हरिगोविंद विश्वकर्मा
आमिरज़ादा की सनसनीखेज हत्या के 24वें दिन यानी 30 सितंबर 1983 को एक आपराधिक केस के सिलसिले में बड़ा राजन की बीएमसी मुख्यालय के पास स्थित एस्प्लानेड कोर्ट में पेशी थी। यह जानकारी आलमज़ेब के सूत्रों ने उसे दी थी। इसके बाद आमलजेब ने उसी पेशी के दौरान अन्ना राजन का गेम बजाने की योजना बनाई और अब्दुल कुंजू से कहा कि इस प्लान पर बिना फेल हुए अमल करे। कुंजू ने भी अन्ना राजन की तरह एकदम नए लड़के चंद्रकांत (कई पुलिस अफ़सर उसका नाम चंद्रशेखर बताते हैं) सफालिका को अन्ना की हत्या की ज़िम्मेदारी सौंपी। चंद्रकांत ऑटोरिक्शा ड्राइवर था। वह भी पहले ही अन्ना राजन की गुंडई का शिकार हो चुका था। अन्ना राजन के गुंडे हफ़्ता न देने पर कई बार उसे पीट चुके थे। उस वक़्त उसे अपनी बहन की शादी के लिए रुपए की ज़रूरत भी थी।
चंद्रकांत सफालिका को अब्दुल कुंजू ने उसे 50 हज़ार रुपए की बड़ी मोटी रकम सुपारी के रूप में दी। सफालिका अन्ना राजन का काम-तमाम करने के लिए तैयार तो हो गया, लेकिन उस समय तक उसने कोई अपराध नहीं किया था। लिहाज़ा, उसे तो हथियार तक चलाना नहीं आता था। महेश ढोलकिया ने उसके लिए ट्रेनिंग का इंतज़ाम भी कर दिया। वहीं विक्रोली पार्कसाइट के पास जंगल में क़रीब 15 दिन उसे विधिवत रिवॉल्वर चलाने की ट्रेनिंग दी गई। उसका निशाना चेक किया गया। जब यह महसूस किया गया कि सफालिका ने सफलतापूर्वक ट्रेनिंग पूरी कर ली तब उसे अन्ना का गेम बजाने का आदेश किया गया। एक दिन अब्दुल कुंजू के निर्देश पर चंद्रकांत सफालिका को महेश मोरे नाम के शूटर के साथ अंबेसडर कार में बैठाकर रवाना कर दिया गया। उसी दिन उसे बड़ा अन्ना की अदालत परिसर में सरेआम हत्या करनी थी।
बहरहाल, अन्ना राजन को आर्थर रोड जेल से कोर्ट रूम में लाया गया, उस समय एहतियात के तौर पर ज़रूरत से ज़्यादा पुलिस फ़ोर्स तैनात थी। आमिर की हत्या जज के सामने होने से मुंबई पुलिस की ख़ूब किरकिरी हुई थी, लिहाज़ा इस बार फूल-प्रूफ़ इंतज़ाम किया गया था। पुलिस के अलावा सादी वर्दी में ख़ुफिया विभाग के लोग भी वहां घूम रहे थे। कोर्ट में आने वाले हर शख़्स की गहनी तलाशी ली जा रही थी। यहां तक कि वकीलों को भी बिना जांच के अंदर नहीं छोड़ा जा रहा था। पुलिस ने सुनिश्चित कर लिया था कि अदालत में कोई भी हथियारबंद व्यक्ति न घुसने पाए। बहरहाल, अदालत बैठी और अन्ना राजन को जज के सामने पेश किया गया। घंटे भर में अदालती कार्यवाही पूरी हुई। अन्ना को सुरक्षित कोर्ट से बाहर पुलिस वैन के पास लाया गया। पुलिस वाले उस समय राहत की सांस ले रहे थे कि चलों किसी तरह की कोई अनहोनी नहीं हुई।
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अन्ना राजन का गेम न होने से आलमज़ेब के लोग अब्दुल कुंजू पर ग़ुस्सा कर रहे थे। वह अपना किया वादा पूरा करने में वह नाकाम रहा। पठान गिरोह को लगा, उन्होंने एक डरपोक और असक्षम आदमी को अन्ना राजन को मारने की सुपारी दे दी। कई लोगों ने गुस्से में कहा कि इस कुंजू का ही गेम बजा दिया जाए, लेकिन करीम लाला ने समझाया कि अभी भी समय है, अगर कुंजू वाक़ई पेशेवर अपराधी है तो अपना काम ज़रूर करेगा, क्योंकि अन्ना को अदालत से आर्थर रोड जेल ले जाने के बीच कहीं भी ख़त्म किया जा सकता है। करीम लाला की बात सबको उचित लगा और उसके बाद पठान्स शांत हो गए। सबने इंतज़ार करने का फैसला किया। कुछ लोगों को लग रहा था कि कुंजू अपना काम करेगा, जबकि कई लोगों को उसकी योग्यता पर संदेह था।
एस्प्लानेड कोर्ट के आसपास खड़े लोगों ने उसी समय देखा कि आज़ाद मैदान की ओर से एक नेवी अफ़सर पैदल ही चला आ रहा है। नेवी अफ़सर सीधे पुलिस वैन की ओर बढ़ा रहा था, जहां अन्ना राजन हाथ में हथकड़ी पहने खड़ा था और सुरक्षा के लिए तैनात कॉन्सटेबल से किसी विषय पर बातचीत कर रहा था। नेवी अफ़सर पुलिस वैन के पास पहुंचने के बाद अन्ना से बतिया रहे पुलिस को कुछ बताने का इशारा किया और उसकी ओर बढ़ गया। पास पहुंच कर धीरे से उसने उसके कान में फुसफुसा कर कुछ कहा। शायद वह पुलिस को कोई अहम इनपुट दे रहा था। लोगों ने भी यही सोचा कि नेवी अफ़सर पुलिस को कुछ ब्रीफ़ कर रहा है। उसी समय बहुत ज़ोरदार धमाका हुआ। यह गोली चलने की आवाज थी। वहीं किसी ने फ़ायर कर दिया था।
पुलिस और आम लोगों ने चौंक कर अन्ना राजन की तरफ़ देखा। अन्ना राजन कोलैप्स्ड होकर ज़मीन पर पड़ा था। उसके माथे से खून बह रहा था। इसके बाद वहां अफरा-तफरी मच गई। लोग हैरतअंगेज़ रह गए कि अचानक इतनी तगड़ी पुलिस सुरक्षा में यह क्या हो गया। नेवी अफ़सर अपना रिवॉल्वर ऊपर उठाए आत्मसमर्पण की मुद्रा में वहीं खड़ा था। दरअसल, नेवी अफ़सर के यूनीफ़ॉर्म में कोई और नहीं, बल्कि चंद्रकांत सफालिका था। उसने राजन अन्ना की हत्या करने के बाद भागने की बिल्कुल कोशिश नहीं की। सीधे सरेंडर के लिए अपने हाथ ऊपर उठा दिए थे। सुरक्षा में तैनात इंसपेक्टर ने अन्य पुलिस वालों की मदद से उसे पकड़ लिया। इस तरह पठान गैंग ने आमिरज़ादा की हत्या का बदला ले लिया।
बेहद ख़तरनाक अपराधी साधु शेट्टी शुरू से दाऊद इब्राहिम का वफ़ादार था। अन्ना के हत्यारे सपालिका को ज़मानत मिलते ही साधु शेट्टी ने उसे लालच देकर गैंगस्टर अब्दुल मजिद के ठाणे स्थि बार में बुलाया। वहां छककर उसे दारू पिलाई। इतनी शराब पिला दी कि सफालिका एकदम से होश खो बैठा। बाद में उसे नूरुल हक़ के अड्डे पर ले जाया गया। वहां उसे बहुत अमानवीय तरीक़े से टॉर्चर किया गया। बताते हैं कि उसे टार्चर करने के बाद अंत में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट एमानुएल अमोलिक को सौंप दिया गया। बताते हैं कि एमानुएल अमोलिक सफालिका को लेकर अगले दिन सांताक्रुज मिलन सबवे के पास गए। दाऊद की सलाह पर उसकी वहीं एनकाउंटर करने का स्थान तय किया गया था। एमानुएल अमोलिक और क्राइम ब्रांच अफ़सरों से रिवॉल्वर मांगकर छोटा राजन ने सफालिका की कनपटी पर रिवॉल्वर लगाई और दनादन चार गोलियां दाग दी। सफालिका की खून से सनी लाश ज़मीन पर लुढ़क गई। कहा गया कि वह मुठभेड़ में मारा गया।
(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)
अगला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें – द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 19
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