योगी-काल में पहले मुन्ना बजरंगी, विकास दुबे, अतीक अहमद और अब मुख़्तार सुभान अंसारी का अंत
संसार में शहंशाह कोई नहीं, बस समय शहंशाह होता है। कहा जाता है कि अगर समय आपके साथ है तो आप शहंशाह है, लेकिन अगर समय आपके साथ नहीं है तो आपकी कोई औक़ात नहीं है। जो समय आपको राजा बनाता है, वही आपको रंक भी बना देता है। यही चरितार्थ हुआ पहले मुन्ना बजरंगी के साथ। उसके बाद विकास दुबे और अतीक अहमद के साथ और 28 मार्च 2024 को अपराध की दुनिया के बेताज़ बादशाह मुख़्तार सुभान अंसारी के साथ। समय उसके साथ नहीं थी। इसीलिए वह शायद ज़िंदगी में सबसे लाचार था।
जी हां, तकरीबन तीन दशक तक शहंशाह की तरह अपराध का एक छत्र साम्राज्य कायम करने वाले मुख्तार अंसारी बृहस्पतिवार की रात उत्तर प्रदेश के रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज, बांदा में एक स्ट्रैचर पर निर्जीव पड़ा था। वह मुख्तार अंसारी नहीं था, बल्कि उसका शव था। अलग अलग जिलों के थानों में दर्ज कुल 65 मुकदमे में आरोपी मुख्तार अनगिनत लोगों को असमय मौत की नींद सुला दिया था। लेकिन माफिया डॉन आज खुद चिर निद्रा में सो गया।
चार दशक तक अपराध की बादशाहत कायम करने वाले माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की बांदा जेल में हार्ट अटैक से मौत हो गई। अस्पताल के बांदा मेडिकल बुलेटिन में बताया गया कि बांदा जेल में तबीयत बिगड़ने के बाद मुख्तार को मेडिकल कॉलेज अस्पताल लाया गया, जहां इलाज के दौरान डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। वैसे भले ही आधिकारिक तौर पर कहा जा रहा है कि डॉन की मौत इलाज के दौरान हुई। लेकिन जेल सूत्रों का कहना है कि उसकी मौत जेल में ही हो गई थी।
दरअसल, नियति मुख्तार को खींचकर बांदा ले आई थी, क्योंकि पहले वह पंजाब की रोपड़ जेल में बंद था। दरअसल, उसे एक मुक़दमे की सुनवाई के लिए रोपड़ से वापस बांदा जेल में शिफ्ट किया गया था। विकास दुबे के इन्काउंटर के बाद मुख़ातर डर गया। यूपी में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद मुख्तार यूपी में वापस नहीं आना चाहता था। उसे डर था कि योगी उसका इन्काउंटर करवा देंगे।
वैसे उसे यूपी वापस लाने के लिए यूपी सरकार को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। पंजाब और यूपी सरकार के बीच खींचतान चली थी। अंततः उत्तर प्रदेश सरकार ने मामला सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। देश की सबसे बड़ी अदालत ने सुनवाई के बाद मुख्तार को यूपी शिफ्ट करने का फरमान सुना दिया। इसके बाद 7 अप्रैल 2021 को भारी सुरक्षा इंतजामों के बीच मुख्तार अंसारी को पंजाब के रोपड़ से हरियाणा के रास्ते आगरा, इटावा और औरैया होते हुए बांदा जेल पहुंचा दिया गया।
दरअसल, मऊ में दंगा भड़काने के मामले में मुख्तार ने गाजीपुर पुलिस के सामने सरेंडर किया था। और तभी से वो जेल में था। पहले उसे गाजीपुर जेल में रखा गया, फिर वहां से मधुरा जेल भेजा दिया गया। उसके बाद मथुरा जेल से आगरा जेल और आगरा से बांदा जेल भेज दिया गया था। उसके बाद मुख्तार को बाहर आना नसीब नहीं हुआ।
गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार के दंपति सुबहानउल्लाह अंसारी और बेगम राबिया के घर में एक बच्चे का जन्म हुआ। उन्होंने बच्चे का नाम मुख्तार रखा। उर्दू में मुख्तार का अर्थ होता है अपनी इच्छा के अनुसार काम करने में स्वतंत्र व्यक्ति। उस समय गाजीपुर में अंसारी परिवार की बड़ी प्रतिष्ठा थी। परिवार राजनीतिक खानदान का था। मुख़्तार के दादा डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे।
डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी गांधी के सहयोगी और देशभक्त थे। वह 1926-27 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। मुख़्तार के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को 1947 की लड़ाई में शहादत के लिए महावीर चक्र से नवाज़ा गया था। मुख्तार के पिता सुबहानउल्लाह अंसारी गाजीपुर में अपनी साफ सुधरी छवि के साथ राजनीति में सक्रिय रहे थे। पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में मुख़्तार अंसारी के चाचा लगते थे।
वैसे नौबदार मूछों वाला मुख्तार अंसारी माफिया कैसे बन गया, इसकी लंबी कहानी है। मुख्तार भले ही इस दुनिया से चल बसा हो, लेकिन मऊ और उसके आसपास के इलाके में मुख्तार अंसारी की तुती बोलती थी। एक वक्त ऐसा भी था जब पूरा सुबा मुख्तार के नाम से कांपता था। दरअसल, मुख़्तार और बृजेश सिंह जैसे अपराधियों का उदय गोरखपुर के दो कुख्यात अपराधी हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही की दुश्मनी के चलते हुआ।
हरिशंकर के दो शार्प शूटर साहेब सिंह और मटनू सिंह थे। मटनू की गाजीपुर जेल के पास हत्या हो गई। तो उसके भाई साधु सिंह हरिशंकर के लिए काम करने लगा। उसी जिले का मुख़्तार साधु सिंह का साथी बन गया। मुख़्तार को अपराध में अच्छा स्कोप दिखा। बहरहाल साधू सिंह ने 1984 में ज़मीन विवाद में बृजेश सिंह के पिता की हत्या कर दी। साधू का मित्र होने के कारण मुख़्तार बृजेश के निशाने पर आ गया। दोनों एक दूसरे के ख़ून के प्यासे हो गए।
धीरे-धीरे ठेकेदारी, खनन, स्क्रैप, शराब, रेलवे ठेकेदारी में मुख्तार का दबबदा हो गया। इसी के दम पर उसने अपनी सल्तनत खड़ी कर ली थी। कहा जाता है कि वह अगर अमीरों से लूटता था, तो गरीबों में बांटता भी था। ऐसा मऊ के लोग कहते हैं कि सिर्फ दबंगई ही नहीं बल्कि बतौर विधायक मुख्तार अंसारी ने अपने इलाके में बहुत काम किया था। सड़कों, पुलों, अस्पतालों और स्कूल-कॉलेजों पर यह रॉबिनहुड अपनी विधायक निधी से 20 गुना ज्यादा पैसा खर्च करता था।
उसका सियासी सफ़र 1996 में शुरू हुआ, जब वह बहुजन समाज पार्टी (BSP) के टिकट पर जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचा। उसके बाद वह 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी मऊ से जीत हासिल करके विधान सभा पहुंचा। वह बीजेपी को छोड़कर उत्तर प्रदेश की हर बड़ी पार्टी में शामिल रहा। मुख्तार अंसारी 24 साल तक लगातार यूपी की विधानसभा पहुंचता रहा। आखिरी 3 चुनाव उसने देश की अलग-अलग जेलों में बंद रहते हुए जीते। सियासी ढाल ने मुख्तार को जुर्म की दुनिया का सबसे खरा चेहरा बना दिया और हर संगठित अपराध में उसकी जड़ें गहरी होती चली गईं।
सियासी अदावत से ही मुख्तार का नाम बड़ा हुआ। वर्ष 2002 ने मुख्तार की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। इसी साल भाजपा विधायक कृष्णानंद राय ने अंसारी परिवार के पास साल 1985 से रही मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट छीन ली थी। कृष्णानंद विधायक के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं पाए और तीन साल बाद यानी साल 2005 में उनकी मुख़्तार के शूटर मुन्ना बजरंगी ने दिन-दहाड़े हत्या कर दी।
कृष्णानंद एक कार्यक्रम का उद्घाटन करके लौट रहे थे। तभी मुन्ना बजरंगी ने उनकी गाड़ी को चारों तरफ से घेर कर अंधाधुंध फायरिंग कर दी। हमलावरों ने AK-47 से तकरीबन 500 गोलियां चलाई और कृष्णानंद समेत गाड़ी में मौजूद सभी सातों लोग मारे गए। बाद में इस केस की जांच सीबीआई ने की। कृष्णानंद की पत्नी अलका राय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केस 2013 में गाजीपुर से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया। लेकिन मुख्तार ने गवाहों पर दबाव बनाया और सभी मुकर गए। लिहाज़ा, मामला नतीजे पर न पहुंच सका।
2019 में दिल्ली की स्पेशल अदालत ने फैसला सुनाते कहा कि अगर गवाहों को ट्रायल के दौरान विटनेस प्रोटेक्सान स्कीम 2018 का लाभ मिलता तो नतीजा कुछ और हो सकता था। गवाहों के मुकरने से मुख्तार बरी हो गया। मुख्तार भले ही जेल में रहा, लेकिन उसका गैंग हमेशा सक्रिय रहा। लेकिन योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद उसके बुरे दिन शुरू हो गए।
मुख्तार अंसारी के खिलाफ कुल 65 केस दर्ज है। अकेले उत्तर प्रदेश में उस पर 52 केस दर्ज हैं। योगी सरकार की कोशिश 15 केस में उसे जल्द सजा दिलाने की थी। यूपी सरकार अब तक अंसारी और उसके गैंग की सैकड़ों करोड़ों की संपत्ति को या तो ध्वस्त कर चुकी है या फिर जब्त मुख्तार गैंग की अवैध और बेनामी संपत्तियों की लगातार पहचान की जा रही है। मुख्तार गैंग के अब तक करीब 100 अभियुक्त गिरफ्तार किए जा चुके हैं, जिनमें 75 मुर्गों पर गैंगेस्टर एक्ट में कार्रवाई हो चुकी है। कुल मिलाकर मुख्तार अंसारी योगी सरकार के टारगेट पर था।
मुख्तार अंसारी का खौफ इस कदर छाया हुआ था कि लोग डर के साए में जी रहे थे और सरकारें एकदम चुप्पी साधे रखती थी। जब मऊ में सड़कों पर मुख्तार का काफिला निकलता था तो लोग खुद-ब-खुद किनारे हो जाते थे। तब गोरख पीठ के संन्यासी और सांसद योगी आदित्यनाथ ने मुख्तार को खुली चुनौती दी। इसलिए जब मऊ में दंगा (Mau Riots) हुआ तो दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए योगी निकल पड़े थे। जिस गाड़ी में योगी बैठे थे, उस पर पत्थर फेंके गए। योगी का आरोप था कि ये सब मुख्तार ने कराया था।
इस वाकए का जिक्र करते हुए योगी सदन में भावुक भी हो गए थे। लेकिन वक्त का पासा ऐसा पलटा कि आज उत्तर प्रदेश की बागडोर योगी आदित्यानाथ (Yogi Adityanath) के हाथों में आ गई। अपराध की दुनिया का बड़ा अपराधी व्हीलचेयर पर बैठकर अपनी जान की दुआई दे रहा था। मुख्तार को पिछले 18 महीने में 8 मामलो में सजा मिल चुकी थी, उसके खिलाफ अलग अलग जिलों के थानों में कुल 65 मुकदमे दर्ज थे। वह 18 वर्षो से मुख्तार अंसारी जेल में बंद था।
मुख्तार ने अंतिम बार 2017 में मऊ सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था। इस चुनाव के दौरान नामांकन में दाखिल किए गए शपथपत्रों के अनुसार देश की अलग-अलग अदालतों में मुख्तार अंसारी के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, दंगे भड़काने, आपराधिक साजिश रचने, आपराधिक धमकियां देने, संपत्ति हड़पने और धोखाधड़ी करने के साथ ही सरकारी काम में बाधा डालने समेत कुल 65 मुकदमें दर्ज थे।
हालांकि बीते दिनों ही उसे करीब 36 साल पुराने गाजीपुर के फर्जी शस्त्र लाइसेंस मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। विशेष न्यायाधीश (एमपी-एमएलए कोर्ट) अवनीश गौतम की अदालत ने मुख्तार अंसारी को सजा सुनाई थी। इसी अदालत ने ही 5 जून 2023 को अवधेश राय हत्याकांड में मुख्तार अंसारी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
मुख्तार को अब तक सात मामलों में सजा मिल चुकी है। जबकि आठवें मामले में दोषी करार दिया गया है। जिस मामले में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। उसमें उनपर आरोप था कि दस जून 1987 को दोनाली कारतूसी बंदूक के लाइसेंस के लिए जिला मजिस्ट्रेट के यहां प्रार्थना पत्र दिया गया था। जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक के फर्जी हस्ताक्षर से संस्तुति प्राप्त कर शस्त्र लाइसेंस प्राप्त कर लिया गया था। इस मामले पर स्थानीय लोग बताते हैं कि यही उनके खिलाफ दर्ज किया गया पहला मामला था।
लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा