ग़ज़ल – मेरा क्या कर लोगे ज़्यादा से ज़्यादा

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ग़ज़ल
मेरा क्या कर लोगे ज़्यादा से ज़्यादा,
गुफ़्तगू ना करोगे ज़्यादा से ज़्यादा।
पता है वसूलों से समझौते की कीमत,
मालामाल कर दोगे ज़्यादा से ज़्यादा।
ना जाऊंगा मसजिद ना करूंगा पूजा,
तुम काफ़िर कहोगे ज़्यादा से ज़्यादा।
फ़साद में तुम्हारा साथ दे सकता नहीं,
मेरा घर जला दोगे ज़्यादा से ज़्यादा।
ग़लत को ग़लत सदा कहता ही रहूंगा,
मुझे क़त्ल कर दोगे ज़्यादा से ज़्यादा।
कभी भी ना छोड़ूगा सत्य का दामन,
बोटी-बोटी कर दोगे ज़्यादा से ज़्यादा।
कभी न जाऊंगा देशद्रोहियों के साथ,
कोई नाम दे दोगे ज़्यादा से ज़्यादा।
हरिगोविंद विश्वकर्मा