनी मौत ही नज़र आती थी। उसने अपनी गिरफ़्तारी भी करवाई, परंतु मौत का साया उसका पीछा करता ही रहा। हालांकि साल भर ख़ामोश रहने से उसे लगने लगा कि दाऊद गैंग ने शायद उसे माफ़ कर दिया। अब्दुल कुंजू 4 मई 1985 को चेंबूर में बच्चों के क्रिकेट मैच देख रहा था। वह खुश था कि दाऊद ने उसे माफ़ कर दिया। जब मैदान में मैच चल ही रहा था उसी दौरान कई और खिलाड़ी यूनीफ़ॉर्म पहनकर मैदान में प्रवेश करते दिखे। इनमें छोटा राजन, साधु शेट्टी और संजय रग्गड़ को अब्दुल कुंजू ने फौरन पहचान लिया। सभी लोग मैदान में घुस गए और कुंजू की जमकर पिटाई की। कुंजू चिल्लाता रहा। बाद में उसके जिस्म को गोलियों से छलनी कर दिया गया।
आमिरज़ादा को कोर्ट में जज के सामने मारने वाला डेविड परदेसी आर्थर जेल में दो साल बंद रहने के बाद 12 दिसंबर 1985 को रहस्यमय ढंग से फ़रार हो गया। उधर दाऊद गिरोह को तितर-बितर करने के मक़सद में आलमज़ेब अब भी लगा था और पूरी कोशिश भी कर रहा था कि दाऊद को मार दे। उसने इक़बाल टैंपो के साथ मिलकर दाऊद के ख़ास आदमी रशीद अरबी पर महालक्ष्मी पेट्रोल पंप के पास हमला किया। इस तरह उसने दाऊद के एक और क़रीबी साथी की हत्या कर दी। इसके बाद वह सीधे दाऊद की नज़र में आ गया। दरअसल, साबिर के हत्यारों में अब सिर्फ़ आलमज़ेब ही बचा था। दाऊद ने अभी तक अपने भाई के किसी भी हत्यारे को मारने के लिए ख़ुद हथियार नही उठाया था। इस बार भी ज़रूरत नहीं पड़ी। उसने एक बार फिर निशाना साधा और आलमज़ेब भी मारा गया।
दरअसल, 29 दिसंबर 1985 को आलमज़ेब सूरत के बाहरी इलाके में एक फ्लैट में मुठभेड़ में तब मारा गया, जब वह किसी युवती से ज़ोर-ज़बरदस्ती कर रहा था। भारती नाम की युवती की चीख सुनकर पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दे दी। सब-इंसपेक्टर दलसुखभाई पारधी ने फ़्लैट में छापा मारा। उसी दौरान एनकाउंटर में आलमज़ेब मारा गया। दरअसल, कहा जाता है कि भारती को आलमज़ेब के मनोरंजन के लिए फुसलाकर लाया गया था। असलियत पता चलने पर वह विरोध करने लगी। आलमज़ेब के ज़बरदस्ती करने पर ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगी। आलमज़ेब की मौत के बाद चर्चा गरम रही कि यह सब दाऊद इब्राहिम का ही किया-धरा था। उसने ही भारती को उसके पास भेजा और अपने परिचित सब-इंस्पेक्टर दलसुखभाई पारधी को सूचना दी। आलमज़ेब जैसे ख़तरनाक अपराधी को मारने के लिए पारधी को राष्ट्रपति से मेडल भी मिला। इस तरह दाऊद के इंतक़ाम का आख़िरी चरण भी पूरा हो गया और उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। कहना अतिरंजनापूर्ण नहीं होगा कि दाऊद ने पुलिस की मदद से करीम लाला के अपराध का साम्राज्य ही ध्वस्त कर दिया।
उधर आर्थर जेल से फ़रार डेविड परदेसी तीन महीने तक आज़ाद रहा, फरवरी 1986 में पुलिस ने उसे मुठभेड़ में मार गिराया। इधर आलमज़ेब का ख़तरनाक साथी कालिया अंथोनी भी पुलिस के हाथ मारा गया। बांद्रा से लेकर अंधेरी के बेल्ट पर उसका बड़ा आतंक था। पुलिस को दोनों की टिप्स दाऊद इब्राहिम ने ही दी थी। बहरहाल, नब्बे के आख़िरी दशक में करीम लाला उमरा करने सउदी अरब गया। वहां उसकी दाऊद से मुलाक़ात हुई। दोनों ने कुरान की कसम ली कि एक दूसरे के आदमियों पर अब हमले नहीं कि जाएंगे। इस तरह दाऊद की पठानों से परंपरागत दुश्मनी ख़तम हो गई।
(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)
अगला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें – द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 21
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